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नोएडा में भव्य पंचम फाल्गुन महोत्सव में खाटू श्याम बाबा के गुणगान

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 Noida News : 15 फरवरी 24 को नोएडा में श्याम सेवक परिवार द्वारा आयोजित भव्य पंचम फाल्गुन महोत्सव में खाटू श्याम बाबा के गुणगान में भजन, भोजन और भाव का अनूठा संगम देखने को मिला। मंडल के संस्थापक विकास जैन व अध्यक्ष सौरभ सिंगल इस महाउत्सव के लिए शाम 4 बजे ढोल नगाड़े बाजों के साथ निशान यात्रा ले मानस अस्पताल के सामने से निकले।

अंजना भागी   

नोएडा में पंजाब के ढोलियों की थाप पर नृत्य करते चलते श्रद्धालु। पंचम होली महोत्सव की इस निशान यात्रा में हवा मे रंगों की होली भी साथ साथ ही चल रही थी। श्याम सेवक परिवार के युवाओं ने पूरे प्रयास तथा पुलिस प्रशासन की मदद से निशान यात्रा को 5.30  बजे वेडिंग विला पर पहुंचा दिया। बाबा की प्रचंड ज्योति जगाई गई। कोलकाता से आए कारीगरों द्वारा सजाया दरबार, उसमें विराजे खाटू श्याम को कहीं नजर ही न लग जाए। इसलिए सच्चे मोतियों से और हीरों से बाबा श्याम खाटू की नज़र उतारी। सुबह से भाग दौड़ करते बाबा के मतवाले श्याम परिवार के सेवक अभी भी झूम झूम कर भजन संध्या में नाच रहे थे। वृंदावन की झांकिया कार्यक्रम के मध्य में बच्चों से धार्मिक क्विज, समुद्र मंथन का दृश्य इस उत्सव को यादगार बना रहे थे। लघु अग्रवाल, सचिन गोयल, निखिल अग्रवाल, कपिल लखोटिया, सौरव सिंगल, अमित गोयल, नरेंद्र गोयल, सुभाष गर्ग, प्रवीन गर्ग, सुंदर मित्तल, विनय जैन, भारत बंसल, प्रिंस जैन, राजेश मित्तल, नरेन्द्र कुमार गोयल के पैरों में तो शायद बाबा ने पंख लगा दिए थे। व्यवस्था के साथ साथ भारतवर्ष की प्रसिद्ध भजन गायिका अंजलि द्विवेदी के भजनों पर नाच भी रहे थे। शायद नवनीत गुप्ता जी इनके प्रेरणा स्रोत हैं। जो बिना रुके कार्य कर रहे थे। बाबा के लिए 56 भोग तथा श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसाद की उत्तम व्यवस्था थी। मनीष सिंगला, विवेक अग्रवाल, मनीष अग्रवाल द्वार पर ही श्रद्धालुओं का पगड़ी बँधवा कर स्वागत कर रहे थे।

सच्चे मोतियों से और हीरों से बाबा श्याम खाटू की नज़र उतारी 

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भजन प्रवाहक शुभम रूपम के भजनो के प्रवाह पर श्रद्धालुओं का कभी मंत्रमुग्ध हो नाचना कभी भाव विभोर हो अश्रु पोंछना अनुपम संगम था इस 5 वें फाल्गुन उत्सव का। मनोज बंसल, यश गर्ग, मूलचंद गुप्ता, पंकज अग्रवाल, मोहन अग्रवाल, राजकुमार गुप्ता, मनोज जैन, वीरेंद्र सिंगल, कपिल जैन, शुभम गोयल, बंटी , विनीत महिपाल, पंकज बंसल, गौरव बंसल ,अंकुर बंसल, लोकेश कुमार, मनोज कुमार, संदीप गर्ग, रमन, राकेश गोयल, मनोज मित्तल संजय अग्रवाल, नवीन अग्रवाल, राजेश जिंदल, हरीश जैन, विशाल गर्ग, सुभाष शर्मा, अनिल कुमार, ललित गोयल, मुकेश गोयल के जैसे कार्यकर्ताओं के द्वारा  श्रद्धालुओं की अथक भीड़ को संयमित रखना  बाबा के आशीर्वाद से ही संभव था। ऐंकर शिवान दीक्षित बीच बीच में बचचोन कों होली के रंग पिचकारियों से पुरीसकृत कर रहे थे पूर्व प्रधान सुंदर मित्तल अत्यंत प्रसन्न थे l साथ ही उनकी संजय गोयल तथा तुषार गोयल की नज़रें भोजन पर भी थी कि कोई भी थका हुआ श्रद्धालु बिना भोजन न रह जाए।  श्याम परिवार के 50 सदस्य आवेदक निमंत्रण सब ही खाटू श्याम का था ।

