नहीं होगी धन धान्य की कमी, भोजन पकाते वक्त करें ये छोटी सी प्रार्थना

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Prayer
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 07:47 AM
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यह बात हम सभी जानते है कि घर की रसोई (Kitchen) में मां अन्नपूर्णा (Maa Annpurna) का वास होता है, जिससे ना कभी खाने की कमी होती है और ना ही परिवार के सदस्‍यों में मतभेद। कुछ खास करने से मां अन्‍नपूर्णा (Maa Annpurna) का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहता है और घर में कभी खाने की कमी नहीं रहती। चूल्हे को सदैव रसोईघर (Kitchen) के आग्नेयकोण में ही रखना चाहिए।

भोजन को बनाते समय उसे बनाने वाले का मुख पूरब की रहना चाहिए। यदि यह सम्भव नहीं हो तो वायव्य कोण यानी उतर-पश्चिम में इस रखें।

इस तरह करें प्रार्थना/Prayer  आज की परिस्थिति में, जब कि लोगों को बिल्डर द्वारा बनाया घर, अपार्टमेंट आदि खरीद कर रहना पड़ता है, सब जगह यह सम्भव नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में रसोईघर के आग्नेयकोण में एक लाल बिजली का बल्ब जलाना चाहिए और भोजन बनाने से पूर्व अग्निदेव से प्रार्थना करनी चाहिए “हे अग्निदेव ! हे विष्णु भगवान् ! मैं मजबूरी में सही स्थान पर भोजन नहीं बना पा रहा हूँ, कृपाकर मुझे क्षमा करेंगे ।”

रसोईघर में पानी को आग्नेय कोण में न रखें और चूल्हे से उसको यथासम्भव दूर ही रखें। जो व्यक्ति भोजन बनाता है उसके ठीक पीछे दरवाजा न हो। यदि ऐसा है तो उस व्यक्ति को थोड़ा इधर- उधर हो जाना चाहिए, यदि यह संभव हो तो। रसोई घर में पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो वहाँ भगवान् का चित्र आदि न रखें ।

यदि सम्भव हो तो रसोईघर में ही भोजन करना चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो ऐसी जगह बैठकर भोजन करना चाहिए जहाँ से चूल्हे की आग दिखती हो।

यदि संभव हो तो रसोईघर में पूर्व की ओर खिड़की या रोशनदान बनवाएं। भोजन बनाने के बाद उसे भगवान् का भोग समझ कर उन्हें अर्पित कर दें और फिर प्रसाद मानकर स्वयं भोजन करना चाहिए।

भोजन करने के बाद मन ही मन अग्निदेव और अन्नपूर्णा माता को धन्यवाद दें। ऐसा करने से घर में बरकत बनी रहती है।

पंडित रामपाल भट्ट, भीलवाड़ा

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नहीं होगी धन धान्य की कमी, भोजन पकाते वक्त करें ये छोटी सी प्रार्थना

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यह बात हम सभी जानते है कि घर की रसोई (Kitchen) में मां अन्नपूर्णा (Maa Annpurna) का वास होता है, जिससे ना कभी खाने की कमी होती है और ना ही परिवार के सदस्‍यों में मतभेद। कुछ खास करने से मां अन्‍नपूर्णा (Maa Annpurna) का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहता है और घर में कभी खाने की कमी नहीं रहती। चूल्हे को सदैव रसोईघर (Kitchen) के आग्नेयकोण में ही रखना चाहिए।

भोजन को बनाते समय उसे बनाने वाले का मुख पूरब की रहना चाहिए। यदि यह सम्भव नहीं हो तो वायव्य कोण यानी उतर-पश्चिम में इस रखें।

इस तरह करें प्रार्थना/Prayer  आज की परिस्थिति में, जब कि लोगों को बिल्डर द्वारा बनाया घर, अपार्टमेंट आदि खरीद कर रहना पड़ता है, सब जगह यह सम्भव नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में रसोईघर के आग्नेयकोण में एक लाल बिजली का बल्ब जलाना चाहिए और भोजन बनाने से पूर्व अग्निदेव से प्रार्थना करनी चाहिए “हे अग्निदेव ! हे विष्णु भगवान् ! मैं मजबूरी में सही स्थान पर भोजन नहीं बना पा रहा हूँ, कृपाकर मुझे क्षमा करेंगे ।”

रसोईघर में पानी को आग्नेय कोण में न रखें और चूल्हे से उसको यथासम्भव दूर ही रखें। जो व्यक्ति भोजन बनाता है उसके ठीक पीछे दरवाजा न हो। यदि ऐसा है तो उस व्यक्ति को थोड़ा इधर- उधर हो जाना चाहिए, यदि यह संभव हो तो। रसोई घर में पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो वहाँ भगवान् का चित्र आदि न रखें ।

यदि सम्भव हो तो रसोईघर में ही भोजन करना चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो ऐसी जगह बैठकर भोजन करना चाहिए जहाँ से चूल्हे की आग दिखती हो।

यदि संभव हो तो रसोईघर में पूर्व की ओर खिड़की या रोशनदान बनवाएं। भोजन बनाने के बाद उसे भगवान् का भोग समझ कर उन्हें अर्पित कर दें और फिर प्रसाद मानकर स्वयं भोजन करना चाहिए।

भोजन करने के बाद मन ही मन अग्निदेव और अन्नपूर्णा माता को धन्यवाद दें। ऐसा करने से घर में बरकत बनी रहती है।

पंडित रामपाल भट्ट, भीलवाड़ा

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धर्म - अध्यात्म : सुख पाने की लालसा भी दु:ख का कारण बनती है!

