Religious News : श्राद्ध का वास्तविक स्वरूप

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locationभारत
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calendar01 Dec 2025 04:41 AM
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विष्णुमित्र वेदार्थी

श्रद्धावान् मनुष्य जानना चाहता है कि श्राद्ध किसे कहते हैं। इस जिज्ञासा पर शास्त्र के अनुसार विचार किया जाता है - श्रत्सत्यं दधाति यया क्रियया सा श्रद्धा श्रद्धया यत्कर्म क्रियते तच्छ्राद्धम् सत्य को श्रत् कहते हैं, उस श्रत् को जिस क्रिया से ग्रहण किया जाता है उस सत्य क्रिया का नाम श्रद्धा है । इस श्रद्धा की भावना से जो कर्म किया जाता है उस पवित्र कर्म का नाम श्राद्ध है । यह श्राद्ध कर्म विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। जब यह श्राद्ध पूजनीयगण पितर के प्रति करते हैं तब उसमें जन्मदाता माता पितादि ही हमारे श्रद्धेय नहीं होते अपितु अपनी-अपनी विशेषताओं से अन्य जीवित महापुरुषों को भी शास्त्रों में सोमसद, अग्निष्वात्त, बर्हिषद, सोमपा, हविर्भुज, आज्यपा, सुकालिन्, न्यायकारी, पिता, पितामह, माता, प्रपितामही आदि नामों से पुकारा गया है।

हम मनुष्यों के पांच नित्य कर्त्तव्य कर्मों में से एक कर्म पितृयज्ञ भी है। इस पितृयज्ञ के दो भाग होते हैं एक श्राद्ध व दूसरा तर्पण। जिस-जिस कर्म से तृप्त करते हैं उस-उस कर्म को तर्पण कहते हैं; अतः तृप्यन्ति तर्पयन्ति येन पितृन् तत्तर्पणम् जिस-जिस कर्म से माता पितादि पितर प्रसन्न हों उनको करना तर्पण है । ये श्राद्ध व तर्पण कर्म जीवितों के लिये विहित हैं मृतकों के लिये नहीं । श्रद्धा से जीवित माता पितादि का उत्तम अन्न, वस्त्र, सुन्दर यान आदि पदार्थों को देकर जिस-जिस कर्म से उनका आत्मा तृप्त और शरीर स्वस्थ रहे उस-उस कर्म से प्रीतिपूर्वक सेवा करनी श्राद्ध और तर्पण कहलाता है । इसके विपरीत जो पोप जी के बहकाने में आकर वर्ष के एक आश्विन मास में मृतक पूर्वजों के श्राद्ध के नाम पर पोप जी व कौओं आदि को भोजन खिलाया जाता है व दान किया जाता है वह सर्वथा अनुचित व अशास्त्रीय है। देखो - पितर नाम मृतकों का नहीं होता अपितु जीवितों का है । जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि में ही आहुति लगती है बुझने पर नहीं उसी प्रकार जीवितों को ही श्राद्ध तर्पण रूप हमारी सेवायें प्राप्त हो सकतीं हैं मृतकों को नहीं । तनिक बुद्धि का उपयोग कर विचार करें कि तथाकथित श्राद्धों में किसी अन्य मनुष्य को खिलाया हुआ मृतकों को कैसे पहुँच सकता है ? श्राद्ध करने वाले मनुष्य के पूर्वज पितर ने अब किस योनि में जन्म पाया है इसके जाने विना उन्हें वहां भोजन कैसे पहुंचाया जा सकता है ? यदि इस प्रकार ही भोजन पहुंचने लगे तो यात्रा पर जाते समय यात्री के लिये भोजन की व्यवस्था ही क्यों की जाये, तब तो पोप जी को खिलाने से ही यात्री का पेट भर जाया करे । अतः सत्य सनातन वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार के लिये अन्धविश्वासों से बचो और सत्य को धारण करो । यदि कोई यह कहे कि अजी! इसी बहाने काक आदि पक्षियों व ब्राह्मणों को भोजन करा दिया जाता है तो उन बन्धुओं को समझाओ कि इन गलत बहानों से सच्चा ब्राह्मण तुम्हारा भोजन कभी ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि अविद्या का नाश व विद्या की वृद्धि करना उसका कर्त्तव्य होता है। इस कर्त्तव्य से बन्धा हुआ वह ब्राह्मण धर्म विरुद्ध परम्पराओं को बढ़ाने में कभी सहयोगी नहीं बनता। इसलिये यदि भोजन कराना है तो अवश्य कराइये और वर्ष के एक महीने के कुछ ही दिनों के भीतर नहीं अपितु प्रतिदिन कराइये । किन्तु यह भोजन अन्धविश्वास से पृथक् होकर वैदिक नित्य कर्त्तव्य के बहाने से बलिवैश्वदेव यज्ञ व अतिथि यज्ञ के रूप में होना चाहिये । भोजन बनाकर खाने से पहले परमात्मा की प्रजा पशु पक्षी आदि प्राणियों को खिलाना बलिवैश्वदेव यज्ञ है और धार्मिक व विद्वान् महापुरुषों को खिलाना व उनसे सदुपदेश ग्रहण करना अतिथि यज्ञ है; इन्हें करने से महान् पुण्य परमात्मा का प्रसाद प्राप्त होता है यह सुनिश्चित जानो और अन्यथा करने से अन्धविश्वास बढ़कर अन्धपरम्परायें चलने से बहुत बड़ी हानि होती है। अतः पोप जी के ऐसे पाखण्डों से बच कर प्रतिदिन जीवित पितरों की सेवा करते हुए ऋषियों के द्वारा निर्दिष्ट पितृयज्ञ करना चाहिये। यही वैदिक धर्म का वास्तविक श्राद्ध है।।

