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Maharashtra Politics: क्या शरद पवार पार्टी का अस्तित्व बचा पाएंगे? एनडीए के साथ अजित पवार का गठबंधन कितना टिकेगा?

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Maharashtra Politics : महाराष्ट्र में 2 जुलाई को शुरू हुई सियासी उठापटक अभी भी जारी है। 5 जुलाई को दोनों गुटों की ओर से शक्ति प्रदर्शन करने के लिए मीटिंग भी बुलाई गई थी। इसमें एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। जहाँ एक ओर अजित पवार ने शरद पवार पर नीतियों से भटकने के गम्भीर आरोप लगाए। साथ ही उन्हें राजनीति से संन्यास लेने की सलाह भी दे डाली।

दूसरी ओर शरद पवार की ओर से भी अलग हुए नेताओ पर सत्ता के लालच में पार्टी तोड़ने और विश्वासघात करने के आरोप लगाए गए। उनका कहना था कि इन लोगों को अगर कोई शिकायत थी, तो उन्हें मुझसे बात करनी चाहिए थी। साथ ही शरद पवार ने हार न मानने और पार्टी को 3 महीने में फिर से खड़ा करने का दावा भी किया।

अब इस घटनाक्रम के बाद कई सवाल उठ रहे हैं, एक तो ये कि उम्र के इस पड़ाव पर शरद पवार क्या इतना दमखम दिखा पाएंगे? दूसरा क्या एनसीपी अपना अस्तित्व बचा पाएगी? तीसरा सवाल ये है कि क्या एनडीए के साथ अजित पवार गुट का गठजोड़ सफल रहेगा? चौथा ये कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में स्थिरता आएगी या यूँ ही डावांडोल वाली स्थिति बनी रहेगी? खोजते हैं इन सवालों के जवाब।

क्या शरद पवार पार्टी को दुबारा खड़ा कर सकेंगे?

जहाँ तक शरद पवार के अपनी पार्टी एनसीपी को फिर से खड़ा करने की कोशिशों की बात है, उन्होंने ये बीड़ा तो जरूर उठाया है, लेकिन ये कतई आसान नहीं होने वाला है। इसकी वजह उनकी बढ़ती उम्र और बीमार होना है। अब उनका स्वास्थ्य भी पहले जैसा नहीं है। अब उनके लिए इतनी भागदौड़ करना आसान नहीं होगा।

Maharashtra Politics क्या बचेगा एनसीपी का अस्तित्व?

जहाँ तक एनसीपी का अपना अस्तित्व बचाने का सवाल है। ये भी आसान नहीं होने वाला है। क्योंकि शरद पवार पार्टी की कमान अपनी पुत्री सुप्रिया सुले के हाथों में सौपना चाहते हैं। जिसकी वजह से ही ये सारा बवाल हुआ। सुप्रिया सुले की उतनी स्वीकार्यता नहीं है। वो शरद पवार जितनी न तो लोकप्रिय हैं और न ही उनकी पार्टी में पकड़ उतनी मजबूत है। उनकी छवि सिर्फ शरद पवार की पुत्री की है। दूसरी ओर सत्ता से बाहर जाने के बाद अजित पवार के पास कितना जनाधार रहेगा। ये भी एक विचारणीय प्रश्न है। इसलिए कहीं न कहीं इस घटनाक्रम से एनसीपी का अस्तित्व खतरे में जरूर आ गया है। एनसीपी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए मेहनत करनी होगी।

एनडीए के साथ अजित पवार का गठबंधन टिकेगा?

जहाँ तक अजित पवार के एनडीए के साथ किए गए गठबंधन का सवाल है, तो ये भी आसान नहीं होगा। सत्ता के लालच में पार्टियां और नेता नीतियों और सिद्धान्तों को दरकिनार कर आपस में गठबंधन तो कर लेते हैं। लेकिन सत्ता से दूर होते ही उन्हें ये बोझ लगने लगता है। तब उन्हें नीतियों और सिद्धान्तों की याद आती है। इसके अलावा सत्ता के लालच में साथ आए लोगों में सभी को पद देकर सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है। जो लोग सत्ता सुख से वंचित रहते हैं, उन लोगों में असंतोष की भावना आ जाती है और इन्हें साथ लेकर चलना मुश्किल हो जाता है। इस वजह से ऐसे गठबंधन टूट जाते हैं। महा विकास अघाड़ी का हश्र भी इस वजह से ही हुआ था। इस गठबंधन के साथ ऐसा नहीं होगा, ये सोचना भी सही नहीं है। इसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

Maharashtra Politics क्या महाराष्ट्र में होगी राजनीतिक स्थिरता?

रही बात महाराष्ट्र में स्थिरता की, तो फिलहाल भले ही ये सरकार स्थिर दिख रही हो, लेकिन ऐसा कब तक होगा, कहना मुश्किल है! इसकी वजह इसमें शामिल पार्टियों का वैचारिक मतभेद होना है। जैसा कि पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार के साथ भी था। ये गठबंधन उस तरह के नहीं है जैसे शिवसेना और बीजेपी या फिर कॉंग्रेस और एनसीपी के बीच थे।

यदि ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा करती भी है, तो फिर अगले चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर खींचतान होने की सम्भावना बनी रहेगी। क्योंकि गठबंधन में शामिल हर पार्टी अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी। ऐसे में जिन लोगों को भी टिकट नही मिलेगा, वो शांत नहीं बैठेंगे और मौका मिलते ही पाला बदल लेंगे। इसलिए हाल फिलहाल तो महाराष्ट्र में स्थिरता की ज्यादा सम्भावना नजर नहीं आ रही है।Maharashtra Politics 

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