Swami Vivekananda: स्वामी विवेकानंद जयंती पर मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस, जानें अहम बातें

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calendar30 Nov 2025 01:57 PM
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नई दिल्‍ली। स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) को 'नरेंद्र' के नाम से भी जाना जाता है। वह एक महान विचारक, एक विनम्र वक्ता और एक महान देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन के पावन अवसर पर भारत देश में 12 जनवरी को 'राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Swami Vivekananda Bio) स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) एक ऐसा नाम है, जिन्हें किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वह एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, जिन्हें पश्चिमी दुनिया को सनातनी हिंदू धर्म (Sanatan Hindu Dharma) से परिचित कराने का श्रेय दिया जाता है। 1893 में, उन्होंने शिकागो में हुए 'धर्म संसद (Dharma Sansad)' में स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया, जिसके कारण एक अज्ञात भारतीय भिक्षु की प्रमुखता अचानक बढ़ गई। स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने हमेशा व्यक्तित्व के बजाय सार्वभौमिक सिद्धांतों को पढ़ाने पर जोर दिया। स्वामी विवेकानंद अपार और असाधारण बुद्धि के व्यक्ति थे। उनका अद्वितीय योगदान हमें हमेशा प्रबुद्ध, शिक्षित और जागृत करता है। यदि आप अमेरिका में वेदांत आंदोलन (Vedanta Moment) की उत्पत्ति का अध्ययन करना चाहते हैं, तो आपको स्वामी विवेकानंद की पूरे अमेरिका यात्रा का अध्ययन करना चाहिए। वे एक महान विचारक, महान वक्ता और महान देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (facts about Swami Vivekananda) जन्म : 12 जनवरी 1863 जन्म स्थान: कोलकाता, भारत जन्म नाम: नरेंद्रनाथ दत्ता पिता : विश्वनाथ दत्त माता : भुवनेश्वरी देवी शिक्षा: कलकत्ता मेट्रोपॉलिटन स्कूल; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता धर्म: हिंदू धर्म आध्यात्मिक गुरु: श्री रामकृष्ण परमहंस संस्थापक: रामकृष्ण मिशन (1897), रामकृष्ण मठ, वेदांत सोसायटी ऑफ न्यूयॉर्क. (अमेरिका) दर्शन: अद्वैत वेदांत साहित्यिक कार्य- राज योग (1896), कर्मयोग (1896), भक्ति योग (1896), ज्ञान योग, माई मास्टर (1901), कोलंबो से अल्मोड़ा व्याख्यान (1897) मृत्यु: 4 जुलाई, 1902 मृत्यु स्थान: बेलूर मठ, बेलूर, बंगाल स्मारक: बेलूर मठ, बेलूर, पश्चिम बंगाल स्वामी विवेकानंद जीवन इतिहास और शिक्षा विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था, वे कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) के एक संपन्न बंगाली परिवार से थे। वह विश्वनाथ दत्ता और भुवनेश्वरी देवी की आठ संतानों में से एक थे। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त पेशे से वकील थे और समाज में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद की, मां भुवनेश्वरी देवी एक ऐसी महिला थीं, जिन्हें भगवान में बहुत विश्वास था और उनका अपने बच्चे पर बहुत प्रभाव था। 1871 में, 8 साल की उम्र में, स्वामी विवेकानंद ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर (Ishwarachandra Vidyasagar) के संस्थान और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में प्रवेश किया। तब स्वामी विवेकानंद का पश्चिमी दर्शन, ईसाई धर्म और विज्ञान से परिचय हुआ था। स्वामी विवेकानंद को संगीत से काफी प्यार था और वे संगीत का गायन करते थे। स्वामी विवेकानंद खेल, फुटबॉल, जिम्नास्टिक, कुश्ती और शरीर सौष्ठव में भी सक्रिय थे। उनकी पढ़ने में गहरी रुचि थी और जब तक उन्होंने कॉलेज से स्नातक किया, तब तक उन्होंने विभिन्न विषयों में ज्ञान का खजाना हासिल कर लिया था। एक ओर स्वामी विवेकानंद भगवद गीता और उपनिषद जैसे हिंदू शास्त्र पढ़ रहे थे और वही दूसरी ओर वे डेविड ह्यूम, हर्बर्ट स्पेंसर आदि के पश्चिमी दर्शन और आध्यात्मिकता को पढ़ दुनिया का ज्ञान संगृहीत कर रहे थे। आध्यात्मिक संकट और रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात स्वामी विवेकानंद का पालन-पोषण एक हिंदू धार्मिक परिवार में हुआ था लेकिन उन्होंने हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक पुस्तकों के साथ साथ अन्य धर्मो के धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया और इस ज्ञान ने स्वामी विवेकानंद को भगवान के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया। और कभी-कभी स्वामी विवेकानंद अज्ञेयवाद में विश्वास करने लग लए थे। लेकिन स्वामी विवेकानंद ने, ईश्वर की सर्वोच्चता के तथ्य को पूरी तरह से नकार नहीं सके। 