मोदी-अमित शाह की जोड़ी के लिए खतरा हैं ये 5 चीजें!
Modi-Amit Shah
भारत
चेतना मंच
04 Oct 2021 12:32 AM
1. किसान आंदोलन
राजनीति और क्रिकेट में एक बात कॉमन है कि इसमें किसी भी वक्त खेल का रुख पलट सकता है। यही वजह है कि इन दोनों के प्रति आम और खास सभी की दिलचस्पी हमेशा बनी रहती है।
यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत की घटना ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर से किसान आंदोलन की ओर खींच लिया है। यह घटना यूपी की राजनीति का रुख बदलेगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इसकी गूंज देर तक बनी रहेगी।
पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से किसान देश के कई हिस्सों में धरने पर बैठे हैं। उनकी दो प्रमुख मांग है कि केंद्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिलाने की गारंटी दे।
किसान आंदोलन में देश भर के किसान शामिल हैं या नहीं? यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है या नहीं? इस पर बहस हो सकती है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में होने वाला कोई भी आंदोलन राजनीति को प्रभावित जरूर करता है।
किसान आंदोलन के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं जो सीधे तौर पर आम आदमी से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि 2022 के यूपी चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में ये मुद्दे सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि वो मुद्दे क्या हैं...
2. महंगाई
पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के अलावा सरसों के तेल की कीमत 200 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा हो चुकी है। अगस्त में ही थोक महंगाई दर 11.39 फीसदी पर पहुंच गई थी। महंगाई की मार के साथ महामारी और उसके बाद आई आर्थिक मंदी ने इसे और भी घातक बना दिया है।
कोरोना की पहली लहर के बाद दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक देश भर में हर तरह की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद से अब तक स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। उपर से बढ़ती महंगाई की मार ने इस हालात को और भी बदतर बना दिया है।
यह बात भी सही है कि विपक्षी पार्टियां महंगाई को मुद्दा बनाने में सफल नहीं हो पाई हैं। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी महंगाई से परेशान है और आने वाले चुनावों में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
3. बेरोजगारी
भारत में कोरोना महामारी शुरू होने से एक साल पहले ही बेरोजगारी की दर ने यमन और कांगो जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया था। विश्वबैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कौशिक बसु ने विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के जरिए ये बताया था कि 2019 में ही भारत की बेरोजगारी दर 23% थी।
विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में भारत की जीडीपी लगभग 4 फीसदी थी। कोरोना के चलते दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को भी जोर का झटका लगा और 2020 में भारत की जीडीपी -8% पर पहुंच गई। पिछले एक डेढ़ सालों में लोगों ने रोजगार मिलने तो कम हुए ही हैं, बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई है।
अजीब बात ये है कि मंहगाई की तरह बेरोजगारी को मुद्दा बनाने या इसके पक्ष में कोई जनांदोलन खड़ा करने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा है। बावजूद इसके, बेरोजगारी का मुद्दा आगामी चुनाव में यह बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
4. हिंदू-मुसलमान
बीजेपी पर सांप्रदायिकता को भड़काने और हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश को बांटने का आरोप लगता रहा है। लेकिन, हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पीएम को यह सलाह दे डाल कि हमें अपने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।
इसे सीधे तौर पर भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता से जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जाता है कि अमेरिका सहित दुनिया के लोकतांत्रिक देश भारत में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर चिंतित हैं।