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श्रद्धावान् मनुष्य जानना चाहता है कि श्राद्ध किसे कहते हैं। इस जिज्ञासा पर शास्त्र के अनुसार विचार किया जाता है - श्रत्सत्यं दधाति यया क्रियया सा श्रद्धा श्रद्धया यत्कर्म क्रियते तच्छ्राद्धम् सत्य को श्रत् कहते हैं, उस श्रत् को जिस क्रिया से ग्रहण किया जाता है उस सत्य क्रिया का नाम श्रद्धा है । इस श्रद्धा की भावना से जो कर्म किया जाता है उस पवित्र कर्म का नाम श्राद्ध है । यह श्राद्ध कर्म विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। जब यह श्राद्ध पूजनीयगण पितर के प्रति करते हैं तब उसमें जन्मदाता माता पितादि ही हमारे श्रद्धेय नहीं होते अपितु अपनी-अपनी विशेषताओं से अन्य जीवित महापुरुषों को भी शास्त्रों में सोमसद, अग्निष्वात्त, बर्हिषद, सोमपा, हविर्भुज, आज्यपा, सुकालिन्, न्यायकारी, पिता, पितामह, माता, प्रपितामही आदि नामों से पुकारा गया है।

हम मनुष्यों के पांच नित्य कर्त्तव्य कर्मों में से एक कर्म पितृयज्ञ भी है। इस पितृयज्ञ के दो भाग होते हैं एक श्राद्ध व दूसरा तर्पण। जिस-जिस कर्म से तृप्त करते हैं उस-उस कर्म को तर्पण कहते हैं; अतः तृप्यन्ति तर्पयन्ति येन पितृन् तत्तर्पणम् जिस-जिस कर्म से माता पितादि पितर प्रसन्न हों उनको करना तर्पण है । ये श्राद्ध व तर्पण कर्म जीवितों के लिये विहित हैं मृतकों के लिये नहीं । श्रद्धा से जीवित माता पितादि का उत्तम अन्न, वस्त्र, सुन्दर यान आदि पदार्थों को देकर जिस-जिस कर्म से उनका आत्मा तृप्त और शरीर स्वस्थ रहे उस-उस कर्म से प्रीतिपूर्वक सेवा करनी श्राद्ध और तर्पण कहलाता है । इसके विपरीत जो पोप जी के बहकाने में आकर वर्ष के एक आश्विन मास में मृतक पूर्वजों के श्राद्ध के नाम पर पोप जी व कौओं आदि को भोजन खिलाया जाता है व दान किया जाता है वह सर्वथा अनुचित व अशास्त्रीय है। देखो - पितर नाम मृतकों का नहीं होता अपितु जीवितों का है । जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि में ही आहुति लगती है बुझने पर नहीं उसी प्रकार जीवितों को ही श्राद्ध तर्पण रूप हमारी सेवायें प्राप्त हो सकतीं हैं मृतकों को नहीं । तनिक बुद्धि का उपयोग कर विचार करें कि तथाकथित श्राद्धों में किसी अन्य मनुष्य को खिलाया हुआ मृतकों को कैसे पहुँच सकता है ? श्राद्ध करने वाले मनुष्य के पूर्वज पितर ने अब किस योनि में जन्म पाया है इसके जाने विना उन्हें वहां भोजन कैसे पहुंचाया जा सकता है ? यदि इस प्रकार ही भोजन पहुंचने लगे तो यात्रा पर जाते समय यात्री के लिये भोजन की व्यवस्था ही क्यों की जाये, तब तो पोप जी को खिलाने से ही यात्री का पेट भर जाया करे । अतः सत्य सनातन वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार के लिये अन्धविश्वासों से बचो और सत्य को धारण करो । यदि कोई