हाल-ए-पंजाब : "चन्नी" के भरोसे कांग्रेस?

Charanjit singh channi
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 05:37 PM
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विनय संकोची

कांग्रेस ने पंजाब (Punjab)  में दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर मास्टर स्ट्रोक खेला है, जो उसे आने वाले चुनाव में फायदा पहुंचा सकता है। लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब पार्टी अपने कुछ जरूरत से ही ज्यादा नाराज नेताओं को मना ले। इस समय सुनील जाखड़ पूरी तरह से उखड़े हुए हैं और उन्हें मनाने के अब तक के प्रयास सफल नहीं हो पाए हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Cpt Amrinder Singh ) के त्यागपत्र के बाद भावी मुख्यमंत्रियों की सूची में सुनील जाखड़ सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी बाजी मार ले गए। सुनील जाखड़ का पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष पद भी नवजोत सिंह सिद्धू के खाते में चला गया सुनील जाखड़ खाली हाथ रह गए।

सुनील जाखड़ बेहद नाराज हैं और उनकी नाराजगी दूर करने के लिए राहुल और प्रियंका गांधी उन्हें शिमला से लौटते हुए अपने साथ विमान से दिल्ली ले आए, क्योंकि जाखड़ का पंजाब में रहकर बयान बाजी करना पार्टी के लिए अच्छा नहीं था। यह तो लगभग असंभव ही है कि अब "चन्नी" को हटाकर सुनील जाखड़ को मुख्यमंत्री बना दिया जाए। उप मुख्यमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव जाखड़ पहले ही ठुकरा चुके हैं।

सुनील जाखड़ की नाराजगी समाप्त करने के लिए पार्टी उन्हें कोई न कोई तो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अवश्य ही देगी और यह जिम्मेदारी चुनावी कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष की भी हो सकती है। हालांकि हरीश रावत ने कहा था कि पंजाब का चुनाव नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, बाद में कांग्रेस ने इस पर सफाई देते हुए कहा था कि अगला चुनाव सिद्धू और जाखड़ दोनो के ही नेतृत्व में होगा। चुनावी कैंपेन की कमान जाखड़ को दिए जाने के संभावित फैसले पर सिद्धू की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन फिलहाल सुनील जाखड़ की नाराजगी कांग्रेस के लिए सिरदर्द तो है ही। कांग्रेस किसी प्रभावशाली नेता की नाराजगी का जोखिम उठाना नहीं चाहेगी। सुनील जाखड़ पंजाब में कांग्रेस का जाट चेहरा हैं। भाजपा के खिलाफ जिस तरह जाटों के बीच नाराजगी है ऐसे में चुनावी नजरिए से कांग्रेस के लिए जाखड़ का खुश रहना बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदुओं और सिखों में भी उनकी स्वीकार्यता है। जाखड़ को अहम भूमिका देना कांग्रेस के लिए जरूरी भी है और उसकी मजबूरी भी।

मुख्यमंत्री के रूप में दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी का चयन करके वास्तव में कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। गत जुलाई में भारतीय जनता पार्टी ने 2022 के चुनावों में दलित मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा से मुद्दा ही छीन लिया। पंजाब में 32% दलित आबादी है और कुल 117 में से 34 सीटें रिजर्व हैं। उधर अकाली दल ने एक हिंदू और एक दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात जोरशोर से कही थी, कांग्रेस ने हिंदू नेता ओ. पी. सोनी और जाट सिख समुदाय से सुखजिंदर सिंह रंधावा को उपमुख्यमंत्री बनाकर उसे भी झटका दे दिया।

सरदार चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेसी ने विरोधियों के सामने एक नई और बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। देखना रोचक होगा कि विरोधी अब कौन सा तुरुप का पत्ता लाते हैं जिससे कांग्रेस को हराया जा सके। यदि कांग्रेस ने अपने नाराज नेताओं को साध लिया तो विरोधियों को रणनीति बनाने में मुश्किल तो निश्चित रूप से आएगी। साथ ही कांग्रेस को कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी अपने पक्ष में रखने की कोशिश निरंतर जारी रखनी होगी। कैप्टन सिद्धू से इतने नाराज हैं कि वह सिद्धू को हराने के लिए, उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। देखना होगा कि सिद्धू के खिलाफ कैप्टन द्वारा उठाया गया कोई कदम कांग्रेस के लिए मुसीबत न खड़ी कर दे।

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स्वास्थ्य मंत्रालय: दिव्यांग, बीमार लोगों को घर पर लगाई जाएगी वैक्सीन

Handicap Vaccine
locationभारत
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calendar23 Sep 2021 08:44 PM
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नई दिल्ली: देश में बहुत सारे लोग उम्र, बीमारी, विकलांगता आदि के चलते स्वास्थ्य केंद्रों पर वैक्सीन Vaccine लगवाने नहीं आ सकते हैं। इसको ध्यान में रखकर स्वास्थ्य मंत्रालय Health Ministry ने उन्हें घर पर ही टीका Vaccine लगाने की घोषणा की है। पीसी के दौरान नीति आयोग Niti Aayog के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वीके पॉल ने बताया कि जो लोग टीका केंद्र आने में सक्षम नहीं हैं, उनको घर पर ही वैक्सीन देने की पहल की जाएगी। इसके लिए कहीं पर भी आवेदन करने की जरुरत नहीं है। उन्होंने आगे बताया कि हमें विश्वास है कि हमारा टीका Vaccine लोगों के लिए सुरक्षित है और टीकों को घर तक ले जाने हेतू हम जो प्रणाली ला रहे हैं वो सुरक्षित, प्रभावी, पोषण और काफी सहायक है। इसमें एसओपी SOP का पूरी तरह से पालन किया जाएगा। इसके लिए आदेश जारी हुआ है जिसमें स्ठानीय टीम भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने जा रही है। देश में दोबारा बढ़ रहे कोरोना के मामले

