"हिंदी पढ़ाओ संस्कृति बचाओ" अभियान का आगाज़ - पंडित साहित्य चंचल

"हिंदी पढ़ाओ संस्कृति बचाओ" अभियान का आगाज़ - पंडित साहित्य चंचल
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:31 AM
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Hindi Diwas 2024 : 14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी पखवाड़ा, हिंदी दिवस से लेकर सितंबर माह के अंत तक होता है। हर वर्ष की भांति इस बार भी "साहित्य वेलफेयर कल्चरल एंड स्पोर्ट्स फेडरेशन" तथा "राष्ट्रीय कवि पंचायत मंच" के संयुक्त बैनर तले 22 सितंबर रविवार 2024 को आज के अंग्रेजी युग में "हिंदी भाषा की दिशा और दशा", आज की युवा पीढ़ी हेतु हिंदी का महत्व, तथा आज कल के तथाकथित कवि "हिंदी के साधक अथवा हिंदी में बाधक" विषय पर हिंदी मर्मज्ञ व साहित्य मनीषी वक्ताओं द्वारा समीक्षा, चर्चा परिचर्चा, हिंदी कार्यशाला पर व्याख्यान का होना सुनिश्चित किया गया है। दूसरे चरण में एक भव्य कवि सम्मेलन के आयोजन में देश के लगभग दो दर्जन रचनाकारों द्वारा काव्य पाठ किया जाएगा। "साहित्य वेलफेयर कल्चरल एंड स्पोर्ट्स फेडरेशन" के नेशनल चेयरमैन तथा राष्ट्रीय कवि पंचायत मंच के संस्थापक एवं हिंदी दिवस पर भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से सम्मानित कवि व लेखक पंडित साहित्य कुमार चंचल ने बताया कि हिंदी साहित्य के वर्चस्व को बचाने के लिए उन्हें हर भरसक प्रयास करना होगा, क्योंकि हिंदी हमारी संस्कृति और संस्कार है, इसलिए हिंदी के प्रति आज की पीढ़ी को जागरूक करना बहुत ही आवश्यक बन जाता है। फेडरेशन के चेयरमैन पंडित साहित्य चंचल ने यहां तक कहा कि आजकल के तथाकथित कवियों ने हिंदी साहित्य और कविता की परिभाषा ही बदल कर रख दी है जो कि बड़ी ही विडंबना और चिंता का विषय है। कवि सम्मेलन तथा कवि गोष्ठियों के आयोजन से कुछ हद तक हिंदी के प्रचार और प्रसार को प्रदर्शित तो किया जा सकता है, लेकिन मात्र कवि सम्मेलनों के आयोजनों के सहारे हिंदी के भविष्य को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। हिंदी साहित्य को सही मायने में आगामी पीढ़ी तक पहुंचाना गंभीर विषय के साथ एक कठिन चुनौती भी है। श्री चंचल का कहना है कि आज "हिंदी बचाओ अभियान" चलाने की नितांत आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत "हिंदी पढ़ाओ संस्कृति बचाओ" पर ज़ोर दिया जाना तथा सच्ची भावनाओं के साथ इस लक्ष्य को जन मानस तक पहुंचाना आज हर एक सच्चे साहित्यकार का फर्ज़ और धर्म है। आगामी पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक करने के लिए "साहित्य वेलफेयर कल्चरल एंड स्पोर्ट्स फेडरेशन" तथा "राष्ट्रीय कवि पंचायत मंच" के संयुक्त बैनर तले उनकी कार्यकारिणी की बैठक में हिंदी भाषा में अच्छे प्राप्तांक लाने वाले कुछ विद्यार्थियों को हिंदी पखवाड़ा पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में यथावत सम्मानित किये जाने का निर्णय लिया गया है। फेडरेशन के नेशनल चेयरमैन पंडित साहित्य चंचल ने इस आयोजन के प्रयोजन से संबंधित आज के रचनाकारों से अपील की है कि कवि सम्मेलन अथवा गोष्ठियों में काव्य पाठ से ज्यादा बेहतर होगा कि इस अंग्रेजी युग में आज की युवा पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक कर हिंदी राजभाषा तथा राष्ट्र के निर्माण में योगदान देकर अपने मार्गदर्शक व पथ प्रदर्शक होने का प्रमाण देकर बख़ूबी अपना कवि धर्म निभाएं तथा साथ ही इस अंग्रेजी युग में हिंदी भाषा को लुप्त होने से बचाने का पुनीत कार्य कर अपने कर्तव्य के प्रति वफादारी निभाएं। उन्होंने रचनाकारों से प्रपंच छोड़कर एक सुदृढ़ मंच की अपील की है। श्री चंचल ने विगत 25 सालों की भांति इस मिशन को आगे बढ़ाने का निर्णय लेकर भविष्य में भी राजभाषा और राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। Hindi Diwas 2024

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आखिर कब रुकेगी खूबसूरत मणिपुर में भड़कती हिंसा?

