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इस काम के बिना अधूरी है हिन्दुओं की शादी, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

UP News in hindi

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UP News : हिन्दू धर्म में शादी को लेकर उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी के लिए एक विशेष प्रकार की रस्म को बेहद जरूरी करार दिया है। साथ ही कहा कि इस विशेष प्रकार की रस्म के बिना हिन्दू विवाह वैध नहीं है।

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आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर निवासी सत्यम सिंह ने अपनी अलग हुई पत्नी स्मृति सिंह पर दूसरी शादी का आरोप लगाते हुए याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। सत्यम सिंह ने कोर्ट से मांग की थी कि उसकी अलग हुई पत्नी को सजा मिलनी चाहिए। इसके जवाब में स्मृति सिंह ने इन आरोपों को खारिज करने की जवाबी याचिका दायर की थी।

क्या है पूरा मामला

याचिकाकर्ता स्मृति सिंह की शादी 2017 में सत्यम सिंह से हुई थी, लेकिन रिश्तों में कड़वाहट के कारण उन्होंने अपने पति का घर छोड़ दिया और दहेज के लिए उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई। बाद में पुलिस ने जांच-पड़ताल के बाद पति व ससुराल वालों के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल की गई। याचिकाकर्ता-पत्नी ने भरण-पोषण के लिए एक आवेदन दायर किया था।

इस पर पारिवारिक अदालत, मिर्ज़ापुर ने 11 जनवरी 2021 को सत्यम सिंह को पत्नी के पुनर्विवाह होने तक हर महीने 4000 रुपये भरण-पोषण के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके बाद पति ने 20 सितंबर 2021 को एक और शिकायत दर्ज की, जिसमें उसने आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी ने दूसरी शादी कर ली है।

मजिस्ट्रेट ने 21 अप्रैल 2022 को याचिकाकर्ता-पत्नी को तलब किया। जिसके बाद स्मृति सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। स्मृति सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा, “यह अच्छी तरह से तय है कि विवाह के संबंध में ‘अनुष्ठान’ शब्द का अर्थ है, ‘उचित समारोहों के साथ और उचित रूप में विवाह का जश्न मनाना।’ जब तक विवाह उचित रीति-रिवाजों के साथ मनाया या संपन्न नहीं किया जाता, तब तक इसे ‘संपन्न’ नहीं कहा जा सकता। अगर विवाह वैध विवाह नहीं है… तो यह कानून की दृष्टि में विवाह नहीं है। हिंदू कानून के तहत ‘सप्तपदी’ (अग्नि के समक्ष सात फेरों की रस्म) समारोह वैध विवाह के लिए आवश्यक सामग्रियों में से एक है।

कोर्ट ने ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 पर भरोसा किया, जो यह प्रावधान करती है कि हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है। दूसरा, ऐसे संस्कारों में ‘सप्तपदी’ शामिल है, जिसमें सात फेरे पूरे होने पर ही विवाह संपन्न होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पत्नी के खिलाफ मिर्ज़ापुर अदालत के समन आदेश और आगे की कार्यवाही को रद्द कर दिया।

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