1880 में, वह केशवचंद्र सेन (Keshavchandra Sen) के साथ में शामिल हुए। स्वामी विवेकानंद केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज (Brahma Samaj) के सदस्य बने। ब्रह्म समाज या ब्रह्मो समुदाय (Brahmo Samaj) ने मूर्ति पूजा को त्याग दिया और एकेश्वरवाद को अपनाया और प्रचारित किया। विवेकानंद ने कई विद्वानों से श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में सुना था। और अंत में वह दक्षिणेश्वर काली मंदिर में श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले। तब स्वामी विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा, "क्या आपने भगवान को देखा है ?" लेकिन जब उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा, तो उन्होंने इतना आसान जवाब दिया कि "हां, मैं आपको जितना स्पष्ट रूप से देखता हूं, उतना ही स्पष्ट रूप से मैं भगवान को देखता हूं "। इस यात्रा के बाद स्वामी विवेकानंद दक्षिणेश्वर जाने लगे और उनके मन में कई सवालों के जवाब मिले। जब स्वामी विवेकानंद के पिता का निधन हुआ, तो पूरा परिवार आर्थिक संकट से झुज रहा था। तब स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के पास गए और उनसे अपने परिवार के लिए प्रार्थना करने को कहा। लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने विनम्रता पूर्वक ऐसा करने से इनकार कर दिया और विवेकानंद को देवी काली के सामने प्रार्थना करने के लिए कहा। तब स्वामी विवेकानंद देवी काली के सामने धन,संपत्ती , विलासिता मांग सकते थे, लेकिन इसके बजाय स्वामी विवेकानंद ने "विवेक और एकांत मांगा। उस दिन स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक जागृति हुई और उनका तपस्वी जीवन का मार्ग शुरू हुआ। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था और बाद में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु स्वीकार किया। 1885 में, रामकृष्ण परमहंस को गले के कैंसर का पता चला था तब उन्हें कलकत्ता और बाद में कोसीपुर स्थानांतरित कर दिया गया था। रामकृष्ण परमहंस ने 16 अगस्त 1886 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र (विवेकानंद) को सिखाया कि मानव सेवा ईश्वर की सबसे प्रभावी पूजा है । रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद, नरेंद्र नाथ और उनके पंद्रह शिष्य उत्तरी कलकत्ता के बारानगर में एक साथ रहने लगे, जिसे रामकृष्ण मठ कहा जाने लगा। 1887 में, सभी शिष्यों ने मठवाद की शपथ ली और इसके बाद नरेंद्र नाथ "विवेकानंद" के रूप में उभरे। विवेकानंद का मतलब है अंतरात्मा का आनंद । उन सभी ने योग और ध्यान का अभ्यास किया। बाद में, स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारत का दौरा करने का फैसला किया, जिसे 'परिव्राजक' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने लोगों के कई सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं को देखा और आम लोगों को अपने दैनिक जीवन में क्या सामना करना पड़ता है?, उनके दु:ख, आदि को देखा। विश्व धर्म संसद में भारत के प्रतिनिधि बने स्वामी विवेकानंद उन्हें अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद की जानकारी दी गई। स्वामी विवेकानंद भारत के दर्शन और अपने गुरुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए विश्व धर्म संसद की बैठक में भाग लेने के लिए वे उत्सुक थे। अनेक कष्टों के बाद वे एक विश्व धर्म संसद सभा में गए। वह 11 सितंबर, 1893 को मंच पर आए और उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत "अमेरिका में मेरे भाइयों और बहनों ..." कहकर की। इसके लिए स्वामी विवेकानंद को दर्शकों से काफी सराहना मिली। करीब ढाई साल तक अमेरिका में रहने के बाद उन्होंने न्यूयॉर्क की वेदांत सोसाइटी (Vedanta Society) की स्थापना की। उन्होंने दर्शन, अध्यात्मवाद और वेदांत के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए यूनाइटेड किंगडम (UK) की भी यात्रा की। रामकृष्ण मिशन (Ramakrishna Mission) 1897 के आसपास, वे भारत लौट आए और कलकत्ता पहुँचे जहाँ उन्होंने 1 मई 1897 को बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन के उद्देश्य, कर्म योग पर आधारित थे जैसे, देश के गरीबों और पीड़ित या संकट ग्रस्त लोगों की सेवा करना था। रामकृष्ण मिशन के तहत कई सामाजिक सेवाएं जैसे स्कूल, कॉलेज और अस्पताल की स्थापना भी प्रदान की जाती है। वेदांत को पूरे देश में सम्मेलनों, सेमिनारों और कार्यशालाओं, पुनर्वास कार्यों के माध्यम से पढ़ाया जाता था। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु उन्होंने भविष्यवाणी की कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जी पाएंगे। और 4 जुलाई, 1902 को ध्यान करते समय उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने 'महासमाधि (Mahasamadhi)' ली और गंगा नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।  
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Inspirational Story : वह मौत से बचा लाया अपनी पत्नी को...

