भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मालिक बन गया भारत

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locationभारत
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calendar02 Dec 2025 01:19 AM
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East India Company : क्या आपको पता है कि भारत और भारतीय कितने बड़े-बड़े कमाल कर रहे हैं। अंग्रेजों की जिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को गुलाम बनाने की नींव रखी थी उसी ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक आज भारतीय है। आप गर्व के साथ कह सकते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक भारत था। उस समय ना तो ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आती और ना ही भारत अंग्रेजी का गुलाम बनता। हम आपको बता रहे हैं कि कैसे भारत बन गया है ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक। जिस ईस्ट इंडिया कंपनी के कारण हम सैकड़ों साल तक गुलाम रहे तथा हमारे लाखों शहीदों ने प्राण गंवाए वह ईस्ट इंडिया कंपनी अब हमारी गुलाम है।

साल 1600 में हुई थी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना

साल 1600 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत की गई थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन ये कंपनी दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचकर बिजनेस करेगी। इसकी शुरुआत समंदर के जरिए माल ब्रिटेन तक लाने के लिए की गई थी।  उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कदम भारत में रखे और यहाँ पर अपना व्यापार शुरू किया. उन्होंने भारत से चाय, मसाले और कई ऐसी चीजों का सौदा किया जो यूरोपीय देशों में मौजूद नहीं थी। देखते ही देखते ईस्ट इंडिया कंपनी ने कब दुनिया भर के 50 प्रतिशत ट्रेड पर अपना कब्जा कर लिया किसी को खबर भी नहीं हुई। यह कंपनी ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक जरूरत बन गयी। इसके जरिए उन्होंने इतनी दौलत कमाई की उन्होंने कई देशों पर कब्जा कर लिया जिसमें भारत भी एक था। करीब 200 सालों तक यह कंपनी भारतीयों पर अधिकार जमाती रही लेकिन 1857 में मेरठ में हुए आजादी के पहले विद्रोह ने इस कंपनी पर ऐसा असर डाला कि इनका कारोबार रातों-रात आसमान से जमीन पर आ गया। भारत का बच्चा-बच्चा ईस्ट इंडिया कंपनी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से जाने के बाद से बेहद खराब हालत में आ गयी थी। उसका पूरा व्यापार दिन-ब-दिन डूबता जा रहा था. ब्रिटिश सरकार ने भी उनकी कोई मदद करने से मना कर दिया था। कंपनी का नाम दुनिया भर में चर्चित था इसलिए जैसे-तैसे आज तक उन्होंने कंपनी को पूरी तरह से बंद नहीं होने दिया।

जब भारत बना दुश्मन कंपनी का मालिक

अब ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत का गुलाम बनने की बात पर आते हैं। यह बात है साल 2003 की। भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता को जब पता चला कि ईस्ट इंडिया कंपनी अब अपने कदमों पर खड़ी नहीं रह सकती तब उन्होंने एक बार उनके ऑफिस जाने का फैसला किया। कहते हैं कि संजीव ने वहां जाने से पहले ही सोच लिया था कि वो ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदकर रहेंगे. ये एक तरह से उनकी तरफ से भारतीयों को एक तोहफा था. जिस कंपनी ने भारत पर राज किया था आज वो उसे ही खरीदने के इरादे से गए थे. संजीव का कहना है कि उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिस में महज 20 मिनट हुए थे कंपनी के शेयर खरीदने को ले कर। उन 20 मिनट के पहले 10 मिनट में ही उन्होंने जान लिया था कि कंपनी अपने घुटनों पर आ चुकी है. वो इसे बेचने की उम्मीद में ही थे. जैसे ही संजीव को समझ आया कि कंपनी अब बिकने की कगार पर है उन्होंने सामने से एक नैपकिन उठाया और उसपर एक दाम लिखा. उस दाम को देखते ही कंपनी के मालिकों ने संजीव को 21 प्रतिशत शेयर बेचने का फैसला कर लिया। महज 20 मिनट में संजीव ने कंपनी में एक बड़ा हिस्सा अपने नाम कर लिया। सिर्फ एक साल के अंदर संजीव ने ईस्ट इंडिया कंपनी के बाकी के 38 स्टेक होल्डर से उनके शेयर खरीद लिए और कंपनी को पूरी तरह से भारत का बना दिया। सिर्फ इतना ही नहीं भारतीय बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा ने भी संजीव की ईस्ट इंडिया कंपनी में इन्वेस्टमेंट किया है।

