भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शुभ योगों में करें विशेष उपाय मिलेगा तुरंत धनलाभ 

01 18
Bhadrapada Purnima 2023
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Sep 2023 12:15 PM
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​Bhadrapada Purnima 2023 : 29 सितंबर 2023 को शुक्रवार के शुभ दिन पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद माह की पूर्णिमा बेहद खास होती है इस दिन देवी लक्ष्मी श्री विष्णू पूजन के साथ ही चंद्र पूजन एवं पितरों का पूजन भी किया जाता है। शुक्रवार के योग में आने वाली भाद्रपद पूर्णिमा अत्यंत ही उत्तम फल प्रदान करने वाली मानी जाती है। शास्त्रों में इस दिन भगवान सत्यनारायण (Satyanarayan Katha) का पूजन, व्रत स्नान, दान इत्यादि से जुड़े कार्य कई गुना शुभ फलों की वृद्धि प्रदान करने वाले होते हैं।

Bhadrapada Purnima 2023

भाद्रपद पूर्णिमा का दिन भगवान स्त्यनारायण की पूजा के साथ चंद्र दर्शन एवं पूजन के लिए भी विशेष होता है। इस समय पर चंद्रमा के दर्शन से जीवन में सौंदर्य एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। मानसिक अवसाद दूर होते हैं तथा बल शक्ति में वृद्धि का योग प्राप्त होता है। पूर्णिमा पर संध्या समय के दौरान चंद्र उदय पर चंद्र देव का दर्शन करते हैं तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत पूजा द्वारा व्रत को पूर्ण माना जाता है।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कुछ स्थानों पर उमा महेश्वर व्रत करने का भी विधान रहा है, अत: इस शुभ दिन पर भगवान शिव एवं माता पार्वती का पूजन करने से भक्तों को जीवन में सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

भाद्रपद पूर्णिमा उपाय दिलाएंगे हर सफलता

भाद्रपद पूर्णिमा का समय भक्तों के लिए एक ऐसा दिन होता है जब ऊर्जाएं अपने विस्तार में होती हैं। इस समय किए जाने वाले कार्य भी व्यक्ति के जीवन में शुभता का विस्तार करने वाले माने जाते हैं। पूर्णिमा हो या अमावस्या यह दोनों ही तिथियां कई कारणों से विशेष मानी जाती हैं। ऐसे में भादो माह में आने वाली पूर्णिमा तिथि के दौरान आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए, करियर को आगे ले जाने के लिए रोग दोष से मुक्ति पाने हेतु अथवा पितरों का अशीर्वाद पाने के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है। इस समय पर किए जाने वाले उपाय भक्तों को शुभता का सुख प्रदान करते हैं। आइये जानें इस दिन पर आप कैसे अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शाम के समय शिव मंदिर अथवा विष्णु मंदिर में कच्चे दूध और चीनी का दान अवश्य करना चाहिए। इस उपाय को चंद्रमा की प्रबलता पाने हेतु किया जाता है तथा इसके अलावा किसी भी प्रकार के रोग दोष से मुक्ति के लिए इस दिन किया जाने वाला यह उपाय बेहद कारगर सिद्ध होता है।

पूर्णिमा का यह समय पितरों का समय भी होता है क्योंकि इसके साथ ही श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो जाता है, अत: यह दो समय के मिलन का दिन होने के कारण इस दिन प्रात:काल के समय गरीबों को दान देने के अलावा संध्या के समय पितरों को नमस्कार करना चाहिए घर की दहलीज पर एक चौमुखी तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद सदैव वंश पर बना रहता है।

भाद्रपद माह की पूर्णिमा इस बार शुक्रवार के दिन होगी ऎसे में यह दिन देवी लक्ष्मी पूजन हेतु उत्तम बन रहा है। शुभ योग का निर्माण होने से इस दिन यदि कपूर और घी का दीपक लक्ष्मी जी के सम्मुख प्रज्जवलित किया जाए तथा देवी को केसर का तिलक करें तो जीवन में मौजुद अटकाव एवं आर्थिक विपन्नताओं का दौर समाप्त होने लगता है।

एस्ट्रोलॉजर राजरानी

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​Bhadrapada Purnima 2023 : 29 सितंबर 2023 को शुक्रवार के शुभ दिन पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद माह की पूर्णिमा बेहद खास होती है इस दिन देवी लक्ष्मी श्री विष्णू पूजन के साथ ही चंद्र पूजन एवं पितरों का पूजन भी किया जाता है। शुक्रवार के योग में आने वाली भाद्रपद पूर्णिमा अत्यंत ही उत्तम फल प्रदान करने वाली मानी जाती है। शास्त्रों में इस दिन भगवान सत्यनारायण (Satyanarayan Katha) का पूजन, व्रत स्नान, दान इत्यादि से जुड़े कार्य कई गुना शुभ फलों की वृद्धि प्रदान करने वाले होते हैं।