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calendar29 Nov 2025 03:50 AM
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विनय संकोची

इस संसार में विरले ही होंगे जो कामना से रहित हों। कामना का अर्थ - 'अपने मन की हो जाना है'। 'मेरे मन की हो जाए' - यही तो कामना है और जहां कामना का आधिपत्य हो वहां भक्ति और भगवान का वास नहीं होता है, क्योंकि कामना करने वाला संसार में मन लगाता है और जिसका मन संसार में लगा हो उससे भगवान दूर हो जाते हैं। शास्त्र कहते हैं कि कामना ही दु:ख का कारण है। इस बात को अधिकांश लोग जानते भी हैं और मानते भी हैं, लेकिन इसका त्याग नहीं कर पाते। कामना का त्याग किए बिना कोई सुखी हो ही नहीं सकता है।

सुख प्राप्ति की चाहना से, सुख प्राप्ति की कामना से व्यक्ति अपने मार्ग से भटक जाता है और उस दिशा की ओर अग्रसर हो जाता है जहां सुख पाने की लालसा उसे दु:खों के दलदल में उतर जाने को विवश कर देती है। एक सुख की कामना अनेकानेक दु:खों का कारण बनती है। इस बात को लोग जानते तो हैं लेकिन मानने को तैयार नहीं होते हैं। इस सत्य को स्वीकार करने में कामना ही तो बाधा बनती है।

संत महापुरुषों का कथन है कि कामना उत्पन्न होते ही मनुष्य अपने कर्तव्य से, अपने स्वरूप से और अपने इष्ट से विमुख हो जाता है और नाशवान संसार के सम्मुख हो जाता है। कामना व्यक्ति को यह तक सोचने समझने का अवसर नहीं देती की कामना मात्र से कोई भी वस्तु अपनी नहीं हो सकती और अगर हो भी जाती है तो सदा साथ नहीं रहती है।

जब-जब व्यक्ति संयोगजन्य सुख की कामना करता है, तब तक उसका जीवन कष्टमय हो जाता है। लोग इस बात को समझने का प्रयास ही नहीं करते हैं कि इच्छा के अनुसार सबको कुछ कभी नहीं मिलता है और जो कुछ मिलना होता है वह बिना कामना के भी प्राप्त हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि कामना व्यर्थ है। कामना भटकाव का पर्याय है यदि यह सांसारिक वस्तुओं के लिए है, तो लोग इस बात को क्यों नहीं समझते कि जैसे बिना चाहे तमाम तरह के सांसारिक दु:ख मिलते हैं, ऐसे ही बिना चाहे सुख भी मिलते हैं, फिर कामना से, इच्छा से लाभ ही क्या है?

कामना अशांति की जननी है। कोई कामना की कोई इच्छा की और वह पूरी नहीं हुई तो व्यक्ति बेचैन हो जाता है, उसकी शांति भंग हो जाती है। जो चाहो वह मिल जाए, जैसा सोचा वैसा हो जाए, जब तक यह कामना रहेगी तब तक शांति तो नहीं मिल सकती है। कामना शांति की बैरन जो ठहरी। ऋषियों की वाणी है कि कुछ चाहने से कुछ मिलता है या नहीं मिलता है परंतु कुछ ना चाहने से, कामना रहित रहने से तो सब कुछ मिल जाता है, मिलता है। यह तर्क का नहीं आस्था का विषय है।

व्यक्ति दूसरों से सहयोग की कामना करता है, व्यक्ति दूसरों से अच्छा कहलाने की इच्छा रखता है, लेकिन वह दूसरों की कामना पूर्ति में सहयोग करने की इच्छा नहीं रखता, वह अच्छे कहलाने की इच्छा तो पाल लेता है लेकिन अच्छा बनने की दिशा में कदम बढ़ाने से बचता है। प्रशंसा योग्य न होने के बावजूद, प्रशंसा पाने की इच्छा अवसाद का कारण बनती है। जो प्रशंसा योग्य होता है, वह प्रशंसा पाने की कामना से परे रहता है। तो कामना से कुछ होता नहीं है, उसके लिए सतत प्रयास की आवश्यकता होती है, ऐसे प्रयास की जो कामना रहित हो।

इस अटल सत्य को भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि कामना त्याग से जो सुख प्राप्त होता है, वह सुख कामना की पूर्ति से भी नहीं मिलता है। वैसे भी जिसे हम हमेशा के लिए अपने पास नहीं रख सकते, अपना नहीं बना सकते उसकी इच्छा करने, उसकी कामना करने से क्या लाभ।