यह कहे कि अजी! इसी बहाने काक आदि पक्षियों व ब्राह्मणों को भोजन करा दिया जाता है तो उन बन्धुओं को समझाओ कि इन गलत बहानों से सच्चा ब्राह्मण तुम्हारा भोजन कभी ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि अविद्या का नाश व विद्या की वृद्धि करना उसका कर्त्तव्य होता है। इस कर्त्तव्य से बन्धा हुआ वह ब्राह्मण धर्म विरुद्ध परम्पराओं को बढ़ाने में कभी सहयोगी नहीं बनता। इसलिये यदि भोजन कराना है तो अवश्य कराइये और वर्ष के एक महीने के कुछ ही दिनों के भीतर नहीं अपितु प्रतिदिन कराइये । किन्तु यह भोजन अन्धविश्वास से पृथक् होकर वैदिक नित्य कर्त्तव्य के बहाने से बलिवैश्वदेव यज्ञ व अतिथि यज्ञ के रूप में होना चाहिये । भोजन बनाकर खाने से पहले परमात्मा की प्रजा पशु पक्षी आदि प्राणियों को खिलाना बलिवैश्वदेव यज्ञ है और धार्मिक व विद्वान् महापुरुषों को खिलाना व उनसे सदुपदेश ग्रहण करना अतिथि यज्ञ है; इन्हें करने से महान् पुण्य परमात्मा का प्रसाद प्राप्त होता है यह सुनिश्चित जानो और अन्यथा करने से अन्धविश्वास बढ़कर अन्धपरम्परायें चलने से बहुत बड़ी हानि होती है। अतः पोप जी के ऐसे पाखण्डों से बच कर प्रतिदिन जीवित पितरों की सेवा करते हुए ऋषियों के द्वारा निर्दिष्ट पितृयज्ञ करना चाहिये। यही वैदिक धर्म का वास्तविक श्राद्ध है।।

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क्या आपके वैवाहिक जीवन में हो रहा है क्लेश, यहां जानिए कारण और उपाय

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UP News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:25 AM
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कहा जाता है कि अगर वैवाहिक जीवन married life अच्छा हो तो जीवन स्वर्ग बनने लगता है और अगर इसमें खराबी आ जाती है तो जिंदगी नर्क से भी बदतर हो जाती है। पति - पत्नी के बीच में कभी-कभी बिना किसी कारण से भी क्लेश होते हैं तो इतनी मुश्किलें बढ़ जाती है, जिससे घर में हमेशा कलेश का माहौल बना रहता है। क्या कारण हो सकता है कि उनके बीच में इतना तनाव बढ़ जाता है। और इससे कैसे निकला जा सकता है? क्या कारण है कि कलेश का और किन ग्रहों के कारण रिश्तों में दरार आ रही है?

सुखी वैवाहिक जीवन happy married life के लिए क्या-क्या उपाय करना चाहिए? अगर कुंडली में अग्नि तत्व की मात्रा ज्यादा हो जाए पति या पत्नी की कुंडली में, जो अग्नि का इलाका है जो नौंवा, दसवां और ग्यारहवां भाव है, जिसे अग्नि का भाव कहते हैं। अगर यहां पर अग्नि तत्व की मात्रा ज्यादा हो जाए तो पति पत्नी के बीच कलेश बढ़ता है। अग्नि तत्व का मजबूत होना पति पत्नी के बीच में बहस कराने के लिए पर्याप्त होता है। शुक्र और बृहस्पति यह दोनों ग्रह वैवाहिक जीवन में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं।