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भाद्रपद पूर्णिमा का दिन भगवान स्त्यनारायण की पूजा के साथ चंद्र दर्शन एवं पूजन के लिए भी विशेष होता है। इस समय पर चंद्रमा के दर्शन से जीवन में सौंदर्य एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। मानसिक अवसाद दूर होते हैं तथा बल शक्ति में वृद्धि का योग प्राप्त होता है। पूर्णिमा पर संध्या समय के दौरान चंद्र उदय पर चंद्र देव का दर्शन करते हैं तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत पूजा द्वारा व्रत को पूर्ण माना जाता है।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कुछ स्थानों पर उमा महेश्वर व्रत करने का भी विधान रहा है, अत: इस शुभ दिन पर भगवान शिव एवं माता पार्वती का पूजन करने से भक्तों को जीवन में सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

भाद्रपद पूर्णिमा उपाय दिलाएंगे हर सफलता

भाद्रपद पूर्णिमा का समय भक्तों के लिए एक ऐसा दिन होता है जब ऊर्जाएं अपने विस्तार में होती हैं। इस समय किए जाने वाले कार्य भी व्यक्ति के जीवन में शुभता का विस्तार करने वाले माने जाते हैं। पूर्णिमा हो या अमावस्या यह दोनों ही तिथियां कई कारणों से विशेष मानी जाती हैं। ऐसे में भादो माह में आने वाली पूर्णिमा तिथि के दौरान आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए, करियर को आगे ले जाने के लिए रोग दोष से मुक्ति पाने हेतु अथवा पितरों का अशीर्वाद पाने के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है। इस समय पर किए जाने वाले उपाय भक्तों को शुभता का सुख प्रदान करते हैं। आइये जानें इस दिन पर आप कैसे अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शाम के समय शिव मंदिर अथवा विष्णु मंदिर में कच्चे दूध और चीनी का दान अवश्य करना चाहिए। इस उपाय को चंद्रमा की प्रबलता पाने हेतु किया जाता है तथा इसके अलावा किसी भी प्रकार के रोग दोष से मुक्ति के लिए इस दिन किया जाने वाला यह उपाय बेहद कारगर सिद्ध होता है।

पूर्णिमा का यह समय पितरों का समय भी होता है क्योंकि इसके साथ ही श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो जाता है, अत: यह दो समय के मिलन का दिन होने के कारण इस दिन प्रात:काल के समय गरीबों को दान देने के अलावा संध्या के समय पितरों को नमस्कार करना चाहिए घर की दहलीज पर एक चौमुखी तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद सदैव वंश पर बना रहता है।

भाद्रपद माह की पूर्णिमा इस बार शुक्रवार के दिन होगी ऎसे में यह दिन देवी लक्ष्मी पूजन हेतु उत्तम बन रहा है। शुभ योग का निर्माण होने से इस दिन यदि कपूर और घी का दीपक लक्ष्मी जी के सम्मुख प्रज्जवलित किया जाए तथा देवी को केसर का तिलक करें तो जीवन में मौजुद अटकाव एवं आर्थिक विपन्नताओं का दौर समाप्त होने लगता है।

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जानिए मानवता को क्रियायोग की अदभुत भेंट देने वाले योगावतार लाहिड़ी महाशय को

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Yogiraj Sri Shyama Charan Lahiri
locationभारत
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calendar28 Sep 2023 11:49 PM
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Yogiraj Sri Shyama Charan Lahiri : “ योगावतार” के रूप में अत्यन्त सम्मानित, सुप्रसिद्ध सन्त श्री श्री लाहिड़ी महाशय ने संसार को क्रियायोग की एक स्थायी विरासत प्रदान की, जो एक ईश्वर-प्रदत्त मुक्ति की प्रविधि है। आइए एक आदर्श गृहस्थ योगी के रूप में उनके अनुकरणीय जीवन पर पुनर्विचार करें, जो भौतिकवाद से परे और ईश्वर पर केन्द्रित जीवन की भारतीय आध्यात्मिक परम्परा का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। महान् गुरु का जन्म 30 सितंबर 1828 को श्यामाचरण लाहिड़ी (1828-1895) के रूप में घुरणी, बंगाल में एक पवित्र परिवार में हुआ था। उन्होंने वाराणसी के पवित्र नगर में एक अकाउंटेंट के रूप में साधारण जीवन व्यतीत किया। वे दो बच्चों के पिता थे। सन् 1861 में, तैंतीस साल की आयु में, हिमालय के रानीखेत पर्वतों में अमर गुरु महावतार बाबाजी से पहली बार उनकी भेंट हुई थी; यह भेंट वस्तुतः गुरु और शिष्य के मध्य विद्यमान शाश्वत बन्धन का पुनर्जागरण था। बाबाजी ने श्यामाचरण को क्रियायोग की पवित्र दीक्षा प्रदान की। सहस्राब्दियों पूर्व भगवान् श्रीकृष्ण ने मुक्ति की यह प्राचीन योग प्रविधि अर्जुन को प्रदान की थी तथा कालान्तर में यह पतंजलि और ईसा मसीह को ज्ञात थी। तत्पश्चात् बाबाजी ने सभी निष्ठावान् साधकों को क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करने का कार्य सौंप पर उन्हें विदा किया।

