यूं ही नहीं हुआ राम से बड़ा राम का नाम, आप भी जान लीजिए राम के सारे गुण एक नजर में

यूं ही नहीं हुआ राम से बड़ा राम का नाम, आप भी जान लीजिए राम के सारे गुण एक नजर में
locationभारत
userचेतना मंच
calendar15 Jan 2024 07:45 PM
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[ प्रवीणा अग्रवाल ] Ram Mandir : भारतवर्ष में हर वर्ष हर गली, मोहल्ले, शहर-गांव में रामलीला का मंचन अत्यंत हर्षोल्लास से किया जाता है। हर दर्शक को कहानी पता है। नाटक में अगले पल क्या घटित होने वाला है,यह भी पता है। फिर भी हर दर्शक रोमांचित है। तो फिर यह क्या चमत्कार है कि दर्शक वर्ष दर वर्ष इस रामलीला का मंचन देखने के बाद कभी ऊबता नहीं है। उसका रोमांच उसकी उत्सुकता यथावत रहती है।

Ram Mandir

क्या यह चमत्कार महाकवि तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का है? जिन्होंने राम कथा ऐसे रची की हर व्यक्ति उसे पढ़ते हुए देखते हुए स्वयं को राम के साथ एका कार कर लेता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके बीच के समय का अंतराल छूमंतर हो गया है और वह राम कथा को फिर से जी रहा है राम के साथ। रामलीला देखने वाला केवल रामलीला नहीं देख रहा, मानस का पाठ करने वाला केवल पाठ नहीं कर रहा बल्कि उसे अनुभव होता है कि वह एक आध्यात्मिक घटना का साक्षी है और उसका अभिन्न अंग भी। उसका मन मानस अंतरतम की गहराइयों से यह स्वीकार करता है कि राम कथा उसे आध्यात्मिकता की उन ऊंचाइयों तक ले जाती है जहां राम निकट है बिल्कुल अपने हैं जिन्हें महसूस किया जा सकता है ,छुआ जा सकता है और कोशिश करने पर राम जैसा हुआ भी जा सकता है। राम सरल है एकदम सरल। आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, स्नेही भाई, प्रेमिल पति हर अवसर पर सामने वाले से विनम्रता एवं मृदुता का व्यवहार करते हुए सभी से कुछ ना कुछ सीखते हुए ऋषियों मुनियों से भी तो रावण से भी।  राम की यही सरलता उनका वह गुण है जो जन सामान्य को भी अपना बना लेता है।

अद्भुत हैं राम

राम का व्यक्तित्व इतना उदात्त है कि उनके पास जो कुछ भी है वही पर्याप्त है। इससे इतर उन्हें और अधिक की कोई अभिलाषा नहीं। पिता के दिए वचन की रक्षा हेतु 14 वर्षों का वनवास उतनी ही सरलता से स्वीकार कर लिया जितनी सरलता से अयोध्या का राजतिलक स्वीकार किया था। राम चाहते तो पिता की आज्ञा न मानते अथवा जब भरत उन्हें वापस अयोध्या लाने गए तो राम भरत के साथ वापस अयोध्या आ जाते पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। 14 वर्षों तक वनवास में रहे, कंदमूल फल खाकर निर्वाह किया वनवासियों के बीच वनवासियों की तरह। राजकुल का प्रतापी यशस्वी राजकुमार अथवा अयोध्या का भावी सम्राट होने का रंच मात्र भी भाव नहीं। इन्हीं सबके बीच तत्कालीन समाज के दलित वंचित आदिवासी तबको के साथ उनका समभाव आश्चर्यचकित कर देता है। छल अहिल्या के साथ हुआ उसके लिए अहिल्या कैसे दोषी हो सकती है? राम उसका उद्धार करते हैं। वहीं वनवास में शबरी के झूठे बेर खाने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं है क्योंकि प्राणी मात्र की समानता में उनका गहन विश्वास है। प्रकृति से उनका तादात्म्य अतुलनीय है। सीता हरण के उपरांत सीता की खोज में भटकते राम कहते हैं

हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी।

तुम देखी सीता मृगनयनी ।

Ram Mandir

अतुलनीय हैं राम

जिस समय लंकेश रावण द्वारा सीता का हरण किया गया राम लक्ष्मण वन में एकदम अकेले हैं। पर राम उन विकट परिस्थितियों में भी अपना साहस नहीं खोते। उन्हें सीता को वापस लाने हेतु सेना व सहायता दोनों की आवश्यकता थी। पर उन्होंने ना तो अयोध्या से कोई सहायता मांगी ना ही जनकपुर से राम को विश्वास है अपने बाहुबल पर अपनी क्षमताओं पर राम दिखाई देते हैं स्थानीय वनवासियों, रीछ, वानरों, भालुओं को सैन्य रूप में संगठित करते हुए। राम के लिए कुछ भी असाध्य नहीं, फिर भी राम सहायता लेते हैं वनवासियों की। जो सरल है सहज है। जो सहज है सरल है वही राम को सर्वाधिक प्रिय उन्हें ही मिलते हैं राम। लंका विजय के पश्चात लंका के राज्य या ऐश्वर्य की राम को कोई आकांक्षा नहीं है। लंका का राज्य वे सहर्ष विभीषण को सौंप देते हैं क्योंकि त्याग ही उनकी विशेषता है। जब लक्ष्मण राम से कहते हैं कि हे भ्राता अयोध्या को हम बहुत दूर छोड़ आए हैं और लंका का यह ऐश्वर्यशाली साम्राज्य हमने विजय कर लिया है तो क्यों ना हम यही राज्य करें, तो राम कहते हैं

‘अपि स्वर्णमयी लंका मे ना लक्ष्मण रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (वाल्मीकि रामायण)’

लक्ष्मण यह स्वर्णमयी लंका मुझे प्रिय नहीं लग रही है क्योंकि मां एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी बढक़र है। राम जिस समय जहां रहे उन लोगों के साथ उनके होकर रहे। जिसे मिले संपूर्णता से मिले क्योंकि राम-राम है जब मिलते हैं तो संपूर्ण और नहीं तो नहीं। क्योंकि अधूरा राम राम नहीं हो सकता या तो पूरा मिलेगा या नहीं मिलेगा।

लखनऊ में मनाया जाएगा 76वां आर्मी डे, रक्षा मंत्री होंगे शामिल

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[ प्रवीणा अग्रवाल ] Ram Mandir : भारतवर्ष में हर वर्ष हर गली, मोहल्ले, शहर-गांव में रामलीला का मंचन अत्यंत हर्षोल्लास से किया जाता है। हर दर्शक को कहानी पता है। नाटक में अगले पल क्या घटित होने वाला है,यह भी पता है। फिर भी हर दर्शक रोमांचित है। तो फिर यह क्या चमत्कार है कि दर्शक वर्ष दर वर्ष इस रामलीला का मंचन देखने के बाद कभी ऊबता नहीं है। उसका रोमांच उसकी उत्सुकता यथावत रहती है।

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क्या यह चमत्कार महाकवि तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का है? जिन्होंने राम कथा ऐसे रची की हर व्यक्ति उसे पढ़ते हुए देखते हुए स्वयं को राम के साथ एका कार कर लेता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके बीच के समय का अंतराल छूमंतर हो गया है और वह राम कथा को फिर से जी रहा है राम के साथ। रामलीला देखने वाला केवल रामलीला नहीं देख रहा, मानस का पाठ करने वाला केवल पाठ नहीं कर रहा बल्कि उसे अनुभव होता है कि वह एक आध्यात्मिक घटना का साक्षी है और उसका अभिन्न अंग भी। उसका मन मानस अंतरतम की गहराइयों से यह स्वीकार करता है कि राम कथा उसे आध्यात्मिकता की उन ऊंचाइयों तक ले जाती है जहां राम निकट है बिल्कुल अपने हैं जिन्हें महसूस किया जा सकता है ,छुआ जा सकता है और कोशिश करने पर राम जैसा हुआ भी जा सकता है। राम सरल है एकदम सरल। आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, स्नेही भाई, प्रेमिल पति हर अवसर पर सामने वाले से विनम्रता एवं मृदुता का व्यवहार करते हुए सभी से कुछ ना कुछ सीखते हुए ऋषियों मुनियों से भी तो रावण से भी।  राम की यही सरलता उनका वह गुण है जो जन सामान्य को भी अपना बना लेता है।