आखिर कब रुकेगी खूबसूरत मणिपुर में भड़कती हिंसा?
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:29 AM
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Manipur Violence : मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। पूर्वोत्तर में स्थित इस प्राकृतिक सौंदर्य सम्पन्न राज्य में लूट, हत्या और अशांति की स्थिति बनी हुई है। मणिपुर में एक बार फिर हालात बिगड़ गए हैं। हिंसा कई जिलों में देखने को मिली है, सबसे ज्यादा तनाव की स्थिति इम्फाल में चल रही है। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए पूर्वी और पश्चिमी इम्फाल के कई इलाकों में तत्काल प्रभाव से कर्फ्यू लगा दिया गया है।

नहीं रुक रहा मौतों का सिलसिला Manipur Violence

मणिपुर में 1 सितंबर से अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है, कई जगहों पर आगजनी हुई है,पहली बार आतंकी शरारती तत्वों ने हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सबको चौंका दिया है। पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा है। आंसू गैस के गोले तक दागे गए हैं। उस स्थिति की वजह से ही छात्रों ने भी सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया है, कई इलाकों में बड़ी संख्या में हुजूम सड़कों पर दिखा है। उस भीड़ का पुलिस से भी आमना-सामना हुआ जिसमें कई लोग घायल हुए। आंदोलनकारियों ने राज्यपाल के घर तक को घेरने की कोशिश की, रात के समय टॉर्च मार्च निकाल कर भी विरोध प्रदर्शन हुआ। मणिपुर में 3 मई 2023 से हिंसा का दौर शुरू हुआ था। लेकिन 16 महीने बाद भी राज्य में शांति बहाल नहीं हुई है। ताजा मामला जिरीबाम जिले का है, जहां शनिवार को हुई ताजा हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई।मणिपुर में हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां हिंसा में शामिल दोनों समुदायों के पास अब ऐसे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध में किया जाता है।सेना इस कदर मजबूर है कि उन्हें एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने पड़े हैं। पहाड़ों और घाटियों में लोगों ने बंकर बना रखे हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर 16 महीने बाद भी इस राज्य में हिंसा क्यों नहीं थम रही। पिछले साल 3 मई को मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के बाद भड़की जातीय हिंसा के बाद से मणिपुर में अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। इस हिंसा के चलते हजारों की संख्या में लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। वैसे तो मणिपुर में पिछले साल मई से ही हालात तनावपूर्ण हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों से स्थिति थोड़ी नियंत्रण में थी। अब पुनः हवाई बमबारी, आरपीजी और अत्याधुनिक हथियारों के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के बाद हालात और खराब हो गए हैं। ताजा हमले के बाद तलाशी में पुलिस को 7.62 मिमी स्नाइपर राइफल, पिस्तौल, इम्प्रोवाइज्ड लॉन्ग रेंज मोर्टार (पोम्पी), इम्प्रोवाइज्ड शॉर्ट रेंज मोर्टार, ग्रेनेड, हैंड ग्रेनेड समेत तमाम आधुनिक हथियार मिले। वही, मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति ने एक कड़ा अल्टीमेटम जारी किया है, जिसमें मणिपुर में चल रहे संकट को हल करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों से तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की मांग की गई है। समिति ने स्थिति से निपटने के लिए बलों को पांच दिन की समय सीमा तय की है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि कार्रवाई न करने पर लोगों को अपनी आबादी की सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाने पड़ेंगे। समिति ने स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय बलों के तरीके, खासकर कुकी उग्रवादी समूहों से निपटने के उनके तरीके पर गहरा असंतोष व्यक्त किया है।अपने अल्टीमेटम में, समिति ने या तो इन उग्रवादी समूहों पर कड़ी कार्रवाई करने या मणिपुर से केंद्रीय बलों को वापस बुलाने का आह्वान किया है।

