Friday, 29 March 2024

Article : आखिर कब रुकेगा डोपिंग का खेल ?

-संजीव रघुवंशी  वरिष्ठ पत्रकार रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में 152 भारतीय खिलाडिय़ों (Indian players) को डोपिंग जांच में…

Article : आखिर कब रुकेगा डोपिंग का खेल ?

-संजीव रघुवंशी
 वरिष्ठ पत्रकार


  • रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में 152 भारतीय खिलाडिय़ों (Indian players) को डोपिंग जांच में पॉजिटिव पाया गया। यह संख्या पूरी दुनिया के आरोपी खिलाडिय़ों की 17 फीसदी है। शर्मसार करने वाली बात यह है कि डोपिंग के मामले में हमसे सिर्फ रूस और इटली आगे हैं। इससे भी अधिक चिंता इस पर किए जाने की जरूरत है कि 2018 में देश डोपिंग की सूची में पांचवें स्थान पर था और इससे पहले साल सातवें पायदान पर। यानी, भारतीय खिलाडिय़ों के बीच डोपिंग की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं। नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) (National Anti Doping Agency (NADA)की रिपोर्ट भी वाडा की रिपोर्ट को ही सही ठहराती नजर आती है। नाडा ने 2017 में जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि 2009 से 2016 तक 687 खिलाडिय़ों को डोप टेस्ट में फेल होने पर प्रतिबंधित किया जा चुका है।