अद्भुत हैं राम

राम का व्यक्तित्व इतना उदात्त है कि उनके पास जो कुछ भी है वही पर्याप्त है। इससे इतर उन्हें और अधिक की कोई अभिलाषा नहीं। पिता के दिए वचन की रक्षा हेतु 14 वर्षों का वनवास उतनी ही सरलता से स्वीकार कर लिया जितनी सरलता से अयोध्या का राजतिलक स्वीकार किया था। राम चाहते तो पिता की आज्ञा न मानते अथवा जब भरत उन्हें वापस अयोध्या लाने गए तो राम भरत के साथ वापस अयोध्या आ जाते पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। 14 वर्षों तक वनवास में रहे, कंदमूल फल खाकर निर्वाह किया वनवासियों के बीच वनवासियों की तरह। राजकुल का प्रतापी यशस्वी राजकुमार अथवा अयोध्या का भावी सम्राट होने का रंच मात्र भी भाव नहीं। इन्हीं सबके बीच तत्कालीन समाज के दलित वंचित आदिवासी तबको के साथ उनका समभाव आश्चर्यचकित कर देता है। छल अहिल्या के साथ हुआ उसके लिए अहिल्या कैसे दोषी हो सकती है? राम उसका उद्धार करते हैं। वहीं वनवास में शबरी के झूठे बेर खाने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं है क्योंकि प्राणी मात्र की समानता में उनका गहन विश्वास है। प्रकृति से उनका तादात्म्य अतुलनीय है। सीता हरण के उपरांत सीता की खोज में भटकते राम कहते हैं

हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी।

तुम देखी सीता मृगनयनी ।

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अतुलनीय हैं राम

जिस समय लंकेश रावण द्वारा सीता का हरण किया गया राम लक्ष्मण वन में एकदम अकेले हैं। पर राम उन विकट परिस्थितियों में भी अपना साहस नहीं खोते। उन्हें सीता को वापस लाने हेतु सेना व सहायता दोनों की आवश्यकता थी। पर उन्होंने ना तो अयोध्या से कोई सहायता मांगी ना ही जनकपुर से राम को विश्वास है अपने बाहुबल पर अपनी क्षमताओं पर राम दिखाई देते हैं स्थानीय वनवासियों, रीछ, वानरों, भालुओं को सैन्य रूप में संगठित करते हुए। राम के लिए कुछ भी असाध्य नहीं, फिर भी राम सहायता लेते हैं वनवासियों की। जो सरल है सहज है। जो सहज है सरल है वही राम को सर्वाधिक प्रिय उन्हें ही मिलते हैं राम। लंका विजय के पश्चात लंका के राज्य या ऐश्वर्य की राम को कोई आकांक्षा नहीं है। लंका का राज्य वे सहर्ष विभीषण को सौंप देते हैं क्योंकि त्याग ही उनकी विशेषता है। जब लक्ष्मण राम से कहते हैं कि हे भ्राता अयोध्या को हम बहुत दूर छोड़ आए हैं और लंका का यह ऐश्वर्यशाली साम्राज्य हमने विजय कर लिया है तो क्यों ना हम यही राज्य करें, तो राम कहते हैं

‘अपि स्वर्णमयी लंका मे ना लक्ष्मण रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (वाल्मीकि रामायण)’

लक्ष्मण यह स्वर्णमयी लंका मुझे प्रिय नहीं लग रही है क्योंकि मां एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी बढक़र है। राम जिस समय जहां रहे उन लोगों के साथ उनके होकर रहे। जिसे मिले संपूर्णता से मिले क्योंकि राम-राम है जब मिलते हैं तो संपूर्ण और नहीं तो नहीं। क्योंकि अधूरा राम राम नहीं हो सकता या तो पूरा मिलेगा या नहीं मिलेगा।

