जयंती : क्रांति सूर्य बिरसा मुंडा को आदिवासी मानते हैं भगवान!

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calendar15 Nov 2021 04:46 AM
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'मुंडा-आंदोलन' के प्रणेता और अपने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात करने वाले आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा की आज जयंती है। उनका जन्म झारखंड के आदिवासी दंपति सुगना और करमी के घर 15 नवंबर 2875 में हुआ था।

जिस समय आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधी में उड़ रहा था, आस्था के मामले में भटक रहा था और सामाजिक कुरीतियों के जंजाल में फंसा ज्ञान के प्रकाश तक नहीं पहुंच पा रहा था, उस समय बिरसा मुंडा ने चेतना का उद्घोष किया। उन्होंने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया, शिक्षा का महत्व समझाया, सहयोग और सहकार का मार्ग दिखाया। भोले आदिवासियों को अंधविश्वास के ढकोसलों में धकेलने वाले पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों का काम ठप होने से वे बौखला गए, आदिवासियों में जागरण से जमीदार-साहूकार और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भी बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए और उनके विरुद्ध षड्यंत्र प्रारंभ कर दिए।

बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना जागृत कर दी तो आदिवासी आर्थिक शोषण के खिलाफ एकजुट हो आवाज उठाने लगे। बिरसा मुंडा ने उनका नेतृत्व किया। आदिवासियों ने उस समय प्रचलित 'बेगार प्रथा' के विरुद्ध जोरदार आंदोलन किया, जिसके परिणाम स्वरूप जमीदारों के घरों और खेतों में काम ठप हो गया। इसी सबके बीच बिरसा मुंडा ने राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित किया। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हो गए।

मुंडा आदिवासियों ने 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी हुकूमत और भारतीय शासकों व जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह किए। उनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 19वीं सदी के अंतिम दशक में किया गया 'मुंडा विद्रोह' को ही माना जाता है।

24 दिसंबर 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बाकायदा युद्ध छेड़ दिया। 5 जनवरी 1900 तक पूरे मंडा अंचल में विद्रोह की चिंगारियां फैल गईं। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन प्रारंभ कर दिया।

बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड़ में नहीं आए, लेकिन एक गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए। लगातार जंगलों में भटकने के कारण बिरसा का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। जेल में उन्हें हैजा हो गया और 9 जनवरी 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई। बिरसा सच ही कहते थे - 'आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं।' बिरसा के विचार मुंडा और पूरी आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे। बहुत बड़ी संख्या में आदिवासी बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा भी देते हैं। बिरसा अमर हैं और उनका नाम हिंदुस्तान के महान देशभक्तों की सूची में दर्ज है।

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Tulsi: तुलसी एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Tulsi
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calendar13 Nov 2021 08:45 AM
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डॉ. नीता सक्सेना असिस्टेंट प्रोफेसर तुलसी का पौधा पूरे भारत वर्ष में पाये जाने वाला अतुलनीय एवं सुगंधित पौधा है। उत्तर भारत में वृंदा वैष्णवी, विष्णुप्रिया सुगंधा, पावनी आदि नामों से जाना जाता है, तो गुजरात में तुलसी नाम से मराठी में तुलसा, तमिल में मूलसी और मलयाली ततवु कहा जाता है। अंग्रेजी में तुलसी को होली बेसिल कहते है। वनस्पति विज्ञान में तुलसी को ओससिम सेकटम या ओसिमम् वेन फ्लोरम कहते है। तुलसी के लिए गरम शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। ना अधिक गर्मी ना अधिक सर्दी । तुलसी को सदैव जल की आवश्यकता होती है। सामान्यतः इसके पौधे मध्यम ऊंचाई वाले होते हैं, इसकी पत्तियां गोलाकार होती हैं। तुलसी मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं : रामा तुलसी की हरी पत्तियां चौड़ी एवं शाखाएं हरे रंग की होती हैं श्यामा तुलसी या कृष्णा तुलसी की शाखाएं एवं पत्तियां गहरे लाल रंग की होती हैं। श्यामा तुलसी में औषधीय गुण अधिक होने के कारण इसका उपयोग औषधि रूप में किया जाता है। तुलसी की अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं जिसमें एक जाति है वन तुलसी जिसे कठेरख भी कहा जाता इसकी गंध घरेलू तुलसी की अपेक्षा बहुत कम होती है। यह रक्त दोष, नेत्रदोष एवं प्रसव की चिकित्सा में विशेष उपयोगी मानी जाती है। इसकी पत्तियों में विष के प्रभाव को कम करने की विशेष क्षमता होती है। दूसरी अन्य जाति की तुलसी को मरुवक कहते हैं।

राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी प्रकार के घाव यहां तक कि हथियार से कट जाने वाले घाव में भी इसका रस बहुत लाभकारी होता है। एक अन्य प्रजाति की तुलसी को है जिसे बरबरी या बुबई तुलसी के नाम से जाना जाता है होती है जिसकी मंजरी की सुगंध बहुत तेज होती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसके बीजों का तुख्म रेहां कहते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रदेशों में अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं। आदिकाल से आयुर्वेद में तुलसी को जड़ी बूटी की रानी कहा जाता है। घरेलू छोटे मोटे रोगों में मानो तुलसी उपचार की पिटारी है। कुछ रोगों में तो तुलसी रामबाण औषधि है। तुलसी का धार्मिक महत्व हिंदू पौराणिक कथाओं में तुलसी की महत्ता विस्तृत रूप से की गई है। पुराणकारों ने तुलसी में समस्त देवताओं का वास बताते हुए कहा है

तत्रे तुलसी वृक्षस्तिष्ठति द्विज सत्तमा । यत्रेव त्रिदशा सर्व ब्रह्मा विष्णु शिवादय ।।

अर्थात जिस स्थान पर तुलसी का पौधा रहता है वहां पर ब्रह्मा विष्णु और शिव आदि सभी देवता निवास करते हैं। तुलसी के साथ एक और कथा प्रचलित है विष्णु पुराण में तुलसी को मां लक्ष्मी का अवतार विष्णु प्रिया माना है।

कार्तिक माह की एकादशी जिसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। देवोत्थान एकादशी को तुलसी शालोग्राम विवाह का प्रचलन है यह विवाह 5 दिनों तक चलता है। इसी दिन से हिंदू धर्म में सामाजिक विवाह का भी शुभ मुहूर्त आरंभ होता है। हमारे सनातन धर्म में यह मुहूर्त बहुत शुभ माना जाता है। कुछ लोग अंधविश्वास के चलते हजारों रुपए अकारण ही खर्च कर देते हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि इसी बहाने ही सही तुलसी के सैकड़ों पौधे अवश्य रोपित हो जाते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों एवं वैद्य इतने ज्ञानी विद्वान थे। उन्हें इस चमत्कारिक अनुपम दिव्य पौधे के गुणों का भान था और इस पौधे को रोपित एवं सुरक्षित रखने के लिए पूजा-अर्चना, रीति रिवाजों का प्रवाधान रखा ताकि आम जनता को इसकी उपयोगिता और महत्व को समझाया जा सके तुलसी विवाह के पीछे भी यही कारण है तर्क है शनै-शनै यह औषधीय वनस्पति घर-घर म इतनी लोकप्रिय हो गई कि लोग स्वतः ही इसे देवी स्वरूपा मान कर पूजा करने लगे। प्रत्येक देवालय, तीर्थ स्थान एवं घर घर का जरूरी हिस्सा बन गई। विशेषकर हिंदू समुदाय के हर घर के आंगन में तुलसी का पौधा प्रतिष्ठित कर नियमित रूप से पूजा वंदन का चलन है। कार्तिक माह में विशेष रूप से तलसी के नीचे दिया जलाने की परंपरा बहुत पुरानी है।

