रामचरितमानस-बालकांड की वो चौपाइयां जिनमें होगें रामलला के साक्षात दर्शन

देश भर में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की ही चर्चा है।  22 जनवरी को होने वाले इस कार्यक्रम पर सबकी नजरे लगी है

रामचरितमानस-बालकांड की वो चौपाइयां जिनमें होगें रामलला के साक्षात दर्शन
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 04:33 AM
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Ramcharitmanas : देश भर में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की ही चर्चा है।  22 जनवरी को होने वाले इस कार्यक्रम पर सबकी नजरे लगी है । हर भक्त के दिल में खुशी है कि रामलला को अब अपना स्थान मिल जाएगा, उनका भव्य मंदिर बनवाया गया है,और रामलला के इस स्वरूप का दर्शन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में अयोध्या भी जा रहे हैं। भगवान राम के बाल स्वरूप की मनमोहक छवि और चंचलता का वर्णन कई जगह पढ़ने को मिलता है हालांकि जब बाल रूप की चर्चा होती है तो भगवानकृष्ण के बाल रूप और कृष्ण की लीलाओं की चर्चा लोग अधिक करते हैं। आपने हमेश से श्रीकृष्ण बाललीला के बारे में ही सुना और पढ़ा होगा। जिसमें श्रीकृष्ण के बालपन में की गई खेल-कूद, मस्ती और माता यशोदा को उनके दिव्य रूप के दर्शन का भी वर्णन किया गया है। लेकिन केवल श्रीकृष्ण ही नहीं भगवान श्रीराम भी अपने बचपन में बेहद नटखट थे। और अपनी उन नटखट क्रीड़ाओं से माता कौशल्या को हमेशा ही चौका दिया करते थे। आप जब अयोध्या में भगवान रामलला के दर्शन  करने जाएं तो उनके बाल स्वरूप को दर्शाती रामचरितमानस की इन चौपाइयों पर भी एक बार दृष्टि जरूर डालें जो उनके उसे बाल स्वरूप के मनमोहक दर्शन से भाव विभोर कर देगी और ऐसा लगेगा कि रामलला का वह बाल स्वरूप आपकी आंखों के आगे जीवंत हो गया है। गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस के बालकांड में वर्णित वो चौपाइयां जहां माता कौशल्या को रामलला ने चकित कर दिया था ।  दोहा : *प्रें मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।200।। भावार्थ :- प्रेम में मग्न कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के स्नेहवश माता उनके बालचरित्रों का गान किया करतीं।। चौपाई : Ramcharitmanas *एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए।। निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना।।1।। भावार्थ : एक बार माता ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया।।1।। *करि पूजा नैवेद्य चढ़ावा। आपु गई जहँ पाक बनावा।। बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई ।।2।। भावार्थ :- पूजा करके नैवेद्य चढ़ायाऔर स्वयं वहाँ गईं, जहाँ रसोई बनाई गई थी। फिर माता वहीं (पूजा के स्थान में) लौट आई और वहाँ आने पर पुत्र को (इष्टदेव भगवान के लिए चढ़ाए हुए नैवेद्य का) भोजन करते देखा।।2।। *गै जननी सिसु पहिं भयभीत। देखा बाल तहाँ पुनि सूता।। बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कंप मन धीर न होई ।।3।। भावार्थ : माता भयभीत होकर (पालने में सोया था,यहाँ किसने लाकर बैठा दिया, इस बात से डरकर) पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को सोया हुआ देखा। फिर (पूजा स्थान में लौटकर) देखा कि वही पुत्र वहाँ (भोजन कर रहा) है। उनके हृदय में कम्प होने लगा और मन को धीरज नहीं होता ।।3।। *इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा।। देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।। भावार्थ : (वह सोचने लगी कि) यहाँ और वहाँ मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है? प्रभु श्री रामचन्द्रजी माता को घबड़ाई हुई देखकर मधुर मुस्कान से हँस दिए।।4।। दोहा : *देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड। रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ।।201।। भावार्थ : फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं।। Ramcharitmanas चौपाई : *अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन।। काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ।।1।। भावार्थ : अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे।।1।। *देखी मया सब बिधि गाढ़ी। अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी।। देखा जीव नचावइ जाही। देखी भगति जो छोरइ ताही।।2।। भावार्थ : सब प्रकार से बलवती माया को देखा कि वह (भगवान के सामने) अत्यन्त भयभीत हाथ जोडे़ खड़ी है। जीव को देखा, जिसे वह माया नचाती है और (फिर) भक्ति को देखा, जो उस जीव को (माया से) छुड़ा देती है।।2।। *तन पुलकित मुख बचन न आवा। नयन मूदि चरननि सिरु नावा।। बिसमयवंत देखि महतारी। भए बहुरि सिसुरूप खरारी।।3।। भावार्थ : (माता का) शरीर पुलकित हो गया। मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूँदकर उसने श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर खर के शत्रु श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए ।।3।। रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित ये  चौपाइयां सचमुच ही रामलला के जीवंत दर्शन करवा देती हैं ।

