योगी के भव्य शपथ ग्रहण समारोह के बहाने बीजेपी देना चाहती है ये 8 संदेश
Anjanabhagi
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के राजनीतिक इतिहास में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के तुरंत बाद दोबारा सीएम पद की शपथ लेंगे। लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी क्रिकेट स्टेडियम (इकाना स्टेडियम) में शुक्रवार शाम शपथ ग्रहण करते ही वह एक नया इतिहास रच देंगे।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (up election 2022) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अकेले 255 सीटों पर जीत मिली है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 303 सीटें मिली थी। इसके बावजूद, योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के शपथ ग्रहण कार्यक्रम को इतनी भव्यता के साथ आयोजित किया जा रहा है जैसे, यह बीजेपी की यूपी में अब तक की सबसे बड़ी जीत हो। सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर बीजेपी ऐसा क्यों कर रही है?
1. परंपरागत माध्यमों का टूट रहा तिलिस्म
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) के आने के बाद बीजेपी की कार्यप्रणाली में बड़ा बदलाव आया है। 2014 में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह को भी कुछ इसी अंदाज में आयोजित किया गया था। भारत के पड़ोसी देशों सहित दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस कार्यक्रम का हिस्सा बने थे।
असल में इसकी शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही हो गई थी। मोदी ने सोशल मीडिया (Social Media) सहित डिजिटल माध्यमों का जमकर इस्तेमाल किया। मोदी ने उस दौर में ही वर्चुअल रैलियां और चाय पर चर्चा की। बीजेपी को आधुनिक प्रचार माध्यमों की ताकत और उसकी पहुंच का बखुबी अंदाजा है। पार्टी को पता है कि प्रचार माध्यमों की मदद से उन लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है जो टीवी, अखबार, पत्र-पत्रिकाएं या रैलियों में हिस्सा नहीं ले सकते।
2. इन दो वर्गों पर है खास नजर
इसकी दूसरी वजह है युवाओं और महिलाओं तक अपनी बात पहुंचाना और उनसे कनेक्ट करना। ज्यादातर युवा, चाहे लड़का हो या लड़की, सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन का जमकर इस्तेमाल करते हैं। बीजेपी (BJP) के पास एक आईटी सेल है जो किसी भी जानकारी या आयोजन को प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया में आने से पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल कर देती है। मजबूरन, मीडिया को भी उसे कवर करना पड़ता है और इस तरह बीजेपी का कार्यक्रम देशभर में चर्चा का मुद्दा बन जाता है।
3. यह बताना कि कौन सांप्रदायिक है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के बाद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की ताजपोशी को भव्य बनाने के पीछे कुछ खास वजह है। प्रधानमंत्री बनने से पहले 2002 के गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी की खूब आलोचना होती थी। इसके बावजूद, 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला। यह सिलसिला 2019 में भी जारी रहा और मोदी के नाम पर ही बीजेपी को 300 से ज्यादा सीटें मिलीं। बीजेपी और नरेंद्र मोदी पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाने वालों के लिए यह सबक था।
इसी तरह 2017 में जब योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को यूपी का सीएम बनाया गया तो, बीजेपी समर्थक भी इससे नाराज थे। एक भगवाधारी योगी को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के बाद एक बार फिर से बीजेपी पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगा। योगी आदित्यनाथ का दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आना इस बात का संकेत है कि वोेटर ने योगी आदित्यनाथ के धर्म, जाति या उनकी छवि के बारे में की जाने वाली बातों के बजाए, सरकार के काम करने के तरीके पर वोट किया।
पहले नरेंद्र मोदी और अब योगी आदित्यनाथ की लगातार जीत ने यह साबित कर दिया है कि बीजेपी को सांप्रदायिक कह कर नकारने वाले दलों और नेताओं को ही जनता ने अस्वीकार कर दिया है। इस बात को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी समझा जा सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर मुसलमानों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया लेकिन, बंगाल की जनता ने बीजेपी को ही सिरे से नकार दिया।
4. पार्टी में प्रोफेशनलिज्म को मिले बढ़ावा
भारतीय जनता पार्टी (BJP) में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का बढ़ता कद इस बात का भी स्पष्ट संकेत है कि पार्टी ऐसे नेता को आगे बढ़ाने में हिचक नहीं दिखाती जो बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखता है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि योगी न तो राष्ट्रीय स्वयं संघ (RSS) से जुड़े रहे हैं, न ही बीजेपी से हमेशा उनके मधुर संबंध रहे हैं। इसके बावजूद योगी को कई दिग्गज नेताओं से ज्यादा महत्व देना बीजेपी की आंतरिक कार्यशैली के पेशेवर होने का संकेत है।
5. पद पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है ये दो चीजें
मोदी के बाद अमित शाह (Amit Shah) को बीजेपी में सबसे ताकतवर नेता माना जाता है। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के उदय के बाद यह माना जाने लगा वह अमित शाह की जगह ले सकते हैं और पीएम पद के दावेदार बन सकते हैैं। इसके बावजूद, अमित शाह ने योगी के पक्ष में जमकर प्रचार किया और हर मंच पर योगी की जमकर सराहना की। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन, यह दिखाता है कि बीजेपी के नेताओं में पार्टी और विचारधारा को आगे बढ़ाना, पद पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
6. संघ से संपर्क या ऊंची पहुंच का नहीं मिलता फायदा
योगी की शानदार ताजपोशी के माध्यम से बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देना चाहती है कि इस पार्टी में ईमानदारी से काम करने वाला कोई भी नेता किसी भी पद पर पहुंच सकता है। संघ से जुड़ा होना या पार्टी में पहुंच होना सफलता की गारंटी नहीं है। अच्छा प्रदर्शन करने वाला कोई भी नेता किसी भी दिग्गज को पछाड़ कर आगे बढ़ सकता है।
7. वोटर को इन नेतओं में दिखी आस
मोदी और योगी की सफलता को जमकर भुनाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि यह दोनों ही नेता, मुस्लिम तुष्टिकरण का खुलकर विरोध करते हैं। मोदी (Modi) ने बार-बार यह दिखाने की कोशिश की है कि वह सबका साथ, सबका विकास करने में विश्वास करते हैं। केंद्र सरकार की किसी भी योजना में किसी भी जाति या धर्म के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इसी तरह योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने यूपी में एमवाई (मुस्लिम-यादव) और दलित-पिछड़े की राजनीति के नाम पर वोट मांगने वालों को पराजित कर साबित कर दिया कि अब जनता इस तरह की राजनीति से ऊब चुकी है।
8. कार्यकर्ता को मिलता है पूरा सम्मान
बीजेपी (BJP) छोटी से छोटी सफलता में अपने कार्यकर्ताओं को शामिल करने का कोई मौका नहीं चूकती। दस मार्च को चुनाव नतीजे आने के बाद योगी ने लखनऊ में लोगों से बात की और उसी शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर धन्यवाद दिया ताकि, उनका उत्साह बना रहे। योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह को राजभवन तक सीमित न करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि पार्टी के ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को इसका हिस्सा बनाया जा सके और उन्हें मोटीवेट किया जा सके।