 धर्म की स्थापना के लिए अपना शीश अर्पण करने वाले बाबा खाटू

धर्म की स्थापना के लिए अपना शीश अर्पण करने वाले बाबा खाटू के इस कीर्तन में श्याम परिवार के 50 सदस्य सेवा कार्य, व्यवस्था और सभी का स्वागत तीनों धर्म निभा रहे थे। कीर्तन के शुरू होने का तो समय था लेकिन पूर्ण होने का समय कहीं नजर ही नहीं आ रहा था। इतने बड़े श्रद्धालुओं के जन सैलाब को तो खाटू वाले से श्रद्धालुओं का प्रेम ही संभाल सकता था। कुलदीप जी प्रसादम के साथ श्रद्धालुओं को विदाई दे रहे थे। हारे का सहारा बाबा श्याम तो हर श्रद्धालु की मंशा तथा हृदय को जानते हैं। अतः इस व्यावसायिक सिटी में जब जितना कोई समय निकाल पा रहा था। वह दर्शन पा रहा था। महाभारत का युद्ध धर्म स्थापना के लिए हुआ था। धर्म की स्थापना के लिए ही युवा कुशल योद्धा बर्बरीक ने अपना शीश अर्पण किया था। बर्बरीक यानि भीम के पौत्र अत्यंत बलशाली थे। पांचों पांडवों में से भीम ही थे जिन्होंने पूरी उम्र भगवान कृष्ण का हर निर्देश माना परंतु अपने लिए कभी भी कुछ नहीं मांगा। जब बर्बरीक महाभारत के युद्ध में भाग लेने आए तो उनकी माता ने उन्हें आशीर्वाद स्वरूप कहा कि, “ पुत्र तुम हारे का सहारा बनना”।  बर्बरीक को देवी निकुंभा से असशीर्वाद स्वरूप तीन तीर प्राप्त थे जिनमें से पहला टारगेट करता था। दुसरा जो युद्ध से अलग थे उन्हें अलग कर बाकी को चिन्हित करता। तीसरा तीर संधान करते ही सब ही चिनहितों का विनाश यानी युद्ध समाप्त। भगवान कर्षण चिंतित हो गए। उन्होंने इस युद्ध को रोकने का हर प्रयास किया क्योंकि घर की लड़ाई में तो अपने परिवार का भी विनाश होता है। ।

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 हारे का सहारा बाबा श्याम खाटू

यदि बर्बरीक इसमें भाग लेते हैं तो धरम स्थापना का तो उद्देश्य ही  समाप्त  हो जाता। अत: बर्बरीक ने श्री कृष्ण को अपना शीश अर्पण किया और वे युद्ध के प्रत्यक्ष दृष्टा बने। महाभारत के अंत में जब गांधारी ने खाटू श्याम से प्रश्न किया था की पुत्र तुमने इस युद्ध में क्या देखा। तब बर्बरीक का कहना था की मैंने चारों और कृष्ण ही कृष्ण को देखा।  मरने वाले भी कृष्ण थे तथा मारने वाले भी श्री कृष्ण ही दिखाई दिए। भगवान श्री कृष्ण को शीश चढ़ाने पर जहां बर्बरीक का शीश रखा था उसी स्थान पर खाटू नरेश का मंदिर बना कृष्ण जी  ने बर्बरीक को ये आशीर्वाद दिया था कि जो भी खाटू श्याम के दरबार जाकर अपना शीश नवाएगा। भगवान कृष्ण उसके हर कष्ट तकलीफ दूर करेंगे।
जो भी इस मंदिर में जाता है विशेष कर उस स्थान पर जहां पर खाटू नरेश का सर कट के गिरा था भक्त की अश्रु धारा नेत्रों से स्वयं ही बहने  लगती है। अंदर दर्शन के लिए जाओ तो  वहां हर किसी को ऐसा लगता है जैसे बाबा ने अपने भक्त को आलिंगन में ले लिया है और खाटू नरेश के आगे सर झुकाने के पश्चात यह स्वयं बोध होता है कि जैसे कोई पिता अपने पुत्र को गले लगा कर धीरे-धीरे पीठ को थपका रहा हो। यही कारण है कि उनके भक्त जहां भी रहते हैं। वहाँ पर भी खाटू नरेश का गुणगान बहुत मन तथा शान से करते हैं। Noida News

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