क्यों थम नहीं रही मणिपुर में हिंसा

सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर मणिपुर में हिंसा थम क्यों नहीं रही है? इसके कई कारण हैं।आसान भाषा में समझें तो ये पूरी लड़ाई दो जातीय समूह कुकी और मैतई के बीच की है। ज्यादार मैतई समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं और वहीं कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों पर रहते हैं।हिंसा के बाद तो इन दोनों समुदायों का एक-दूसरे के स्थानों पर जाना बिलकुल बंद सा है।यही अलगाव हिंसा न थमने का एक बड़ा कारण भी है। दरअसल मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।

दोनों समुदाय के पास से हथियार कहां से आए Manipur Violence

सवाल ये भी है कि आखिर दोनों ही समुदायों के पास इतनी बड़ी संख्या में हथियार कहां से आए। जिन हथियारों का हिंसा में इस्तेमाल हो रहा है वो आमतौर पर युद्ध में इस्तेमाल किए जाते हैं या फिर जवानों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। दरअसल, मणिपुर में तैनात सेना के जवानों समेत कई थानों में पिछले दिनों हथियार की लूट की खबर सामने आई थी। अधिकारियों ने कहा था कि भारी मात्रा में आधुनिक हथियारों की लूट हुई है।हिंसा को रोकने के लिए मणिपुर में सैनिक, अर्धसैनिक और पुलिस बल की तैनाती हजारों की संख्या में है,लेकिन वे भी इस हिंसा को रोकने में बेबस दिखे । इसका कारण आपसी समन्वय की कमी कहा जा सकता है। पिछले दिनों देखा गया था कि लोगों ने भी जवानों की तैनाती पर नाराजगी जाहिर की थी।वहीं, राज्य की पुलिस भी खेमों में बंटी नजर आ रही है।

कैसे बढ़ रही है इतनी हिंसा?

दोनों जातियों की अलग-अलग लोकेशन होने के चलते पूरा इलाका एक सरहद में बदल गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ने अपने लिए सेफ बंकर बना लिए हैं।भारी मात्रा में हथियार दोनों के पास ही मौजूद हैं।जिससे जब मौका मिलता है तब वो एक-दूसरे पर हमला करते हैं और फिर बंकर में छिप जाते हैं। घाटी और पहाड़ी होने के चलते उन्हें रोक पाना भी मुश्किल हैं। भारत की आर्थिक व सार्वभौमिक उन्नति से परेशान कुछ विदेशी ताकतें भारत में अंदरूनी अस्थिरता का वातावरण बनाने के लिए सक्रिय रहती है। यह सीमापार से हथियारों की खेप व आर्थिक मदद भेज कर नफरत और विवाद को बढ़ाने के लिए काम करती हैं। तमाम कोशिशों के बाद भी मणिपुर में शांति क्यों नहीं हो रही है? राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार क्या कर रही है? सरकार को बढ़ती नफरत और तनाव को खत्म करने के लिए तत्काल सटीक और प्रभावी कदम उठाने चाहिए।मणिपुर की हिंसा सरकार के लिए भी साख पर बट्टा बनी है। (मनोज कुमार अग्रवाल-विभूति फीचर्स)

विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी

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बिहार में नदियों पर बैराज बनाने के विरोध में उठी अवाज़े

बिहार में नदियों पर बैराज बनाने के विरोध में उठी अवाज़े
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 08:53 AM
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Bihar River : हम अपनी जीवनदायिनी नदियों का शोषण खतरनाक स्तर तक कर चुके हैं। हमारी नदियां अपना मूल रूप खो चुकी हैं और बुरी तरह से अस्त-व्यस्त दशा में हैं। सिंचाई और हाइड्रोपावर के लिए बांध बने हैं, पानी को मनचाही दिशा में ले जाने के लिए बैराज बनाए गए हैं। फरक्का बैराज के दुष्परिणाम को हम सभी देख चुके हैं फिर भी सरकारें चेत नहीं रही है और लगातार नये नये बांध और बैराज बनाने का काम चालू है।भारत में विश्वबैंक की मदद से बड़े बांधों, बैराजों द्वारा उपजाऊ धरती, जंगल सहित जैव विविधता से भरी प्रकृति और नदी से जुड़ी संस्कृति को स्वाहा कर विकास का यज्ञ चलाया जा रहा है।

