गुप्त नवरात्रि का तीसरा दिन, त्रिपुर सुंदरी की होती है पूजा

Gupt Navratri 2024
Gupt Navratri 2024
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 02:11 PM
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Gupt Navratri 2024 : दस महाविद्याओं में तीसरा स्थान त्रिपुर सुंदरी महाविद्या का होता है। माता पार्वती के प्रथमकाली रूप दूसरे तारा रूप के पश्चात कामदेव की भस्म से उत्पन भाण्डासुरकेवध के लिए देवताओं की प्रार्थना पर जिनकी उत्पत्ति हुई और उन्होंने त्रिपुर सुंदरी के रूप में ही अवतरित होकर उसका वध किया‌। षोडशी त्रिपुर सुंदरी त्रैलोक्य में सबसे सुंदर अपूर्व अप्रतिम सुंदर त्रिपुरेश्वरी त्रिपुरेश शिव की अर्धांगिनी है। इनका शक्ति पीठ स्थान राधाकिशोर गांव त्रिपुरा में कूर्म पीठ है। दूसरा राजस्थान के बांसवाड़ा में भव्य परा शक्ति का प्राचीन मंदिर जिसकी गणना 52 शक्ति पीठ के रूप में है। कहते हैं यहां देवी के तीन रूप के दर्शन होते हैं प्रात:काल में एक कुमारी कन्या, दोपहर में षोडशी युवती और अंत में  संध्याकाल में प्रौढ़ावस्था के रूप मे दर्शन होते हैं । बहुत प्राचीन है त्रिपुरसुंदरी का मंदिर त्रिपुरसुंदरी का यह मंदिर अति प्राचीन है। अरावली की पहाड़ियों के बीच अपनी निर्माण में शिल्प कला और भव्यता के लिये संपूर्ण देश भर में प्रसिद्ध है । अजस्र सलिला माही नदी के पावन तट पर अपनी गाथा गाता,मंदिर के पीछे एक खदान है जिसमें पहले लोहा निकलता था। ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियों का स्त्रोत यह दस महा विद्यायें ही हैं जिनके दो कुल हैं:- 1.उग्र काली कुल 2.श्री कुल । उग्र काली कुल की अधिष्ठात्री काली देवी हैं इसमें :- महाकाली छिन्नमस्ता , धूमावती , बगलामुखी है। श्रीकुल की अधिष्ठात्री त्रिपुर सुंदरी के साथ :- त्रिपुर सुंदरी , भुवनेश्वरी,मातंगी और कमला है। सौम्य उग्र से जान जाता है तीसका कुल इसके अतिरिक्त एक तीसरा कुल भी है जो सौम्य उग्र के नाम से जाना जाता है इसमे:- तारा,त्रिपु भैरवी हैं। यह कभी सौम्य और आवश्यकतानुसार रौद्र रूप धारण कर लेती है। तंप्रशास्त्र में इनका विशेष महत्व है। शक्ति के पुजारी शाक्त सम्प्रदाय में शक्ति की ही पूजा का विधान है। सोलह कलाओं से सम्पन्न षोडशु त्रिपुर सुंदरी का अपना अलग महत्व है सभी का कल्याण करने वालीश्री यंत्र की अधिष्ठात्री देवीशिव और विष्णु दोशनों को हीशक्ति प्रदान कर उन्हें शव से शिव बनाती हैं।  इनके देव स्वयं कामेश्वर हैं। असम में कामाख्या देवी का शक्ति पीठ सती की योनि पर स्थित है। कहते हैं यहां सती की योनि गिरी थी। इसलिए इसका नाम कामख्या देवी है। यह मानव की सभी मनोकामनायें पूर्ण करती हुई उसे भुक्ति से मुक्ति की ओर ले जाती हैं।  सभी को एशवर्ये प्रदान करने वाली इनका दूसरा नाम राज राजेश्वरी है । उषा सक्सेना

