संगम तट पर आस्था का महायोग : प्रयागराज में 25 लाख कल्पवासी जुटेंगे
कल्पवास का मतलब है नियम, संयम और साधना के साथ एक महीने तक मेला क्षेत्र में निवास करना। इस वर्ष 30 दिसंबर से कल्पवासियों का आगमन शुरू होगा और पौष शुक्ल पूर्णिमा यानी 3 जनवरी से लगभग 20 से 25 लाख श्रद्धालुओं का एकमाह का कल्पवास आरंभ होगा, जो माघ पूर्णिमा 1 फरवरी तक चलेगा।

UP News : प्रयागराज में हर साल आयोजित माघ मेले के दौरान गंगा और यमुना के पावन संगम तट पर लाखों श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। कल्पवास का मतलब है नियम, संयम और साधना के साथ एक महीने तक मेला क्षेत्र में निवास करना। इस वर्ष 30 दिसंबर से कल्पवासियों का आगमन शुरू होगा और पौष शुक्ल पूर्णिमा यानी 3 जनवरी से लगभग 20 से 25 लाख श्रद्धालुओं का एकमाह का कल्पवास आरंभ होगा, जो माघ पूर्णिमा 1 फरवरी तक चलेगा।
कल्पवासियों का आयोजन और व्यवस्था
कल्पवास में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न राज्यों और जिलों से श्रद्धालु पहले ही अपने शिविरों में स्थान आरक्षित कर चुके हैं। इन्हें दंडी बाड़ा, आचार्य बाड़ा, तीर्थ-पुरोहितों और खाक चौक के शिविरों में जगह दी जाती है। वर्ष 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी संगम तट पर एक माह तक कल्पवास कर चुके हैं।
कल्पवास के 21 विधि-विधान
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियम बताए हैं। इनमें सत्य व्रत, अहिंसा, काम-क्रोध का त्याग, इंद्रिय संयम, ब्रह्मचर्य पालन, सूर्योदय से पहले जागरण, नित्य त्रिकाल गंगा स्नान, मौन, जप-तप, सत्संग, हरिकथा श्रवण, एक समय भोजन और निरंतर ईश्वर स्मरण शामिल हैं। साथ ही कल्पवासी को निर्धारित क्षेत्र से बाहर नहीं जाना और साधु-संतों की सेवा करना भी आवश्यक है।
प्रमुख संगठन और व्यवस्थाएं
खाक चौक व्यवस्था समिति के प्रधानमंत्री जगद्गुरु संतोष दास सतुआ बाबा ने बताया कि श्रद्धालु नए साल की शुरुआत से पहले ही संगम तट पर पहुंचने लगेंगे। अखिल भारतीय दंडी संन्यासी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी ब्रह्माश्रम महाराज के अनुसार, पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक यह परंपरा चलती है। आचार्य बाड़ा के लगभग 300 शिविरों में लगभग 5 हजार कल्पवासियों के शामिल होने की संभावना है।
माघ मेले में कल्पवास की सांस्कृतिक महत्ता
किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर प्रो. (डॉ.) लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महाराज ने कहा कि माघ मेले में कल्पवास की परंपरा हमारी जीवंत संस्कृति का प्रतीक है। यह न केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव है, बल्कि धार्मिक अनुशासन और सामाजिक एकता की भी सीख देती है। यह कल्पवास माघ के महीने में हर साल प्रयागराज में होता है जिसे माघ मेला के नाम से जाता है।
UP News : प्रयागराज में हर साल आयोजित माघ मेले के दौरान गंगा और यमुना के पावन संगम तट पर लाखों श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। कल्पवास का मतलब है नियम, संयम और साधना के साथ एक महीने तक मेला क्षेत्र में निवास करना। इस वर्ष 30 दिसंबर से कल्पवासियों का आगमन शुरू होगा और पौष शुक्ल पूर्णिमा यानी 3 जनवरी से लगभग 20 से 25 लाख श्रद्धालुओं का एकमाह का कल्पवास आरंभ होगा, जो माघ पूर्णिमा 1 फरवरी तक चलेगा।
कल्पवासियों का आयोजन और व्यवस्था
कल्पवास में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न राज्यों और जिलों से श्रद्धालु पहले ही अपने शिविरों में स्थान आरक्षित कर चुके हैं। इन्हें दंडी बाड़ा, आचार्य बाड़ा, तीर्थ-पुरोहितों और खाक चौक के शिविरों में जगह दी जाती है। वर्ष 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी संगम तट पर एक माह तक कल्पवास कर चुके हैं।
कल्पवास के 21 विधि-विधान
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियम बताए हैं। इनमें सत्य व्रत, अहिंसा, काम-क्रोध का त्याग, इंद्रिय संयम, ब्रह्मचर्य पालन, सूर्योदय से पहले जागरण, नित्य त्रिकाल गंगा स्नान, मौन, जप-तप, सत्संग, हरिकथा श्रवण, एक समय भोजन और निरंतर ईश्वर स्मरण शामिल हैं। साथ ही कल्पवासी को निर्धारित क्षेत्र से बाहर नहीं जाना और साधु-संतों की सेवा करना भी आवश्यक है।
प्रमुख संगठन और व्यवस्थाएं
खाक चौक व्यवस्था समिति के प्रधानमंत्री जगद्गुरु संतोष दास सतुआ बाबा ने बताया कि श्रद्धालु नए साल की शुरुआत से पहले ही संगम तट पर पहुंचने लगेंगे। अखिल भारतीय दंडी संन्यासी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी ब्रह्माश्रम महाराज के अनुसार, पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक यह परंपरा चलती है। आचार्य बाड़ा के लगभग 300 शिविरों में लगभग 5 हजार कल्पवासियों के शामिल होने की संभावना है।
माघ मेले में कल्पवास की सांस्कृतिक महत्ता
किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर प्रो. (डॉ.) लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महाराज ने कहा कि माघ मेले में कल्पवास की परंपरा हमारी जीवंत संस्कृति का प्रतीक है। यह न केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव है, बल्कि धार्मिक अनुशासन और सामाजिक एकता की भी सीख देती है। यह कल्पवास माघ के महीने में हर साल प्रयागराज में होता है जिसे माघ मेला के नाम से जाता है।












