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क्यों ममता बनर्जी से आगे निकल गए केजरीवाल, ये 6 वजहें हैं जिम्मेदार

kejriwal mamata

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10 मार्च को मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित हुए। चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) दूसरी बार सरकार बनाने में सफल रही जबकि, पंजाब मे आम आदमी पार्टी (AAP) को प्रचंड बहुमत मिला। पंजाब विधानसभा की 117 में से 92 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली।

आम आदमी पार्टी ने रचा अनोखा इतिहास!
इस जीत के बाद आम आदमी पार्टी और इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का कद अचानक बढ़ गया। आजादी के बाद भारत के एक से ज्यादा राज्य में सरकार बनाने वाला यह चौथा राजनीतिक दल बन गया। इससे पहले कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और कम्यूनिस्ट पार्टी ही ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनकी एक से ज्यादा राज्यों में सरकारें रही हैं।

लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, नवीन पटनायक, जयललिता, करुणानिधि और ममता बनर्जी जैसे दिग्गज नेता अपने राज्यों में कई साल सत्ता में रहे। इन नेताओं का राष्ट्रीय राजनीति में भी काफी दखल रहा लेकिन, इनमें से किसी की भी पार्टी का अपने राज्य से बाहर कोई जनाधार नहीं बन पाया।

दस साल में दूसरी बार विरोधियों का सुपड़ा साफ
आम आदमी पार्टी इन सभी राजनीतिक दलों की तुलना में न सिर्फ नई है बल्कि, इसके संस्थापाक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि भी नहीं रही है। नौकरशाह और सामाजिक कार्यकर्ता रहे अरविंद केजरीवाल ने अक्टूबर 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) की स्थापाना की और महज दस साल के अंदर दो राज्यों में सरकार बनाने में सफल रहे।

पंजाब चुनाव परिणाम के बाद यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि आम आदमी पार्टी तेजी से कांग्रेस का विकल्प बन रही है। आप (AAP) ही आने वाले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को टक्कर दे सकती है। केजरीवाल की सफलता ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को भी पीछे छोड़ दिया है। केजरीवाल भविष्य में एनडीए के खिलाफ बनने वाले तीसरे मोर्चे या गठबंधन का सबसे बड़ा चेहरा और सर्वमान्य नेता बन सकते हैं।

क्या यह सिर्फ कयास है या सच में केजरीवाल अन्य क्षेत्रीय दलों की तुलना में बहुत आगे निकल चुके हैं? केजरीवाल की इस सफलता की बड़ी वजहें हैं:

1. जीतने के बाद भी नहीं खोया आपा
पिछले साल दो मई को पश्चिम बंगाल (West Bengal) सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) को पश्चिम बंगाल विधानसभा की 292 में से 211 सीटों पर जीत मिली। बंगाल में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन, उसे केवल 77 सीटों पर ही जीत मिली। इस जीत के बाद ममता बनर्जी को विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने लगा। हालांकि, टीएमसी प्रचंड जीत के साथ बंगाल में राजनीतिक हिंसा शुरू हो गई। टीएमसी और विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के बीचे हिंसक झड़प और पार्टी कार्यालयों को आग लगाने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। शाम होते-होते बंगाल में आगजनी और हिंसा की खबरें टीवी चैनलों पर तैरने लगीं।

इसके विपरीत पंजाब में प्रचंड बहुमत में आने के बावजूद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) ने अपने कार्यकर्ताओं को संयम बरतने और अति उत्साह से बचने की हिदायत दी। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भगवंत मान ने जनता को यह संदेश दिया कि वह केवल उन लोगों के मुख्यमंत्री नहीं हैं जिन्होंने उहें वोट दिया है बल्कि, वह पूरे पंजाब (Punjab) के मुख्यमंत्री हैं और सबको साथ लेकर ही पंजाब का विकास संभव है। ठीक इसी तरह, 2014 के लोकसभा चुनाव परिणामों में सफलता के बाद नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भी सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था ताकि, जनता के बीच सकारात्मक छवि पेश की जा सके।

2. जातिवाद और संप्रदायवाद से बनाई दूरी
ममता बनर्जी पर अपना वोट बैंक बचाए रखने के लिए मुसलमानों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगता है। जबकि, केजरीवाल या आम आदमी पार्टी ने खुद को किसी जाति या धर्म विशेष का नेता बनने से बचने का पूरा प्रयास किया है।