बसंत पंचमी में पीला रंग क्यों होता हैं खास,किस दिन हैं बसंत पंचमी और पूजा का शुभ मुहूर्त

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गुप्त नवरात्रि का तीसरा दिन, त्रिपुर सुंदरी की होती है पूजा

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Gupt Navratri 2024 : दस महाविद्याओं में तीसरा स्थान त्रिपुर सुंदरी महाविद्या का होता है। माता पार्वती के प्रथमकाली रूप दूसरे तारा रूप के पश्चात कामदेव की भस्म से उत्पन भाण्डासुरकेवध के लिए देवताओं की प्रार्थना पर जिनकी उत्पत्ति हुई और उन्होंने त्रिपुर सुंदरी के रूप में ही अवतरित होकर उसका वध किया‌। षोडशी त्रिपुर सुंदरी त्रैलोक्य में सबसे सुंदर अपूर्व अप्रतिम सुंदर त्रिपुरेश्वरी त्रिपुरेश शिव की अर्धांगिनी है। इनका शक्ति पीठ स्थान राधाकिशोर गांव त्रिपुरा में कूर्म पीठ है। दूसरा राजस्थान के बांसवाड़ा में भव्य परा शक्ति का प्राचीन मंदिर जिसकी गणना 52 शक्ति पीठ के रूप में है। कहते हैं यहां देवी के तीन रूप के दर्शन होते हैं प्रात:काल में एक कुमारी कन्या, दोपहर में षोडशी युवती और अंत में  संध्याकाल में प्रौढ़ावस्था के रूप मे दर्शन होते हैं । बहुत प्राचीन है त्रिपुरसुंदरी का मंदिर त्रिपुरसुंदरी का यह मंदिर अति प्राचीन है। अरावली की पहाड़ियों के बीच अपनी निर्माण में शिल्प कला और भव्यता के लिये संपूर्ण देश भर में प्रसिद्ध है । अजस्र सलिला माही नदी के पावन तट पर अपनी गाथा गाता,मंदिर के पीछे एक खदान है जिसमें पहले लोहा निकलता था। ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियों का स्त्रोत यह दस महा विद्यायें ही हैं जिनके दो कुल हैं:- 1.उग्र काली कुल 2.श्री कुल । उग्र काली कुल की अधिष्ठात्री काली देवी हैं इसमें :- महाकाली छिन्नमस्ता , धूमावती , बगलामुखी है। श्रीकुल की अधिष्ठात्री त्रिपुर सुंदरी के साथ :- त्रिपुर सुंदरी , भुवनेश्वरी,मातंगी और कमला है। सौम्य उग्र से जान जाता है तीसका कुल इसके अतिरिक्त एक तीसरा कुल भी है जो सौम्य उग्र के नाम से जाना जाता है इसमे:- तारा,त्रिपु भैरवी हैं। यह कभी सौम्य और आवश्यकतानुसार रौद्र रूप धारण कर लेती है। तंप्रशास्त्र में इनका विशेष महत्व है। शक्ति के पुजारी शाक्त सम्प्रदाय में शक्ति की ही पूजा का विधान है। सोलह कलाओं से सम्पन्न षोडशु त्रिपुर सुंदरी का अपना अलग महत्व है सभी का कल्याण करने वालीश्री यंत्र की अधिष्ठात्री देवीशिव और विष्णु दोशनों को हीशक्ति प्रदान कर उन्हें शव से शिव बनाती हैं।  इनके देव स्वयं कामेश्वर हैं। असम में कामाख्या देवी का शक्ति पीठ सती की योनि पर स्थित है। कहते हैं यहां सती की योनि गिरी थी। इसलिए इसका नाम कामख्या देवी है। यह मानव की सभी मनोकामनायें पूर्ण करती हुई उसे भुक्ति से मुक्ति की ओर ले जाती हैं।  सभी को एशवर्ये प्रदान करने वाली इनका दूसरा नाम राज राजेश्वरी है । उषा सक्सेना