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। प्राचीन समय से वर्तमान तक चार्तुमास वर्षा ऋतु में आवागमन की समुचित व्यवस्था न होने के कारण धार्मिक एवं सामाजिक काय बाधित रहते हैं एवं वातावरण में नमी कीट पतंगा एवं कीड़ों से दूषित रहता है। 4 माह के बाद कार्तिक माह में तुलसी को रोपना उसको संरक्षित एवं सुरक्षित रखने के लिए पूजा अर्चना की परंपरा का जन्म दिया क्योंकि हम लोगों को विज्ञान की भाषा भले ही देर से समझ आती है लेकिन धर्म प्रथा से जोड़ दिया जाए तो आसानी से समझ आती है हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने इसके सात्विक प्रभाव के कारण अपने अनुपम औषधीय गुणों के कारण स्वतः ही पूजनीय हो गई। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में तो तुलसी की व्याख्या मिलती तुलसी के पौधे की उपयोगिता का वर्णन रोमन ग्रीक (यूनानी चिकित्सा) में भी वर्णित है। तुलसी की पत्तियां ही नहीं अपितु उसको छाल व जड़ भी बहुत सी बीमारिया के निवारण में लाभकारी होती है। तुलसी का रस रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही मानसिक तनाव को कम करने में कारगर है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण :- वैज्ञानिकों ने भी तुलसी को औषधीय गुणों का स्वीकारा है तुलसी एंटी ऑक्सीडेंट, न्यूरो प्रोटेक्टिव हेपाटो, सुरक्षात्मक कांडियो सुरक्षात्मक, दमा रोधक, थायराइड रोधी एवं मोतियाबिंद रोधक के रूप में अत्यंत लाभकारी माना है तुलसी का तेल भी कम उपयोगी नहीं है। यह पीले रंग का होता है इसकी सुगंध लाँग जैसी हाती है एवं औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती है तुलसी के तेल में यूजिनॉल की मात्रा थोडो अधिक पाई जाती है इसके अलावा उल्सालिक, लीनालूल, रोजमैरिनिक एसिड एक्का लाइट टौनिक्स और सोडियम, विटामिन ए और सी साइट्रिक एसिड आयरन जैसे तत्व भी तुलसी में पाए जाते हैं वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह पाया कि पानी में पाई जाने वाली अशुद्धियों को दूर कर पानी को शुद्ध कर पीने योग्य बनाने में भी सक्षम है निरंतर चल रही शोधों से यह भी प्रमाणित हुआ है कि तुलसी का पौधा लोहा मगनीज जैसी धातुओं को मिट्टी से अवशोषित कर लेता है जो मिट्टी प्रदूषण को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राम तुलसी वायुमंडल से जितनी कार्बन डाइऑक्साइड सोखती है उससे कहीं अधिक मात्रा म ऑक्सीजन छोड़ती है। इस तरह तुलसी वायु प्रदूषण को कम करके वायु की गुणवत्ता बढ़ाकर उसे सांस लेन योग्य बनाने में सहायक होती है अतः तुलसी का प्रयोग वायु शोधक के रूप में भी किया जा रहा है। देश के प्रसिद्ध स्मारकों विशेष रूप से ताजमहल को प्रदूषण की मार से बचाने के लिए ताजमहल के चारों ओर हजारों की संख्या में तुलसी के पौधे रोपित कर उस इलाके को प्रदूषण मुक्त करने का अच्छा प्रयास है जो निश्चय ही प्रशंसनीय है तुलसी की सुगंध मच्छर माखियों को भगाने में भी सहायक होती है तुलसी के पौधे घर आंगन में लगाकर मच्छर जनित जैसे डेंगू चिकनगुनिया आदि बीमारियों को काफी सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है तुलसी के औषधीय एवं अन्य गुणों के कारण भारत में ही नहीं अपितु दुनिया का सर्वोत्तम पौधा माना गया है।

तुलसी के आश्चर्यजनक विशेषताओं को देखते हुए हमें धार्मिक परंपराओं एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ सामाजिक विचारधारा को अपनाते हुए लोक हित के लिए मंदिरों देव स्थानों के साथ-साथ सड़कों के किनारे किनारे कल कारखानों के आसपास तुलसी को बहयात में रोपण करना ही होगा लोक कल्याण और पृथ्वी को बचाने के लिए हर एक को यह संकल्प लेना होगा कि हम तुलसी का पौधा लगाएंगे ही नहीं अपितु उसका संरक्षण करना हमारा ही दायित्व होगा बीते दिनों कोरोना के संकट काल में तुलसी की पत्तियों के अद्वितीय दिव्य गुणों से कौन परिचित नहीं है किस तरह तुलसी ने संजोवनी बूटी की तरह काम किया तुलसी को सर्वरोगहारी कहा गया है इसमें इतने औषधीय सात्विक गुण छिपे हुए हैं जिसे उजागर करन के लिए अतिरिक्त शोध की आवश्यकता है।

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दिवस विशेष : सब दया का संकल्प लें तो संसार स्वर्गोपम बन जाए!