खासतौर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पास होने और उसके बाद देश भर में हुए प्रदर्शनों के बाद इस बात को लेकर पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ी है। सीधे तौर पर भले ही यह मुद्दा राजनीति को प्रभावित करता हुआ नहीं दिखता, लेकिन भारत हमेशा से एक लोकतांत्रिक और उदार विचारों वाला देश रहा है। ऐसे में प्रगतिशील और उदारवादी भारतीयों के लिए यह बड़ा मुद्दा हो सकता है और यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
5. मोदी-अमित शाह की कार्यशैली
मोदी-अमित शाह की जोड़ी को डेडली कॉम्बीनेशन माना जाता है। इसे चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी भी कहा जाता है। मोदी और अमित शाह की राजनीति करने का ढंग भी बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
कहा जाता है कि सरकार के ज्यादातर फैसले ये दोनों ही करते हैं। यहां तक कि राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की लिस्ट भी मोदी और अमित शाह ही फाइनल करते हैं। हाल ही में गुजरात और उत्तराखंड में सीएम को रातों-रात बदलने की खबर ने मीडिया ही नहीं, बीजेपी के नेताओं को भी चौंका दिया था।
कहा जाता है कि मोदी-अमित शाह को जब भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री मजबूत होता दिखता है, तो ये दोनों उसके पर काट देते हैं। यह बात कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे के बारे में साफ तौर पर देखी जा सकती है। ये नेता खुलकर भले ही मोदी-अमित शाह का विरोध न करें लेकिन, लोकसभा के चुनाव में यह बीजेपी की गणित बिगाड़ने का काम कर सकते हैं।
इन सब के अलावा मोदी-अमित शाह की जोड़ी पर मीडिया को मैनेज करने, राजनीति विरोधियों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं के इस्तेमाल का भी आरोप लगता है। ये मुद्दे बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित करेंगे या नहीं इसका लिटमस टेस्ट यूपी के चुनाव में होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी चुनाव के नतीजों का असर 2024 में होने वाले आम चुनावों पर भी जरूर दिखेगा। क्योंकि, कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है।
- संजीव श्रीवास्तव
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भारत
चेतना मंच
04 Oct 2021 12:32 AM
1. किसान आंदोलन
राजनीति और क्रिकेट में एक बात कॉमन है कि इसमें किसी भी वक्त खेल का रुख पलट सकता है। यही वजह है कि इन दोनों के प्रति आम और खास सभी की दिलचस्पी हमेशा बनी रहती है।
यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत की घटना ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर से किसान आंदोलन की ओर खींच लिया है। यह घटना यूपी की राजनीति का रुख बदलेगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इसकी गूंज देर तक बनी रहेगी।
पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से किसान देश के कई हिस्सों में धरने पर बैठे हैं। उनकी दो प्रमुख मांग है कि केंद्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिलाने की गारंटी दे।
किसान आंदोलन में देश भर के किसान शामिल हैं या नहीं? यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है या नहीं? इस पर बहस हो सकती है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में होने वाला कोई भी आंदोलन राजनीति को प्रभावित जरूर करता है।
किसान आंदोलन के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं जो सीधे तौर पर आम आदमी से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि 2022 के यूपी चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में ये मुद्दे सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि वो मुद्दे क्या हैं...
2. महंगाई
पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के अलावा सरसों के तेल की कीमत 200 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा हो चुकी है। अगस्त में ही थोक महंगाई दर 11.39 फीसदी पर पहुंच गई थी। महंगाई की मार के साथ महामारी और उसके बाद आई आर्थिक मंदी ने इसे और भी घातक बना दिया है।
कोरोना की पहली लहर के बाद दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक देश भर में हर तरह की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद से अब तक स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। उपर से बढ़ती महंगाई की मार ने इस हालात को और भी बदतर बना दिया है।
यह बात भी सही है कि विपक्षी पार्टियां महंगाई को मुद्दा बनाने में सफल नहीं हो पाई हैं। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी महंगाई से परेशान है और आने वाले चुनावों में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
3. बेरोजगारी
