Chanakya Niti : इन चीजों को करने से चली जाती है चेहरे की सुंदरता

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Chanakya Niti
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 01:19 AM
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Chanakya Niti : चेहरे की सुंदरता को लेकर न केवल भारतीय महिलाएं बल्कि पुरुष भी अनेकों उपाय करते हैं। सुंदरता को बरकार रखने के लिए युवतियां और महिलाएं अनेक प्रकार के सौंदर्य प्रशासन सामान का भी प्रयोग करती हैं। लेकिन मनुष्य के सौंदर्य को लेकर आचार्य चाणक्य की नीति कुछ और ही कहती है। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' में काफी कुछ लिखा है। उनका मत है कि सौंदर्य मनुष्य का गहना तो है ही, साथ ही इस गहने को संभालकर रख पाना कठिन भी है।

Chanakya Niti in hindi

आपको बता दें आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' पर आज भी बहुत सारे लोग भरोसा करते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक सफल राजनीतिज्ञ बनने से लेकर खुशहाल परिवार बनाने तक की जानकारी दी है। आचार्य चाणक्य ने मानव के सौंदर्य को लेकर लिखा है कि ...

स्वहस्तप्रथिता माला स्वहपृष्टचन्तनम्। स्वहस्तलिखितस्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्॥

आचार्य चाणक्य का कहना है कि अपने हाथ से बनाई गई माला, अपने हाथ से घिसा चन्दन तथा स्वयं अपने हाथों से लिखा स्तोत्र इन्द्र की शोभा को भी हर लेते हैं। इस अर्थ यही है कि अपने हाथ से बनाई गई माला नहीं पहनी चाहिए और स्वयं घिसा हुआ चन्दन अपने शरीर पर नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर किसी भी व्यक्ति की सुन्दरता घट जाती है। अपने हाथ से लिखे मन्त्र या पुस्तक से पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से पूजा का फल नहीं मिलता और हानि भी होती है।

उपचार गुण

दरिद्रता धीरतया विरराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते। कवन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते।।

आचार्य चाणक्य यहां सापेक्ष गुण प्रभाव की चर्चा करते हुए कहते है कि धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी सुन्दर जान पड़ता है और शील स्वभाव में कुरूपता भी सुन्दर लगती है। आशय यह है कि धीर गंभीर रहने पर व्यक्ति अपनों गरीबी में भी सुख में रह लेता है। स्वच्छता से पहने जाने पर साधारण कपड़े भी अच्छे लगते हैं। बासी भोजन गर्म किए जाने पर स्वादिष्ट लगता है। यदि कुरूप व्यक्ति अच्छे आचरण एवं स्वभाव वाला हो, तो सभी उससे प्रेम करते हैं। गुणों से, कमियों में भी निखार आ जाता है।

मर्दन

इक्षुवण्डास्तिलाः शूद्रा कान्ताकाञ्चनमेदिनी। चन्दन वधि ताम्बूल मर्वनं गुणवर्धनम्॥

आचार्य चाणक्य यहां दबाए जाने की गुणवत्ता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि ईं ख, तिल, शूद्र, पत्नी, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही तथा ताम्बूल (पान) इनके मर्दन से ही गुण बढ़ते हैं आशय यह है कि गन्ने को और तिलो को परे जाने से. शूद्र से सेवा कराने से. स्त्री से सम्भोग करने से, सोने को पीटे जाने से, पृथ्वी में परिश्रम करने से, चन्दन को घिसे जाने से, दही को मधे जाने से तथा पान को चबाने से ही इन सबके गुण बढ़ते हैं।

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Chanakya Niti : इन चीजों को करने से चली जाती है चेहरे की सुंदरता