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calendar01 Dec 2025 11:42 PM
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 विनय संकोची

आज 'विश्व दयालुता दिवस' है, जिसकी शुरुआत 1997 में जापान से हुई थी। टोक्यो में पहली बार दया के लिए विश्व आंदोलन सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन का उद्देश्य लोगों को दया का महत्व समझाना और अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करना था। 1997 में शुरू हुए इस आंदोलन को सन 2000 में आधिकारिक दर्जा मिला और 13 नवंबर 'विश्व दयालुता दिवस' के रूप में स्थापित हो गया।

दयालुता मानवीय स्थिति का एक मूलभूत हिस्सा है जो जाति, धर्म, राजनीति, लिंग और स्थान के विभाजन को पाटता है। 'विश्व दयालुता दिवस' एक ऐसा दिन है जो व्यक्तियों को सीमाओं, नस्ल और धर्म की अनदेखी करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

दया का भाव मनुष्य की प्रवृत्ति का हिस्सा है, लेकिन फिर भी सभी लोग दयावान नहीं होते हैं, दया नहीं दिखाते हैं, यह भी मानव स्वभाव का अंग है। सोच सबकी अलग-अलग होती है विचार अलग-अलग होते हैं तो निश्चित रूप से भाव और भावना भी अलग ही होंगे, एक जैसे नहीं। यह याद रखने वाली बात है कि इंसान ही इंसान की मदद करता है और यही संदेश दया के पौधे को सींचता है।

महाभारत कहता है - 'दया सबसे बड़ा धर्म है', संत कबीर कहते हैं - 'जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप। जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा तहं आप।।' गोस्वामी तुलसीदास दया का महत्व बताते हैं - 'दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया ना छांडिए जब तक घट में प्राण।।' मुंशी प्रेमचंद दया को मनुष्य का स्वाभाविक गुण मानते हैं। शेक्सपियर का कहना है - 'हम सभी ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दया करना सिखाती है।'

फ्रांसिस का कथन है - 'न्याय करना ईश्वर का काम है, आदमी का काम तो दया करना है।' क्लॉडियस मानते हैं कि दयालुता हमें ईश्वर तुल्य बनाती है। बेली कहते हैं कि दयालु चेहरा सदैव सुंदर होता है। सोफोक्लीज की मान्यता है कि दयालुता दयालुता को जन्म देती है। होम का कहना है - 'जो सचमुच दयालु है वही सचमुच बुद्धिमान है और जो दूसरों से प्रेम नहीं करता उस पर ईश्वर की कृपा नहीं होती है।' शेख सादी का मानना है कि जो असहायों के ऊपर दया नहीं करता, उसे शक्तिशालियों के अत्याचार सहने पड़ते हैं। जूलिया कार्नी का कहना है - 'दया के छोटे-छोटे से कार्य, प्रेम के जरा-जरा से शब्द हमारी पृथ्वी को स्वर्ग बना देते हैं।' हजरत मोहम्मद साहब का कथन है - 'मुझे दया के लिए भेजा है शाप देने के लिए नहीं।'

दया एक ऐसी भाषा है जिसे बोलने की जरूरत नहीं होती। जिस मनुष्य में दया नहीं उसे पशु के समान बताया गया है। कोई भी समझदार व्यक्ति पशु से तो अपनी तुलना नहीं कराना चाहेगा, लेकिन पशु से तुलना न हो तो इसके लिए दयालु होना होगा। भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों ने दया को धर्म के समान माना है, आज 'विश्व दयालुता दिवस' पर दयावान बनने का संकल्प लें और उस पर दृढ़ रहें तो हमारा संसार बहुत सुखी हो जाएगा।