Noida Twin Tower : गुबार में तब्दील सुपरटेक का गुमान

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:00 AM
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Noida : नोएडा। वह एक ऐसा धमाका (blast) था, जिसने आसमान से धरती को निहारने के हसीन ख्वाब (Beautiful Dream) को पलक झपकते ही मिट्टी (clay in the blink of an eye) में मिला दिया। भ्रष्टाचार की बुनियाद (Foundation of Corruption) पर खड़े होकर गगन से बात करते ट्विन टॉवरों (Twin Towers)का गुमान बारूद के साथ धुआं बनकर फिजाओं में गुम हो गया। दोनों टॉवरों (Twin Tower) को ध्वस्त करने के लिए 3,700 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। धमाके से आसपास की सोसायटियों के कई घरों की खिड़कियों के शीशे टूट गए। गगनचुंबी इमारतों के गिरते ही लगा, जैसे भूकंप आ गया। तेज आवाज और धूल के गुबार को देखकर एक बारगी महसूस हुआ, जैसे पूरा इलाका ही मिट्टी में मिल गया।   ट्विन टॉवरों को गिराना इतना आसान नहीं था। इसके लिए लगभग छह महीने तक गहन रिसर्च किया गया। इसमें आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों के साथ एडिफिस कंपनी और साउथ अफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड की टीमों ने दिनों रात मेहनत की। शुरुआती दिनों में मॉक ड्रिल के बाद एडिफिस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट से डिमॉलिशन के लिए और वक्त की मांग की थी। टीम को भी यह महसूस हो गया था कि वह इस काम को जितना आसान मान रहे थे, उतना है नहीं। विस्तृत अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने दोनों टॉवरों को सुरक्षित गिराने के लिए अतिरिक्त विस्फोटकों का इस्तेमाल करने का फैसला किया। आखिर, दक्षिण अफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड, भारत की एडिफिस कंपनी और आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों के इम्तिहान का वक्त आ गया। साउथ अफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर जो बिक्समैन, आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञ और भारत की एडिफिस कंपनी के इंडियन ब्लॉस्टर चेतन दत्ता, प्रोजेक्स इंजीनियर मयूर मेहता और उत्कर्ष मेहता की धड़कनें बढ़ गई थीं। 28 अगस्त-2022, दिन रविवार को घड़ी की सूई जैसे दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर पहुंची, एक सायरन बजा। एडिफिस के इंडियन ब्लास्टर चेतन दत्ता ने रिमोट का बटन दबाया। फिर तीन सेकेंड के भीतर दो जोरदार धमाके हुए। भ्रष्टाचार का ‘रावण’ जमीन पर आ गिरा और गगन से बात कर रही दो इमारतें को धरती ने अपने आगोश में ले लिया। नोएडा के सियान और एपेक्स टावर में विस्फोट के दौरान प्राइमरी और सेकेंडरी विस्फोट के बीच तीन सेकेंड का अंतर था। विस्फोट के 9 सेकेंड के भीतर दोनों टावर मलबे में तब्दील हो गए। ट्विन टावरों के जमीन पर गिरने के साथ ही धूल के गुबार ने आसमान को छूने की कोशिश की। उसे लगभग 10 किलोमीटर दूर तक देखा गया। धूल से बचाने के लिए आसपास के सोसायटी को प्लास्टिक की शीट से कवर किया गया था। सेक्टर-93 ए स्थित एमराल्ड कोर्ट व एटीएस विलेज सोसायटी में रहने वाले लोगों को अपने वाहनों के साथ परिसर को सुबह 7 बजे ही खाली करा दिया गया था। सुरक्षा के लिए एक्सप्लोजन जोन में 560 पुलिसकर्मी, रिजर्व फोर्स के 100 जवान और चार क्विक रिस्पांस टीम के अलावा एनडीआरएफ टीम को तैनात किया गया था। दोपहर 2.15 बजे एक्सप्रेस-वे को बंद कर दिया गया। आधे घंटे बीतने और धूल हटने के बाद इसे चालू किया गया। इसके अलावा पांच और रास्तों को बैरिकेड लगाकर बंद किया गया था। डिमॉलिशन के मद्देनजर ट्विन टावर के पास की दो सोसायटी में रसोई गैस और बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई थी। धूल के नुकसान से आम लोगों को बचाने के लिए 15 स्मॉग गन लगाई गई थी। हवा में प्रदूषण मापने के लिए छह एयर क्वालिटी इंडेक्स मशीनें लगाई गईं थीं। इसके अलावा किसी अप्रिय घटना से निपटने