3. बड़े दिल वाले नेता बन जीता लोगों का दिल
केजरीवाल ने अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर (PM Modi) व्यक्तिगत निशाना साधने की कोशिश की लेकिन, जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा है। ममता बनर्जी ने न सिर्फ चुनाव के दौरान बल्कि, चुनाव के बाद हर मौके पर केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी पर हमला करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा है। आईएएस अफसरों के डेपुटेशन से लेकर, केंद्रीय योजनाओं और महामारी के दौरान केंद्र और बंगाल सरकार के बीच विवाद सुर्खियों में रहे। इसके उलट केजरीवाल ने दिल्ली में कोरोना के मामलों में कमी के लिए अपनी सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के सहयोग को भी स्वीकार कर खुद को बड़े दिल वाले सकारात्मक नेता के तौर पर पेश किया।

4. केवल पंजाब ही नहीं, इन राज्यों में भी खुल चुका है खाता
बंगाल चुनाव नतीजों से उत्साहित ममता बनर्जी ने गोवा (Goa) विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने की कोशिश की और यूपी में अखिलेश (Akhilesh Yadav) के पक्ष में भी प्रचार किया। गोवा में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला जबकि, आम आदमी पार्टी को गोवा में लगभग सात प्रतिशत वोट मिले और 40 सदस्यीय विधानसभा में उसके दो विधायक भी चुनाव जीतने में सफल हुए। इसके अलावा उत्तराखंड और यूपी में भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में नाममात्र ही सही लेकिन, कुछ वोट पड़े हैं यानी, इन राज्यों में पार्टी ने वोटों के लिहाज से अपना खाता तो खोल लिया है। लेकिन, ममता बनर्जी के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।

5. वोटर को बताया, क्यों चाहिए सत्ता
केजरीवाल पिछले सात साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हैं। उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों, अस्पतालों की हालत में काफी सुधार किया है। मोहल्ला क्लिनिक स्थापित करने, गरीबों को मुफ्त बिजली और पानी की सुविधा देने में भी वह सफल रहे हैं। उन्होंने अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को यही समझाने का प्रयास किया कि अगर वह सत्ता में आए, तो दिल्ली की तरह यहां भी अच्छे सरकारी अस्पताल और स्कूल खोलेंगे ताकि, गरीबों को अच्छा इलाज और उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। उन्होंने विरोधी पार्टी या नेताओं पर व्यक्तिगत हमला करने के बजाए सत्ता में आने पर क्या करेंगे यह बताने पर फोकस रखा।

6. युवा और ईमानदार नेताओं की टोली ने बदला खेल
ममता बनर्जी, नवीन पटनायक या दक्षिण भारतीय राज्यों के किसी भी नेता की तुलना में केजरीवाल को उत्तर भारत का नेता होने और अच्छी हिंदी बोलने का भी बड़ा लाभ मिलता है। केजरीवाल और उनकी पार्टी के अन्य नेता अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। उनके पास भगवंत मान, संजय सिंह, राघव चड्ढा, मनीष सिसोदिया, आतिशी मार्लेना जैसे युवा और पढ़े लिखे नेताओं की टोली है जो युवाओं को आकर्षित करती है। केजरीवाल की छवि परिवारवाद, जातिवाद या संप्रदायवाद से दूर रहने वाले एक ईमानदार नेता की है। जबकि, टीएमसी में ममता बनर्जी के बाद उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं।

भारतीय राजनीति में आज ऐसे नेताओं या पार्टियों के लिए राह आसान नहीं है जो परिवारवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद को बढ़ावा देने या सत्तापक्ष की आलोचना करने वाली नकारात्मक राजनीति करते हैं। केजरीवाल की सफलता इस बात का संकेत है कि सकारात्मक छवि और काम करके दिखाने वाले नेता के लिए बराबर का मौका है। 10 मार्च को आए नतीजों ने भी यह दिखााया है कि सत्ता विरोधी लहर (Anti-incumbency) का परंपरागत ढांचा भी टूट रहा है। चाहे यूपी, उत्तराखंड, गोवा हो या मणिपुर इन सब राज्यों में सत्तारूढ़ दल को ही जनता ने फिर से चुना है। यह बात बिहार, बंगाल और ओडिशा पर भी लागू होती है। यह भारतीय मतदाता के परिपक्व होने और विपक्षी दलों को ज्यादा मेहनत करने के लिए मजबूत करने वाली व्यवस्था की ओर बढ़ने का संकेत है।

– संजीव श्रीवास्तव

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