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Chanakya Niti : चेहरे की सुंदरता को लेकर न केवल भारतीय महिलाएं बल्कि पुरुष भी अनेकों उपाय करते हैं। सुंदरता को बरकार रखने के लिए युवतियां और महिलाएं अनेक प्रकार के सौंदर्य प्रशासन सामान का भी प्रयोग करती हैं। लेकिन मनुष्य के सौंदर्य को लेकर आचार्य चाणक्य की नीति कुछ और ही कहती है। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' में काफी कुछ लिखा है। उनका मत है कि सौंदर्य मनुष्य का गहना तो है ही, साथ ही इस गहने को संभालकर रख पाना कठिन भी है।

Chanakya Niti in hindi

आपको बता दें आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' पर आज भी बहुत सारे लोग भरोसा करते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक सफल राजनीतिज्ञ बनने से लेकर खुशहाल परिवार बनाने तक की जानकारी दी है। आचार्य चाणक्य ने मानव के सौंदर्य को लेकर लिखा है कि ...

स्वहस्तप्रथिता माला स्वहपृष्टचन्तनम्। स्वहस्तलिखितस्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्॥

आचार्य चाणक्य का कहना है कि अपने हाथ से बनाई गई माला, अपने हाथ से घिसा चन्दन तथा स्वयं अपने हाथों से लिखा स्तोत्र इन्द्र की शोभा को भी हर लेते हैं। इस अर्थ यही है कि अपने हाथ से बनाई गई माला नहीं पहनी चाहिए और स्वयं घिसा हुआ चन्दन अपने शरीर पर नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर किसी भी व्यक्ति की सुन्दरता घट जाती है। अपने हाथ से लिखे मन्त्र या पुस्तक से पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से पूजा का फल नहीं मिलता और हानि भी होती है।

उपचार गुण

दरिद्रता धीरतया विरराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते। कवन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते।।

आचार्य चाणक्य यहां सापेक्ष गुण प्रभाव की चर्चा करते हुए कहते है कि धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी सुन्दर जान पड़ता है और शील स्वभाव में कुरूपता भी सुन्दर लगती है। आशय यह है कि धीर गंभीर रहने पर व्यक्ति अपनों गरीबी में भी सुख में रह लेता है। स्वच्छता से पहने जाने पर साधारण कपड़े भी अच्छे लगते हैं। बासी भोजन गर्म किए जाने पर स्वादिष्ट लगता है। यदि कुरूप व्यक्ति अच्छे आचरण एवं स्वभाव वाला हो, तो सभी उससे प्रेम करते हैं। गुणों से, कमियों में भी निखार आ जाता है।

मर्दन

इक्षुवण्डास्तिलाः शूद्रा कान्ताकाञ्चनमेदिनी। चन्दन वधि ताम्बूल मर्वनं गुणवर्धनम्॥

आचार्य चाणक्य यहां दबाए जाने की गुणवत्ता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि ईं ख, तिल, शूद्र, पत्नी, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही तथा ताम्बूल (पान) इनके मर्दन से ही गुण बढ़ते हैं आशय यह है कि गन्ने को और तिलो को परे जाने से. शूद्र से सेवा कराने से. स्त्री से सम्भोग करने से, सोने को पीटे जाने से, पृथ्वी में परिश्रम करने से, चन्दन को घिसे जाने से, दही को मधे जाने से तथा पान को चबाने से ही इन सबके गुण बढ़ते हैं।

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इन लोगों से कभी सोने नहीं देना चाहिए, जानें कौन कौन हैं वो ?

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calendar02 Dec 2025 03:16 AM
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Chanakya Niti : स्वस्थ जीवन के लिए नींद का आना बेहद जरुरी है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें सोते हुए को भी जगा देना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो भविष्य में आपको इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। देश के महान अर्थशास्त्री और कूट राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य का मानना है कि कुछ लोगों को हमेशा जागते हुए रहना चाहिए। यदि वह नींद की झपकी लेते हैं तो उससे बड़ा नुकसान होता है। आचार्य चाणक्य ने कहा कि यदि आप भी कुछ लोगों को सोते हुए देखते हैं तो आपका भी फर्ज बनता है कि उन्हें जगा दें। आइए जानते हैं कि वो लोग कौन हैं, जिन्हें समय समय पर जगाते रहना चाहिए...