लखनऊ में मनाया जाएगा 76वां आर्मी डे, रक्षा मंत्री होंगे शामिल

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पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  

पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  

पोंगल का त्यौहार, प्रकृति और परंपराओं का अदभुत संगम  
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calendar02 Dec 2025 02:38 AM
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Pongal  Festivals 2024: पोंगल का पर्व मकर संक्रांति के समय पर ही मनाया जाता है. इस दिन को सूर्य के उत्तरायण होने के रुप में भी पूजा जाता है. लोक परंपराओं का यह पोंगल उत्सव दक्षिण भारत में बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाते देखा जा सकता है. भारत के दक्षिण प्रांत आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक जैसे स्थानों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पोंगल को चार दिनों तक चलने वाला लोक उत्सव भी कहा जाता है. इस उत्सव के हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा की जाती है. पोंगल के हर दिन में होता है नया उत्साह  पोंगल का त्यौहार काफी जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाने वाला दिन है. यह उत्सव चार दिनों तक मनाया जाता है. इस समय पर आस्था के अलग अलग रंग दिखाई देते हैं. पोंगल के दिन से नववर्ष की शुरुआत को भी देखा जाता है. इस दिन से सुख एवं प्रचुरता का आरंभ होना माना गया है. पोंगल का पर्व काफी जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है. यह उत्सव चार दिनों तक चलता है. इस समय पर अलग अलग रंग दिखाई देते हैं.

पोंगल तमिल नववर्ष की शुरुआत का समय 

Pongal  Festivals 2024 पोंगल का त्यौहार नव वर्ष की सुगबुहागट को दिखाता है जिसे तमिल पंचांग के अनुसार विशेष माना गया है.  पोंगल के दिन से तमिल नववर्ष की शुरुआत का होना विशेष होता है. जिस प्रकार अंग्रेजी माह का आरंभ जनवरी के प्रथम दिन से होता है उसी प्रकार तमिल पंचांग गणना में इस पोंगल के दिन को अत्यंत शुभ एवं विशेष माना गया है. लोक कथाओं अनुसार इस दिन से प्रकृति अपने नए रुप में होती है. सभी प्रकार के अंधकार से मुक्ति का समय होता है. प्रकाश हर ओर की वस्तु में जागृति का अंश भर देने वाला होता है. पहला दिन तमिल पंचांग गणना के अनुसार पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल के नाम से जाना जाता है. जिसका आरंभ  इस साल 15 जनवरी 2024, के दिन से होगा. मान्यताओं के अनुसार इस दिन इंद्र देव का पूजन किया जाता है. पोंगल का दूसरा दिन पोंगल के दूसरे दिन को थाई पोंगल के नाम से जाना जाता है. इस दिन पर सूर्य देव का पूजन होता है. तथा सूर्य देव को दूध से बने मिष्ठान खीर का भोग अर्पित किया जाता है. पोंगल का तीसरा दिन  पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के रुप में पूजा जाता है. इस दिन पर किसान अपने पशुओं का पूजन करते हैं. इस दिन कई तरह के पारंपरिक कार्यों का आयोजन भी होता है. इस के मुख्य आयोजन में बैलों की दौड़ जल्लीकट्टू का होना विशेष होता है. पोंगल का आखिरी दिन पोंगल के चौथे दिन को कन्या पोंगल के रुप में मनाते हैं. इस दिन घरों को सजाते हैं रंगोली इत्यादि के द्वारा इस उत्सव को अंतिम विदाई देते हैं. सभी लोग एक दूसरे को पोंगल की बधाई देते हुए इस दिन को संपूर्ण करते हैं. आचार्या राजरानी

मकर संक्रांति: सूर्य देव के उत्तरायण होने का विशेष समय,जानें इस दिन की महत्ता