Noida Covid 19 Breaking News : गौतमबुद्ध नगर में ओमिक्रॉम का पहला मामला सामने आया




Real Story: आज हम आपको एक ऐसी अफगानी मूल की महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने तालिबानी सत्ता में करीब 10 साल तक न सिर्फ पुरुष बनकर संघर्ष किया बल्कि बहुत नजदीक से तालिबानी हुकूमत की महिलाओं के लिए क्रूरता और जुल्म का माहौल देखा। इस महिला ने आत्मकथा द सीक्रेट ऑफ माई टर्बन में अपने संघर्ष की कहानी शेयर की है।
1985 में काबुल में पैदा हुई, नादिया गुलाम 8 साल की थी जब एक बम के धमाके ने उनके घर को तहस नहस कर दिया, इस धमाके में उनका भाई को मर गया। इसमें माता-पिता के आजीविका का साधन खत्म हो चुका था और साथ ही पिता तनाव से घिर गए थे और मां तालिबान के कानून के वजह से काम पर नहीं जा सकती थी। दो साल तक नादिया का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में हुआ। इस धमाके में उनका चेहरा बुरी तरह झुलस गया था।
तालिबानी हुकूमत में महिलाओं को काम करने की मनाही थी। इसलिए अपने परिवार को चलाने के लिए नादिरा ने 11 साल की उम्र में अपने भाई की पहचान लेने का फैसला किया और फिर वो 10 साल तक एक पुरुष बनकर जीने लगी। इसके बाद उन्होंने अगले 10 साल तक हर वो छोटा-मोटे जैसे कुएं खोदने से लेकर खेती करने तक के शारीरिक श्रम किए, जिससे वो अपने परिवार का खर्चा उठा सकें। इस दौरान कई बार वो तालिबानियों के हाथ लगने से भी बाल-बाल बचीं।
एक इंटरव्यू में सवाल पूछे जानें पर कि अफगानिस्तान में युद्ध की शुरुआत और तालिबानी शासन की स्थापना से पहले उनका जीवन कैसे था और क्या हो गया, इस बारे में नादिया ने बताया कि युद्ध से पहले, मैं दुनिया के किसी भी बच्चे की तरह एक खुशहाल सामान्य जीवन व्यतीत कर रही थी। मेरे पिता स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत थे और मेरी मां एक गृहिणी थीं। मैं स्कूल जाती थी और मेरे आसपास की महिलाएं काफी स्वतंत्र थी। लेकिन तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद नादिया को परिस्थितियों के कारण, बुनियादी और औपचारिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ा।
Real Story: आज हम आपको एक ऐसी अफगानी मूल की महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने तालिबानी सत्ता में करीब 10 साल तक न सिर्फ पुरुष बनकर संघर्ष किया बल्कि बहुत नजदीक से तालिबानी हुकूमत की महिलाओं के लिए क्रूरता और जुल्म का माहौल देखा। इस महिला ने आत्मकथा द सीक्रेट ऑफ माई टर्बन में अपने संघर्ष की कहानी शेयर की है।
1985 में काबुल में पैदा हुई, नादिया गुलाम 8 साल की थी जब एक बम के धमाके ने उनके घर को तहस नहस कर दिया, इस धमाके में उनका भाई को मर गया। इसमें माता-पिता के आजीविका का साधन खत्म हो चुका था और साथ ही पिता तनाव से घिर गए थे और मां तालिबान के कानून के वजह से काम पर नहीं जा सकती थी। दो साल तक नादिया का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में हुआ। इस धमाके में उनका चेहरा बुरी तरह झुलस गया था।
तालिबानी हुकूमत में महिलाओं को काम करने की मनाही थी। इसलिए अपने परिवार को चलाने के लिए नादिरा ने 11 साल की उम्र में अपने भाई की पहचान लेने का फैसला किया और फिर वो 10 साल तक एक पुरुष बनकर जीने लगी। इसके बाद उन्होंने अगले 10 साल तक हर वो छोटा-मोटे जैसे कुएं खोदने से लेकर खेती करने तक के शारीरिक श्रम किए, जिससे वो अपने परिवार का खर्चा उठा सकें। इस दौरान कई बार वो तालिबानियों के हाथ लगने से भी बाल-बाल बचीं।
एक इंटरव्यू में सवाल पूछे जानें पर कि अफगानिस्तान में युद्ध की शुरुआत और तालिबानी शासन की स्थापना से पहले उनका जीवन कैसे था और क्या हो गया, इस बारे में नादिया ने बताया कि युद्ध से पहले, मैं दुनिया के किसी भी बच्चे की तरह एक खुशहाल सामान्य जीवन व्यतीत कर रही थी। मेरे पिता स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत थे और मेरी मां एक गृहिणी थीं। मैं स्कूल जाती थी और मेरे आसपास की महिलाएं काफी स्वतंत्र थी। लेकिन तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद नादिया को परिस्थितियों के कारण, बुनियादी और औपचारिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ा।