Chanakya Niti in hindi

आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उनके कार्यकाल में थी। आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' के कुछ कथन ऐसे हैं, जिन पर अमल करके जिंदगी को सफल बनाया जा सकता है। देश के बहुत सारे लोग आज भी उनकी नीतियों का अनुसरण करके अपनी जिंदगी को खुशहाल बना रहे हैं।

इन्हें सोने न दें

आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि... विद्यार्थी सेवकः पान्यः क्षुधातों भयकातरः। भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधचेत॥ यहां आचार्य चाणक्य कुछ लोगों को जगाने की बात करते हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से दुःखी, भयभीत, भण्डारी, द्वारपाल- इन सातों को सोते हुए से जगा देना चाहिए। अर्थ यह है कि पढ़ाई करने वाले छात्र छात्राओं को, घर या दुकान के नौकर को, रास्ते में सोये हुए राहगीर को, भूखे व्यक्ति को, किसी बात से अत्यन्त डरे हुए व्यक्ति को, किसी गोदाम आदि के रक्षक-चौकीदार को तथा द्वारपाल (गेटकीपर) को सोने नहीं देना चाहिए। यदि ये सोये हुए हों, तो इन्हें जगा देना चाहिए।

इन्हें जगाएं नहीं

इसी के साथ आचार्य चाणक्य कुछ लोगों को कभी नींद से जगाए जाने की बात भी करते हैं, वह कहते हैं कि ... अहिं नृपं च शार्दूल वराटं बालकं तथा। परश्वानं च मूर्ख च सप्तसुप्तान्न बोधयेत्।। यहां आचार्य चाणक्य का कहना है कि सांप, राजा, शेर, बरं, बच्चा, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख यदि सो रहे हैं तो उन्हें भूलकर भी नहीं जगाना चाहिए। यदि आप इन लोगों को जगा देते हैं तो आपको हानि हो सकती है। आशय यह है कि यदि सांप, राजा, शेर, बरं (ततैया), बच्चा किसी दूसरे व्यक्ति का कुता और मूख, ये सात सो रहे हैं तो उन्हें सोते ही रहने दें। इन्हें उठाना अच्छा नहीं रहता।

इनसे कोई हानि नहीं

अर्थाधीताश्च पैर्वेदास्तथा शुद्रान्नभोजिनः। ते द्विजाः किं करिष्यन्ति निर्विषा इव पन्नगाः॥ आचार्य का कहना है कि धन के लिए वेदों का अध्ययन करने बाला, शुदाँ का अन्न खाने वाला ब्राह्मण विषहीन सांप के समान है। ऐसे ब्राह्मण का क्या करेंगे। आशय यह है कि वेदों का अध्ययन ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है, किन्तु जो ब्राह्मण धन कमाने के लिए वेद पड़ता है तथा शूद्रों का अन्न खाता है, वह ब्राह्मण विषहीन सांप के समान होत है। ऐसा ब्राह्मण अपने जीवन में कोई अच्छा काम नहीं कर सकता।

Chanakya Niti इनसे न डरें

यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः। निग्रहोऽनुग्रही नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति॥ आचार्य यहां कहते हैं कि जिसके रुष्ट होने पर कोई भय नहीं होता और न प्रसन्न होने पर धन ही मिलता है, जो किसी को दण्ड नहीं दे सकता तथा न किसी पर कृपा कर सकता है। ऐसा व्यक्ति रुष्ट होने पर क्या लेगा? आशय यह है कि जो व्यक्ति किसी ऊंचे पद पर न हो और धनवान भी न हो, ऐसा व्यक्ति रूठ जाने पर किसी का क्या बिगाड़ लेगा और प्रसन्न हो जाने पर किसी को क्या दे देगा? ऐसे व्यक्ति का रूठना या खुश हो जाना कोई माने नहीं रखता।

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