Delhi News : महिला आरोपी का कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक: दिल्ली हाईकोर्ट

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 02:33 AM
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Delhi News : नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि महिला आरोपी का 'कौमार्य परीक्षण' कराना असंवैधानिक, लैंगिक भेदभाव और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि ऐसी कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है जो ‘कौमार्य परीक्षण’ का प्रावधान करती हो और ऐसा परीक्षण अमानवीय व्यवहार का एक रूप है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने सिस्टर सेफी की याचिका पर सुनाया , जिन्होंने 1992 में केरल में एक नन की मौत से संबंधित आपराधिक मामले के सिलसिले में उनका ‘कौमार्य परीक्षण’ कराए जाने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि यह घोषित किया जाता है कि हिरासत में ली गयी एक महिला, जांच के दायरे में आरोपी, पुलिस या न्यायिक हिरासत में गयी महिला का कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जिसमें गरिमा का अधिकार भी शामिल है।

न्यायाधीश ने कहा कि इसलिए, यह अदालत व्यवस्था देती है कि यह परीक्षण लैंगिक भेदभाव पूर्ण है और महिला अभियुक्त की गरिमा के मानवाधिकार का उल्लंघन है, अगर उसे हिरासत में रखते हुए इस तरह का परीक्षण किया जाता है।

अदालत ने जोर देकर कहा कि एक महिला की हिरासत में गरिमा की अवधारणा के तहत पुलिस हिरासत में रहते हुए भी सम्मान के साथ जीने का महिला का अधिकार शामिल है और उसका कौमार्य परीक्षण करना न केवल उसकी शारीरिक पवित्रता, बल्कि उसकी मनोवैज्ञानिक पवित्रता के साथ जांच एजेंसी के हस्तक्षेप के समान है।

अदालत ने यह भी कहा कि गरिमा का अधिकार तब भी निलंबित नहीं होता है, जब किसी व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगाया जाता है या उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है तथा जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत ही निलंबित किया जा सकता है, जो न्यायोचित एवं निष्पक्ष होना चाहिए, न कि मनमाना, काल्पनिक और दमनकारी।

अदालत ने कहा कि आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार उसी क्षण निलंबित हो जाता है, जब उसे गिरफ्तार किया जाता है, क्योंकि यह राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक हो सकता है। हालांकि, आरोपी, विचाराधीन या दोषी व्यक्ति के गरिमा के अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता।

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Delhi News : नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि महिला आरोपी का 'कौमार्य परीक्षण' कराना असंवैधानिक, लैंगिक भेदभाव और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि ऐसी कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है जो ‘कौमार्य परीक्षण’ का प्रावधान करती हो और ऐसा परीक्षण अमानवीय व्यवहार का एक रूप है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने सिस्टर सेफी की याचिका पर सुनाया , जिन्होंने 1992 में केरल में एक नन की मौत से संबंधित आपराधिक मामले के सिलसिले में उनका ‘कौमार्य परीक्षण’ कराए जाने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि यह घोषित किया जाता है कि हिरासत में ली गयी एक महिला, जांच के दायरे में आरोपी, पुलिस या न्यायिक हिरासत में गयी महिला का कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जिसमें गरिमा का अधिकार भी शामिल है।

न्यायाधीश ने कहा कि इसलिए, यह अदालत व्यवस्था देती है कि यह परीक्षण लैंगिक भेदभाव पूर्ण है और महिला अभियुक्त की गरिमा के मानवाधिकार का उल्लंघन है, अगर उसे हिरासत में रखते हुए इस तरह का परीक्षण किया जाता है।

अदालत ने जोर देकर कहा कि एक महिला की हिरासत में गरिमा की अवधारणा के तहत पुलिस हिरासत में रहते हुए भी सम्मान के साथ जीने का महिला का अधिकार शामिल है और उसका कौमार्य परीक्षण करना न केवल उसकी शारीरिक पवित्रता, बल्कि उसकी मनोवैज्ञानिक पवित्रता के साथ जांच एजेंसी के हस्तक्षेप के समान है।

अदालत ने यह भी कहा कि गरिमा का अधिकार तब भी निलंबित नहीं होता है, जब किसी व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगाया जाता है या उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है तथा जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत ही निलंबित किया जा सकता है, जो न्यायोचित एवं निष्पक्ष होना चाहिए, न कि मनमाना, काल्पनिक और दमनकारी।

अदालत ने कहा कि आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार उसी क्षण निलंबित हो जाता है, जब उसे गिरफ्तार किया जाता है, क्योंकि यह राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक हो सकता है। हालांकि, आरोपी, विचाराधीन या दोषी व्यक्ति के गरिमा के अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता।

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Joshimath Case : जोशीमठ का मामला हाईकोर्ट के समक्ष : उत्तराखंड सरकार

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calendar02 Dec 2025 03:03 AM
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Joshimath Case : नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट को मंगलवार को अवगत कराया गया कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट जोशीमठ के भू-धंसाव से जुड़े मुद्दों पर विचार कर रहा है।

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मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ वकील रोहित डंडरियाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में केंद्र को मामले पर गौर करने और प्रभावित परिवारों के जल्द पुनर्वास के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।

उत्तराखंड सरकार के वकील ने पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता का अनुरोध पहले ही सुना जा चुका है। उन्होंने कहा कि दो चीजें हैं। वह (याचिकाकर्ता) एक उच्चस्तरीय समिति और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। दोनों मुद्दों को उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड भेज दिया है। ये सभी मामले अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष हैं।

बाद में याचिकाकर्ता द्वारा उच्च न्यायालय से याचिका वापस ले ली गई। पिछले महीने, उत्तराखंड सरकार ने पीठ को बताया कि अधिकारी जोशीमठ के प्रभावित परिवारों का पुनर्वास कर रहे हैं और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के साथ-साथ एसडीआरएफ के कर्मियों को भी क्षेत्र में तैनात किया गया है। यह भी दावा किया गया कि एक पुनर्वास पैकेज तैयार किया जा रहा है और बहुत सारे राहत कार्य जारी हैं।

जोशीमठ में भू-धंसाव के चलते कई मकानों, सड़कों और खेतों में बड़ी दरारें विकसित हो रही हैं। स्थानीय लोगों ने कहा कि कई मकान धंस गए हैं।

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