के लिए शहर के छह हॉस्पिटल को स्टैंड बाय पर रखा गया था। किसी आपातकाल के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए थे। मौके पर एम्बुलेंस की भी तैनाती की गई थी। नोएडा के ट्विन टावर के ध्वस्तीकरण पर जिला प्रशासन भी अलर्ट मोड पर रहा। खुद डीएम सुहास एलवाई और ज्वाइंट कमिश्नर लव कुमार मौके पर मौजूद थे। ट्विन टावर्स को गिराने में लगभग 18 करोड़ रुपये का खर्च आया है। ये खर्च भी सुपरटेक को ही उठाना है। इसके पहले कुल 950 फ्लैट्स के इन दो टावर्स को बनाने में सुपरटेक 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। गिराने का आदेश जारी होने से पहले इन फ्लैट्स की मार्केट वैल्यू बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। ये वैल्यू तब है, जबकि विवाद बढ़ने से इनकी वैल्यू कम हो गई थी। रियल एस्टेट के जानकारों का मानना है कि इस इलाके में 10 हजार रुपये प्रति वर्गफीट का रेट है। इस हिसाब से बिना किसी विवाद के इन टॉवर्स की बाजार कीमत 1000 करोड़ के पार निकल गई होती। सुपरटेक ने इस नुकसान से बचने की भरसक कोशिश की। कोर्ट में तमाम तरह की दलीलें दी थीं, जिसमें एक टावर गिराकर वहां दूसरे को खड़े रहने का विकल्प भी सुझाया था। लेकिन, सुप्रीम अदालत ने उसकी सभी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया था। ट्विन टावर्स में 711 ग्राहकों ने फ्लैट बुक कराए थे। सुपरटेक ने 652 ग्राहकों के साथ सेटलमेंट कर लिया। लेकिन, अभी 59 लोगों को धन वापसी का इंतजार है। जबकि रिफंड के लिए 31 मार्च-2022 की अंतिम तारीख तय की गई थी। बुकिंग की रकम और ब्याज मिलाकर रिफंड का विकल्प तय किया गया था। जिन लोगों को बदले में सस्ती प्रॉपर्टी दी गई, उनमें सभी को अभी तक बाकी रकम नहीं मिली है। 25 मार्च को सुपरटेक के इंसोल्वेंसी में जाने से रिफंड की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इसोल्वेंसी में कुछ हिस्सा जाने और बाकी हिस्सा दिवालिया प्रक्रिया से बाहर होने पर भी सभी को रिफंड नहीं मिला। कुछ लोगों को प्लॉट या फ्लैट देकर बकाया रकम बाद में देने का वादा भी अब तक अधूरा ही है। इंसोल्वेंसी में जाने के बाद मई में सुपरटेक ने कोर्ट को बताया था कि उसके पास रिफंड करने के लिए पैसा नहीं है। सरकार के एक फैसले ने रखी विवाद की नींव हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद बीते कई महीनों से नोएडा स्थित सुपरटेक ग्रुप के प्रोजेक्ट एमराल्ड कोर्ट के दो निर्माणाधीन टॉवर्स को गिराने की तैयारी चल रही थी। बायर्स की शिकायत के बाद एपेक्स और सियान टॉवर्स को गिराने का आदेश कोर्ट ने दिया था। नक्शे के हिसाब से जहां पर 32 मंजिला एपेक्स और 29 मंजिला सियाने खड़े हैं, वहां पर ग्रीन बेल्ट दिखाया गया था। इसके साथ ही यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रावधान किया गया था। यहां तक भी सब कुछ ठीकठाक था। साल, 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया था। लेकिन, इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले से इस प्रोजेक्ट में विवाद की नींव भी पड़ गई। 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया। एफएआर बढ़ने से अब उसी जमीन पर बिल्डर ज्यादा फ्लैट्स बना सकते थे। इससे सुपरटेक ग्रुप को यहां से बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई। यहां तक भी एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने किसी तरह का विरोध नहीं किया, लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिली, तब फिर होम बायर्स का सब्र टूट गया। बायर्स ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की, लेकिन बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया। तब बायर्स ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की। वहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली। एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में सीआरपीएफ के रिटायर डीआईजी यूबीएस