अगर शुक्र या बृहस्पति कोई भी कमजोर हो जाता है कुंडली में, तो पति पत्नी के बीच में कलेश होता है। अगर जन्मकुंडली में शुक्र अशुभ स्थिति में है, जिसके कारण आपको न जाने कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हर काम में आपको असफलता का सामना करना पड़ता है। शुक्र के प्रभाव से जाने कितनी बीमारियों का भी सामना करना पड़ जाता है। जिससे आपके जीवन में हमेशा निराशा बनी रहती है। जिसके लिए आप नए-नए उपाय करते हैं कि आपका ग्रह सही हो जाए। शुक्र के कारण आपके जीवन में उतार-चढ़ाव आ रहे हैं तो आप कुछ ऐसे उपाय करें, जिससे आपके जीवन में सफलता मिले और साथ ही आपकी व्यवहारी जीवन में खुशहाली शांति प्रेम बना रहेगा।

अपने जीवनसाथी को कष्ट देने, फटे पुराने कपड़े पहनने, घर में गंदगी रखने से शुक्र अशुभ फल देते हैं। शुक्र ग्रह के दोष से बचने के लिए शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर साफ सफाई करके स्नान करके मां लक्ष्मी की आराधना करें और उसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें "ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा", 108 बार जाप करने से आपको फायदा अवश्य मिलेगा। शुक्र दोष से निजात पाने के लिए भगवान शिव की आराधना भी करनी चाहिए। हर शुक्रवार शिवलिंग पर जल और दूध से अभिषेक करें। साथ ही "ॐ नमः शिवाय" का जाप 108 बार रुद्राक्ष की माला से भी करनी चाहिए।

शुक्रवार के दिन सुहाग की चीजें जैसे काजल, चूड़ी, मेहंदी, बिंदी व श्रृंगार का सामान आदि का दान करने से आपके वैवाहिक जीवन में खुशहाली आएगी। जीवन में शांति मिलेगा। धन - धान्य से घर भरा रहेगा। गरीबों को भोजन कराने से आपके आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। शुक्र अगर बिगड़ जाए तो वैवाहिक जीवन निश्चित रूप से बिगड़ जाता है। कभी-कभी तो बात मुकदमे तक आ जाती है। मुकदमा की शुरुआत मंगल या केतु से होती है। शुक्र बृहस्पति गड़बड़ हो और उन्हें मंगल या केतु का साथ मिल जाए तो, निश्चित रूप से वैवाहिक जीवन में दिक्कत आनी शुरू हो जाती है। क्योंकि मंगल या केतु मामले को और ज्यादा उग्र बना देते हैं जिससे मुकदमेंबाजी शुरू हो जाती है। छोटी-छोटी बातों से मामले बहुत बढ़ जाता हैं।

कुंडली का अष्टम भाव को जो पति-पत्नी के आपसी संबंधों का खाना है। अगर वहां पाप ग्रह हो जैसे राहु, चंद्रमा, केतु तो भी पति पत्नी के बीच में बेवजह के झगड़े होते हैं। कभी-कभी यह भी होता है कि शयन कक्ष का रंग ठीक ना होने से भी झगड़ा बढ़ता है। उनके बीच तालमेल बैठाने में समस्या होती है। अगर शयनकक्ष में गड़बड़ी हो आप जैसे - आपके शयनकक्ष में देवी देवताओं की फोटो लगा रखी हो या ईशान कोण में गड़बड़ी हो यानी पूरब उत्तर के घर के कोने में गड़बड़ी हो, ऐसी दशा में भी बहुत बार झगड़े बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है।

जानिए इससे बचने के लिए क्या उपाय करें। पति को शुक्र के वैदिक मंत्र का जाप करना चाहिए। " ॐ शुं शुक्राय नम:"108 बार जाप करने से लाभ मिलेगा। पत्नी बृहस्पति के मंत्र का जाप करें । "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" का 108 बार जाप करें। अपने शयनकक्ष में गुलाबी, धानी, क्रीम या सफेद रंग का प्रयोग करें। बहुत अच्छा होगा। साथ में पति पत्नी का चित्र पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाएं और साफ-सफाई घर में बनाए रखें। ऐसा करने से दोनों में संबंध मजबूत होते हैं। और पति पत्नी को शुक्रवार को एक साथ सफेद मीठी चीज खानी चाहिए। घर के आगे या मध्य में तुलसी का पौधा लगाएं। इससे घर की शांति बनी रहती है।

श्री ज्योतिष सेवा संस्थान भीलवाड़ा(राजस्थान)