भारत में कोरोना महामारी शुरू होने से एक साल पहले ही बेरोजगारी की दर ने यमन और कांगो जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया था। विश्वबैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कौशिक बसु ने विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के जरिए ये बताया था कि 2019 में ही भारत की बेरोजगारी दर 23% थी।
विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में भारत की जीडीपी लगभग 4 फीसदी थी। कोरोना के चलते दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को भी जोर का झटका लगा और 2020 में भारत की जीडीपी -8% पर पहुंच गई। पिछले एक डेढ़ सालों में लोगों ने रोजगार मिलने तो कम हुए ही हैं, बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई है।
अजीब बात ये है कि मंहगाई की तरह बेरोजगारी को मुद्दा बनाने या इसके पक्ष में कोई जनांदोलन खड़ा करने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा है। बावजूद इसके, बेरोजगारी का मुद्दा आगामी चुनाव में यह बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
4. हिंदू-मुसलमान
बीजेपी पर सांप्रदायिकता को भड़काने और हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश को बांटने का आरोप लगता रहा है। लेकिन, हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पीएम को यह सलाह दे डाल कि हमें अपने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।
इसे सीधे तौर पर भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता से जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जाता है कि अमेरिका सहित दुनिया के लोकतांत्रिक देश भारत में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर चिंतित हैं।
खासतौर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पास होने और उसके बाद देश भर में हुए प्रदर्शनों के बाद इस बात को लेकर पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ी है। सीधे तौर पर भले ही यह मुद्दा राजनीति को प्रभावित करता हुआ नहीं दिखता, लेकिन भारत हमेशा से एक लोकतांत्रिक और उदार विचारों वाला देश रहा है। ऐसे में प्रगतिशील और उदारवादी भारतीयों के लिए यह बड़ा मुद्दा हो सकता है और यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
5. मोदी-अमित शाह की कार्यशैली
मोदी-अमित शाह की जोड़ी को डेडली कॉम्बीनेशन माना जाता है। इसे चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी भी कहा जाता है। मोदी और अमित शाह की राजनीति करने का ढंग भी बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
कहा जाता है कि सरकार के ज्यादातर फैसले ये दोनों ही करते हैं। यहां तक कि राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की लिस्ट भी मोदी और अमित शाह ही फाइनल करते हैं। हाल ही में गुजरात और उत्तराखंड में सीएम को रातों-रात बदलने की खबर ने मीडिया ही नहीं, बीजेपी के नेताओं को भी चौंका दिया था।
कहा जाता है कि मोदी-अमित शाह को जब भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री मजबूत होता दिखता है, तो ये दोनों उसके पर काट देते हैं। यह बात कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे के बारे में साफ तौर पर देखी जा सकती है। ये नेता खुलकर भले ही मोदी-अमित शाह का विरोध न करें लेकिन, लोकसभा के चुनाव में यह बीजेपी की गणित बिगाड़ने का काम कर सकते हैं।
इन सब के अलावा मोदी-अमित शाह की जोड़ी पर मीडिया को मैनेज करने, राजनीति विरोधियों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं के इस्तेमाल का भी आरोप लगता है। ये मुद्दे बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित करेंगे या नहीं इसका लिटमस टेस्ट यूपी के चुनाव में होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी चुनाव के नतीजों का असर 2024 में होने वाले आम चुनावों पर भी जरूर दिखेगा। क्योंकि, कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है।
- संजीव श्रीवास्तव
नई दिल्ली: आईपीएल (IPL) फेज-2 में आज का पहला मुकाबला रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) और पंजाब किंग्स (PBKS) के बीच हुआ। मैच की शुरुआत में राॅयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने का फैसला किया। आरसीबी ने पहले खेलते हुए 20 ओवरों के खेल में 164/7 का स्कोर बनाया। चेज कर रही पंजाब ये स्कोर नहीं बना पाई और 6 रन से मैच हार गई। पंजाब का स्कोर 158/6 रहा।
पंजाब के बल्लेबाजों का नहीं चला जादू
