Political Analysis :उ. प्र. में कांग्रेस को वजूद साबित करना है!

UP Election
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Nov 2025 01:57 PM
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 विनय संकोची

उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए बाकी दलों की तरह कांग्रेस भी तैयारी कर रही है। यह चुनाव कांग्रेस के लिए अपने वजूद को साबित करने का एक अवसर है। चर्चा है कि कांग्रेस 350 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का मन बना रही है और वह किसी अन्य दल से गठबंधन भी नहीं करेगी। वैसे इसे यूं भी कह सकते हैं कि कांग्रेस से गठबंधन को कोई दल तैयार ही नहीं होगा तो कांग्रेस गठबंधन करेगी भी तो किससे?

चुनाव में वही दल आपस में हाथ मिलाते हैं जिन्हें एक दूसरे से किसी चुनावी फायदे की उम्मीद होती है। इस समय कांग्रेस से हाथ मिलाने में किसी दल की कोई रुचि दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है, कब कौन किस के पाले में आ खड़ा हो कहना असंभव है।

ऐसा कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकती हैं। कांग्रेस चाहती है कि उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी का पश्चिम बंगाल वाला हाल हो, लेकिन यह कैसे संभव होगा शायद इसका उत्तर अभी तो कांग्रेस के पास भी नहीं है। कांग्रेस में एक तबका ऐसा है जो कि चुनावी गठबंधन की वकालत कर रहा है। इस सोच वाले नेताओं का मानना है कि यदि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है, तो 2017 वाले प्रदर्शन को दोहराना भी मुश्किल होगा, जबकि अन्य अनेक नेता इस विचार से सहमत नहीं हैं।

प्रत्याशियों को लेकर मंथन की प्रक्रिया कांग्रेस में शुरू हो चुकी है। जो पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे, उन्हें लड़ाने की योजना भी बन रही है और कुछ नए युवा प्रत्याशियों का चयन भी किया जा रहा है। अनेक उम्मीदवारों से तो चुनावी तैयारी करने को कह भी दिया गया है। कांग्रेस इस तरह का सर्वे करा रही है कि 2012 और 2017 के चुनावों में उसके कौन-कौन और कितने प्रत्याशी बहुत कम अंतर से हारे थे, ताकि गठबंधन की स्थिति में उन्हीं सीटों पर दावेदारी पेश की जाए।

कांग्रेस के अंदर इस रणनीति पर भी जोर शोर से चर्चा चल रही है कि ज्यादा से ज्यादा या सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय पार्टी मजबूत सीटों पर फोकस करे और पूरी ताकत झोंक कर उन्हें जीते। वैसे कांग्रेस आज भी विपक्षी एकता की बात करती है, लेकिन 2017 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से कांग्रेस का अच्छा खासा नुकसान ही हुआ जिसको देखते हुए कांग्रेस के रणनीतिकार "एकला चलो" की नीति को महत्व दे रहे हैं। 2012 में कांग्रेस ने 355 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 28 सीटें जीती थीं और उसे 12% वोट मिले थे। 2017 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 7 सीटें ही जीत पाई और उसका वोट प्रतिशत केवल सवा छ: ही रहा। इन्हीं आंकड़ों को देखकर कांग्रेस के तमाम नेता नहीं चाहते कि पार्टी किसी दल से चुनावी गठबंधन करे।

इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि यदि पश्चिम बंगाल के बाद भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में पराजय का मुंह देखना पड़ा तो उसका लाभ कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिलेगा। इसके पीछे का गणित यह है कि इन सभी राज्यों में भाजपा से कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। एक कारण यह भी है जिसके चलते कांग्रेस के अनुभवी नेता चाहते हैं कि पार्टी उत्तर प्रदेश में ज्यादा सीटों के बदले चुनिंदा और जीतने वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति में सुधार होता है तो निश्चित रूप से भविष्य में होने वाले चुनावों में इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है।

कांग्रेस में करीब 50 नेताओं को प्रत्याशी घोषित करते हुए चुनावी तैयारी में जुट जाने को कहा है। चुनाव होने में अभी लगभग 6 माह का समय है पार्टी का मानना है कि प्रत्याशी को अच्छा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए 6 माह की अवधि पर्याप्त है। वैसे इन छह माह में तमाम समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे। सही स्थिति चुनाव से कुछ दिन पहले ही साफ हो पाएगी। तब तक अटकलों का दौर चलता रहेगा।