बिहार की सरकार बैराज बनाने से पहले दे इसपर ध्यान

गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख अनिल प्रकाश ने बिहार की नदियों पर बैराजों के निर्माण पर आपत्ति जताई और कहा है कि — "बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सात नदियों पर बैराज बनाने की हड़बडी करने से पहले गंगा पर बने फरक्का बैराज से उत्पन्न विनाशकारी बाढ़, कटाव,जल जमाव, भूमि के उसर होने, मछलियों के अकाल आदि भीषण स्थितियों का वैज्ञानिक आंकलन अवश्य करा लेना चाहिए। "सरकार के ​बिहार की नदियों पर बराज बनाने के फैसले के विरोध में व्यापक आंदोलन की तैयारी आरंभ हो गयी है। इस फैसले के विरोध में बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश में प्रथम चरण में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। इसके उपरांत साथी संगठनों की बैठक कर आंदोलन की अगली रणनीति तय की जाएगी।अब तो मुजफ्फरपुर यानी तिरहुत में नारा गूंजने लगा है " बागमती की धारा पर तटबंध बनाने आये हो, विश्वबैंक से कर्जा उठाकर हमें डुबाने आये हो।

क्या है बैराज की पूरी कहानी Bihar River

'दरअसल नेपाल में होने वाली बारिश से बिहार में होने वाली तबाही को रोकने के लिए बिहार सरकार ने चार बराज बनाने का निर्णय लिया है। बिहार के जल संसाधन विभाग के मंत्री विजय चौधरी के अनुसार नेपाल में हाई डैम बनाने का प्रस्ताव कई सालों से है, लेकिन वहां फिलहाल हाई डैम बनने की उम्मीद नहीं दिख रही है। नेपाल में हाई डैम का मामला इसलिए अटका पड़ा है कि वहां कोई भी जल संधि तभी लागू की जाएगी जब तक कि वहां की संसद इसे दो तिहाई बहुमत से पारित न कर दे।नेपाल की संसद के इस पेंच के कारण बिहार सरकार को बराज बनाने का फैसला लेना पड़ा। इस फैसले के तहत नेपाल से आने वाली चार नदियों में चार जगह पर बराज बनाए जाएंगे। यह बैराज कोसी नदी पर डगमारा में, गंडक नदी पर अरेराज में, महानंदा नदी पर मसान में और बागमती नदी पर डिंग में बनाए जाएंगे। डीपीआर तैयार किया जा रहा है। बाढ़ नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ी राशि दी है और लोग सोच रहे हैं कि नेपाल से आने वाले बाढ़ के पानी से जो नुकसान होता है उसे रोकने के लिए इन चार जगह पर बड़े बराज बनाये जा रहे हैं, जिससे कि बाढ़ के पानी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए विश्व बैंक से 4400 करोड़ रुपये की सहायता ली जा रही है। यह डीपीआर मार्च 2025 तक पूरा हो जाएगा। नेपाल सरकार से भारत सरकार की कई बार हाई डैम बनाने को लेकर बातचीत हुई है। वर्ष 2004 में वहां संयुक्त रूप से विराटनगर में कार्यालय भी खोले गए हैं, लेकिन जहां भी सर्वे होता है लोग हंगामा करने लगते हैं। यही कारण है कि नेपाल में हाई डैम बनाना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति में बिहार सरकार ने अब बिहार में ही नेपाल से आने वाली चार नदियों पर बराज बनाने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में बिहार के लिए प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से संबंधित आपदाओं से निपटने के लिए 11,500 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में भारत ने नेपाल में कोसी, बागमती और कमला नदी पर उच्च-स्तरीय बांध बनाने और संबंधित डीपीआर तैयार करने के लिए 2004 में विराटनगर (नेपाल) में एक संयुक्त परियोजना कार्यालय स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस मामले का एक दूसरा पहलू भी है ,विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार की बाढ़ को लेकर एक वैज्ञानिक ढंग से व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है उसके बाद नदी जोड़ योजना का काम हो या फिर बराज बनाने का काम हो।विकास योजनाएं बनाते समय उसके सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय दुष्परिणामों को नज़रअंदाज़ करने का क्या नतीजा हो सकता है, इसे समझने के लिए फरक्का बैराज को एक मॉडल के रूप में देखा जाना चाहिए। फरक्का बैराज 1975 में बनकर तैयार हुआ। मकसद था कि इसके जरिए 40 हजार क्यूसेक पानी का रुख बदल दिया जाये, ताकि कोलकोता बंदरगाह बाढ़ से बच सके। यह अनुमान करते समय नदी में आने वाले तलछट का अनुमान नहीं किया गया।