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माना जाता है कि संजीव ने कुल 15 मिलियन डॉलर की इन्वेस्टमेंट इस कंपनी पर की है। उन्होंने कंपनी को खरीदने के बाद कई साल तक इसे लांच नहीं किया. हालांकि, उनका मानना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को दुनिया भर में लोग जानते हैं और इसके जरिए अच्छा बिजनेस किया जा सकता है। अब संजीव ने लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी को दोबारा लॉन्च कर दिया है। ईस्ट इंडिया कंपनी तथा इसकी सहयोगी कंपनी की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी लुलु ग्रुप और कंपनीज ने खरीद ली है।  इस बार ईस्ट इंडिया कंपनी चाय, मसाले और रेशम नहीं बेचेगी बल्कि इसकी जगह वो लक्जरी चीजों में सौदा करेगी। इतना ही नहीं आने वाले समय में ईस्ट इंडिया कंपनी का स्टोर भारत में भी खोला जाएगा और यहाँ पर यह खाने की चीजें, फर्नीचर, रियल एस्टेट आदि जैसी चीजों में सौदा करेगी। एक बार फिर दुनिया ईस्ट इंडिया कंपनी को देखेगी मगर इस बार एक भारतीय इसका मालिक होगा और ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की गुलाम। संजीव मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदकर दुनिया को दिखा दिया कि हम भारतीय कुछ भी कर सकते हैं। भारतीय पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी पर अब भारतीय राज करेंगे।

भारत के चाचा-भतीजे ने खड़ी कर दी दुनिया की बड़ी कम्पनी, बन गए रॉयल फैमिली के पॉटर्नर

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LuLu Group News
locationभारत
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calendar14 May 2024 11:33 PM
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LuLu Group News : आपने लुलु ग्रुप (LuLu Group)  का नाम जरूर सुना होगा। जी हां वही लुलु ग्रुप  (LuLu Group)  जिसके पूरी दुनिया के हर देश में एक से बढक़र एक मॉल हैं। क्या आपको पता है कि  LuLu Group भारत के चाचा-भतीजे की मेहनत का नतीजा है। लुलु ग्रुप को चाचा ने शुरू किया और भारत के भतीजे ने लुलु ग्रुप को दुनिया की एक बड़ी कंपनी बना दिया। लुलु ग्रुप आज इतनी बड़ी कंपनी है कि लुलु में अबू धाबी की रॉयल फैमिली भी पार्टनर है। इतना ही नहीं लुलु ग्रुप दुनिया की सबसे पुरानी कंपनी ईस्ट इण्डिया कंपनी का भी पार्टनर है।

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कैसे पड़ा लुलु नाम

भारत में लुलु शब्द अक्सर बुद्धिहीन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, किन्तु लुलु ग्रुप वाले  (LuLu)  का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है। दरअसल लुलु ग्रुप की शुरूआत अरब के प्रमुख देश अबू धाबी से हुई थी। अरबी भाषा में लुलु का अर्थ मोती होता है। इसी कारण  (LuLu Group) के संस्थापक एम.के. अब्दुला ने मोती के नाम पर अपनी कंपनी का नाम लुलु रखा था। धीरे-धीरे लुलु का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। यह तो थी लुलु ग्रुप के नाम की कहानी। अब हम आपको भारत के चाचा-भतीजा का वह किस्सा बताते है। जिसके कारण लुलु ग्रुप आज दुनिया की इतनी बड़ी कंपनी बन गया है कि लुलु ग्रुप ने ईस्ट इण्डिया कंपनी का भी 50 प्रतिशत हिस्सा खरीद लिया है।

