Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda 1
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calendar29 Nov 2025 05:37 AM
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Sanskrit: त्वं रथं प्र भरो योधमृष्वमावो युध्यन्तं वृषभं दशद्युम्। त्वं तुग्रं वेतसवे सचाहन्त्वं तुजिं गृणन्तमिन्द्र तूतोः॥ ऋग्वेद ६-२६-४॥

Hindi : हे परमेश्वर! आपने जीवन के संघर्ष के लिए एक महान शरीर रथ हमें प्रदान किया है। जो दस इंद्रियों से शोभित है। इस जीवन के संग्राम में जो दृढ़ रहकर संघर्ष करते हैं उसकी आप रक्षा करते हैं। आप अहंकार और हिंसा को दूर करते हैं और उपासक को प्रोत्साहित करते हैं। (ऋग्वेद ६-२६-४)

English : O God! You have given us a great chariot in the form of the body for the struggle of life. One who is adorned with the ten Indriyan. You protect those who fight resolutely in the battle of this life. You remove arrogance and violence and encourage the worshipper. (Rig Veda 6-26-4)

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Sanskrit: त्वं रथं प्र भरो योधमृष्वमावो युध्यन्तं वृषभं दशद्युम्। त्वं तुग्रं वेतसवे सचाहन्त्वं तुजिं गृणन्तमिन्द्र तूतोः॥ ऋग्वेद ६-२६-४॥

Hindi : हे परमेश्वर! आपने जीवन के संघर्ष के लिए एक महान शरीर रथ हमें प्रदान किया है। जो दस इंद्रियों से शोभित है। इस जीवन के संग्राम में जो दृढ़ रहकर संघर्ष करते हैं उसकी आप रक्षा करते हैं। आप अहंकार और हिंसा को दूर करते हैं और उपासक को प्रोत्साहित करते हैं। (ऋग्वेद ६-२६-४)

English : O God! You have given us a great chariot in the form of the body for the struggle of life. One who is adorned with the ten Indriyan. You protect those who fight resolutely in the battle of this life. You remove arrogance and violence and encourage the worshipper. (Rig Veda 6-26-4)

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Guru Gobind Singh Jayanti- गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर जानिए उनकी जीवनी

गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी Guru Gobind Singh Jayanti Thumbnail Pic
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calendar08 Jan 2022 05:09 PM
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Guru Gobind Singh Jayanti - गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर जानिए उनकी जीवन कथा  भारत में और विदेश में हर साल सिख समुदाय के 10वें गुरु, "गुरु गोबिंद सिंह की जयंती (Guru Gobind Singh Jayanti) " काफी जोश, हर्ष और उत्साव के साथ मनाई जाती है। इस पावन पर्व के शुभ दिन पर आइए जानते है " गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी (Guru Gobind Singh Bio in Hindi)" !- >> जन्म तिथि: 5 जनवरी, 1666 >> जन्म स्थान: पटना साहिब, भारत >> मृत्यु: 7 अक्टूबर 1708 >> मृत्यु स्थान: हजूर साहिब, नांदेड़, भारत >> पूज्य पिता: श्री गुरु तेग बहादुर जी (9वें सिख गुरु) >> पूज्य माता: माता गुजरी जी >> प्रमुख कार्य: पेश किया खालसा और पांच ''; सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को शाश्वत गुरु घोषित किया; जफरनामा, बचित्तर नाटक, चौपाई (सिख धर्म), अकाल उस्तात, जाप साहिब, तव-प्रसाद सवाई, चंडी दी वार

Guru Gobind Singh Jayanti: गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रारंभिक जीवन (Early Life)

गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक "सोढ़ी खत्री" परिवार में अवतार लिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बचपन के पहले चार साल पटना (बिहार) में बिताए, बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार के साथ पंजाब चले गए। पटना में तख्त श्री पटना हरमिंदर साहिब इस जगह का प्रतिनिधित्व करते हैं। और, अंत में, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी स्कूली शिक्षा "चक नानकी" में पूरी की, जो उत्तरी भारत की तलहटी में स्थित है। गुरु गोबिंद सिंह जी घोड़ों की सवारी, धनुर्विद्या आदि के कौशल में माहिर थे।

पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा बलिदान (Sacrifice by Shri Guru Tegh Bahadur)

गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता Guru Tegh Bahadur (श्री गुरु तेग बहादुर) ने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए औरंगजेब (Aurangzeb) के आदेश के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सार्वजनिक रूप से उनका सिर कलंक करवा दिया गया।

गुरु गोबिंद सिंह जी बने दसवें सिख गुरु (Guru Gobind Singh became The 10th Sikh Shri Guru)

गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद, केवल 9 वर्ष की अल्पायु में ही, उन्हें 29 मार्च 1676 को सिखों द्वारा 10वें सिख गुरु के रूप में सिख शासन गुरु गोविंद सिंह जी को सौंप दिया गया था। >> यह जरूर पढ़े:- स्वामी विवेकानंद जयंती पर क्यों मनाया जाता है "राष्ट्रीय युवा दिवस" ? . [caption id="attachment_14049" align="aligncenter" width="524"]गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी- Guru Gobind Singh गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी- Guru Gobind Singh[/caption]

व्यक्तिगत जीवन (Guru Gobind Singh Personal Life)

गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन पत्नियां थीं। 21 जून 1677 को उनका विवाह बसंतगढ़ में माता जीतो से हुआ। उनके तीन बेटे- जुझार सिंह का जन्म 1691 को हुआ, जोरावर सिंह का जन्म 1696 में और फतेह सिंह का जन्म 1699 में हुआ। उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी माता सुंदरी से 4 अप्रैल, 1684 को आनंदपुर में शादी की, जिनके साथ उनका एक बेटा अजीत सिंह था, जिनका जन्म 1687 को हुआ था। उनकी तीसरी पत्नी माता साहिब देवन थीं, जिनसे उन्होंने 15 अप्रैल, 1700 को आनंदपुर में शादी की। उनके कोई संतान नहीं थी। माता साहिब देवन ने सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा "खालसा की माँ " के रूप में घोषित किया गया।

खालसा की नींव (Foundation of the Khalsa)

वैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में एक आध्यात्मिक सत्र के दौरान, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक स्वयंसेवक के लिए कहा जो अपना सिर बलिदान कर सके। सत्र में बैठा एक स्वयंसेवक आगे आया, जिसे वह तंबू के भीतर ले गए। उसके बाद, वह उस स्वयंसेवक को भीतर छोड़ कर बाहर आए लेकिन जब वे बाहर आए उनके हात में खून से भरी तलवार थी। उन्होंने फिर कहा की, कोई एक स्वयंसेवक आगे आए जो अपना सिर बलिदान कर सके। ऐसा एक ही उदाहरण और तीन बार दोहराया। आखिरकार, उन्होंने एक पांचवें स्वयंसेवक के लिए कहा जो अपना सिर बलिदान कर सके। उसे भी एक तंबू के अंदर ले जाकर, वह सभी पांच स्वयंसेवकों के साथ लौटा और उनका नाम "पंज प्यारे (Panj Pyaare)" रखा। उन पंज प्यारों के नाम (Name of Panj Pyaare) है - दया सिंह, धर्म सिंह, मोहकम सिंह, हिम्मत सिंह और साहिब सिंह। गुरु गोबिंद सिंह जी ने, पानी और चीनी मिलाकर अमृत तैयार किया और पंज प्यारे को प्रशासित किया और उन्हें पहले पांच "खालसा" के रूप में बपतिस्मा (Baptized) दिया। फिर उन्होंने उन पांचों को, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को खालसा के रूप में बपतिस्मा देने के लिए कहा। इस प्रकार श्री गुरु गोबिंद सिंह जी खालसा के रूप में बपतिस्मा लेने वाले छठे सिख बने। तभी उन्होंने अपना नाम 'गोबिंद राय' से 'गोबिंद सिंह जी' रख लिया। >> यह जरूर पढ़े:- सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री सिंधुताई सपकाल की प्रेरणा जीवनी 

खालसा के पांच 'क' (The Five K’s of Khalsa)