चेज कर रहे पंजाब के ओपनर्स केएल राहुल और मयंक अग्रवाल ने पहले विकेट के लिए 91 रन की साझेदारी (PARTNERSHIP) जोड़ी। पंजाब का पहला विकेट के एल राहुल के रुप में गिरा। राहुल 35 गेंद पर 39 रन बनाकर आउट हो गए। निकोलस पूरन 3 रन बनाकर पवेलियन लौट गए। वहीं मयंक अग्रवाल 42 गेंद पर 57 रन बनाकर आउट हुए। आइडेन मरक्रम 20 रन और शाहरुख खान 16 रन बनाकर पवेलियन वापस लौटे।
बैंगलोर के बल्लेबाजों ने किया कमाल
पहले बल्लेबाजी करने आए ओपनर देवदत्त पडिकल और कप्तान विराट कोहली (VIRAT KOHLI) ने पहले विकेट के लिए 68 रन की साझेदारी बनाई। बैंगलोर के कप्तान कोहली 25 रन बनाकर आउट हो गए। देवदत्त पडिकल 40 रन बनाकर आउट हो गए। बैंगलोर के बल्लेबाज मैक्सवेल ने 33 गेंदों पर 57 रन की शानदार पारी खेली। वहीं ए बी डिविलियर्स 23 रन बनाकर आउट हो गए।
जीत के साथ बैंगलोर ने प्लआफ में बनाई जगह
यह मैच जीतने के बाद बैंगलोर ने प्लेआफ (PLAY OFF) में जगह पक्की कर ली है। बैंगलोर के 16 अंक हो चुके हैं। उन्होंने 12 मैच खेले हैं जिसमें 16 अंक हासिल कर चुके हैं। वहीं पंजाब हार के बाद प्वाइंट्स टेबल में पंजाब पाँचवे स्थान पर पहुंच गई है औऱ उनका प्लेआफ में पहुंचना काफी मुश्किल हो गया है।
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भारत
चेतना मंच
03 Oct 2021 08:31 PM
नई दिल्ली: आईपीएल (IPL) फेज-2 में आज का पहला मुकाबला रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) और पंजाब किंग्स (PBKS) के बीच हुआ। मैच की शुरुआत में राॅयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने का फैसला किया। आरसीबी ने पहले खेलते हुए 20 ओवरों के खेल में 164/7 का स्कोर बनाया। चेज कर रही पंजाब ये स्कोर नहीं बना पाई और 6 रन से मैच हार गई। पंजाब का स्कोर 158/6 रहा।
पंजाब के बल्लेबाजों का नहीं चला जादू
चेज कर रहे पंजाब के ओपनर्स केएल राहुल और मयंक अग्रवाल ने पहले विकेट के लिए 91 रन की साझेदारी (PARTNERSHIP) जोड़ी। पंजाब का पहला विकेट के एल राहुल के रुप में गिरा। राहुल 35 गेंद पर 39 रन बनाकर आउट हो गए। निकोलस पूरन 3 रन बनाकर पवेलियन लौट गए। वहीं मयंक अग्रवाल 42 गेंद पर 57 रन बनाकर आउट हुए। आइडेन मरक्रम 20 रन और शाहरुख खान 16 रन बनाकर पवेलियन वापस लौटे।
बैंगलोर के बल्लेबाजों ने किया कमाल
पहले बल्लेबाजी करने आए ओपनर देवदत्त पडिकल और कप्तान विराट कोहली (VIRAT KOHLI) ने पहले विकेट के लिए 68 रन की साझेदारी बनाई। बैंगलोर के कप्तान कोहली 25 रन बनाकर आउट हो गए। देवदत्त पडिकल 40 रन बनाकर आउट हो गए। बैंगलोर के बल्लेबाज मैक्सवेल ने 33 गेंदों पर 57 रन की शानदार पारी खेली। वहीं ए बी डिविलियर्स 23 रन बनाकर आउट हो गए।
जीत के साथ बैंगलोर ने प्लआफ में बनाई जगह
यह मैच जीतने के बाद बैंगलोर ने प्लेआफ (PLAY OFF) में जगह पक्की कर ली है। बैंगलोर के 16 अंक हो चुके हैं। उन्होंने 12 मैच खेले हैं जिसमें 16 अंक हासिल कर चुके हैं। वहीं पंजाब हार के बाद प्वाइंट्स टेबल में पंजाब पाँचवे स्थान पर पहुंच गई है औऱ उनका प्लेआफ में पहुंचना काफी मुश्किल हो गया है।
मोदी-अमित शाह की जोड़ी के लिए खतरा हैं ये 5 चीजें!
भारत
सुप्रिया श्रीवास्तव
01 Dec 2025 11:31 AM
1. किसान आंदोलन
राजनीति और क्रिकेट में एक बात कॉमन है कि इसमें किसी भी वक्त खेल का रुख पलट सकता है। यही वजह है कि इन दोनों के प्रति आम और खास सभी की दिलचस्पी हमेशा बनी रहती है।
यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत की घटना ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर से किसान आंदोलन की ओर खींच लिया है। यह घटना यूपी की राजनीति का रुख बदलेगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इसकी गूंज देर तक बनी रहेगी।
पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से किसान देश के कई हिस्सों में धरने पर बैठे हैं। उनकी दो प्रमुख मांग है कि केंद्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिलाने की गारंटी दे।
किसान आंदोलन में देश भर के किसान शामिल हैं या नहीं? यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है या नहीं? इस पर बहस हो सकती है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में होने वाला कोई भी आंदोलन राजनीति को प्रभावित जरूर करता है।
किसान आंदोलन के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं जो सीधे तौर पर आम आदमी से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि 2022 के यूपी चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में ये मुद्दे सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि वो मुद्दे क्या हैं...