कैसे बना लुलु ग्रुप दुनिया की बड़ी कंपनी

यह किस्सा भारत के केरल प्रदेश के एक छोटे से गांव तथा संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी के शहर दुबई से एक साथ शुरू होता है। दरअसल आज लुलु ग्रुप (  (LuLu Group) के मालिक यूसुफ अली हैं। यूसुफ अली का जन्म 15 नवंबर 1955 को भारत के केरल प्रदेश के छोटे से गांव त्रिशूर में हुआ था। यूसुफ अली ने केरल में ही MBA तक की पढ़ाई पूरी की। उनके चाचा एम.के. अब्दुल्ला तब तक अबू धाबी जा चुके थे। एम.के. अब्दुल्ला दुबई में लुलु ग्रुप के नाम से कंपनी बना चुके थे। MBA करने के बाद यूसुफ अली भी दुबई चले गए और उन्होंने लुलु ग्रुप को चलाने का बीड़ा उठा लिया।

लुलु ग्रुप की सफलता का टर्निंग प्वाइंट

वर्ष-1990 के साल को लुलु ग्रुप की सफलता का टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है। उस समय यूसुफ अली लुलु ग्रुप की सुपरमार्केट बिजनेस में एंट्री को लीड कर रहे थे। यह ग्रुप का एक रणनीतिक फैसला था, क्योंकि अबू धाबी में रिटेल का बिजनेस बदल रहा था। वहां ट्रेडिशनल ग्रॉसरी स्टोर सिमट रहे थे और उनके आसपास बड़े आउटलेट और हायपरमार्केट बन रही थीं। आप जानते ही हैं कि हायपरमार्केट का मतलब बड़े-बड़े मॉल होता है। यूसुफ अली ने पहला लुलु हायपरमार्केट ((LuLu Hypermarket)) लॉन्च कर दिया। यहीं से इस इंडस्ट्री में ग्रुप की विधिवत शुरुआत हुई और लुलु ग्रुप की नींव पड़ गई। 1995 आते-आते दुबई में रिटेल सेक्टर पूरी तरह बदल रहा था। कॉन्टिनेंट (अब केरेफोर) जैसे बड़े प्लेयर ने बाजार में प्रवेश कर लिया था। यही वह समय था, जब यूसुफ अली की असली परीक्षा हुई और यूसुफ अली इसे पार कर गए। इस दौरान अली ने अबू धाबी के रिटेल सेक्टर की कमान संभाली, लुलु हायपरमार्केट के बिजनेस को विस्तार दिया और उसे मजबूती दी। इसके बाद लुलु ग्रुप की स्थिति और बेहतर हो गई, एवं यूसुफ अली के नाम का सिक्का भी जम गया। बाजार में यह चर्चा होने लगी की यूसुफ अली ने तेजी से बदलते और मुश्किल होते बिजनेस परिवेश में भी अपनी योग्यता के बूते ग्रुप को सही राह दिखाई।

65 हजार कर्मचारी हैं लुलु ग्रुप में

लुलु कंपनी का सबसे कामयाब बिजनेस ‘लुलु हायपरमार्केट’ है। दुनिया के बहुत से बाजारों में यह एक पॉपुलर ग्रॉसरी स्टोर है। एशिया के बाजारों में लुलु ग्रुप एक बड़ा रिटेल प्लेयर बन गया है। मध्य पूर्व (मिडल ईस्ट) में तो यह सबसे बड़ी रिटेल कंपनी है। गल्फ कॉर्पोरेशन काउंसिल (GCC) और अन्य क्षेत्रों में कंपनी के 258 स्टोर हैं। हायपरमार्केट स्टोर्स के अलावा लुलु ग्रुप के पास 13 शॉपिंग मॉल हैं। भारत में फिलहाल 5 लुलु मॉल हैं। इतना बड़े बिजनेस के बेहतर संचालन के लिए कंपनी ने 65,000 कर्मचारी रखे हैं। लुलु ग्रुप के स्टोर और मॉल दुनियाभर में चल ही रहे हैं, मगर कंपनी ने कुछ और बिजनेसेज़ में भी हिस्सेदारियां ली हैं। यूके की एक ट्रेडिंग फर्म ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ में 10 प्रतिशत, और इसी की एक सहायक फूड कंपनी में 40 टका हिस्सेदारी ली है। यह लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश था। वाई इंटरनेशनल यूएसए (Y International USA) भी लुलु ग्रुप का भाग है। यह इसके रिटेल बिजनेस के लिए फूड आइटम्स और कंज्यूमर गुड्स को निर्यात करता है।

