Vastu and Astro : सुख शांति और सौभाग्य के लिए घर की छत का भी रखें ध्यान

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Vastu and Astro : सुख शांति और सौभाग्य के लिए घर की छत का भी रखें ध्यान
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Dec 2021 10:16 PM
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Vastu and Astro : : हर व्यक्ति अपने घर की दिशा और घर के भीतर के वास्तु (Vastu) पर ध्यान ज्यादा रखता है, परंतु घर की भीतर और बाहर छत (Roof) कैसी होना चाहिए और कैसी नहीं होना चाहिए इस पर कम ही लोग ध्यान रखते हैं। घर की छत के वास्तु को भी जानना जरूरी है अन्यथा बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, तो आओ जानते हैं घर की छत के 10 नुकसान।

1. लाल किताब के अनुसार कुंडली का 12वां भाव घर की छत माना गया है। घर की छत को अच्‍छा रखेंगे तो 12वां भाव भी अच्छा होना माना जाता है। नहीं तो रोग और शोक का जन्म होगा, क्योंकि बारहवें भाव का असर 6वें भाव पर भी होता है। 2. घर की छत का उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर ढलान है तो यह आर्थिक हानि और नुकसान देगा। इसके लिए किसी वास्तु शास्त्री से मिलकर स्थान को देखकर ही ढलान किधर होना चाहिए यह तय होगा। 3. घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न हो। जैसे आजकल घर की छत में लोग दो-बाइ-दो का एक हिस्सा खाली छोड़ देते हैं उजाले के लिए। इससे घर में हमेशा हवा का दबाव बना रहेगा, जो सेहत और मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालेगा। 4. छत के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि वह तिरछी डिजाइन वाली न हों। इससे डिप्रेशन और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। 5. घर की छत पर किसी भी प्रकार की गंदगी न करें। यहां किसी भी प्रकार के बांस या फालतू सामान भी न रखें। जिन लोगों के घरों की छत पर अनुपयोगी सामान रखा होता है, वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नकारात्मक होते हैं। परिवार में भी मनमुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं। 6. घर की छत पर रखा पानी का टैंक किस दिशा में हो, यह जानना जरूरी है। उत्तर-पूर्व दिशा पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है, इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि की दिशा है इसलिए भी इसे पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है। 7. घर की छत की ऊंचाई भी वास्तु अनुसार होना चाहिए।। यदि ऊंचाई 8.5 फुट से कम होती है तो यह आपके लिए कई तरह की समस्याएं लेकर आती है और जीवन में आगे बढ़ना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा है। घर यदि छोटा है तो छत की ऊंचाई कम से कम 10 से 12 फुट तक होनी चाहिए। इससे ज्यादा ऊंची रखने के लिए वास्तुशास्त्री से संपर्क करना चाहिए। 8. घर की छत कई प्रकार की होती है- सपाट छत, ढालू छत और गोल छत। अधिक वर्षावाले या बर्फबारी वाले क्षेत्रों में प्राय: ढालू छतें ही बनती हैं, परंतु आजकल कई मकानों में सभी तरह की छत के ही ढालू छत भी देखी गई है। किसी वास्तुशास्त्री से पूछकर ही छत का आकर तय करें अन्यथा नुकसान उठा सकते है। 9. छत के दो मुख्‍य प्राकर ये हैं- आपके रूम के भीतर की छत जहां पंखा आदि लगा होता है और दूसरा वह छत जिसे गच्ची या उपरी छत कहते हैं। उपरी छत के बारे में तो आपने पढ़ा है परंतु आजकल लोग भीतरी छत में भी कई तरह की डिजाइन बनाते हैं जिनमें से कुछ तो वास्तु अनुसार नहीं होती है। अत: इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि गोल डिजाइन होना चाहिए या कि चौकोर। 10. घर की छत टूटी फूटी है या जिसमें से बारिश के दिनों में पानी रिसता है तो यह भी भयंकर वास्तुदोष है। इसे जल्द से जल्द ठीक करा लें।

विशेष-प्रदत्त जानकारी व परामर्श शास्त्र सम्मत दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति मात्र है। कोई भी कार्य किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेकर ही करें।

पंडित रामपाल भट्ट, भीलवाड़ा

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Vastu and Astro : : हर व्यक्ति अपने घर की दिशा और घर के भीतर के वास्तु (Vastu) पर ध्यान ज्यादा रखता है, परंतु घर की भीतर और बाहर छत (Roof) कैसी होना चाहिए और कैसी नहीं होना चाहिए इस पर कम ही लोग ध्यान रखते हैं। घर की छत के वास्तु को भी जानना जरूरी है अन्यथा बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, तो आओ जानते हैं घर की छत के 10 नुकसान।