2. महंगाई
पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के अलावा सरसों के तेल की कीमत 200 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा हो चुकी है। अगस्त में ही थोक महंगाई दर 11.39 फीसदी पर पहुंच गई थी। महंगाई की मार के साथ महामारी और उसके बाद आई आर्थिक मंदी ने इसे और भी घातक बना दिया है।
कोरोना की पहली लहर के बाद दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक देश भर में हर तरह की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद से अब तक स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। उपर से बढ़ती महंगाई की मार ने इस हालात को और भी बदतर बना दिया है।
यह बात भी सही है कि विपक्षी पार्टियां महंगाई को मुद्दा बनाने में सफल नहीं हो पाई हैं। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी महंगाई से परेशान है और आने वाले चुनावों में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
3. बेरोजगारी
भारत में कोरोना महामारी शुरू होने से एक साल पहले ही बेरोजगारी की दर ने यमन और कांगो जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया था। विश्वबैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कौशिक बसु ने विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के जरिए ये बताया था कि 2019 में ही भारत की बेरोजगारी दर 23% थी।
विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में भारत की जीडीपी लगभग 4 फीसदी थी। कोरोना के चलते दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को भी जोर का झटका लगा और 2020 में भारत की जीडीपी -8% पर पहुंच गई। पिछले एक डेढ़ सालों में लोगों ने रोजगार मिलने तो कम हुए ही हैं, बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई है।
अजीब बात ये है कि मंहगाई की तरह बेरोजगारी को मुद्दा बनाने या इसके पक्ष में कोई जनांदोलन खड़ा करने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा है। बावजूद इसके, बेरोजगारी का मुद्दा आगामी चुनाव में यह बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
4. हिंदू-मुसलमान
बीजेपी पर सांप्रदायिकता को भड़काने और हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश को बांटने का आरोप लगता रहा है। लेकिन, हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पीएम को यह सलाह दे डाल कि हमें अपने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।
इसे सीधे तौर पर भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता से जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जाता है कि अमेरिका सहित दुनिया के लोकतांत्रिक देश भारत में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर चिंतित हैं।
खासतौर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पास होने और उसके बाद देश भर में हुए प्रदर्शनों के बाद इस बात को लेकर पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ी है। सीधे तौर पर भले ही यह मुद्दा राजनीति को प्रभावित करता हुआ नहीं दिखता, लेकिन भारत हमेशा से एक लोकतांत्रिक और उदार विचारों वाला देश रहा है। ऐसे में प्रगतिशील और उदारवादी भारतीयों के लिए यह बड़ा मुद्दा हो सकता है और यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
5. मोदी-अमित शाह की कार्यशैली
मोदी-अमित शाह की जोड़ी को डेडली कॉम्बीनेशन माना जाता है। इसे चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी भी कहा जाता है। मोदी और अमित शाह की राजनीति करने का ढंग भी बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
कहा जाता है कि सरकार के ज्यादातर फैसले ये दोनों ही करते हैं। यहां तक कि राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की लिस्ट भी मोदी और अमित शाह ही फाइनल करते हैं। हाल ही में गुजरात और उत्तराखंड में सीएम को रातों-रात बदलने की खबर ने मीडिया ही नहीं, बीजेपी के नेताओं को भी चौंका दिया था।
कहा जाता है कि मोदी-अमित शाह को जब भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री मजबूत होता दिखता है, तो ये दोनों उसके पर काट देते हैं। यह बात कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे के बारे में साफ तौर पर देखी जा सकती है। ये नेता खुलकर भले ही मोदी-अमित शाह का विरोध न करें लेकिन, लोकसभा के चुनाव में यह बीजेपी की गणित बिगाड़ने का काम कर सकते हैं।
इन सब के अलावा मोदी-अमित शाह की जोड़ी पर मीडिया को मैनेज करने, राजनीति विरोधियों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं के इस्तेमाल का भी आरोप लगता है। ये मुद्दे बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित करेंगे या नहीं इसका लिटमस टेस्ट यूपी के चुनाव में होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी चुनाव के नतीजों का असर 2024 में होने वाले आम चुनावों पर भी जरूर दिखेगा। क्योंकि, कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है।
- संजीव श्रीवास्तव
भारत
सुप्रिया श्रीवास्तव
01 Dec 2025 11:31 AM
1. किसान आंदोलन
राजनीति और क्रिकेट में एक बात कॉमन है कि इसमें किसी भी वक्त खेल का रुख पलट सकता है। यही वजह है कि इन दोनों के प्रति आम और खास सभी की दिलचस्पी हमेशा बनी रहती है।
यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत की घटना ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर से किसान आंदोलन की ओर खींच लिया है। यह घटना यूपी की राजनीति का रुख बदलेगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इसकी गूंज देर तक बनी रहेगी।
पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से किसान देश के कई हिस्सों में धरने पर बैठे हैं। उनकी दो प्रमुख मांग है कि केंद्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिलाने की गारंटी दे।
किसान आंदोलन में देश भर के किसान शामिल हैं या नहीं? यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है या नहीं? इस पर बहस हो सकती है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में होने वाला कोई भी आंदोलन राजनीति को प्रभावित जरूर करता है।
किसान आंदोलन के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं जो सीधे तौर पर आम आदमी से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि 2022 के यूपी चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में ये मुद्दे सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि वो मुद्दे क्या हैं...