क्रियायोग की दिव्य सरिता सुदूर भारत में दूर-दूर तक प्रवाहित

तत्पश्चात् शीघ्र ही, क्रियायोग की दिव्य सरिता वाराणसी के सुदूर कोने से भारत में दूर-दूर तक प्रवाहित होनी प्रारम्भ हो गयी। अपने सर्वसमावेशी स्वरूप के कारण लाहिड़ी महाशय का क्रियायोग का सन्देश साम्प्रदायिक सिद्धान्तों, जाति और पंथ की सीमाओं को पार करते हुए, दूर-दूर तक मानव जाति के मन तक जा पहुंचा। क्रियायोग एक प्राणायाम का स्वरूप है जिसमें हम श्वास, मन और प्राणशक्ति का प्रयोग करते हैं—मेरुदण्ड में प्राणशक्ति को ऊपर और नीचे प्रवाहित करने तथा प्रमस्तिष्क मेरुदण्डीय केन्द्रों और अपने अन्तर् में ईश्वरीय विद्यमानता को जाग्रत करने के फलस्वरूप आध्यात्मिक विकास की गति तीव्र होती है।

योग की प्राचीन जटिलताओं को दिया व्यावहारिक रूप

Yogiraj Sri Shyama Charan Lahiri ने योग की प्राचीन जटिलताओं को संक्षिप्त व्यावहारिक आध्यात्मिक वास्तविकताओं में परिणत किया जो गृहस्थों और संन्यासियों दोनों के लिए समान रूप से ग्राह्य थीं। उनकी पवित्र शिक्षाओं ने अनगिनत भक्तों के जीवन को रूपान्तरित किया; उनके कुछ निकट शिष्यों का अवतार-सदृश सन्तों के रूप में उत्थान हुआ। उन्होंने कहा था, “ईश्वर-साक्षात्कार आत्म-प्रयास से सम्भव है, वह किसी धार्मिक विश्वास या किसी ब्रह्माण्ड नायक की मनमानी इच्छा-अनिच्छा पर निर्भर नहीं है।”

भारत में 200 से अधिक ध्यान केन्द्र

Yogiraj Sri Shyama Charan Lahiri सन् 1886 में सेवानिवृत्त होने के पश्चात् शायद ही कभी अपने निवास स्थान से बाहर गए होंगे। भक्तगण प्रायः देखते थे कि पूजनीय गुरुदेव पद्मासन में बैठे हुए श्वासरहितता, निद्रारहितता, नाड़ी और हृदय की धड़कन का रुका हुआ होना और उनके चारों ओर आनन्द एवं शान्ति का प्रगाढ़ वलय होना जैसे अतिमानवीय लक्षणों को प्रकट करते थे। उनके शिष्यों में श्री श्री परमहंस योगानन्द के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर के साथ-साथ अनेक राजपरिवार, विद्वान और प्रतिष्ठित सन्त सम्मिलित थे। जैसी स्वयं योगावतार ने भविष्यवाणी की थी, सन् 1946 में योगानन्दजी की पुस्तक “योगी कथामृत” में लाहिड़ी महाशय का जीवन चरित्र प्रकाशित किया गया था। सन् 1917 में, योगानन्दजी ने क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार करने के उद्देश्य से रांची में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की। वर्तमान में, पूरे भारत में इसके 200 से अधिक ध्यान केन्द्र और मण्डलियाँ, चार आश्रम और अनेक रिट्रीट केन्द्र हैं। लाहिड़ी महाशय ने 26 सितंबर, 1895 को वाराणसी में महासमाधि में प्रवेश किया; ईश्वर-साक्षात्कार प्राप्त महात्मा अपनी इच्छानुसार शरीर को त्याग सकते हैं और चेतना के उच्चतर स्तर पर जा सकते हैं। उनके शब्दों में, “क्रियायोग की गुप्त कुंजी के उपयोग के द्वारा देह-कारागार से मुक्त होकर परमतत्व में भाग निकलना सीखो।” लाहिड़ी महाशय के द्वारा क्रियायोग के पुनरुद्धार ने पूरे संसार में क्रियायोग के प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया और साधकों को स्वयं अपने भीतर देवत्व की खोज करने और आत्मा की चेतना के खोए हुए स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। रेणुका राणे

Pitru Paksha 2023: पितृपक्ष पर भूल से भी न करें ये काम, मृतात्माएं होती हैं कुपित

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