तेवतिया, हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस आरके गुलाटी, एमके जैन और रवि बजाज, एसडी सक्सेना और आरब्ल्यूए के प्रथम अध्यक्ष रवि कपूर शामिल रहे। इनका कहना था कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी थी। उनका आरोप था कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा गया कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी। जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है। इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया। बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया था। किसी तरह का रास्ता दिखाई न देने के पर साल, 2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए और पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही बताया गया। तेवतिया का कहना था कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया। इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे, लेकिन वहां से भी नक्शा नहीं मिला। इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया, लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला। बायर्स का आरोप था कि इन टावर्स को बनाने में नियमों को ताक पर रखा गया है। सोसायटी के निवासी यूबीएस तेवतिया का कहना था कि टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है। खुद फायर ऑफिसर ने कहा था कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए, लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टॉवर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी। इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया। 16 मीटर की दूरी का नियम इसलिए जरूरी है क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवा, धूप रुक जाती है। इसके साथ ही आग लगने की दशा में भी दो टावर्स में कम दूरी होने से आग फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। निवासियों का आरोप था कि नए नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया। नोएडा समेत देशभर में कितने ही ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं, जहां वर्षों बीत जाने के बाद भी काम पूरा नहीं किया जा सका है। खुद सुपरटेक के कई प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं, जहां पर टॉवर के चंद फ्लोर ही कई साल में बन पाए हैं, लेकिन एपेक्स और सियाने के मामले में कुछ अलग ही देखने को मिला। वर्ष-2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं, लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज का निर्माण पूरा कर दिया। इसके लिए रात दिन यहां पर काम करने का आरोप भी सोसायटी के निवासी लगा रहे थे। साल, 2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें गिराने का आदेश दिया, तब जाकर 32 मंजिल पर ही काम रुक गया। काम न रुकने के मामले में ये टावर्स 40 और 39 मंजिल तक बनाए जाने थे। अगर ये टावर दूसरे रिवाइज्ड प्लान के मुताबिक 24 मंजिल तक रुक जाते तो भी ये मामला सुलझ जाता, क्योंकि ऊंचाई के हिसाब से दो टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता। अभी बाकी है इन सवालों के जवाब: जब भी किसी अवैध या अनधिकृत निर्माण को प्रशासन की ओर से ढहाया जाता है तो सरकार इसके पक्ष में तर्क देती है। आम लोग भी इसे कानून सम्मत कार्रवाई मानते हैं। सही है कि अतिक्रमण के तौर पर बने ढांचों को तोड़ने की कार्रवाई को कानून के तहत ही अंजाम दिया जाता है, मगर आमतौर पर यह सवाल बहस से बाहर रह जाता है कि आखिर कोई व्यक्ति नियम-कायदों को ताक पर रखकर इमारत कैसे खड़ी कर लेता है। जबकि अमूमन किसी भी इलाके में एक छोटे भूखंड पर भी होने वाला निर्माण सबकी नजर में होता है। खासतौर पर किसी निर्माण के शुरू होने के बाद उस पर स्थानीय पुलिस या प्रशासन की नजर रहती है। इसके बावजूद यह शिकायत आम है कि किसी व्यक्ति या परिवार को ही अवैध निर्माण के लिए कानून के कठघरे में खड़ा होना पड़ता है और इसकी जिम्मेदारी के स्रोत साफ बचे रह जाते हैं। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम दखल देते हुए साफ शब्दों में यह कहा था कि अगर कहीं अनधिकृत निर्माण होता है तो इसके लिए पुलिस और नगर निगम के अधिकारी जिम्मेदार होंगे। यह छिपा नहीं है कि किसी भी इलाके में अगर कोई निर्माण शुरू होता है तो संबंधित महकमे का कर्मचारी या पुलिसकर्मी वहां पहुंच कर एक नजर जरूर डालता है। ऐसे में अगर कुछ वक्त बाद उसी निर्माण को अनधिकृत या अवैध बताकर कोई कानूनी कार्रवाई की जाती है तो उसकी जिम्मेदारी किस पर आनी चाहिए। इसी पहलू को आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ लहजे में कहा कि अनधिकृत निर्माण अधिकारियों और उल्लंघनकर्ता के बीच तालमेल से होते हैं, जिससे निर्माण करने वाले के लिए लागत में इजाफा होता है। अदालत के मुताबिक ऐसे निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहे हैं और सच यह है कि स्थानीय पुलिस अधिकारियों और निगम प्राधिकारों की मिलीभगत के बिना ईंट तक नहीं रखी जा सकती है। अदालत की यह टिप्पणी अवैध निर्माणों के इस पक्ष की ओर ध्यान खींचती है कि नियम-कायदों को तोड़ने में उल्लंघनकर्ताओं के साथ-साथ वे पुलिस अधिकारी और प्रशासन के लोग भी शामिल होते हैं, जिनकी ड्यूटी होती है कानून पर अमल कराने की। यह कैसे संभव हो जाता है कि बाजारों से लेकर गली-मोहल्लों में खुली दुकानों के सामने की सड़क पर सामान फैलाकर या फिर फुटपाथों तक का अतिक्रमण कर लिया जाता है और नगर निगम या पुलिस-प्रशासन की नजर नहीं पड़ती। आम लोग किसी तरह बचकर वहां से गुजरते रहते हैं। फिर किसी दिन अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण को हटाने के नाम पर अचानक बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू कर दी जाती है। ऐसे में स्वाभाविक ही मसले के तकनीकी पहलुओं और सालों से किसी अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण के बने रहने के सवाल उठते हैं। इसके अलावा, मानवीयता से जुड़े कुछ बिंदुओं पर भी बहस होती है। जाहिर है, अगर सरकार के संबंधित महकमे अपनी ड्यूटी को लेकर सजग हों तो संभव है कि इस तरह की गतिविधियां जमीन पर उतरें ही नहीं। जब लोगों के पास नियम-कायदों के दायरे में कोई विकल्प उपलब्ध होगा और उसकी प्रक्रिया आसान होगी तो शायद उन्हें खुद ही उसका पालन करना अच्छा लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और नगर निगमों की मिलीभगत की वजह से चलने वाली ऐसी गतिविधियों पर जरूरी सवाल उठाया है। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस मामले में क्या रुख अख्तियार करती है।
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Corona Virus : भारतीय वैज्ञानिकों के हाथ लगी मास्टर की, इससे खुलेगा कोरोना के हर वैरियंट का ताला

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Corona Update
locationभारत
userचेतना मंच
calendar20 Aug 2022 07:12 PM
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Toronto : टोरंटो। कोरोना वायरस (Corona Virus) के सफाये की दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों (Indian scientists) को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। उन्होंने कोरोना वायरस (Corona Virus) के कमजोर नस को ढूंढ निकाला है। उनके हाथ एक ऐसी चाबी लगी है, जो कोरोना के किसी भी वैरियंट के ताले को खोलने में सक्षम होगी। यानि इसे मास्टर की (master key) भी कह सकते हैं। अब उम्मीद जताई जा रही है कि कोरोना वायरस को खत्म करने का हथियार मिल जाएगा। कोरोना वायरस के खिलाफ इंसानों की जंग में अब तक सिर्फ वैक्सीन (Vaccine) ही सामने आए हैं, जिससे इंसानों की जान बच रही है। भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में एक टीम ने सार्स-कोव-2 के सभी प्रमुख वेरिएंट्स (Variants) के कमजोर स्पॉट की खोज कर ली है, जिसकी वजह से अब कोरोना वायरस को काफी आसानी से खत्म किया जा