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क्या योगी के कैबिनेट मंत्री का सपा में जाना यूपी में हो रहे इस बदलाव का संकेत है!

Swami Prasad Maurya joined SP

Swami Prasad Maurya joined SP

यूपी में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के कैबिनेट मिनिस्टर स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के इस्तीफे के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। इस मामले ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में कुछ ऐसे पहलू जोड़ दिए हैं जिसने यूपी की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ ला दिया है।

2017 के चुनाव से अखिलेश को मिला यह सबक
इसमें सबसे दिलचस्प मोड़ समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का मजबूत दावेदार बन कर उभरना है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) और कांग्रेस (Congress) ने मिलकर बीजेपी (BJP) के खिलाफ कैंपेन किया था।

भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने तीनों दलों के इस गठबंधन को ही अपना हथियार बना लिया और नतीजा बीजेपी (BJP) के पक्ष में रहा। बीजेपी को न सिर्फ 300 से ज्याादा सीटें मिलीं बल्कि, 39.67% वोट भी मिले। बीजेपी के मुकाबले सपा (21.82%) और बसपा (22.23%) को मिलाकर करीब 44% वोट मिले थे।

हार से सबक लेते हुए इस बार तीनों दलों ने शुरू से ही एक-दूसरे से दूरी बना रखी है। इसका सबसे ज्यादा फायदा समाजवादी पार्टी और इसके मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को होता दिख रहा है। यही वजह है कि 2017 से अलग, इस बार यूपी में मुख्य मुकाबला दो पक्षीय (बीजेपी बनाम सपा) होता दिख रहा है।

मायावती की इस रणनीति का अखिलेश को होगा लाभ!
ऐसे में कांग्रेस का नुकसान तो तय है लेकिन, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की बढ़ती लोकप्रियता से सबसे ज्यादा नुकसान मायावती को हो सकता है। यह अलग बात है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती को समाजवादी पार्टी से ज्यादा वोट मिले थे।

फिलहाल, बसपा (BSP) के नुकसान की सबसे बड़ी वजह खुद मायावती (Mayawati) हैं जो 2017 के विधानसभा चुनाव (UP Election) के बाद से लगभग निष्क्रीय हैं। चुनाव की घोषणा के बाद भी सार्वजनिक मंचों पर उनका खुलकर न आना पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। 2007 में सत्ता में आने के बावजूद बसपा को करीब 30% वोट मिले थे लेकिन, तब से पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है। पार्टी को 2012 में लगभग 25% और 2017 में 22% के करीब वोट मिले थे।

अखिलेश ने सुधारी अपनी दो गलतियां
पिछले चुनाव (2017) में समाजवादी पार्टी (SP) अंदरूनी कलह का शिकार हुई और बसपा-कांग्रेस से हाथ मिलाने के चलते भी पार्टी को नुकसान हुआ। हालांकि, सपा मुखिया अखिलेश यादव ने समय रहते अपनी गलतियों को सुधारने का भी पूरा प्रयास किया है। उन्होंने न सिर्फ अपने नाराज चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) को अपने पक्ष में कर लिया बल्कि, अन्य पिछड़ा वर्ग के गैर-यादव जातियों को अपने खेमे में लाने के लिए भी पूरा प्रयास कर रहे हैं।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, अपना दल (कृष्णा पटेल), राष्ट्रीय लोक दल और अब स्वामी प्रसाद मौर्य का समाजवादी पार्टी से जुड़ना अखिलेश की इसी रणनीति का हिस्सा है। यूपी में चुनाव की तैयारी में भी अखिलेश ने बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है। चुनाव की घोषणा से बहुत पहले, अखिलेश न सिर्फ अन्य छोटे दलों से गठबंधन करने में लगे हुए थे बल्कि, लगातार रोड शो करते रहे ताकि, समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा सके।

यूपी के बड़े दलों की गणित बिगाड़ रहे दो बाहरी दल
यूपी चुनाव (UP Election 2022) को दिलचस्प बनाने में एआईएमआईएम (All India Majlis‑e‑Ittehadul Muslimeen) नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का भी बड़ा हाथ है। जिस तरह पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के आने से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी हैं, वैसे ही यूपी में ओवैसी के आने से समाजवादी पार्टी की चिंता बढ़ी है।

ओवैसी भले ही कोई बड़ा उलटफेर न कर पाएं लेकिन, अगर वह कुछ हजार वोटों को भी प्रभावित करते हैं तो, इससे समाजवादी पार्टी की परेशानी बढ़ सकती है। इसी तरह आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी यूपी में अपना हाथ आजमा रहे हैं। ओवैसी की तरह आम आदमी पार्टी, पश्चिमी यूपी के एनसीआर वाले हिस्से में वोट-कटवा साबित हो सकती है।

इस तरह, दो बड़ी पार्टियां (बीजेपी, सपा) और दो कमजोर विपक्षी पार्टियों (बसपा, कांग्रेस) सहित दो वोट-कटवा पार्टियां (आप, एआईएमआईएम) यूपी में ऐसा कॉम्बिनेशन बना रही हैं जिसमें किसी राजनीतिक पंडित के लिए कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है।

योगी आदित्यनाथ के पक्ष में हैं यह 3 बातें
अब अगर बात सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी की बात की जाए तो फिलहाल, योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की लोकप्रियता और बीजेपी (BJP) का वोट प्रतिशत अन्य पार्टियों के मुकाबले काफी ज्यादा है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election) में पार्टी को करीब 40% वोट मिले थे। बीजेपी की तुलना में सपा और बसपा को चुनाव जीतने के बावजूद 2012 में और 2007 में क्रमश: 29.15% और 30.43% वोट ही मिले थे।

साफ है कि बीजेपी का वोट प्रतिशत चालीस के करीब पहुंच चुका है। यह मुख्य विपक्षी पार्टियों को हासिल अधिकतम वोट प्रतिशत से करीब दस फिसदी ज्यादा है। साथ ही, अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir), काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे सहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की यूपी में लोकप्रियमा और केंद्रीय योजनाओं के लाभ चलते बीजेपी को चुनौती देना आसान नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास यूपी में हिंदुत्व, गुंडा राज की समाप्ति और विकास का कार्ड है। हालांकि, योगी सरकार के लिए किसान आंदोलन, ब्राह्मणों की नाराजगी और एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा परेशानी का सबब बन सकता है।

क्या नेताओं के साथ वोटर भी बदलते हैं पाला!
फिलहाल, यूपी चुनाव (UP Election) दो पक्षीय होता दिख रहा है जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को समाजवादी पार्टी से सीधी टक्कर मिलती दिख रही है। सपा (SP) का यूपी के अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन फायदेमंद साबित होगा या नहीं, यह परिणामों के बाद पता चलेगा। क्या नेताओं और पार्टियों के गठबंधन के साथ वोटर भी एक पार्टी से दूसरे पार्टी में शिफ्ट होंगे? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब मतों की गिनती के बाद ही मिलता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी में तेजी से बदल रहे राजनीतिक हालातों के चलते राजनीतिक पंडितों, आम नागरिकों और वोटरों में चुनाव के प्रति उत्सुकता बढ़ रही है। नतीजे जो भी हों, राजनीति में परिणाम की अनिश्चितता जितनी ज्यादा होगी, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा। यह अनिश्चितता ही राजनीतिक दलों को सत्ता पाने या सत्ता में बने रहने के लिए ज्यादा मेहनत करने को मजबूर करती है।

– संजीव श्रीवास्तव

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