बसंत पंचमी में पीला रंग क्यों होता हैं खास,किस दिन हैं बसंत पंचमी और पूजा का शुभ मुहूर्त

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बसंत पंचमी में पीला रंग क्यों होता हैं खास,किस दिन हैं बसंत पंचमी और पूजा का शुभ मुहूर्त

Pila
Basant Panchami 2024
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userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 01:53 PM
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Basant Panchami 2024 : माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाते हैं । इसे मदन उत्सव भी कहा जाता हैं । यह त्यौहार ठंड की विदाई और बसंत के आगमन के रूप मे मनाया जाता हैं । बसंत पंचमी मे ज्यादातर लोग पीले कपड़े पहन कर पूजा करना पसंद करतें हैं । पीला रंग अध्यात्म का रंग होता हैं ।ये  दिन माता सरस्वती की पूजा के लियें खास होता हैं ।

बसंत पंचमी का त्यौहार पूरे भारतवर्ष मे धूमधाम से मनाया जाता हैं । इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा का खास महत्व हैं । मां सरस्वती विद्या, बुद्धि और कला की देवी हैं। मां सरस्वती की पूजा मे पीले रंग के फूल,पीली मिठाई,पीले वस्त्र,पीले फल चढ़ाने की परंपरा हैं ।इस साल 14 फरवरी 2024 को बसंत पंचमी मनाई जाएगी। इस दिन मां सरस्वती की पूजा मे पीले रंग की चीजें अर्पण करने से मां प्रसन्न होती हैं और सबको विद्या,बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं  । आइये जानते हैं पूजा मे पीले रंग क्यों है इतना खास।

बसंत पंचमी मे पीला रंग क्यों होता हैं खास:

Basant Panchami 2024

जब बसंत ऋतु का आगमन होता हैं तो धरती ने मान लो पीली चुनर ओढ़ लेती है । सूर्य के उत्तरायण होने के कारण सूर्य से निकलने वाली किरणों से पृथ्वी पीली हो जाती हैं । खेतों मे चारों तरफ पीली सरसो ऐसे लगती है की मानो जैसे किसी ने पीले रंग भर दिये हो  ।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीला रंग आत्मविश्वास को बढ़ाता है हमारे अंदर के तनाव को कम करता हैं । पीला रंग हमारे मस्तिष्क को मजबूत करता हैं और हमे खुश रहने मे मदद करता हैं । पीला कपड़ा पहनने से हमारी कुंडली मे बृहस्पति की स्थिति मजबूत होती हैं । पूजा मे चढ़ाया जाने वाला पीला फल भी हमे कई प्रकार की बिमारियों से बचाता हैं ।

पूजा में माता सरस्वती को क्या चढ़ाए :

बसंत पंचमी के दिन सुबह स्नान के बाद पीले वस्त्र धारण करें । पूजा मे पीले फूल मां को अर्पित करे । पीले फल चढ़ाए और चावल को हल्दी से रंग करके मां को पीले चावल चढ़ाए । प्रसाद मे मां को पीले मीठे चावल का भोग लगाएं । फिर इस प्रसाद को लोगो मे बांट दे और खुद भी खायें ।

Basant Panchami 2024 पूजा का दिन और शुभ मुहूर्त:

हिंदू पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष की पंचमी की शुरुआत 13 फरवरी को दोपहर 02.41 और अगले दिन 14 फरवरी 2024 को दोपहर 12.09 मिनट पर समाप्त होगी। ये पर्व उदयातिथि के अनुसार 14 फरवरी को मान्य होगा। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07.00 से दोपहर 12.35 मिनट तक है। इस दिन कलम, दवात की विशेष पूजा करनी चाहिए।कलाकार इस दिन अपने कला के वाद्य  यंत्रों की पूजा  करते हैं ।

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