अदभुत किन्तु सत्य : मंदिर का शिवलिंग हर वर्ष एक इंच ऊपर और एक इंच नीचे बढ़ता है

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देश भर में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की ही चर्चा है।  22 जनवरी को होने वाले इस कार्यक्रम पर सबकी नजरे लगी है

रामचरितमानस-बालकांड की वो चौपाइयां जिनमें होगें रामलला के साक्षात दर्शन
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Ramcharitmanas : देश भर में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की ही चर्चा है।  22 जनवरी को होने वाले इस कार्यक्रम पर सबकी नजरे लगी है । हर भक्त के दिल में खुशी है कि रामलला को अब अपना स्थान मिल जाएगा, उनका भव्य मंदिर बनवाया गया है,और रामलला के इस स्वरूप का दर्शन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में अयोध्या भी जा रहे हैं। भगवान राम के बाल स्वरूप की मनमोहक छवि और चंचलता का वर्णन कई जगह पढ़ने को मिलता है हालांकि जब बाल रूप की चर्चा होती है तो भगवानकृष्ण के बाल रूप और कृष्ण की लीलाओं की चर्चा लोग अधिक करते हैं। आपने हमेश से श्रीकृष्ण बाललीला के बारे में ही सुना और पढ़ा होगा। जिसमें श्रीकृष्ण के बालपन में की गई खेल-कूद, मस्ती और माता यशोदा को उनके दिव्य रूप के दर्शन का भी वर्णन किया गया है। लेकिन केवल श्रीकृष्ण ही नहीं भगवान श्रीराम भी अपने बचपन में बेहद नटखट थे। और अपनी उन नटखट क्रीड़ाओं से माता कौशल्या को हमेशा ही चौका दिया करते थे। आप जब अयोध्या में भगवान रामलला के दर्शन  करने जाएं तो उनके बाल स्वरूप को दर्शाती रामचरितमानस की इन चौपाइयों पर भी एक बार दृष्टि जरूर डालें जो उनके उसे बाल स्वरूप के मनमोहक दर्शन से भाव विभोर कर देगी और ऐसा लगेगा कि रामलला का वह बाल स्वरूप आपकी आंखों के आगे जीवंत हो गया है। गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस के बालकांड में वर्णित वो चौपाइयां जहां माता कौशल्या को रामलला ने चकित कर दिया था ।  दोहा : *प्रें मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।200।। भावार्थ :- प्रेम में मग्न कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के स्नेहवश माता उनके बालचरित्रों का गान किया करतीं।। चौपाई : Ramcharitmanas *एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए।। निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना।।1।। भावार्थ : एक बार माता ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया।।1।। *करि पूजा नैवेद्य चढ़ावा। आपु गई जहँ पाक बनावा।। बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई ।।2।। भावार्थ :- पूजा करके नैवेद्य चढ़ायाऔर स्वयं वहाँ गईं, जहाँ रसोई बनाई गई थी। फिर माता वहीं (पूजा के स्थान में) लौट आई और वहाँ आने पर पुत्र को (इष्टदेव भगवान के लिए चढ़ाए हुए नैवेद्य का) भोजन करते देखा।।2।। *गै जननी सिसु पहिं भयभीत। देखा बाल तहाँ पुनि सूता।। बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कंप मन धीर न होई ।।3।। भावार्थ : माता भयभीत होकर (पालने में सोया था,यहाँ किसने लाकर बैठा दिया, इस बात से डरकर) पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को सोया हुआ देखा। फिर (पूजा स्थान में लौटकर) देखा कि वही पुत्र वहाँ (भोजन कर रहा) है। उनके हृदय में कम्प होने लगा और मन को धीरज नहीं होता ।।3।। *इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा।। देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।। भावार्थ : (वह सोचने लगी कि) यहाँ और वहाँ मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है? प्रभु श्री रामचन्द्रजी माता को घबड़ाई हुई देखकर मधुर मुस्कान से हँस दिए।।4।। दोहा : *देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड। रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ।।201।। भावार्थ : फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं।। Ramcharitmanas चौपाई : *अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन।। काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ।।1।। भावार्थ : अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे।।1।। *देखी मया सब बिधि गाढ़ी। अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी।। देखा जीव नचावइ जाही। देखी भगति जो छोरइ ताही।।2।। भावार्थ : सब प्रकार से बलवती माया को देखा कि वह (भगवान के सामने) अत्यन्त भयभीत हाथ जोडे़ खड़ी है। जीव को देखा, जिसे वह माया नचाती है और (फिर) भक्ति को देखा, जो उस जीव को (माया से) छुड़ा देती है।।2।। *तन पुलकित मुख बचन न आवा। नयन मूदि चरननि सिरु नावा।। बिसमयवंत देखि महतारी। भए बहुरि सिसुरूप खरारी।।3।। भावार्थ : (माता का) शरीर पुलकित हो गया। मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूँदकर उसने श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर खर के शत्रु श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए ।।3।। रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित ये  चौपाइयां सचमुच ही रामलला के जीवंत दर्शन करवा देती हैं ।

