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Political Analysis :उ. प्र. में कांग्रेस को वजूद साबित करना है!

 विनय संकोची

उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए बाकी दलों की तरह कांग्रेस भी तैयारी कर रही है। यह चुनाव कांग्रेस के लिए अपने वजूद को साबित करने का एक अवसर है। चर्चा है कि कांग्रेस 350 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का मन बना रही है और वह किसी अन्य दल से गठबंधन भी नहीं करेगी। वैसे इसे यूं भी कह सकते हैं कि कांग्रेस से गठबंधन को कोई दल तैयार ही नहीं होगा तो कांग्रेस गठबंधन करेगी भी तो किससे?

चुनाव में वही दल आपस में हाथ मिलाते हैं जिन्हें एक दूसरे से किसी चुनावी फायदे की उम्मीद होती है। इस समय कांग्रेस से हाथ मिलाने में किसी दल की कोई रुचि दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है, कब कौन किस के पाले में आ खड़ा हो कहना असंभव है।

ऐसा कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकती हैं। कांग्रेस चाहती है कि उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी का पश्चिम बंगाल वाला हाल हो, लेकिन यह कैसे संभव होगा शायद इसका उत्तर अभी तो कांग्रेस के पास भी नहीं है। कांग्रेस में एक तबका ऐसा है जो कि चुनावी गठबंधन की वकालत कर रहा है। इस सोच वाले नेताओं का मानना है कि यदि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है, तो 2017 वाले प्रदर्शन को दोहराना भी मुश्किल होगा, जबकि अन्य अनेक नेता इस विचार से सहमत नहीं हैं।

प्रत्याशियों को लेकर मंथन की प्रक्रिया कांग्रेस में शुरू हो चुकी है। जो पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे, उन्हें लड़ाने की योजना भी बन रही है और कुछ नए युवा प्रत्याशियों का चयन भी किया जा रहा है। अनेक उम्मीदवारों से तो चुनावी तैयारी करने को कह भी दिया गया है। कांग्रेस इस तरह का सर्वे करा रही है कि 2012 और 2017 के चुनावों में उसके कौन-कौन और कितने प्रत्याशी बहुत कम अंतर से हारे थे, ताकि गठबंधन की स्थिति में उन्हीं सीटों पर दावेदारी पेश की जाए।

कांग्रेस के अंदर इस रणनीति पर भी जोर शोर से चर्चा चल रही है कि ज्यादा से ज्यादा या सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय पार्टी मजबूत सीटों पर फोकस करे और पूरी ताकत झोंक कर उन्हें जीते। वैसे कांग्रेस आज भी विपक्षी एकता की बात करती है, लेकिन 2017 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से कांग्रेस का अच्छा खासा नुकसान ही हुआ जिसको देखते हुए कांग्रेस के रणनीतिकार “एकला चलो” की नीति को महत्व दे रहे हैं। 2012 में कांग्रेस ने 355 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 28 सीटें जीती थीं और उसे 12% वोट मिले थे। 2017 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 7 सीटें ही जीत पाई और उसका वोट प्रतिशत केवल सवा छ: ही रहा। इन्हीं आंकड़ों को देखकर कांग्रेस के तमाम नेता नहीं चाहते कि पार्टी किसी दल से चुनावी गठबंधन करे।

इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि यदि पश्चिम बंगाल के बाद भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में पराजय का मुंह देखना पड़ा तो उसका लाभ कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिलेगा। इसके पीछे का गणित यह है कि इन सभी राज्यों में भाजपा से कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। एक कारण यह भी है जिसके चलते कांग्रेस के अनुभवी नेता चाहते हैं कि पार्टी उत्तर प्रदेश में ज्यादा सीटों के बदले चुनिंदा और जीतने वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति में सुधार होता है तो निश्चित रूप से भविष्य में होने वाले चुनावों में इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है।

कांग्रेस में करीब 50 नेताओं को प्रत्याशी घोषित करते हुए चुनावी तैयारी में जुट जाने को कहा है। चुनाव होने में अभी लगभग 6 माह का समय है पार्टी का मानना है कि प्रत्याशी को अच्छा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए 6 माह की अवधि पर्याप्त है। वैसे इन छह माह में तमाम समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे। सही स्थिति चुनाव से कुछ दिन पहले ही साफ हो पाएगी। तब तक अटकलों का दौर चलता रहेगा।

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