सकता है। यानि, अब उन दवाओं का काफी आसानी से निर्माण किया जा सकता है, जिसके खाने के बाद इंसानों के शरीर में मौजूद कोरोना का वायरस खत्म हो जाएगा और इंसान इस जानलेवा वायरस से बच जाएगा। कोरोना वायरस (Corona Virus) के कमजोर स्पॉट को खोजने वाले रिसर्चर्स ने कहा कि अब एंटीबॉडी (Antibodies) के जरिए सीधे कोरोना वायरस के कमजोर स्पॉट को हम निशाना बना सकते हैं और उसे फौरन खत्म कर सकते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि अब कोरोना वायरस का असल इलाज मिलने के रास्ते खुल गये हैं, जो इसके सभी प्रकार के वेरिएंट्स पर प्रभावी होंगे। वैज्ञानिकों के इस रिसर्च को नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इस स्टडी के मुताबिक, क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कमजोर स्थान को खोजने के लिए किया गया, इसमें वायरस के परमाणु-स्तर की संरचना को खोजा गया, से एपिटोप-या भाग के रूप में जाना जाता है, जो खुद को इंसानों के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी से खुद को जोड़ लेता है। रिसर्च टीम के प्रमुख सुब्रमण्यम ने कहा कि इस रिसर्च के दौरान उस कमजोर जगह का पता लगा लिया गया है, जिससे हम वायरस को खत्म कर सकते हैं। रिसर्च के दौरान देखा गया है कि ये स्पॉट बड़े पैमाने पर हर तरह के वेरिएंट में अपरिवर्तित रहता है, यानि बदलता नहीं है, जिसे एक एंटीबॉडी के टुकड़े से बेअसर किया जा सकता है। लिहाजा, अब पूरी दुनिया में इलाज के एक रास्ते का डिजाइन मिल गया है, जो संभावित तौर पर बहुत सारे कमजोर लोगों की मदद कर कर सकता है। डॉ. सुब्रमण्यम ने कहा कि एंटीबॉडी इस तरह से काम करता है, जैसे ताले के अंदर चाबी डाला जाता है और ताला खुल जाता है, उसी तरह से एंटीबॉडी भी वायरस के अंदर जाता है और वायरस को खत्म कर देता है, लेकिन जब ये वायरस अपना स्वरूप बदल लेता है, यानि अपना नया वेरिएंट तैयार कर लेता है, तो फिर वो एंटीबॉडी नाम का वो चाबी, वायरस नाम के ताले में नहीं जा पाता है, क्योंकि उस ताले का स्वरूप बदल चुका होता है, लिहाजा हम मास्टर कुंजी की तलाश कर रहे हैं, जो एंटीबॉडी के व्यापक उत्परिवर्तन होने के बाद भी वायरस को बेअसर करना जारी रखते हैं।
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Mumbai News : मुंबई को 26/11 की तरह एक बार फिर दहलाने की धमकी

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File Photo
locationभारत
userचेतना मंच
calendar20 Aug 2022 03:45 PM
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Mumbai : मुंबई। पुलिस के ट्रैफिक कंट्रोल (Traffic Control) को वाट्सएप (whatsapp) पर मैसेज भेजकर मुंबई को एक बार फिर दहलाने की धमकी दी गई है। मैसेज में 26/11 जैसा हमले करने की धमकी दी गई है। मैसेज में कहा गया है कि अगर उसकी लोकेशन (Location) ट्रेस करोगे तो वो भारत के बाहर का दिखाएगा और धमाका (Blast) मुंबई में होगा। धमकी में आगे कहा गया है कि छह लोग हैं भारत में, जो इस काम को अंजाम देंगे। जिस नंबर से यह मैसेज किया गया है वह पाकिस्तान का बताया जा रहा है। मुंबई पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। पाकिस्तान के नंबर से मुंबई पुलिस को मिली धमकी में कहा गया है, मुबारक हो मुबई पर हमला होने वाला है। हमने मुंबई को उड़ाने की पूरी तैयारी कर ली है। टाइम कुछ ही बाकी है। हमला कभी भी हो सकता है। 26/11 याद है ना। इस संदेश के मिलने के बाद से ही मुबई पुलिस जांच में जुट गयी है। पुलिस ने इस संदेश की जानकारी खुफिया एजेंसियों को भी दे दी है। पाकिस्तानी आतंकी धमकी सहित शरारती तत्वों, प्रेंक मैसज के एंगल से भी पुलिस जांच कर रही है। पुलिस किसी भी एंगल से इस संदेश को नजरअंदाज नहीं करना चाहती है, क्योंकि अभी दो दिन पहले ही मुंबई के रायगढ़ में हथियारों से लेस एक नाव मिली थी। समुद्र के रास्तों से ही मुंबई में आतंकी अक्सर घुसते हैं। ऐसे में इस धमके भरे संदेश को पुलिस हल्के में नहीं ले रही है।