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गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म गुरु परंपरा के वो चमकते सितारे जिनके जीवन ने बदल दिया लाखों का जीवन  

गुरु गोबिंद सिंह जी गुरु परंपरा के चमकते सितारे जिनके जीवन ने बदल दिया लाखों का जीवन  

गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म गुरु परंपरा के वो चमकते सितारे जिनके जीवन ने बदल दिया लाखों का जीवन  
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calendar17 Jan 2024 05:04 PM
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सिख धर्म  : Guru Gobind Singh Jayanti : सिख धर्म के गुरु गोबिंद सिंह की जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत वर्ष के साथ साथ विश्व भर में मौजूद भक्तों के द्वारा भक्ति के साथ मनाया जाता है. सिख धर्म की परंपरा के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद जी की जयंती का दिन अत्यंत विशेष समय होता है. इस दिन भक्त गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं और अपने गुरुओं के प्रति क्षद्धा और समर्पण का भाव प्रकट करते हैं. सिख संप्रदाय में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की जयंती का पर्व जीवन के उन महान घटनाओं से रहा है जिसके द्वारा लोगों का जीवन बदल गया. भक्ति और विश्वास का अनोखा संगम इस दिन इतिहास के साथ वर्तमान के संदर्भ में सपष्ट रुप से देखने को मिलता है.

गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर पटना साहिब में होती है विशेष रौनक 

सिख धर्म के दसवें गुरु, गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना में हुआ था उनके जन्म के साथ ही वह लोगों के लिए एक बड़ी प्रेरणा भी बने जिसके कारण लोगों को जीने का अर्थ पता चल पाया. त्याग एवं भक्ति की मिसाल बने गुरु गोबिंद सिंह जी. आज भी पटना साहिब गुरुद्वारा में उनकी जयंती के उपलक्ष्य पर विशेष आयोजन होता है. लाखों लोग उनकी जन्म स्थली के दर्शन करते हैं.

गुरु परंपरा की श्रेष्ठ मिसाल बने गुरु गोबिंद सिंह

गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता गुरु तेग बहादुर जी थे और उनके बाद गुरु जी दसवें और अंतिम सिख गुरु बने. मुगल शासकों के अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए उन्होंने सभी के समक्ष वह मिसाल पेश की जो सदियों तक सुनाई जाती रहेगी. अज्ञा भाई अकाल की तभी चलायो पंथ सब सिखन को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रंथ गुरु ग्रंथ. इन्हीं संदेश के साथ गुरु गोबिंद सिंह जी ने पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का स्थायी गुरु घोषित किया था.

गुरु गोबिंद सिंह जी के उल्लेखनिय कार्य जिनसे सभी का जीवन बना उत्तम 

बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया.गुरु गोबिंद सिंह एक कवि और लेखक थे. सिख धर्म  के अनुरूप उन्होंने खालसा पंथ की भी स्थापना की. खालसा पंथ ने गुरु गोबिंद सिंह के मार्गदर्शन और देख रेख में आध्यात्मिक अनुशासन का सख्ती से पालन किया जिसका अनुसरण आज भी सिख धर्म के भक्तों द्वारा होता है. उन्होंने 1708 में अपनी मृत्यु से पहले गुरु ग्रंथ साहिब को सिख समुदाय के लिए स्थायी गुरु के रूप में घोषित किया था. इस दिन, लोग गुरुद्वारों में जाते हैं और गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाते हैं. आचार्या राजरानी

अदभुत किन्तु सत्य : मंदिर का शिवलिंग हर वर्ष एक इंच ऊपर और एक इंच नीचे बढ़ता है