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calendar30 Nov 2025 10:40 PM
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यह प्रेरणादायक कहानी अजमेर (Ajmer) के रहने वाले विजेंद्र सिंह राठौड़ (Vijender Singh Rathore) और उनकी धर्मपत्नी लीला की है. साल 2013 में लीला ने विजेंद्र से आग्रह किया कि वह चार धाम की यात्रा करना चाहती हैं. विजेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में कार्यरत थे और उसी दौरान ट्रैवेल एजेंसी का एक टूर केदारनाथ यात्रा (Kedarnath Yatra) पर जाने के लिए निश्चित हुआ. बस फिर क्या था, इन दोनों पति-पत्नी ने भी अपना बोरिया-बिस्तर बांधा और केदारनाथ (Kedarnath) जा पहुंचे. वहां, विजेंद्र और लीला एक लॉज में रुके थे. लीला को लॉज में छोड़ विजेंद्र कुछ दूर ही गए थे कि चारों ओर हाहाकार मच गया. उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ (Uttarakhand Floods) का उफनता पानी केदारनाथ आ पहुंचा था. विजेंद्र ने बमुश्किल अपनी जान बचाई. मौत का तांडव और उफनते हुए पानी का वेग शांत हुआ, तो विजेंद्र बदहवास होकर उस लॉज की ओर दौड़े, जहां वह लीला को छोड़कर आए थे. लेकिन वहां पहुंचकर उन्हें जो नज़ारा दिखा, वह दिल दहला देने वाला था. सब कुछ बह चुका था. प्रकृति के इस तांडव के आगे वहां मौजूद हर इंसान बेबस दिख रहा था. तो क्या लीला भी… नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. विजेंद्र ने अपने मन को समझाया. "वह जीवित है" विजेंद्र का मन कह रहा था. इतने वर्षों का साथ पल भर में तो नहीं छूट सकता. लेकिन आस-पास कहीं जीवन दिखाई नहीं दे रहा था. हर ओर मौत तांडव कर रही थी. लाशें बिखरी हुई थीं. किसी का बेटा, किसी का भाई, तो किसी का पति बाढ़ के पानी में बह गया था. Motivational Story : आज भी समाज में मौजूद हैं राम व लक्ष्मण जैसे भाई विजेंद्र के पास लीला की एक तस्वीर थी, जो हर समय उसके पर्स में रहती थी. अगले कुछ दिन वह घटनास्थल पर हाथ में तस्वीर लिए घूमता रहा और हर किसी से पूछता, "भाई इसे कहीं देखा है?" और जवाब मिलता … "ना" बस एक विश्वास था, जिसने विजेंद्र को यह स्वीकारने से रोक रखा था कि लीला अब इस दुनिया में नहीं है. दो हफ्ते बीत चुके थे. राहत कार्य जोरों पर थे. इसी दौरान उसे फौज के कुछ अफसर भी मिले, जिन्होंने उससे बात की. लगभग सबका यही निष्कर्ष था कि लीला बाढ़ में बह चुकी है. विजेंद्र ने मानने से इनकार कर दिया. घर में फोन मिलाकर बच्चों को इस हादसे के बारे में सूचित किया. बच्चे अनहोनी के डर से घबराए हुए थे. रोती बिलखती बिटिया ने पूछा कि "क्या अब मां नहीं रही?" तो विजेंद्र ने उसे ज़ोर से फटकार दिया और कहा, "वह ज़िंदा है." एक महीना बीत चुका था. अपनी पत्नी की तालाश में विजेंद्र दर-दर भटक रहे थे. हाथ मे एक तस्वीर थी और मन में एक आस, "वह जीवित है". इसी बीच विजेंद्र के घर सरकारी विभाग से एक फोन आया. एक कर्मचारी ने कहा कि लीला मृत घोषित कर दी गई है और हादसे में जान गवां चुके लोगों को सरकार मुआवजा दे रही है. मृत लीला के परिजन भी सरकारी ऑफिस में आकर मुआवजा ले सकते हैं. विजेंद्र