उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लुभाने की कवायद!
विनय संकोची उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे वैसे सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने…
चेतना मंच | September 30, 2021 4:50 AM
विनय संकोची
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे वैसे सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने में जुट गए हैं। भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आए जितिन प्रसाद को ताजा मंत्रिमंडल विस्तार में कैबिनेट मिनिस्टर बनाया है। जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में भाजपा चुनाव में इस्तेमाल करेगी। वैसे तो 2017 के चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा का ही साथ दिया था, लेकिन अब उनका मोहभंग हो चला है। भाजपा ने ब्राह्मणों को सरकार में और सरकार के बाहर वह सम्मान नहीं दिया जिसकी अपेक्षा ब्राह्मण समुदाय ने की थी।
एक समय उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय को सत्ता की धुरी के रूप में देखा जाता था, लेकिन पिछले तीन दशकों में राजनीतिक दलों के लिए ब्राह्मण मात्र एक वोट बैंक बनकर रह गया है। ब्राह्मण वोट बैंक पर सभी दलों की काग दृष्टि लगी हुई है। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्राह्मण वोट सबको चाहिए लेकिन ब्राह्मणों को सत्ता में सम्मान और स्थान देने को कोई तैयार नहीं है।
उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से अब तक छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए हैं – गोविंद बल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी, ये सभी कांग्रेसी थे। नारायण दत्त तिवारी तो तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इन ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों के कुल कार्यकाल 23 वर्ष तक उत्तर प्रदेश की सत्ता ब्राह्मण समुदाय के हाथ में ही रही।
1989 के बाद कांग्रेस सत्ता में नहीं आई और मंडल-कमंडल की राजनीति ने भी ब्राह्मण समुदाय को हाशिए पर धकेल दिया। कांग्रेस के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहे किसी भी राजनीतिक दल ने किसी ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। उत्तर प्रदेश में करीब 12% ब्राह्मण हैं और सत्ता के समीकरण बदलने में सक्षम माने जाते हैं।
चुनाव की आहट के साथ ही सभी दल स्वयं को “ब्राह्मण प्रेमी” साबित करने की कवायद में जुट गए हैं। बहुजन समाज पार्टी ने अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत करने की घोषणा की, तो समाजवादी पार्टी ने 1857 क्रांति के सूत्रधार मंगल पांडे की जन्मभूमि से ब्राह्मण सम्मेलनों के श्रीगणेश का बिगुल बजा दिया। जाहिर है इन तमाम सम्मेलनों में सपा-बसपा नेता अपनी सरकारों द्वारा ब्राह्मण समुदाय के लिए किए गए कामों को गिनवाने के अतिरिक्त कुछ और नहीं करेंगे, कुछ ब्राह्मणों को सम्मानित कर दिया जाएगा।
2014 के लोकसभा चुनावों में 72% ब्राह्मणों ने भाजपा गठबंधन को वोट दिया था। 2017 के विधानसभा चुनावों में 80% ब्राह्मण वोट भाजपा को मिले थे। प्रदेश में कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बाद और भाजपा के उदय के साथ ब्राह्मण भाजपा के साथ चले गए, हालांकि बाद में लगातार ब्राह्मणों को शिकायत बनी रही कि भाजपा सरकार में उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है, जिसका वादा किया गया था और जिसके वह हकदार भी हैं।
योगीराज में ब्राह्मणों पर कथित अत्याचार के खूब आरोप लगे, विपक्ष हमलावर रहा। हो सकता है कि आने वाले चुनावों में विपक्षी दल ब्राह्मणों पर हुए कथित अत्याचार का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाएं। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद जिस तरह से तमाम ब्राह्मण संगठनों ने गए तीन वर्षों में ब्राह्मणों की हत्याओं का डाटा सोशल मीडिया पर साझा किया, उसे योगी सरकार घिरती नजर आई थी।
ब्राह्मण वोटों को लेकर भाजपा संशय में है। उसी संशय से मुक्ति के लिए जितिन प्रसाद को चुनाव में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पेश किया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या दलबदल कर आए जितिन प्रसाद भाजपा की झोली में तमाम ब्राह्मण वोटों को डालने में सफल होंगे? राजनीति के जानकार इस प्रश्न का उत्तर “ना” में देख रहे हैं।