परिणामस्वरूप,आवश्यकतानुसार पानी का रुख नहीं बदला जा सका। दुष्परिणाम आज सामने है। बैराज का जलाशय तलछट से ऊपर तक भरा है। पीछे से आनी वाली विशाल जलराशि पलटकर साल में कई-कई बार विनाश लाती है। ऊंची भूमि भी डूब का शिकार होने को विवश है। हजारों वर्ग किलोमीटर की फसल इससे नष्ट हो जाती हैं। फरक्का बैराज के बनने के बाद से समुद्र से चलकर धारा के विपरीत ऊपर की ओर आने वाली ढाई हजार रुपये प्रति किलो मूल्य वाली कीमती हिल्सा मछली की बड़ी मात्रा हम हर साल खो रहे हैं, सो अलग। नदी किनारे की गरीब-गुरबा आबादी फरक्का को अपना दुर्भाग्य मानकर हर रोज कोसती है। फरक्का बराज के बनने के बाद से बिहार में बाढ़ की आपदा बढ़ी है। जानकार यह भी मानते हैं कि बिहार में बाढ़ को नियंत्रित करने वाली तटबंध आधारित नीति ने भी बाढ़ के संकट को बढ़ाने का काम किया है। उत्तर बिहार की नदियों के जानकार दिनेश कुमार मिश्र के अनुसार आजादी के वक्त जब राज्य में तटबंधों की कुल लंबाई 160 किमी थी तब राज्य का सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ पीड़ित था। अब जब तटबंधों की लंबाई 3760 किमी हो गयी है तो राज्य की लगभग तीन चौथाई जमीन यानी 72.95 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ प्रभावित है। यानी जैसे-जैसे तटबंध बढ़े बिहार में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रफल भी बढ़ता चला गया। सरकार का भी रवैया ​विचित्र है। एक ओर तो बिहार की बाढ़ के लिए फरक्का बराज को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो दूसरी तरफ नए बराज की वकालत भी करते हैं। अनिल प्रकाश के अनुसार फरक्का बराज के अनुभवों से ही समझ लेना चाहिए था कि नदियों को रोककर बाढ़ का मुकाबला नहीं किया जा सकता।" 1870-75 से पहले बिहार में बाढ़ का जिक्र नहीं मिलता था। जबसे यहां रेलवे की शुरुआत हुई और नदियों के स्वतंत्र बहाव में बाधा उत्पन्न होने लगी बाढ़ की समस्या सामने आने लगी। इसके बावजूद उत्तर बिहार में नदियों का अपना बेहतरीन तंत्र विकसित था। बड़ी नदियां, छोटी नदियों और चौरों से जुड़ी थीं और पूरे इलाके में पोखरों का जाल बिछा था। जब बारिश के दिनों में बड़ी नदियों में अधिक पानी होता था तो वह अपना अतिरिक्त पानी छोटी नदियों, चौरों और तालाबों में बांट देती थीं। इससे बाढ़ की समस्या नहीं होती थी। फिर जब गर्मियों में बड़ी नदियों में पानी घटने लगता तो छोटी नदियां और चौर इन्हें अपना पानी वापस कर देतीं। इससे ये नदियां सदानीरा बनी रहतीं। बिहार की 76% आबादी और राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73% हिस्सा बाढ़ से प्रभावित है। वहीं आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश के कुल बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का 16.5% बिहार में पड़ता है और कुल बाढ़ पीड़ित आबादी का 22.1% इसी राज्य के लोग हैं। ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ डॉ विद्यार्थी विकास के अनुसार बिहार में तटबंध का निर्माण पिछले 50 सालों में लगातार बढ़ता जा रहा है और बाढ़ का इलाका भी उसी अनुपात से बढ़ता जा रहा है। पहले 25 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित इलाका था लेकिन आज 70 लाख हेक्टेयर से अधिक इलाका बाढ़ प्रभावित है। 1960 और 70 के दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक बांधों का निर्माण हुआ। लेकिन हाल के वर्षों में बांधों के निर्माण की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है।इसी परिप्रेक्ष्य में नदियों की पंचायत बिहार शोध संवाद द्वारा मुक्तिधाम, सिकन्दरपुर (बूढी गण्डक) नदी के तट पर, मुजफ्फरपुर में प्रीति कुमारी के अध्यक्षता में की गई। नदियों की पंचायत में अक्टूबर में 10 जिलों से सक्रिय नदी समस्याओं के चिंतकों एवं सक्रिय कर्मियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का फैसला लिया गया जिसमें युवाओं एवं महिलाओं की अधिक संख्या में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। विभिन्न संगठनों के लोगों द्वारा नदी मुक्ति आभियान की शुरुआत की गई। नदियों की समस्याओं एवं निराकरण को लेकर पुस्तक का प्रकाशन अविलंब करने का निर्णय लिया गया। प्रीति कुमारी का कहना था कि बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक,लखनदेई, अधवारा समूह की नदियों, करेह, नून आदि नदियां अपनी जालनुमा उपस्थिति से जन जीवन को सदियों से सुखमय बनाती रही हैं लेकिन विकास के नाम पर बन रहे तटबन्धों,बराजों, फैक्ट्रियों, मिलों और थर्मलपावर स्टेशनों से बह रहे जहरीले, काले, पीले कचरे के कारण हमारी जीवनदायी नदियों का दम घुट रहा है। नदियों पर जीनेवाले नाविक, मल्लाह, किसान, सब्जी उगानेवाले,भैंस पालकर, बैल पालकर सुख से जीने वाले करोड़ों स्त्री पुरुषों की आजीविका और सांस्कृतिक जीवन बड़े गम्भीर संकट में है। नरेश सहनी के अनुसार गंगा एवं उससे जुडी तमाम नदियों को बड़ी बड़ी देशी विदेशी कम्पनियों के हाथ मे सौंपने की शुरुआत हो चुकी है। मल्लाहों को नदियों से खदेड़ने की चाल चली जा रही है। नदियों के किनारे के सौंदर्यीकरण के बहाने किसानों की बेशकीमती जमीनों पर भी लुटेरी कम्पनियों की बुरी नजर है। इन्ही सवालों को लेकर यह नदी पंचायत बुलाई गई है। गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद , सामाजिक चिंतक अनिल प्रकाश बताते हैं कि यह नदी पंचायत नदी मुक्ति आभियान की शुरुआत है।