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Political News : नहीं होगी जातियों की गिनती केंद्र सरकार का इन्कार

Census
locationभारत
userचेतना मंच
calendar23 Nov 2025 01:40 PM
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राष्ट्रीय ब्यूरो। केंद्र सरकार ने बिहार यूपी सहित कई राज्यों के विभिन्न राजनीतिक दलों की जाति आधारित जनगणना कराने की मांग खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि देश की आबादी की जाति आधारित आंकड़े जुटाना और उसे सार्वजनिक करना व्यावहारिक नहीं है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों के उपनाम बेहद जटिल व उलझे हुए हैं। उनके उपनाम में इतने मामूली अंतर हैं कि यह समझ पाना बेहद कठिन हो जाता है कि कौन सा जातीय उपनाम किस वर्ग से आता है। साथ ही मंत्रालय ने यह साफ किया कि जो 2011 में जो सामाजिक आर्थिक आधार पर जनगणना कराई थी उसे अन्य पिछड़े वर्ग की जनगणना नहीं कहा जा सकता है। मंत्रालय ने कहाकि 2011 की सामाजिक आर्थिक जनगणना का मकसद केवल देश की आबादी के पिछड़ेपन का पता लगाना था। इसी सूची के आकलन करने के बाद पता चला कि सामाजिक आर्थिक आधार पर पिछडों की सूची में लाखों जातियां शामिल हैं। जबकि केंद्र और राज्यों की सूची में कुछ हजार जातियां ही शामिल हैं। मंत्रालय ने अपने इस शपथपत्र में साफ लिखा है कि 2022 में होने जा रही जनगणना में जातियों की गिनती किया जाना कतई संभव नहीं है। साथ ही यह नीतिगत विषय है और सुप्रीमकोर्ट को इस नीतिगत मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बतादें कि बिहार की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ ही यूपी में समाजवादी पार्टी सहित कई दल  जातिगत जनगणना कराने की पक्षधर है।

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Political Update : नवरात्र प्रतिपदा से जयंत करेंगे चुनाव प्रचार का आगाज

Jayant Chaudhary
locationभारत
userचेतना मंच
calendar20 Nov 2025 04:52 AM
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राष्ट्रीय ब्यूरो। किसान आंदोलन व पिता चौधरी अजीत सिंह की मौत की मिली सहानुभूमि के सहारे राष्ट्रीय लोकदल(रालोद) की अपनी खोई राजनीतिक जमीन को दुबारा हासिल करने में जुटे जयंत चौधरी आगामी नवरात्र (प्रतिपदा) से अपनी चुनावी सभाओं का आगाज करेंगे। वे पश्चिमी यूपी में 7 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच 23 दिनों के अंतराल में कुल 17 रैलियां को संबोधित लोगों का मिजाज जानने की का प्रयास करेंगे।बतादें कि 2013 के सांप्रदायिक दंगों के चलते पश्चिमी यूपी में जाट व मुसलमान दो अलग-अलग ध्रुव बन गए थे। जिसके चलते रालोद का परम्परागत मत बिखर गया।

पहले 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे भारी पराजय का सामना करना पड़ा। लोकसभा में तो उसका खाता तक नहीं खुल पाया। पिता-पुत्र अजीत सिंह व जयंत चौधरी दोनों चुनाव हार गए। लेकिन अब किसान आंदोलन व पिता अजीत सिंह की मौत के बाद उपजी सहानुभूति व समाजवादी पार्टी के साथ हुए चुनावी गठबंधन के बाद उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं। अगले साल फरवरी-मार्च में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए तकरीबन सभी राजनीतिक दलों ने  अपनी तैयारी शुरू कर दी है। जयंत भी प्रचार के लिए आगामी 7 अक्टूबर नवरात्र के पहले दिन हापुड़ से अपनी जनसभा का आगाज करेंगे और 30 अक्टूबर को बड़ौत में इस माह की आखिरी सभा करेंगे। वे जाट-मुसलमान जुगलबंदी के लिए ‘भाईचारा जिंदाबाद’ कार्यक्रम भी चला रहे हैं। पार्टी पश्चिमी यूपी में 40 से 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। जबकि चर्चा है कि सपा उन्हें फिलहाल दो दर्जन से ज्यादा सीटें छोड़ने के मूड में नहीं है।