Article :
कुश्ती संघ में चल रहे ‘दंगल की पीड़ा के बीच अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम ने विश्व कप जीतकर खेल प्रेमियों को कुछ राहत जरूर दी, लेकिन खेलों में डोपिंग की खबरों ने इस राहत पर ग्रहण लगा दिया। गुजरात में पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में हुए राष्ट्रीय खेलों में शिरकत करने वाले एक-दो नहीं, बल्कि 10 खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाएं लेने के मामले में दोषी पाए गए। हैरत की बात यह है कि इसमें से सात खिलाडिय़ों ने विभिन्न स्पर्धाओं में ब्रोंज से लेकर गोल्ड मेडल तक जीते हैं। सवाल यह नहीं है कि डोपिंग के दोषी खिलाडिय़ों के खिलाफ कितनी सख्त कार्यवाही होगी, बल्कि सवाल है कि खेल जैसी ‘साधना को डोपिंग के ‘पाप से पूरी तरह मुक्ति कब मिलेगी?
Stories :
शायद ही कोई भारतीय 2016 में हुए रियो ओलंपिक (Rio Olympics) की उस अप्रत्याशित घटना को याद रखना चाहेगा, जब पदक के प्रबल दावेदार माने जा रहे पहलवान नरसिंह यादव पर डोपिंग का आरोप लगा था। नरसिंह को वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) World Anti Doping Agency (WADA) की जांच के आधार पर चार साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि, इस मामले में काफी उठापटक चली, मामला ‘कोर्ट ऑफ ऑर्बिटेशन फॉर स्पोर्ट तक गया, लेकिन एक खिलाड़ी के तौर पर नरसिंह का करियर बच नहीं सका। साजिश के आरोपों की पड़ताल में सीबीआई कई साल से जुटी है। इस मामले की तरह डोपिंग (doping) का हर मामला ‘साजिश और ‘हकीकत के बीच झूलता रहा हो, ऐसा नहीं है। हालांकि, जांच में दोषी पाए जाने पर अमूमन हर खिलाड़ी या तो आरोपों को सिरे से खारिज कर देता है या फिर, अनजाने में प्रतिबंधित दवा लिए जाने का रोना रोता है। लेकिन राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जिस तरह डोपिंग को लेकर खिलाडिय़ों को सचेत किया जाता है, उसके बाद खिलाडिय़ों की दलीलों में ज्यादा दम नहीं रह जाता।
Stories Hindi :
देश में खिलाडिय़ों के बीच डोपिंग कितनी गहरी पैठ बना चुकी है, इस कड़वी हकीकत को वाडा की रिपोर्ट से समझा जा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में 152 भारतीय खिलाडिय़ों को डोपिंग (doping) जांच में पॉजिटिव पाया गया। यह संख्या पूरी दुनिया के आरोपी खिलाडिय़ों की 17 फीसदी है। शर्मसार करने वाली बात यह है कि डोपिंग के मामले में हमसे सिर्फ रूस और इटली आगे हैं। इससे भी अधिक चिंता इस पर किए जाने की जरूरत है कि 2018 में देश डोपिंग की सूची में पांचवें स्थान पर था और इससे पहले साल सातवें पायदान पर। यानी, भारतीय खिलाडिय़ों के बीच डोपिंग की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं। नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) की रिपोर्ट भी वाडा की रिपोर्ट को ही सही ठहराती नजर आती है। नाडा ने 2017 में जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि 2009 से 2016 तक 687 खिलाडिय़ों को डोप टेस्ट में फेल होने पर प्रतिबंधित किया जा चुका है। नाडा के अस्तित्व में आने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कितने खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करते रहे होंगे, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
Stories :
हालिया मामले में राष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों ने तो खेल भावना को शर्मसार किया ही है, अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारतीय खिलाड़ी भी इस कलंकित कथा के किरदार बनने में पीछे नहीं हैं। राष्ट्रमंडल खेलों की कांस्य पदक विजेता जिम्नास्ट दीपा कर्माकर डोपिंग के चलते 21 माह का प्रतिबंध झेल रही हैं, तो वहीं एशियाई खेलों की सिल्वर मेडलिस्ट दुती चंद पिछले महीने ही डोपिंग में फंस चुकी हैं। पिछले साल हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में फर्राटा धाविका एस. धनलक्ष्मी, ट्रिपल जंपर ऐश्वर्या बाबू, पैरा चक्का खिलाड़ी अनीश कुमार और पैरा पॉवरलिफ्टर गीता समेत पांच खिलाडिय़ों को प्रतिबंधित कर दिया गया था। जेंटलमैन्स गेम कहे जाने वाला क्रिकेट भी डोपिंग के दाग से अछूता नहीं है। साल 2008 में विश्व विजेता अंडर-19 टीम का हिस्सा रहे कोलकाता नाइट राइडर्स के तेज गेंदबाज प्रदीप सांगवान पर 2013 में 18 माह का प्रतिबंध लगाया गया तो वहीं 2017 में ऑलराउंडर यूसुफ पठान पर पांच माह का बैन लगा। क्रिकेट के लिए डोपिंग के लिहाज से साल 2019 सबसे खराब रहा। तब विदर्भ के क्रिकेटर अक्षय दुलारकर, राजस्थान के दिव्य गजराज के साथ ही नामी क्रिकेटर पृथ्वी शॉ (cricketer prithvi shaw) को प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। जून 2021 में महिला क्रिकेटर अंशुला राव का मामला काफी चर्चित रहा है। बीसीसीआई ने राव पर चार साल के प्रतिबंध के साथ ही दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
Stories :
आजाद भारत में डोपिंग का मामला संभवत: 1968 में मेक्सिको ओलंपिक के ट्रायल के दौरान सामने आया था। दस किलोमीटर दौड़ के लिए ट्रायल में कृपाल सिंह के बेहोश होने पर डॉक्टरों ने नशीले पदार्थ के सेवन की पुष्टि की। तब से लेकर अब तक खेलों में डोपिंग रोकने के लिए काफी कुछ किया जा चुका है। विश्व स्तर के खेलों में डोपिंग पर अंकुश के लिए नवंबर 1999 में वाडा की स्थापना की गई, तो इसके छह साल बाद राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी के लिए नाडा अस्तित्व में आ गई। घरेलू स्तर पर जांच के लिए 2008 में दिल्ली में नेशनल डोप टेस्टिंग लैबोरेट्री ( एनडीटीएल) National Dope Testing Laboratory (NDTL) भी बनाई गई। पिछले साल अगस्त में संसद ने ‘द नेशनल एंटी डोपिंग बिल ( The National Anti-Doping Bill) पास किया ताकि डोपिंग पर खिलाडिय़ों से लेकर संबंधित एजेंसियों को और अधिक जवाबदेह बनाया जा सके। भारत इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘इंटरनेशनल कन्वेंशन अगेंस्ट डोपिंग इन स्पोर्ट्स (International convention against doping in sports) में शिरकत कर डोपिंग रोकने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुका है।
Stories :
इसमें कोई दो राय नहीं कि हालिया सालों में सरकार खेलों के प्रति गंभीरता दिखा रही है। एक फरवरी को आए आम बजट में खेलों के लिए आवंटित धनराशि भी यही इशारा करती है। पिछले साल के मुकाबले खेल मंत्रालय को 723 करोड़ रुपए अधिक मिले हैं। इसमें सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘खेलो इंडिया के लिए 1045 करोड़ का बजट आवंटित करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। यह पिछले साल के मुकाबले 72 फीसदी ज्यादा है। इसके साथ ही भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) पर आश्रित रहने वाली नाडा और एनडीटीएल को अलग से 41 करोड़ मिलेंगे। नि:संदेह, इस सारी कवायद का मकसद खेल के स्तर को बढ़ाने के साथ ही खिलाडिय़ों को डोपिंग जैसी ‘बीमारी से बचाना है। इस सबके बावजूद अगर डोपिंग के मामले सामने आ रहे हैं, तो जाहिर है कि इस दिशा में कुछ और ठोस एवं सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि डोपिंग के चलते ही रूस को 2019 में चार साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। कोई भी भारतीय ऐसी घोर शर्मनाक स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहेगा!

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