वहीं देश में मामलों की बात करें तो कोरोना महामारी Pandemic का खतरा अभी तक टला नहीं है। भारत में पिछले 24 घंटों में देश में 31 हजार केस मिले हैं। इसमें ज्यादातर मामले केरल और महाराष्ट्र से आ रहे हैं। स्थिति की बात करें तो लगातार 12वें हफ्ते में साप्तहिक पॉजिटिविटी रेट Positivity Rate में गिरावट हुई है, जोकि 3 प्रतिशत से कम हो चुका है। वहीं देश में रिकवरी रेट 97.8 प्रतिशत हो गया है।

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क्या महंत नरेंद्र गिरि की मौत इस समस्या के समाधान का कारण बनेगी!

Mahant Narendra Giri death
Mahant Narendra Giri death case
locationभारत
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calendar30 Nov 2025 12:45 PM
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देश में औसतन हर वर्ष सवा लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या (NCRB के अनुसार 2019 में कुल आत्महत्या 1,39,123) करते हैं। महंत नरेंद्र गिरि की पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मौत दम घुटने से हुई है। हालांकि, फिलहाल यूपी पुलिस घटना की जांच कर रही है और राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है।

नरेंद्र गिरि एक धार्मिक संस्था की नेशनल लेवल बॉडी (अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद) के मुखिया थे। फिलहाल, उनकी मौत के पीछे संपत्ति के वि​वाद को बड़ी वजह माना जा रहा है। हालांकि, महंत नरेंद्र गिरि के कमरे से मिले सुसाइड नोट में आत्महत्या के लिए तीन लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया है। तीनों ही आरोपियों का संबंध धार्मिंक संस्थाओं से है।

आम जनता को सर्वोच्च सत्ता (ईश्वर) के प्रति आस्थावान बनाने का प्रयास करने वाले एक धार्मिक व्यक्ति का इस तरह से अंत, धर्म और धार्मिक संस्थाओं के प्रति हमारे नजरिए (सोच) को हिला देने वाला है।

आम आदमी की साधू-संतों, संन्यासियों या धर्मगुरुओं में कितनी आस्था होती है? कितने प्रतिशत लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास जाते हैं? उनमें से कितने लोगों को समाधान मिलता है? इस तरह का कोई सर्वे या डाटा उपलब्ध नहीं है। ऐसा करने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सकता।

यही वजह है कि धार्मिक संस्थाओं के पास कितनी संपत्ति है इसके सिर्फ कयास लगाए जा रहे हैं। किसी के पास कोई ठोस जानकारी नहीं है। धार्मिक संस्थाओं को दान देने वालों की गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है। तर्क यह है कि इससे दान देने वाले के मन में अहंकार नहीं पनपता।

हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई किसी भी धर्म या धार्मिक संस्था की गतिविधियों या कार्यों में किसी बाहरी व्यक्ति या संस्था के दखल को घोर अनुचित माना जाता है। सरकारें भी इन मामलें में दखल देने की हिमाकत नहीं करतीं।

हालांकि, धर्म के नाम पर बनी इन संस्थाओं के पास अकूत दौलत, संपत्ति और रसूख है। सांसारिकता या भौतिकता की जगह आध्यात्म को 'सर्वोच्च धन' मानने वाली इन संस्थाओं में पारदर्शिता की मांग करने वाले को अधार्मिक और धर्म विरोधी मान लिया जाता है। हालांकि, कहा जा रहा है कि नरेंद्र गिरि इस दिशा में कुछ करने की सोच रहे थे, ताकि मठों और अखाड़ों की संपत्ति से जुड़ी कोई ठोस नीति बनाई जा सके।

आमतौर पर दोषी या अपराधी को सजा दिलाने के बाद पुलिस, अदालतें और सरकारें अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। अपराध के कारणों को समझने का तब तक कोई प्रयास नहीं किया जाता जब तक कि निर्भया या शाह बानो जैसा कोई मामला नहीं हो जाता।

नरेंद्र गिरि की मौत के बाद धार्मिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली और उनसे जुड़ी प्रॉपर्टी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसे केवल किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं माना जाना चाहिए। धर्म से जुड़ी संस्थाओं को पारदर्शी बनाए जाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने का शायद यही सही समय है। बेहतर तो यह होता कि सभी धर्मों से जुड़ी धार्मिक संस्थाएं खुद आगे आकर सर्वसम्मति से इस बारे में कोई फैसला करतीं।

धर्म या आस्था व्यक्तिगत मामला है लेकिन, किसी भी समाज या व्यवस्था में धन-दौलत या प्रॉपर्टी निजी मामला नहीं हो सकता। हर व्यक्ति को अपनी गाढ़ी कमाई के बारे में सरकारों को बताना पड़ता है और टैक्स भी चुकाना पड़ता है, ताकि सरकारों और व्यवस्था के प्रति आम आदमी की आस्था बन रही। वैसे भी हर इंसान को अपने किए का हिसाब तो देना ही पड़ता है, चाहे यमराज के सामने या कयामत के दिन। इससे कोई भी बच नहीं सकता। तो धार्मिक संस्थाएं इससे अलग क्यों रहें।

- संजीव श्रीवास्तव