भारत में लुलु माल का विस्तार

10 मार्च 2013 को केरल के कोच्चि में एक लुलु इंटरनेशनल शॉपिंग मॉल स्थापित किया गया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह भारत का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है। 2021 में ग्रुप ने तिरुवनंतपुरम में एक शानदार मॉल बनाया। इसके अलावा बेंगलुरु, लखनऊ, हैदराबाद, पलक्कड़ (केरल) में भी ग्रुप ने अपने मॉल बनाए हैं। इन सभी मॉल्स में एक ही छत के नीचे देश-दुनिया के सभी ब्रांड्स के सामान मिलते हैं। फिलहाल भारत में लुलु फैशन वीक 2024 (LuLu Fashion Week 2024) चल रहा है। कोच्चि से 8 मई को इस फैशन वीक की शुरुआत हुई थी। 10 मई को बैंगलोर में हो चुका है. अब 15 मई को त्रिवेंद्रम, 17 को हैदराबाद, और 24 मई को लखनऊ में होगा। इस फैशन वीक में फैशन के लेटेस्ट कलेक्शन और ब्रांड्स को फीचर किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि लुलु फैशन वीक दुनिया का सबसे बड़ा फैशन वीक है। तो यह थी भारत के चाचा-भतीजा द्वारा स्थापित दुनिया की बड़ी कंपनी लुलु ग्रुप की पूरी कहानी। हां आपको यह भी बता दें कि लुलु ग्रुप की नेटवर्थ 7.8 बिलियन डॉलर यानि कि 65 हजार 150 करोड़ रूपए से भी अधिक की है। LuLu Group News

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बिहार का लोकप्रिय भोजन लिट्टी-चोखा क्या वाकई मे बिहार का ही हैं?

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Litti-Chokha News
locationभारत
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calendar30 Nov 2025 06:23 AM
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Litti-Chokha News : भारत के सर्वाधिक व्यंजन परंपरागत होते है और स्वाद के तो कहने ही क्या जुबां पर अगर चढ़ जाये तो कोई भूलता नही है । कहते है बिहार गये और लिट्टी-चोखा ना खाया तो क्या खाया।ये बिना तेल मसालो का बना लंबे समय तक ना खराब होने वाला भोजन है ।ये आटे की लोइ मे सत्तू को भर कर बनाया जाता है इसे कोयले या उपले की आग पर सेका जाता है ।चोखा बनाने के लिये बैगन,टमाटर आलू को भून कर बनाया जाता है । इसे घी मे डुबो कर खाया जाता है,कुछ लोग बिना घी के खाना पसंद करते हैं ।

लिट्टी-चोखे का इतिहास

लिट्टी-चोखा  का इतिहास बड़ा दिलचस्प है ।ये मगध काल से जुड़ा है मगध की राजधानी पाटलिपुत्र थी जो अब बिहार की राजधानी पटना है ।कहा जाता है कि उस समय चंद्रगुप्त मौर्य के सैनिक युद्ध पर जाते थे तब वो अपने साथ खाने के लिये लिट्टी-चोखा ले कर जाते थे।ये काफ़ी समय तक खराब नही होता था ।लिट्टी-चोखा बिहार के किसनो का मुख्य भोजन है क्योकी ये एक ऐसा भोजन ही जो कम समय मे बन जाता है और शरीर को ज्यादा उर्जा देता है,पेट को ठंडा भी रखता है ।

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लिट्टी-चोखा मुगल काल से भी जुड़ा

मुगल काल के समय मे लिट्टी-चोखा को बड़ा योगदान मिला ।उन्होंने इसे नया स्वाद और नया आयाम दिया,इसे मांसाहार के साथ खाना ज्यादा पसंद किया।वो इसे पाया करी के साथ खाना ज्यादा पसंद करते थे।वो इसे मटन करी के साथ भी खातें थे। स्वतंत्रता सेनानी अपनी लड़ाई के समय  खाने के लिये लिट्टी-चोखा लेकर चलते थे।इसकी खासियत थी की यह जल्दी खराब नही होता था ।कई युद्घ के दौरान इस लिट्टी-चोखा का इस्तेमाल भोजन के रूप मे किया गया है ।अब ये व्यंजन सारे भारतवर्ष मे मशहूर है ।इस लाजवाब लिट्टी-चोखे का स्वाद आप भी चखिये और सबको खिलाए। Litti-Chokha News

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