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Political News : नहीं होगी जातियों की गिनती केंद्र सरकार का इन्कार

राष्ट्रीय ब्यूरो। केंद्र सरकार ने बिहार यूपी सहित कई राज्यों के विभिन्न राजनीतिक दलों की जाति आधारित जनगणना कराने की मांग खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि देश की आबादी की जाति आधारित आंकड़े जुटाना और उसे सार्वजनिक करना व्यावहारिक नहीं है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों के उपनाम बेहद जटिल व उलझे हुए हैं। उनके उपनाम में इतने मामूली अंतर हैं कि यह समझ पाना बेहद कठिन हो जाता है कि कौन सा जातीय उपनाम किस वर्ग से आता है। साथ ही मंत्रालय ने यह साफ किया कि जो 2011 में जो सामाजिक आर्थिक आधार पर जनगणना कराई थी उसे अन्य पिछड़े वर्ग की जनगणना नहीं कहा जा सकता है। मंत्रालय ने कहाकि 2011 की सामाजिक आर्थिक जनगणना का मकसद केवल देश की आबादी के पिछड़ेपन का पता लगाना था। इसी सूची के आकलन करने के बाद पता चला कि सामाजिक आर्थिक आधार पर पिछडों की सूची में लाखों जातियां शामिल हैं। जबकि केंद्र और राज्यों की सूची में कुछ हजार जातियां ही शामिल हैं। मंत्रालय ने अपने इस शपथपत्र में साफ लिखा है कि 2022 में होने जा रही जनगणना में जातियों की गिनती किया जाना कतई संभव नहीं है। साथ ही यह नीतिगत विषय है और सुप्रीमकोर्ट को इस नीतिगत मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बतादें कि बिहार की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ ही यूपी में समाजवादी पार्टी सहित कई दल  जातिगत जनगणना कराने की पक्षधर है।

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