Festival: आज ही के दिन किया था श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध

आज रूप चतुर्दशी है, जिसे छोटी दीपावली, नरका चौदस, नर्क चतुर्दशी और रूप चौदस भी कहा जाता है। दीपावली से जुड़े पंच महापर्व के दूसरे दिन सौंदर्य को निखारने का महापर्व है - रूप चतुर्दशी। तन और मन की सुंदरता का वरदान दिलाने वाले इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरका चौदस के दिन यम देवता की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि आज के दिन यमुना नदी में स्नान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
इस दिन सांयकाल दीपक जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई कथाएं और मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार प्रागज्योतिषपुर का नरकासुर नामक राजा, एक राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र और अन्य सभी देवताओं को परेशान कर दिया था। वह जनता के साथ ही संतों पर भी अत्याचार करता था। उसने अपने पास प्रजा और संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था।
उसके अत्याचारों से परेशान देवता और संत मदद मांगने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और फिर उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसी की खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।
इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
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आज रूप चतुर्दशी है, जिसे छोटी दीपावली, नरका चौदस, नर्क चतुर्दशी और रूप चौदस भी कहा जाता है। दीपावली से जुड़े पंच महापर्व के दूसरे दिन सौंदर्य को निखारने का महापर्व है - रूप चतुर्दशी। तन और मन की सुंदरता का वरदान दिलाने वाले इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरका चौदस के दिन यम देवता की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि आज के दिन यमुना नदी में स्नान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
इस दिन सांयकाल दीपक जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई कथाएं और मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार प्रागज्योतिषपुर का नरकासुर नामक राजा, एक राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र और अन्य सभी देवताओं को परेशान कर दिया था। वह जनता के साथ ही संतों पर भी अत्याचार करता था। उसने अपने पास प्रजा और संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था।
उसके अत्याचारों से परेशान देवता और संत मदद मांगने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और फिर उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसी की खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।
इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
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