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में प्रत्येक खालसा द्वारा पालन की जाने वाली पांच " " की परंपरा की शुरुआत की - "केश" (बिना कटे बाल), "कारा" (लोहे या स्टील का कंगन), "कंगा" (लकड़ी की कंघी), "कछेरा" (छोटी जांघिया), "कृपाण" (तलवार या खंजर)। इसके अलावा, उन्होंने खालसा योद्धाओं द्वारा तंबाकू, हलाल मांस, व्यभिचार और व्यभिचार का सेवन नहीं करने को कहा। सिख धर्म में समानता की भावना इस प्रकार के बपतिस्मा ने सिखों में समानता की भावना को जन्म दिया। उनकी जाति, प्रथा और परंपरा के बावजूद, उन सभी की पहचान खालसा (यानी शुद्ध) के रूप में की गई थी। . [caption id="attachment_14047" align="aligncenter" width="758"]Guru Gobind Singh Jayanti- Guru Granth Saheb Guru Gobind Singh Jayanti- Guru Granth Sahib[/caption]

श्री गुरु ग्रंथ साहिब (Shri Guru Granth Sahib)

सिखों का प्राथमिक ग्रंथ, "श्री गुरु ग्रंथ साहिब (Shri Guru Granth Sahib)", पूज्य गुरु जी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में तैयार किया गया था। तलवंडी साबो (उर्फ "श्री गुरु की काशी") में अपने प्रवास के दौरान, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ,ने श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा दिए गए छंदों को आदि ग्रंथ में उपयुक्त स्थानों पर भाई मणि सिंह के साथ मुंशी के रूप में जोड़ा। इस पवित्र ग्रंथ में 1430 पृष्ठ हैं, जो 31 रागों से बना है और इसमें 5894 भजन हैं। इसमें पहले पांच गुरुओं की बाणियां और नौवें गुरु, पंद्रह भगत और ग्यारह भट्ट शामिल हैं। यह शास्त्र उनके द्वारा 'श्री गुरुशिप' पर प्रदान किया गया था। 1721 में, माता सुंदरी (श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तीसरी पत्नी) ने भाई मणि सिंह को अपनी पवित्र पुस्तक हरमिंदर साहिब, अमृतसर ले जाने का निर्देश दिया और उन्हें प्रमुख ग्रंथी के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने सवैये और जाप साहिब भी लिखे।

मसंद प्रणाली का अंत (End of Masand System in Hindi)

'मसंद प्रणालीचौथे सिख गुरु - श्री गुरु रामदास जी द्वारा पेश की गई एक अवधारणा थी। इस प्रणाली को सिख समुदाय के कल्याण के लिए धन जुटाने के लिए लाया गया था। लेकिन, बाद में, धन की अलाभकारी जबरन वसूली के कारण, इस प्रणाली को गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा समाप्त कर दिया गया था। यहां यह उल्लेख करना उचित है कि, "मसंद प्रणाली" के तहत, सिखों को अपनी मेहनत की कमाई का 1/10 भाग कल्याण कोष में योगदान करना आवश्यक था। [caption id="attachment_14048" align="aligncenter" width="699"]Guru Gobind Singh Jayanti-Hazoor Sahib Nanded Guru Gobind Singh Jayanti-Hazoor Sahib Nanded[/caption]

सिख धर्म के 10वें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के अंतिम दिन (Final days of The 10th Guru of Sikh religion)

1708 में, गुरु जी को एक मुस्लिम प्रशंसक द्वारा घायल कर दिया गया था, जिसे सरहिंद (sarhind) के सूबेदार वज़ीर खान (Wazir Khan) ने भेजा था। गुरु जी की याद में नांदेड़ में गोदावरी नदी के तट पर एक तख्त "हजूर साहिब (Hazoor Sahib)" बनाया गया था। नांदेड़ (Nanded) वह स्थान है, जहां अक्टूबर 1708 में गुरु जी दिव्य दर्शन के लिए निकले थे। श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन मानवता के उत्थान के लिए अत्यधिक समर्पित था। गुरु जी को हमेशा "समाज में बुराई और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने" के लिए प्रोत्साहित किया गया। गुरु गोविंद सिंह जी ने, दुनिया को जो कुछ भी सिखाया वह आज भी याद किया जाता है। लोग उनके द्वारा सिखाये तत्वों को जीवन के आदर्श अभ्यास के रूप में मानते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती (Guru Gobind Singh Jayanti) के पवन दिन पर गुरु गोबिंद सिंह को झुक कर प्रणाम !!!