Ind Vs WI: भारत ने वेस्टइंडीज को 2 विकेट से हराया, दूसरा मैच जीतकर सीरीज पर किया कब्ज़ा




Neeraj Chopra : ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने एक बार फिर से देश का नाम रौशन कर दिया है। उन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में इतिहास रच दिया है। नीरज ने अमेरिका के यूजीन में हुई चैंपियनशिप के फाइनल में 88.13 मीटर दूर भाला फेंकते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया। यह नीरज चोपड़ा के करियर का तीसरा सर्वश्रेष्ठ थ्रो है।
पिछले साल खेले गए टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। फाइनल में उन्होंने 87.58 मीटर जेवलिन थ्रो कर गोल्ड जीता था। एथलेटिक्स में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज पहले एथलीट बने थे। इससे पहले पूल ए के क्वालिफिकेशन में 86.65 मीटर थ्रो कर पहले नंबर पर रहे थे।
टोक्यो में मेडल जीतने के बाद एक के बाद चैंपियनशिप में उन्होंने कमाल का खेल दिखाया। हालांकि, नीरज के लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। आइए जानते हैं, उनके संघर्ष की कहानी...
अपने बचपन में नीरज चोपड़ा बहुत मोटे थे। केवल 13 साल की उम्र में ही उनका वजन करीब 80 किलो था। जिसके कारण गांव के दूसरे बच्चे उनका काफी मजाक बनाते थे, उनके मोटापे से परिवार वाले भी बहुत परेशान थे। इसलिए उनके चाचा भीम चोपड़ा ने नीरज को दौड़ने के लिए स्टेडियम लेकर जाना शुरू किया। एक बार स्टेडियम में कुछ बच्चे जेवलिन कर रहे थे। नीरज वहां खड़े होकर देखने लगे, तभी मैदान पर मौजूद कोच ने उनसे कहा कि आओ जेवलिन फेंको.. नीरज ने जेवलिन फेंका, तो वह काफी दूर जाकर गिरा। इसके बाद कोच ने उनसे रेगुलर ट्रेनिंग पर आने को कहा। कुछ दिनों तक नीरज ने पानीपत स्टेडियम में ट्रेनिंग की, फिर पंचकूला चले गए और वहां ट्रेनिंग करने लगे।
नीरज चोपड़ा एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाडले हैं। नीरज के बचपन में उनके परिवार की हालत ठीक नहीं थी। उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि नीरज को 1.5 लाख रुपये का जेवलिन दिला सकें। पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने दिन रात एक कर 7,000 रुपये जोड़े और उन्हें प्रैक्टिस के लिए जेवलिन लाकर दिया।
एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोई कोच नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वो यूट्यूब को ही अपना गुरु मानकर भाला फेंकने की बारीकियां सीखते थे। इसके बाद मैदान पर जाकर अभ्यास करते। वीडियो देखकर उन्होंने अपनी कई कमियों को दूर किया। यूट्यूब वीडियोज से टिप्स लेकर नीरज ने अपने खेल को बेहतर बनाया बल्कि आगे चलकर देश का नाम भी रौशन किया।
2016 में पोलैंड में हुए जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल अपनी झोली में डाला था। हालांकि, इसके बाद भी वह रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए थे। वर्ल्ड रिकॉर्ड के बाद सेना ने नीरज को जूनियर कमीशंड ऑफिसर की पोस्ट दोकर उन्हें नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया। उसके बाद मानो उन्होंने रफ्तार पकड़ ली। 2018 एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।
Neeraj Chopra : ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने एक बार फिर से देश का नाम रौशन कर दिया है। उन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में इतिहास रच दिया है। नीरज ने अमेरिका के यूजीन में हुई चैंपियनशिप के फाइनल में 88.13 मीटर दूर भाला फेंकते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया। यह नीरज चोपड़ा के करियर का तीसरा सर्वश्रेष्ठ थ्रो है।
पिछले साल खेले गए टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। फाइनल में उन्होंने 87.58 मीटर जेवलिन थ्रो कर गोल्ड जीता था। एथलेटिक्स में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज पहले एथलीट बने थे। इससे पहले पूल ए के क्वालिफिकेशन में 86.65 मीटर थ्रो कर पहले नंबर पर रहे थे।
टोक्यो में मेडल जीतने के बाद एक के बाद चैंपियनशिप में उन्होंने कमाल का खेल दिखाया। हालांकि, नीरज के लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। आइए जानते हैं, उनके संघर्ष की कहानी...
अपने बचपन में नीरज चोपड़ा बहुत मोटे थे। केवल 13 साल की उम्र में ही उनका वजन करीब 80 किलो था। जिसके कारण गांव के दूसरे बच्चे उनका काफी मजाक बनाते थे, उनके मोटापे से परिवार वाले भी बहुत परेशान थे। इसलिए उनके चाचा भीम चोपड़ा ने नीरज को दौड़ने के लिए स्टेडियम लेकर जाना शुरू किया। एक बार स्टेडियम में कुछ बच्चे जेवलिन कर रहे थे। नीरज वहां खड़े होकर देखने लगे, तभी मैदान पर मौजूद कोच ने उनसे कहा कि आओ जेवलिन फेंको.. नीरज ने जेवलिन फेंका, तो वह काफी दूर जाकर गिरा। इसके बाद कोच ने उनसे रेगुलर ट्रेनिंग पर आने को कहा। कुछ दिनों तक नीरज ने पानीपत स्टेडियम में ट्रेनिंग की, फिर पंचकूला चले गए और वहां ट्रेनिंग करने लगे।
नीरज चोपड़ा एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाडले हैं। नीरज के बचपन में उनके परिवार की हालत ठीक नहीं थी। उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि नीरज को 1.5 लाख रुपये का जेवलिन दिला सकें। पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने दिन रात एक कर 7,000 रुपये जोड़े और उन्हें प्रैक्टिस के लिए जेवलिन लाकर दिया।
एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोई कोच नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वो यूट्यूब को ही अपना गुरु मानकर भाला फेंकने की बारीकियां सीखते थे। इसके बाद मैदान पर जाकर अभ्यास करते। वीडियो देखकर उन्होंने अपनी कई कमियों को दूर किया। यूट्यूब वीडियोज से टिप्स लेकर नीरज ने अपने खेल को बेहतर बनाया बल्कि आगे चलकर देश का नाम भी रौशन किया।
2016 में पोलैंड में हुए जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल अपनी झोली में डाला था। हालांकि, इसके बाद भी वह रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए थे। वर्ल्ड रिकॉर्ड के बाद सेना ने नीरज को जूनियर कमीशंड ऑफिसर की पोस्ट दोकर उन्हें नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया। उसके बाद मानो उन्होंने रफ्तार पकड़ ली। 2018 एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।

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