Monday, 4 December 2023

AJAB : यहां बाबा को चढ़ाया जाता है चने की दाल और प्याज का प्रसाद

Mahesh K Shiva सहारनपुर। आमतौर पर हिंदू देवी देवताओं के मंदिरों और मठों में प्रवेश करने से पहले जहां लहसून…

AJAB : यहां बाबा को चढ़ाया जाता है चने की दाल और प्याज का प्रसाद

Mahesh K Shiva
सहारनपुर। आमतौर पर हिंदू देवी देवताओं के मंदिरों और मठों में प्रवेश करने से पहले जहां लहसून और प्याज का सेवन प्रतिबंधित तो होता ही है, साथ ही मंदिरों में लहसून और प्याज का चढ़ाया जाना प्रतिबंधित है, लेकिन यहां पर एक ऐसे देवता हैं जिनके जिन्हें चने की दाल और प्याज का भोग अर्पित किया जाता है। यही चने की दाल और प्याज को प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता है।

यहां हर वर्ष लगने वाले मेलों में जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर लगने वाले मेला सहारनपुर की अनोखी पहचान व भाईचारे की एकता का प्रतीक है। पड़ोसी राज्यों तक से भादो माह में शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन जिले के अलावा पड़ोसी राज्यों तक से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां गंगोह रोड स्थित जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर पहुंच मन्नते मांगते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि जाहरवीर गोगा से मांगी मन्नते पूरी होती हैं। मान्यता है कि जाहरवीर बाबा को चने की दाल और प्याज बेहद पसंद थी। इसी वजह से उन्हें चने की दाल और प्याज का भोग लगाया जाता है। यह भी कहा जाता है। घर पर भी यदि जाहरवीर को चने की दाल और प्याज के साथ साथ सूखा आटा भेट किया जाता है।

किसी जमाने में यह मेला अंबाला रोड पर कुतुबशेर चौक से लेकर बड़ी नहर तक भरता था। बाद में प्रशासन ने इसके लिए भैरव मंदिर के बगल में स्थान नियत कर दिया था। इसके बाद से मेले की रौनक ओर बढ़ गई थी। दशमी के दिन शहर से करीब तीन किलो मीटर दूर गंगोह मार्ग स्थित जाहरवीर गोगा की म्हाड़ी पर विशाल मेला लगता है। एक माह तक शहर में भरमण करने व बेसेरों के बाद जाहरवीर गोगा के प्रमुख निशान नेजा सहित 26 छड़ियां शहर के विभिन्न इलाकों से बाजे गाजों व सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ भैरव मंदिर पहुंचती हैं, जहां विधिवत नेजा छड़ी के पूजन के उपरांत सभी छड़ियां म्हाड़ी की ओर प्रस्थान करती हैं।

म्हाड़ी पर पहले से ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु छड़ियों के पहुंचने के इंतजार में मौजूद होते हैं। जैसे ही छड़ियां अपने-अपने स्थलों पर पहुंची हैं, सर्व प्रथम प्रसाद चढ़ाने व मन्नत मांगने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ छड़ियों की ओर उमड़ पड़ती है। जहां कभी आम दिनों में सन्नाटा रहता है, जाहरवीर गोगा की शक्ति व उनके प्रति आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पांव रखने को जगह नही मिलती। दो दिन तक म्हाड़ी पर श्रद्धालुओं के दर्शन व पूजन के बाद तीसरे दिन वापस प्रस्थान कर जाती हैं।

क्या हैं जाहरवीर गोगा का इतिहास?
जाहरवीर का जन्म राज्सथान के चुरू जिले के गांव ददरेगा में हुआ था। चुरू जिले का नाम बाद में राजगढ़ हो गया। इनके पिता का नाम जेवर सिंह व माता का नाम बाछल था। ये राजा उमर सिंह के वंशज थे। जो अत्यन्त बलशाली वीर थे। इनके पास विशाल सेना व आलीशान भवन था। दान धर्म में बेहद रूचि रखते थे। इनके दर से कोई भी जरूरतमंद निराश नहीं लौटता था।
बताते है कि जाहरवीर गोगा के जन्म से पूर्व उनके पिता जेवर सिंह काफी सोच में रहते थे। एक दिन एक महात्मा उनके द्वार पर पहुंचे तो उन्होनें जेवर सिंह को आशीर्वाद देकर कहा कि तुम्हारें घर में ऐसा पुत्र पैदा होगा, जो दुष्टों का विनाश करेगा और न्यायधर्म की रक्षा करेगा। महात्मा जी के हुकुम पर बाग में कुएं का निर्माण कराने के साथ प्याऊ लगवाया गया था। महात्माओं के आर्शीवाद के बाद बाछल ने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम जाहरवीर रखा गया।

कबली भगत को दिया था चांदी का नेजा
बतातें हैं कि बाबा जाहरवीर गोगा अक्सर गंगा स्नान के लिए हरिद्वार जाया करते थे। अपनी यात्रा के दौरान वे यहां गंगोह मार्ग पर ही रुका करते थे। बाबा जाहरवीर ने कई सदियों पूर्व मछुआरे कबली भगत को को दर्शन देकर अपना चांदी का निशान नेजा दिया था और साथ ही यह भी कहा था कि वह मछली पकड़ने का काम छोड़कर इस स्थान पर म्हाड़ी बनवाकर पूजा करें। इस पर कबली भगत ने बाबा जाहरवीर गोगा के आगे अपनी जीविका चलाने की मजबूरी बताई, जिस पर बाबा ने कहा कि यदि वह भादो माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को उनके नाम का मेला भरवाएं तो उसकी पूरे वर्ष की रोजी-रोटी चलती रहेगी। कबली भगत ने उनकी आज्ञा को माना और उसी के अनुसार यहां म्हाड़ी का निर्माण करा दिया। तभी से म्हाड़ी स्थल पर जाहरवीर गोगा का यह ऐतिहासिक मेला लगता चला आ रहा है।

कोरोना की वजह से नहीं लग रहा मेला
वर्ष 2020 में शुरु हुए कोरोना की वजह से यहां पर न​गर निगम की ओर से आयोजित होने वाला मेला नहीं लग पा रहा है। इस साल भी कोरोना के दिशा निर्देशों का पालन होगा।

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