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दो घड़े, एक लुटिया…कहां खो गई प्यासे राहगीर को पानी पिलाने की परंपरा

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Noida News :  मेरे पिताजी की सरकारी नौकरी थी। उनकी अधिकांश बदलियां उत्तर प्रदेश में ही होती थीं। जैसे लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, मेरठ इत्यादि। हम जिस स्टेशन में भी ट्रांसफर पर जाते एक चीज बहुत अच्छी लगती थी। गर्मी के मौसम में लोग पेड़ों के नीचे दो बड़े घडों में पानी भर के रख देते थे। उसके ऊपर गीला कपड़ा कौन लपेट जाता था पता नहीं? उसके ऊपर एक सिल्वर की लंबी सी डन्डी वाली छोटी सी लुटिया होती थी। इन शहरों में गर्मी और लू का तो कोई जवाब ही नहीं। अत; वहां से निकलता कोई भी प्यासा राहगीर घड़े का पानी पीता। मैंने कभी भी किसी भी राहगीरों को उस पानी को बर्बाद करते नहीं देखा था। जब हम नोएडा आए, यहां मुझे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया।

अंजना भागी

नोएडा में दूर दूर तक खाली मैदान थे। पेड़ ही नहीं थे। शायद जो लोग अपने खेत बेचकर गए थे वह जाते वक्त अपने पेड़ भी साथ ही काटकर ले गए थे। यह तो उद्यान विभाग और पर्यावरण प्रेमी लोगों ने अपनी मेहनत से यहां पर पेड़ ही पेड़ लगाए और बचाए। उद्यान विभाग ने जो पेड़ नोएडा में हमें लगा कर दिए थे। यदि आज वे सारे ही बड़े होते तो शायद तापमान का यह हाल ना होता । क्योंकि गाड़ी और पेड़ इन दोनों का 36 का आंकड़ा है। जैसे ही कोई गाड़ी लेने का मन बनाता है तो सबसे पहले उसको पार्किंग के लिए पेड़ ही बुरा लगता है इसलिए अधिकांश पेड़ तो पार्किंग ही निगल गई । पार्क में जो पेड़ हैं उनको उद्यान विभाग बचाता है और इनर सर्कल में जो पेड़ है उनको लेकर तो रोज ही हाय – हाय बनी रहती है। जबकि इसका भी एक आसान तरीका है आइसोलेटेड वायरिंग।

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जो भी सबको अच्छी सांसें कैसे मिलें, पर्यावरण तथा धरती माता का सम्मान कैसे करना है के विषय में चिंतन करते हैं वे पर्यावरण सरनक्षरण पर भी ध्यान देते हैं लेकिन ऐसे लोगों की संख्या आज बहुत ज्यादा बढ़ जाए की आवश्यकता है। ये ही कारण है कि आज ऐसी हीट वेव चल रही है कि लोग बेहोश होकर गिरते ही मर जाते हैं। 29 मई को में मेरठ डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस जाने के लिए बस में बैठी । मेरे साथ बैठी महिला उम्र से तो काफी अच्छी लग रही थी पर वह बहुत ही बेचैन सी भी लग रही थी। कैसे कैसे हो रही थी उसके साथ जो आदमी था उसने कहा तुम गोली क्यों नहीं खा लेती? यह सुनकर वह बोली खाऊं कैसे? मेरे पास पानी नहीं है। मैंने अपनी पानी की बोतल फोरन उसकी ओर बढाई और कहा आप मेरी बोतल से पानी पीकर गोली खा लें उसने फोरन बोतल लेकर हाथ से अंजुली बनाई और वह सारी पानी की बोतल पीकर आराम से बैठ गई। लेकिन मुझे जरा भी बुरा नहीं लग रहा था क्योंकि कहीं ना कहीं पानी बेचने वाले फिर चले ही आते हैं।Noida News

ऐसे ही पेड़ों के नीचे बड़े-बड़े घड़ों में पीने के पानी की व्यवस्था कर दे

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नोएडा में 30 मई बोटैनिकल गार्डन से मेट्रो पकड़ने के लिए मैं जा रही थी मेरे देखते ही देखते महिला गिरती है और वह वही खत्म हो जाती है। मैं भोंचक्का सी देखती रह जाती हूँ। मैं डिप्टी रजिस्ट्रार जी से मिलने इंदिरापुरम जा रही थी। पहले दिन तो मेरठ का ऑफिस ही बंद हो गया था। यह मुझे वहाँ पहुँच कर ही पता चला था। अगले दिन डिप्टी रजिस्ट्रार साहब ऑफिस में नहीं थे। दोपहर लगभग 1 बज रहे थे मैं नोएडा सेक्टर 62 से मेट्रो पकड़ने के लिए पुल से जा रही थी कि मुझे नीचे कुछ अलग सा लगा मैंने अपना सर मुंह सब लपेटा हुआ था क्योंकि मेरी भी मजबूरी थी जाना ही था। एक मजदूर ऐसे ही सड़क पर गिरकर मर गया। 31 मई मैं डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस गाजियाबाद जा रही थी सारा रास्ता तो मेट्रो से काटा लेकिन कुछ रास्ता ऐसा था जो कि मुझे ई रिक्शा से ही जाना पड़ा पूरे रास्ते पेड़ों का नामों निशान नहीं। ऑफिस ऐसी जगह जिसके आसपास कुछ भी नहीं था। ऑफिस का फ्रंट शीशे का और उसमें आती पूरी तरह से गर्मी की तपिश वहाँ लगभग सब ही मुझे पहचान गए। क्योंकि मैं लगभग 10 महीनों से अपनी अर्जियाँ पहुँचा रही थी। जब मैं वापस आने के लिए नीचे पहुंची तो आते हैं पहले सड़क पर मैंने वोमिटिंग की पर मेरे पास ओ आर एस था एक दुकान से मैंने ठंडा पानी खरीदा थोड़ा थोड़ा पीते मैं अपने घर तक पहुँच ही गई। हमारा शरीर 104 डिग्री से ऊपर का तापमान नहीं झेल पाता। इसलिए जिस प्रकार सर्दियों में आमजन को ठंड से बचाने के लिए नोएडा प्राधिकरण जगह-जगह अलाव लगता है। यदि ऐसे ही पेड़ों के नीचे बड़े-बड़े घड़ों में पीने के पानी की व्यवस्था कर दे तो, पानी की बोतल जो आज 20 रुपये की आती ही। 20 रुपये की बोतल खरीदने की हैसियत भी सब कोई नहीं रख पाता। कम से कम घड़ों से पानी पीकर लोग अपनी जान तो बचा लेंगे । आज 5 जून धरती का दिवस है मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप सब मिलकर जहां भी स्थान मिले अपने लिए एक-एक पेड़ लगाए और उसको सुरक्षित बढ़ायें। एक पेड़ को बड़ा होने में चार-पांच साल लग जाते हैं। आज से हम यह काम शुरू करेंगे तो पर्यावरण बदलते 2 तीन चार साल लग जाएंगे और यूं सड़क पर चलते लोग भी शायद आगे से ना मारेंगे। क्योंकि मन को कष्ट तो होता ही है न ।

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