2. महंगाई
पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के अलावा सरसों के तेल की कीमत 200 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा हो चुकी है। अगस्त में ही थोक महंगाई दर 11.39 फीसदी पर पहुंच गई थी। महंगाई की मार के साथ महामारी और उसके बाद आई आर्थिक मंदी ने इसे और भी घातक बना दिया है।
कोरोना की पहली लहर के बाद दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक देश भर में हर तरह की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद से अब तक स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। उपर से बढ़ती महंगाई की मार ने इस हालात को और भी बदतर बना दिया है।
यह बात भी सही है कि विपक्षी पार्टियां महंगाई को मुद्दा बनाने में सफल नहीं हो पाई हैं। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी महंगाई से परेशान है और आने वाले चुनावों में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
3. बेरोजगारी
भारत में कोरोना महामारी शुरू होने से एक साल पहले ही बेरोजगारी की दर ने यमन और कांगो जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया था। विश्वबैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कौशिक बसु ने विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के जरिए ये बताया था कि 2019 में ही भारत की बेरोजगारी दर 23% थी।
विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में भारत की जीडीपी लगभग 4 फीसदी थी। कोरोना के चलते दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को भी जोर का झटका लगा और 2020 में भारत की जीडीपी -8% पर पहुंच गई। पिछले एक डेढ़ सालों में लोगों ने रोजगार मिलने तो कम हुए ही हैं, बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई है।
अजीब बात ये है कि मंहगाई की तरह बेरोजगारी को मुद्दा बनाने या इसके पक्ष में कोई जनांदोलन खड़ा करने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा है। बावजूद इसके, बेरोजगारी का मुद्दा आगामी चुनाव में यह बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
4. हिंदू-मुसलमान
बीजेपी पर सांप्रदायिकता को भड़काने और हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश को बांटने का आरोप लगता रहा है। लेकिन, हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पीएम को यह सलाह दे डाल कि हमें अपने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।
इसे सीधे तौर पर भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता से जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जाता है कि अमेरिका सहित दुनिया के लोकतांत्रिक देश भारत में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर चिंतित हैं।
खासतौर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पास होने और उसके बाद देश भर में हुए प्रदर्शनों के बाद इस बात को लेकर पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ी है। सीधे तौर पर भले ही यह मुद्दा राजनीति को प्रभावित करता हुआ नहीं दिखता, लेकिन भारत हमेशा से एक लोकतांत्रिक और उदार विचारों वाला देश रहा है। ऐसे में प्रगतिशील और उदारवादी भारतीयों के लिए यह बड़ा मुद्दा हो सकता है और यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
5. मोदी-अमित शाह की कार्यशैली
मोदी-अमित शाह की जोड़ी को डेडली कॉम्बीनेशन माना जाता है। इसे चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी भी कहा जाता है। मोदी और अमित शाह की राजनीति करने का ढंग भी बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
कहा जाता है कि सरकार के ज्यादातर फैसले ये दोनों ही करते हैं। यहां तक कि राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों की लिस्ट भी मोदी और अमित शाह ही फाइनल करते हैं। हाल ही में गुजरात और उत्तराखंड में सीएम को रातों-रात बदलने की खबर ने मीडिया ही नहीं, बीजेपी के नेताओं को भी चौंका दिया था।
कहा जाता है कि मोदी-अमित शाह को जब भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री मजबूत होता दिखता है, तो ये दोनों उसके पर काट देते हैं। यह बात कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे के बारे में साफ तौर पर देखी जा सकती है। ये नेता खुलकर भले ही मोदी-अमित शाह का विरोध न करें लेकिन, लोकसभा के चुनाव में यह बीजेपी की गणित बिगाड़ने का काम कर सकते हैं।
इन सब के अलावा मोदी-अमित शाह की जोड़ी पर मीडिया को मैनेज करने, राजनीति विरोधियों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं के इस्तेमाल का भी आरोप लगता है। ये मुद्दे बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित करेंगे या नहीं इसका लिटमस टेस्ट यूपी के चुनाव में होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी चुनाव के नतीजों का असर 2024 में होने वाले आम चुनावों पर भी जरूर दिखेगा। क्योंकि, कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है।
- संजीव श्रीवास्तव