भारत में टीकाकरण की गति हुई धीमी, ये हैं वजहें

Vaccination in India
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 12:27 PM
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भारत जल्द ही कोरोना वैक्सीन की 100 करोड़ डोज़ के आंकड़े को पार करने वाला है। कम ही लोग जानते हैं कि इस नंबर के पीछे कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो चिंताजनक हैं। भारत ने इसी साल जनवरी में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू की लेकिन, वैक्सीन उत्पादन की पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण शुरुआत बेहद धीमी रही। हालांकि, दूसरी लहर के बाद सरकार की आंख खुली और इस दिशा में गंभीर प्रयास किए गए। पिछले तीन महीने में सबसे धीमी ​रफ्तार जुलाई तक भारत में रोजाना करीब 50 लाख डोज का उत्पादन होने लगा। इसका असर वैक्सीनेशन ड्राइव पर भी दिखा। 27 अगस्त को एक दिन में ही एक करोड़ से ज्यादा टीके लगाने का रिकॉर्ड बनाया गया और अगले ही महीने यानी, 17 सितंबर को एक दिन में 2.5 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए गए। इन आंकड़ों के साथ ही पिछले तीन महीनों में कोरोना के मामलों में तेजी से कमी देखी गई। अक्टूबर में भारत में कुल एक्टिव केस की संख्या दो लाख से नीचे (1,780,98) पहुंच गई। यह मार्च 2020 के बाद सबसे कम है। टीके का उत्पादन बढ़ा, टीककरण घटा कहने को सारे आंकड़े उम्मीद बंधाने वाले हैं लेकिन, अक्टूबर के आंकड़े अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। अक्टूबर खत्म होने में दस दिन ही बचे हैं। इस महीने अब तक लगभग 54 लाख टीके ही लगाए गए हैं। जबकि, अक्टूबर में रोजाना करीब एक करोड़ टीकों का निर्माण हो रहा है। वहीं, जुलाई में केवल 50 लाख टीकों का निर्माण हो रहा था। चार महीनों में टीकाकरण की गति से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वर्तमान हालात कैसे हैं। जुलाई में कुल 43.30 लाख टीके लगाए गए जबकि, अगस्त 69.29 लाख और सितंबर में 78.69 लाख टीके लगाए गए। अक्टूबर में 20 दिन बीत जाने के बाद भी महज 54 लाख टीके ही लगाए गए हैं। यानी, हम अगस्त के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाए हैं। टीकाकरण की धीमी गति के लिए जिम्मेदार 3 चीजें यह आंकड़ा तब है जब भारत में टीकों की रोज़ाना उपलब्धता एक करोड़ को पार कर चुकी है। इसके बावजूद टीकाकरण की गति पिछले तीन महीनों में सबसे धीमी है। टीकाकरण की गति में अचानक आई इस गिरावट के लिए तीन चीजों को जिम्मेदार बताया जा रहा है... 1. देश में बड़ी संख्या में लोगों ने कोविशील्ड का टीका लगवाया है जिसकी दूसरी डोज़ 12 से 16 हफ्ते बाद लगती है। ऐसे में पहली और दूसरी डोज़ के बीच गैप ज्यादा होने की वजह से टीकाकरण की गति का थोड़ा कम होना स्वाभाविक है। 2. अभी भी देश की लगभग तीस ​फीसदी आबादी (18 से 44 वर्ष) को पहली डोज़ ही नहीं लग पाई है। ऐसे में कोविशील्ड एक मात्र वजह नहीं है। अक्टूबर-नवंबर त्योहारी सीजन हैं और लोग अपनी छुट्टियां टीका लगवाने और उसके बाद बीमार होकर ज़ाया नहीं करना चाहते। आमतौर पर टीका लगवाने के दो से तीन दिन तक बुखार या कमजोरी महसूस होती है। 3. कोरोना के मामलों में लगातार आ रही कमी को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है क्योंकि, इससे महामारी के प्रति लोगों का डर कम होता है। पिछले एक महीने से कोरोना में मामलों में लगातार गिरावट और आर वैल्यू (R value) का एक से भी नीचे (0.90) जाना लोगों में टीके के प्रति ढीलाई की एक बड़ी वजह है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र और केरल हैं जहां पिछले दिनों तेजी से टीकाकरण हुआ क्योंकि, देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहां कोरोना के मामले बढ़ रहे थे। आर वैल्यू का एक से नीचे होना बताता है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति एक से भी कम व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं। पहला, टीकाकरण और दूसरी, हर्ड इम्यूनिटी यानी, कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में अपने आप प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाना। धीमी रफ्तार से बढ़ता है दोहरा खतरा! इसी हफ्ते स्वास्थ्य मंत्रालय की मीटिंग में राज्यों को टीकाकरण की गति को तेज करने के निर्देश दिए गए हैं क्योंकि, सरकार वैक्सीनेशन की धीमी गति से होने वाले नुकसान को जानती है। टीकाकरण नए लोगों के संक्रमित होने और कोरोना के नए वैरिएंट को पनपने से रोकने का एक मात्र रास्ता है। नया वैरिएंट दोहरा खतरा पैदा करता है। एक ओर यह नए लोगों को तेजी से संक्रकित करता है वहीं, इससे टीका लगवाए लोगों के भी संक्रमित होने का खतरा बढ़ता है। टीके की उपलब्धता या टीकाकरण सेंटर की कमी के लिए सरकार को दोष दिया जा सकता है, लेकिन टीका लगवाने के लिए लोगों को खुद ही सेंटर तक जाना होगा। फिलहाल, लोगों में टीके के प्रति ढिलाई या लापरवाही का रवैया बढ़ रहा है। आमतौर पर ऐसा उन सभी देशों में देखा गया है जहां कोरोना के मामलों में कमी आने लगती है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार टीकाकरण की गति को बढ़ाने के लिए नए सिरे से प्रयास करे ताकि, देश को तीसरी लहर के खतरे से बचाया जा सके। - संजीव श्रीवास्तव
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Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda
locationभारत
userचेतना मंच
calendar20 Oct 2021 05:25 AM
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Sanskrit : आ यद्वां सूर्या रथं तिष्ठद्रघुष्यदं सदा। परि वामरुषा वयो घृणा वरन्त आतपः॥ ऋग्वेद ५-७३-५॥

