Site icon चेतना मंच

UP Political News : छह वर्ष में चौथी बार नजदीक आए अखिलेश और शिवपाल, समर्थक अभी संशय में

UP Political News

Akhilesh and Shivpal came close for the fourth time in six years, supporters still in doubt

UP Political News : लखनऊ। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने रविवार को सैफई में एक मंच पर आकर लोगों को संबोधित किया तो छह वर्ष में यह चौथा मौका था, जब दोनों ने आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे का सहयोग करने की घोषणा की। हालांकि, दोनों के समर्थक इस नयी सुलह को लेकर अभी संशय में हैं।

UP Political News :

अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते हुए 2016 में पहली बार दोनों के बीच मतभेद सार्वजनिक हुए थे। तब से दोनों के रिश्ते कभी गरम तो कभी नरम रहे हैं। इस बार सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव ने चाचा-भतीजा को मनमुटाव दूर करने का मौका फिर से उपलब्ध कराया है। मैनपुरी में सपा ने अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उनके खिलाफ कभी शिवपाल के करीबी रहे रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है।

गौरतलब है कि अक्टूबर 2016 में सपा की सरकार का नेतृत्व कर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव, अंबिका चौधरी, नारद राय, शादाब फातिमा, ओमप्रकाश सिंह और गायत्री प्रजापति को अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था। उस समय मुलायम सिंह यादव ने दोनों के बीच सुलह कराई थी और 2017 के चुनाव में शिवपाल ने सपा के ही चुनाव चिह्न पर जसवंत नगर से चुनाव जीता था। लेकिन, यह समझौता ज्यादा दिन नहीं चला और शिवपाल ने 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया (प्रसपा) का गठन कर लिया।

Uttar Pradesh मैनपुरी उप चुनाव के बीच मनाई जा रही नेता जी की जयंती

शिवपाल के अलग पार्टी बनाने के बाद सपा ने उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की मांग वाली याचिका भी दाखिल की। बाद में मार्च 2020 में सपा ने विधानसभा में एक अर्जी देकर शिवपाल के खिलाफ दलबदल कानून के तहत कार्रवाई करने की मांग वाली याचिका वापस करने की मांग की।

UP Political News :

उत्तर प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने सपा की याचिका वापस कर दी, जिससे शिवपाल की विधानसभा सदस्यता बच गई। शिवपाल ने बदले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व के प्रति आभार जताया। पर कुछ ही दिनों बाद दोनों के रिश्‍तों में फिर से तल्खी दिखाई देने लगी। लोकसभा चुनाव में शिवपाल ने सपा से अलग चुनाव लड़ा।

उत्तर प्रदेश में चुनावों के पहले तीसरी बार मुलायम की पहल पर अखिलेश और शिवपाल एक बार फिर साथ आए। शिवपाल ने सपा के चुनाव चिह्न पर ही जसवंत नगर से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। चुनाव के दौरान वह लगातार अखिलेश यादव के नेतृत्व की सराहना करते रहे, लेकिन चुनाव बाद सपा विधायक दल की पहली बैठक में जब शिवपाल को आमंत्रित नहीं किया गया तो उन्होंने एक बार फिर भतीजे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अब छह वर्ष के भीतर चौथी बार अखिलेश और शिवपाल नजदीक आए हैं तो दोनों के समर्थक नयी सुलह को लेकर असमंजस में हैं।

वरिष्‍ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार राजीव रंजन सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘चाचा-भतीजे के रिश्ते की मजबूती उपचुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगी। अगर डिंपल यादव चुनाव जीत गईं तो संबंध टिकाऊ हो सकते हैं, लेकिन अगर उनकी हार हुई तो विधानसभा चुनाव की तरह अखिलेश फिर अपने चाचा से दूरी बना लेंगे।’ उन्होंने उदाहरण दिया कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को 403 सीटों में सिर्फ 111, सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को आठ और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को छह सीटें मिलीं, जिससे प्रदेश में सरकार बनाने का अखिलेश का सपना टूट गया। इसके बाद उनका सुभासपा और शिवपाल से राजनीतिक रिश्‍ता टूट गया।

हालांकि, इस बाबत पूछे जाने पर सपा के मुख्‍य प्रवक्‍ता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘यह संबंध अटूट है और अब जबकि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) नहीं रहे तो दोनों मिलकर उनका सपना पूरा करेंगे और उनके रास्ते पर चलेंगे। चौधरी से जब यह पूछा गया कि क्या प्रसपा और सपा का विलय हो जाएगा तो उन्होंने कहा कि यह तो वे लोग (अखिलेश-शिवपाल) तय करेंगे, लेकिन अब राजनीतिक रिश्ता भी स्थायी हो गया है।

UP News सेना में फर्जी तरीके से नौकरी करते रहे गाजियाबाद के दो भाई, ऐसे हुआ खुलासा

सपा की राजनीति को करीब से समझने वालों का मानना है कि आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्रों में हाल में हुए उपचुनाव में सपा को मिली करारी शिकस्त ने अखिलेश को शिवपाल के साथ तालमेल बैठाने के लिए मजबूर कर दिया है। आजमगढ़ सीट अखिलेश और रामपुर सीट सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां के विधायक चुने जाने के बाद रिक्त हुई थी। जानकारों का तर्क है कि अखिलेश ने पारिवारिक गढ़ और अपनी सियासी विरासत बचाने के लिए चाचा शिवपाल से समझौता किया है। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में आने वाले जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व शिवपाल करते हैं और इस लोकसभा सीट के सभी क्षेत्रों में उनका प्रभाव है।

यादव परिवार के करीबी और सपा के पूर्व राष्‍ट्रीय महासचिव अरशद खान ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लगातार बढ़ते प्रभाव और मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से पूरा परिवार एकजुट है और हर मौके पर उनकी निकटता देखने को मिली। उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए यह एकता कारगर साबित होगी। खान ने कहा कि परिवार बिखरा रहेगा तो दुनिया को एकजुट होने का संदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन परिवार एक रहेगा तो सबको एकजुट करने का संदेश प्रभावी होगा।

गौरतलब है कि 10 अक्टूबर को मुलायम के निधन के बाद अखिलेश को शिवपाल के कंधे पर सिर रखकर रोते और शिवपाल को उनका संबल बढ़ाते देखा गया था। हरिद्वार और प्रयागराज में मुलायम के अस्थि विसर्जन के दौरान भी अखिलेश और शिवपाल साथ नजर आए थे। यादव परिवार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि पारिवारिक एकता को मजबूत करने के शुभचिंतकों, रिश्तेदारों और प्रमुख कार्यकर्ताओं के दबाव ने भी चाचा-भतीजा को फिर से करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है।

इस नये गठजोड़ पर प्रसपा (लोहिया) के मुख्‍य प्रवक्‍ता दीपक मिश्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि यह सबको साथ लेकर चलने की राजनीति है और समाजवादियों का तो आपस में मिलने-बिछड़ने का इतिहास रहा है। यह मेल-मिलाप उसी इतिहास का एक अध्याय है। उन्होंने कहा कि बड़े लक्ष्य के लिए लोग हमेशा एक होते हैं, भावनाओं में तो उतार-चढ़ाव आता ही रहता है।

जानकारों का कहना है कि शिवपाल को अब अपने पुत्र और प्रसपा के प्रदेश अध्यक्ष आदित्य यादव के भविष्य की भी चिंता सताने लगी है। आदित्य की अखिलेश यादव से पहले से नजदीकी रही है, इसलिए शिवपाल अपने बेटे के भविष्य की राह आसान करने के लिए भी अखिलेश का सहारा चाहते हैं।

Exit mobile version