Tuesday, 3 December 2024

मात्र 10 साल की उम्र में अपना पहला युद्ध लड़ने वाले महाराजा रणजीत सिंह कैसे बने महाराजा

महाराजा रणजीत सिंह अपने न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए भी जाने जाते थे। वे अपने दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों को बड़े से बड़े पद दिया करते थे।

मात्र 10 साल की उम्र में अपना पहला युद्ध लड़ने वाले  महाराजा रणजीत सिंह कैसे बने महाराजा

Story of Maharaja Ranjit Singh: रणजीत सिंह सिख साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम महाराजा थे। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 को गुजरांवाला में हुआ था जो अब हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान में है। वह महा सिंह के पुत्र थे, जो सुकरचकिया मिसल के प्रमुख थे। युद्ध के कौशल और उसका कैसे नेतृत्व करना चाहिए इसकी सीख वे अपने पिता से लिए थे।

बता दें कि रणजीत सिंह एक कुशल शासक और योद्धा थे। वे अपने न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए भी जाने जाते थे। ऐसे में आज के इस लेख में हम महाराजा रणजीत सिंह और उनके कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

महाराजा रणजीत सिंह के महत्वपूर्ण उपलब्धियां

सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह बचपन से ही अपने पिता से जंग के बारे में जानकारी लेते थे। उन्होंने अपनी पहली लड़ाई 10 साल की उम्र में लड़ी है। इसके बाद जब वे 17 साल के थे तो उन्होंने अफगानिस्तान के राजा ज़मान शाह दुर्रानी को भी रोका था ताकि वे भारत आक्रमण न कर सके।

जब रणजीत सिंह 20 साल के हो गए थे तो वे महाराजा का ताज पहने थे। महाराजा रणजीत सिंह को एक कुशल शासक और योद्धा के रूप में जाना जाता है जिन्होंने एक मजबूत सेना का बुनियाद डाला था और काफी दूर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।

यही कारण था कि वे लाहौर और मुल्तान के पूर्व मुगल प्रांतों के अलावा काबुल का कुछ हिस्सा और पूरा पेशावर उनके साम्राज्य के अंतरगत आता था। रणजीत सिंह के साम्राज्य की सीमाएं लद्दाख तक जाती थीं।

अमृतसर के हरिमंदिर साहिब को सोने में मढ़कर बनाया स्वर्ण मंदिर

महाराजा रणजीत सिंह एक और बात के लिए काफी फेमस है। अपने राज के दौरान उन्होंने अमृतसर के हरिमंदिर साहिब को सोने में मढ़कर उसे स्वर्ण मंदिर बना दिया था। यह वही स्वर्ण मंदिर है जिसे गोल्डेन टेंपल के नाम से भी जाना जाता है।

यहां हर रोज लाखों सिख आते है और अपनी आस्था को प्रकट करते हैं। यह सिक्ख धर्म में सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक स्थलों में से एक माना जाता है।

सिख साम्राज्य के संस्थापक को न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में भी जाने जाता है। वे एक ऐसे महाराज थे जो अपने दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों को ऊंचा से ऊंचा पद दिया करते थे। उनकी मृत्यु 27 जून 1839 को लाहौर में हुई थी। उन्हें भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है।

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