1. लाल किताब के अनुसार कुंडली का 12वां भाव घर की छत माना गया है। घर की छत को अच्‍छा रखेंगे तो 12वां भाव भी अच्छा होना माना जाता है। नहीं तो रोग और शोक का जन्म होगा, क्योंकि बारहवें भाव का असर 6वें भाव पर भी होता है। 2. घर की छत का उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर ढलान है तो यह आर्थिक हानि और नुकसान देगा। इसके लिए किसी वास्तु शास्त्री से मिलकर स्थान को देखकर ही ढलान किधर होना चाहिए यह तय होगा। 3. घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न हो। जैसे आजकल घर की छत में लोग दो-बाइ-दो का एक हिस्सा खाली छोड़ देते हैं उजाले के लिए। इससे घर में हमेशा हवा का दबाव बना रहेगा, जो सेहत और मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालेगा। 4. छत के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि वह तिरछी डिजाइन वाली न हों। इससे डिप्रेशन और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। 5. घर की छत पर किसी भी प्रकार की गंदगी न करें। यहां किसी भी प्रकार के बांस या फालतू सामान भी न रखें। जिन लोगों के घरों की छत पर अनुपयोगी सामान रखा होता है, वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नकारात्मक होते हैं। परिवार में भी मनमुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं। 6. घर की छत पर रखा पानी का टैंक किस दिशा में हो, यह जानना जरूरी है। उत्तर-पूर्व दिशा पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है, इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि की दिशा है इसलिए भी इसे पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है। 7. घर की छत की ऊंचाई भी वास्तु अनुसार होना चाहिए।। यदि ऊंचाई 8.5 फुट से कम होती है तो यह आपके लिए कई तरह की समस्याएं लेकर आती है और जीवन में आगे बढ़ना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा है। घर यदि छोटा है तो छत की ऊंचाई कम से कम 10 से 12 फुट तक होनी चाहिए। इससे ज्यादा ऊंची रखने के लिए वास्तुशास्त्री से संपर्क करना चाहिए। 8. घर की छत कई प्रकार की होती है- सपाट छत, ढालू छत और गोल छत। अधिक वर्षावाले या बर्फबारी वाले क्षेत्रों में प्राय: ढालू छतें ही बनती हैं, परंतु आजकल कई मकानों में सभी तरह की छत के ही ढालू छत भी देखी गई है। किसी वास्तुशास्त्री से पूछकर ही छत का आकर तय करें अन्यथा नुकसान उठा सकते है। 9. छत के दो मुख्‍य प्राकर ये हैं- आपके रूम के भीतर की छत जहां पंखा आदि लगा होता है और दूसरा वह छत जिसे गच्ची या उपरी छत कहते हैं। उपरी छत के बारे में तो आपने पढ़ा है परंतु आजकल लोग भीतरी छत में भी कई तरह की डिजाइन बनाते हैं जिनमें से कुछ तो वास्तु अनुसार नहीं होती है। अत: इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि गोल डिजाइन होना चाहिए या कि चौकोर। 10. घर की छत टूटी फूटी है या जिसमें से बारिश के दिनों में पानी रिसता है तो यह भी भयंकर वास्तुदोष है। इसे जल्द से जल्द ठीक करा लें।

विशेष-प्रदत्त जानकारी व परामर्श शास्त्र सम्मत दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति मात्र है। कोई भी कार्य किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेकर ही करें।

पंडित रामपाल भट्ट, भीलवाड़ा

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Paush Amavasya : कब है पौष माह की अमावस्या, महत्व और कैसे करें पितरों को प्रसन्न

Sarv pitra 1
Paush Amavasya
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userचेतना मंच
calendar25 Dec 2021 10:04 PM
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Paush Amavasya : पंचांग के अनुसार हर माह में कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या (Amavasya) तिथि पड़ती है। इसके बाद शुक्ल पक्ष की शुरुआत हो जाती है। पौष मास की अमावस्या नए साल में 2 जनवरी 2022 को पड़ेगी। वैसे तो शास्त्रों में सभी अमावस्या (Amavasya) पितरों को समर्पित मानी गई हैं, लेकिन पौष मास की अमावस्या (Paush Amavasya 2022) बेहद खास है क्योंकि पौष का पूरा महीना ही पितरों को समर्पित माना जाता है। यहां जानिए अमावस्या तिथि से जुड़ी जरूरी बातें…

अमावस्या तिथि का महत्व

अमावस्या तिथि पर नदी स्नान, पूजा, जाप और तप का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर पूजा करने से व्यक्ति को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। वहीं, पितरों के निमित्त दान करने से पितर संतुष्ट होते हैं और उन्हें शांति मिलती है। देशभर में श्रद्धालु अमावस्या के दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं और तिल तर्पण भी करते हैं।

पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति पाने का दिन

अमावस्या तिथि को पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए शुभ माना गया है। इस दिन पितरों के लिए पिंडदान करने से उन्हें तमाम यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है और वे मोक्ष प्राप्त करते हैं। ऐसे में वे अपने वंशजों से अत्यंत प्रसन्न होते हैं। पितरों के आशीर्वाद से वंशज खूब फलते फूलते हैं। उनके जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती।

शुभ मुहूर्त

पौष अमावस्या तिथि : रविवार 2 जनवरी 2022 पौष अमावस्या प्रारंभ : 2 जनवरी सुबह 3 बजकर 43 मिनट से पौष अमावस्या समाप्त : 3 जनवरी सुबह 5 बजकर 26 मिनट पर

जरूर करें ये काम

अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है, ऐसे में हर किसी को अपने पितरों की प्रसन्नता के लिए कुछ काम जरूर करने चाहिए।

1. अमावस्या के दिन भगवान कृष्ण की पूजा करें और गीता का पाठ करेंं। 2. पितरों को याद करते हुए गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न आदि बांटें।

3. पीपल के वृक्ष में जल दें और पीपल के नीचे एक दीपक जरूर जलाएं।

4. संभव हो तो अमावस्या के दिन अपने हाथों से पीपल का पौधा लगाएं और उसकी सेवा करें।

यशराज कनिया कुमार, वैदिक एवं अंक ज्योतिषी