ने मुआवज़ा लेने से भी इंकार कर दिया. परिजनों ने कहा कि अब तो सरकार भी लीला को मृत मान चुकी है. अब तलाशने से कोई फ़ायदा नहीं है, लेकिन विजेंद्र ने मानने से इनकार कर दिया, जिस सरकारी कर्मचारी ने लीला की मौत की पुष्टि की थी, उसे भी विजेंद्र ने कहा… "वह जीवित है". पढ़ें : केदारनाथ के बहाने नरेंद्र मोदी गढ़ रहे हैं एक नई छवि! विजेंद्र फिर से लीला की तलाश में निकल पड़े. उत्तराखंड (Uttarakhand) का एक-एक शहर नापने लगे. हाथ में एक तस्वीर और ज़ुबां पर एक सवाल, "भाई इसे कहीं देखा है?" और हर बार सवाल का एक ही जवाब, "ना". लीला से विजेंद्र को बिछड़े अब 19 महीने बीत चुके थे. इस दरमियां वह लगभग 1000 से अधिक गांवों में लीला को तालाश चुके थे. 27 जनवरी 2015, उत्तराखंड (Uttarakhand) के गंगोली गांव (Gangoli Village) में एक राहगीर को विजेंद्र सिंह राठौर ने एक तस्वीर दिखाई और पूछा, "भाई इसे कहीं देखा है". राहगीर ने तस्वीर ध्यान से देखी और बोला…"हां, देखा है, इसे देखा है. यह औरत तो बौराई सी हमारे गांव में घूमती रहती है." विजेंद्र राहगीर के पांव में गिर पड़े और राहगीर के साथ भागते-भागते वह Uttarakhand के उस गांव पहुंचे. वहीं एक चौराहा था और सड़क के दूसरे कोने पर एक महिला बैठी थी. "लीला"... वह नज़र जिससे नज़र मिलाने को "नज़र" तरस गई थी. वह लीला थी. विजेंद्र, लीला का हाथ पकड़कर अबोध बच्चे की तरह रोते रहे. इस तलाश ने उन्हें तोड़ दिया था. भावनाएं और संवेदनाएं आखों से अविरल बह रही थीं. आंखें पत्थर हो चुकी थीं, फिर भी भावनाओं का वेग उन्हें चीरता हुआ बह निकला था. पढ़ें : Char Dham Project: डबल लेन तक चौड़ी होंगी चारधाम परियोजना की सड़कें, SC ने दी मंजूरी लीला की मानसिक हालत उस समय स्थिर नहीं थी. वह उस शख्स को भी नहीं पहचान पाई, जो उसे इस जगत में सबसे ज्यादा प्यार करता था. विजेंद्र ने लीला को उठाया और घर ले आए. 12 जून 2013 से बिछड़े बच्चे अपनी मां को 19 महीने के अंतराल के बाद देख रहे थे. आखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था. यह 19 महीने विजेंद्र सिंह राठौर के जीवन का सबसे कठिनतम दौर था. परन्तु इस कठिनाई के बीच भी विजेंद्र के हौसले को एक धागे ने बांधे रखा. वह "प्रेम" का धागा है. एक पति का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और समर्पण, जिसने प्रकृति के आदेश को भी पलट कर रख दिया. लीला के साथ बाढ़ में बह जाने वाले अधिकतर लोग नहीं बचे, लेकिन लीला बच गई. शायद विजेंद्र प्रभु से भी कह रहे थे… "वह जीवित है" और प्रभु को भी विजेंद्र के प्रेम और समर्पण के आगे अपना फैसला बदलना पड़ा. Uttarakhand की सभी खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
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calendar02 Jan 2022 06:58 PM
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Love Rashifal : शनिवार यानि आज से नव वर्ष 2022 की शुरुआत हो चुकी है। वर्ष 2022 में ग्रहों की चाल से कुछ राशियों के जीवन में बड़े बदलाव होने जा रहे हैं। इन राशि के जातकों के लिए यह वर्ष बेहद शुभ रहने वाला है।

