एक ऐसी चिता जिसके ऊपर मौजूद हैं मां काली

श्मशान घाट पर नहीं जाते नव दंपत्ति
हिन्दु धर्म ग्रंथों में यह मान्यता है कि विवाह के एक साल तक नव दंपत्ति को श्मशान घाट पर नहीं जाना चाहिए। बिहार के मिथिलांचल में बने रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है। श्मशान घाट में एक चिता के ऊपर बनाए गए रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर में सारे मांगलिक कार्य किए जाते हैं। यहां तक कि इस मंदिर में शादी-विवाह भी सम्पन्न किए जाते हैं। रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर का इतिहास भी बहुत ही रोचक है।राजा की चिता पर बना है मंदिर
रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर के पुजारी कहते हैं कि यह मंदिर दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह के निधन पर, जहां उनकी चिता जलाई, उसी स्थान पर 1933 में बनवाया गया था। जिस जगह मंदिर बना है, वहां दरभंगा राज परिवार का श्मशान स्थल था। महाराज के बेटे कामेश्वर सिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर मां काली को समर्पित है। इसे बनाने की बड़ी वजह महाराज रामेश्वर सिंह की मां काली के प्रति अगाध निष्ठा होना था। उनके पुत्र ने पिता को श्रद्धाजंलि के स्वरूप यह मंदिर बनवाया और नाम पिता से जोडक़र रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर रखा। मंदिर के गर्भगृह में मां काली की दस फुट ऊंची भव्य प्रतिमा है। बताते हैं कि महाराज ने इसे पेरिस में बनवाया था। देवी के गले में हिंदी वर्णमाला के अक्षरों जितने मुंडों की माला है। कारण यह कि वर्णमाला सृष्टि का प्रतीक है। यहां महाकाल और गणपति की मूर्तियां भी हैं। मिथिलांचल में एक मान्यता है कि शादी के एक साल बाद तक नव दंपती श्मशान घाट नहीं जा सकते, लेकिन इस मंदिर में सारे मांगलिक कार्यों के साथ ही शादियां भी होती हैं। पुजारी बताते हैं कि श्यामा माई मां सीता का ही रूप हैं। इस बात की व्याख्या महाराज रामेश्वर सिंह के सेवक लालदास ने रामेश्वर चरित मिथिला रामायण में की है। इसको आधार वाल्मीकि रचित रामायण है। इसमें लिखा है कि रावण का वध होने के बाद सीता ने राम से कहा कि जो भी सहस्त्रानंद का वध करेगा, वही असली वीर होगा। यह सुनकर राम युद्ध के लिए निकल गए। युद्ध के दौरान सहस्त्रानंद का एक तीर राम को लगा। इस पर माता सीता को क्रोध आया और उनका रंग काला पड़ गया। सहस्त्रानंद का वध करने के बाद भी,जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ, तो भगवान शिव को आना पड़ा। भगवान के सीने पर पैर पडऩे से माता बेहद लज्जित हुईं और उनकी जिह्वा बाहर आ गई। यही वजह है कि उन्हें यहां काली नहीं, श्यामा के नाम से जाना जाता है। नवरात्र में यहां मेला लगता है और भक्तों का तांता लगा रहता है। Rameshwari Shyama Mai Templeकांवड़ यात्रा मार्ग पर नाम लिखने पर सुप्रीम रोक
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श्मशान घाट पर नहीं जाते नव दंपत्ति
हिन्दु धर्म ग्रंथों में यह मान्यता है कि विवाह के एक साल तक नव दंपत्ति को श्मशान घाट पर नहीं जाना चाहिए। बिहार के मिथिलांचल में बने रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है। श्मशान घाट में एक चिता के ऊपर बनाए गए रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर में सारे मांगलिक कार्य किए जाते हैं। यहां तक कि इस मंदिर में शादी-विवाह भी सम्पन्न किए जाते हैं। रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर का इतिहास भी बहुत ही रोचक है।राजा की चिता पर बना है मंदिर
रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर के पुजारी कहते हैं कि यह मंदिर दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह के निधन पर, जहां उनकी चिता जलाई, उसी स्थान पर 1933 में बनवाया गया था। जिस जगह मंदिर बना है, वहां दरभंगा राज परिवार का श्मशान स्थल था। महाराज के बेटे कामेश्वर सिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर मां काली को समर्पित है। इसे बनाने की बड़ी वजह महाराज रामेश्वर सिंह की मां काली के प्रति अगाध निष्ठा होना था। उनके पुत्र ने पिता को श्रद्धाजंलि के स्वरूप यह मंदिर बनवाया और नाम पिता से जोडक़र रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर रखा। मंदिर के गर्भगृह में मां काली की दस फुट ऊंची भव्य प्रतिमा है। बताते हैं कि महाराज ने इसे पेरिस में बनवाया था। देवी के गले में हिंदी वर्णमाला के अक्षरों जितने मुंडों की माला है। कारण यह कि वर्णमाला सृष्टि का प्रतीक है। यहां महाकाल और गणपति की मूर्तियां भी हैं। मिथिलांचल में एक मान्यता है कि शादी के एक साल बाद तक नव दंपती श्मशान घाट नहीं जा सकते, लेकिन इस मंदिर में सारे मांगलिक कार्यों के साथ ही शादियां भी होती हैं। पुजारी बताते हैं कि श्यामा माई मां सीता का ही रूप हैं। इस बात की व्याख्या महाराज रामेश्वर सिंह के सेवक लालदास ने रामेश्वर चरित मिथिला रामायण में की है। इसको आधार वाल्मीकि रचित रामायण है। इसमें लिखा है कि रावण का वध होने के बाद सीता ने राम से कहा कि जो भी सहस्त्रानंद का वध करेगा, वही असली वीर होगा। यह सुनकर राम युद्ध के लिए निकल गए। युद्ध के दौरान सहस्त्रानंद का एक तीर राम को लगा। इस पर माता सीता को क्रोध आया और उनका रंग काला पड़ गया। सहस्त्रानंद का वध करने के बाद भी,जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ, तो भगवान शिव को आना पड़ा। भगवान के सीने पर पैर पडऩे से माता बेहद लज्जित हुईं और उनकी जिह्वा बाहर आ गई। यही वजह है कि उन्हें यहां काली नहीं, श्यामा के नाम से जाना जाता है। नवरात्र में यहां मेला लगता है और भक्तों का तांता लगा रहता है। Rameshwari Shyama Mai Templeकांवड़ यात्रा मार्ग पर नाम लिखने पर सुप्रीम रोक
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