Hindi: हे शिक्षकों और उपदेशकों! आप पक्षपात और ईर्ष्या से मुक्त हो। आप हिंसा और अन्याय के संहारक हों। हमें अपना आध्यात्मिक वैभव, ऊर्जा, सुरक्षा और ज्ञान आदि गुण प्रदान करें, जिन्हें हम अपने आचरण और जीवन में अपनाएं। हम आपके सच्चे मित्र हो जाएं। (ऋग्वेद ५-७०-२) #vedgsawana

English : O teachers and preachers! Free from partiality and jealousy, you are the destroyers of violence and injustice. We pray to you to endow us with spiritual splendour, energy, protection and wisdom of yours so that we adopt those qualities in our conduct and life. Make us your true friend. (Rig Veda 5-70-2) #vedgsawana

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महिलाओं को 40% टिकट देने के पीछे कांग्रेस की है यह मजबूरी!

Congress gender quota for UP
Congress gender quota for UP
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:44 AM
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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 40% टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर सबको चौंका दिया है। रामायण के युद्ध में मेघनाथ के वाण से लक्ष्मण मरणासन्न हो गए थे, तब हनुमान ने संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राण बचाए थे। तो क्या प्रियंका गांधी की यह घोषणा कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होगी?

कांग्रेस के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह यूपी में कांग्रेस लगभग मरणासन्न है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी को यूपी में क्रमश: एक और सात सीटें मिली थी। मंडल की राजनीति के बाद यूपी में जाति ही चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गई। इससे सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ।

दलित और अति-पिछड़ी जातियां बहुजन समाज पार्टी को वोट देने लगीं जबकि, अन्य पिछड़ी जातियों सहित मुसलमानों का वोट समाजवादी पार्टी को मिलने लगा। सवर्णों के वोट कांग्रेस और बीजेपी में बंट गए। राम मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस का बचाखुचा जनाधार भी भारतीय जनता पार्टी की ओर खिसकने लगा। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से कांग्रेस यूपी में सम्मानजनक विपक्ष का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रही है।

क्यों कांग्रेस ने पकड़ा महिलाओं का हाथ कांग्रेस जानती है कि जाति या धर्म को मुद्दा बनाकर खोई हुई जमीन वापस नहीं पा सकती। किसान आंदोलन से पार्टी को कुछ आस बंधी थी, लेकिन लखीमपुर खीरी की घटना के बावजूद यूपी के छोटे किसानों का आंदोलन में शामिल न होना पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन गया।

कांग्रेस के लिए यह साबित करना मुश्किल हो गया है कि आखिर वह किसके पक्ष में खड़ी है। दलित-पिछड़े, बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक में से कोई भी वर्ग अब कांग्रेस का वोट बैंक नहीं रहा। कांग्रेस एक ऐसे वर्ग की तलाश में है जो दलित-पिछड़े, बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक सब में मौजूद हो। किसान ऐसा ही वर्ग है जिसके कंधे पर सवार हो वह यूपी, पंजाब और उत्तराखंड के चुनाव में अपनी जमीन को मजबूत बनाना चाहती है। किसान आंदोलन से कांग्रेस को पंजाब में तो फायदा मिल सकता है, लेकिन यूपी और उत्तराखंड में इसका कोई खास असर नहीं है।

यही वजह है कि कांग्रेस ने महिलाओं को अपने पक्ष में करने के लिए 40% टिकट का दांव खेला है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी ही यूपी में कांग्रेस का चेहरा थीं लेकिन, तब कांग्रेस ने केवल 11 महिलाओं को टिकट दिया था। जबकि, सपा ने 33 और बसपा ने 19 महिलाओं को चुनाव में खड़ा किया था। बीजेपी ने 43 महिलाओं को टिकट दिया था। यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद कुल 38 महिलाएं एमएलए बनीं जिनमें से 32 बीजेपी से थीं।

इन 10% वोटों पर है कांग्रेस की नजर यूपी में 14 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं जिनमें लगभग 6.5 करोड़ महिला वोटर हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6.25%, बसपा को 22.23% और सपा को 21.82% वोट मिले थे, जबकि बीजेपी 39.67% वोट पाकर सरकार बनाने में सफल हुई थी। यानी, यूपी का 90% वोटर इन चार पार्टियों के बीच बंटा हुआ है। महिलाओं को टिकट देने से अगर कांग्रेस के वोट बैंक में 10 फीसदी की भी बढ़त होती है, तो इससे बीजेपी को पूर्ण बहुमत पाने से रोका जा सकता है।

कांग्रेस का लक्ष्य बीजेपी के 2017 के प्रदर्शन को दोहराने से रोकना है। यूपी विधानसभा 2022 के चुनाव परिणाम, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का लिटमस टेस्ट होंगे। लखीमपुर खीरी में प्रियंका की उपस्थिति और महिलाओं को 40% टिकट देने से अगर कांग्रेस को फायदा होता है, तो इससे एक बार फिर पार्टी पर गांधी परिवार का बर्चस्व स्थापित हो जाएगा।

- संजीव श्रीवास्तव