2022 की शुरुआत में प्रेम और रोमांस के ग्रह शुक्र, रोमांटिक जीवन में सुख का अनुभव करेंगे और रिश्ते धनु राशि में स्थित होंगे। यह वक्री गति में रहेंगे और सूर्य के साथ युति करेंगे। में एक मीठा-खट्टा स्वाद का आनंद लेंगे। आइए जानते हैं साल 2022 में किन राशियों का प्रेम जीवन रहेगा सुखमय...

Love Rashifal जानिए कैसा रहेगा आपका प्रेम जीवन

मेष राशि

आप अपने प्रेम जीवन को संजोएंगे और अपने साथी के साथ एक आरामदायक बंधन साझा करेंगे। कपल्स के लिए ये साल शुभ रहेगा। आपके और आपके पार्टनर के बीच आपसी विश्वास बढ़ेगा। अपनी पसंद के पार्टनर से शादी करने का प्लान बना सकते हैं।

मिथुन राशि आने वाला साल आपके लव लाइफ के लिए वरदान साबित होगा क्योंकि आप अपने पार्टनर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करने में सफल रहेंगे। आप एक-दूसरे के साथ रहना पसंद करेंगे और अपने रिलेशन को अगले स्तर तक ले जाने की सोच सकते हैं। उपहारों और इशारों के माध्यम से प्रेम का इजहार करते रहें।

कन्या राशि आपके रिश्ते में सुखद समय का अनुभव होगा। आप में से जो वर्तमान में अविवाहित हैं वे एक नए रोमांटिक रिश्ते में आएंगे जो जीवन में शांति और स्थिरता लाएगा। आपका अपने साथी के प्रति देखभाल करने वाला रवैया रहेगा जिसकी बहुत सराहना की जाएगी।

वृश्चिक राशि आप अपने रिश्ते से संतुष्ट रहेंगे और प्यार हवा में रहेगा। आपका जीवन गतिशीलता से भरा रहेगा और आप हर पल को संजोएंगे। जो लोग प्रतिबद्ध नहीं हैं उन्हें इस साल प्यार मिलेगा जो उन्हें अपने जीवन को बेहतर ढंग से संतुलित करने की अनुमति देगा।

मीन राशि यदि आप अभी तक अविवाहित हैं तो कोई आपके प्रेम जीवन के दरवाजे पर दस्तक देगा। प्रेम जीवन सुखमय रहेगा। प्रतिबद्ध लोग प्रेम जीवन में खुशी और पूर्ति की उम्मीद कर सकते हैं। अपने साथी के साथ स्पष्ट संवाद बनाए रखें और अस्पष्टता के लिए कोई जगह न छोड़ें।

यशराज कनिया कुमार, वैदिक एवं अंक ज्योतिषी