इन लोगों ने लिया अहिंसक लड़ाई का संकल्प Bihar River

कठपुतली कलाकार सुनील सरला ने नदियों को अविरल बहने दो….नदियों को निर्मल रहने दो, गंगा गंगा रटैत रहली, गंगा हथीन जलवा के रानी गंगा पूजे चलू हे सखी गीत के साथ सुनील सरला ने कठपुतली के माध्यम से नदी और पर्यावरण के दर्द को बताया। नदी पंचायत में नरेश सहनी , राजेंद्र पटेल, संगीता सुभाषिनी, रामबाबू जितेंद्र यादव ,चंदेश्वर राम, अनिल कुमार अनल ,सुनील सरला,मीडिया सलाहकार, प्रोफेसर विजय कुमार जायसवाल,राम बाबू,राजेन्द्र पटेल, डॉक्टर हरेन्द्र कुमार, चन्देश्वर राम, नीरज, राम लखेंद्र यादव,डॉक्टर उमेश चन्द्र, ठाकुर देवेंद्र सिंह, जितेंद्र यादव, नवल सिंह, जगन्नाथ पासवान, मोनाज़िर हसन, अनिल गुप्ता, जयचंद्र कुमार,बसंत लाल राम, कृष्णा प्रसाद,सोनपुर, पंकज कुमार निषाद, बैजू सहनी, अशोक सहनी, ऋषिकेश कुमार सीतामढ़ी, राम संयोग राय, अरविन्द प्रसाद कर्ण, राजेश कुमार, राम एकबाल राय, सुशील कुमार यादव, रामा शंकर राय, हुकुमदेव नारायण सिंह, मिथलेश सहनी, राजकुमार मंडल, नवल किशोर सिंह, बागमती संघर्ष मोर्चा, रविन्द्र किशोर सिंह, जलधर सहनी, सीतामढ़ी, राजाराम सहनी, सोनपुर सारण, राजेन्द्र पटेल, अनिल कुमार अनल, बिरेंद्र राय, लक्षणदेव प्रसाद सिंह, नदीम खान, नरेश कुमार, देवीलाल यादव, मुन्ना कुमार, सत्येनु कुमार, रामचन्द्र सहनी, दिवाकर घोष, रमेश कुमार केजरीवाल, संगीता सुभाषिनी,कौशल्या देवी, रिंकु देवी , गायत्री देवी, रंजीत साह, शंभू सहनी, जमदार मुखिया, राजेश राय, साई सेवादार अविनाश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता रामबाबू ने इस सवाल पर निर्णायक अहिंसक लड़ाई का संकल्प लिया। (कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स)

विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी

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