Gyanvapi Masjid Case : प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में वाराणसी के जिला न्यायाधीश का आदेश शुक्रवार को दरकिनार करते हुए आधुनिक पद्धति के आधार पर शिवलिंग का काल निर्धारित (यानि शिवलिंग कितना पुराना है अथवा यह कब स्थापित हुआ था) करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा ने वाराणसी के जिला जज द्वारा 14 अक्टूबर, 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश पारित किया। यह याचिका लक्ष्मी देवी और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी। वाराणसी की अदालत ने 16 मई, 2022 को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के दौरान मिले ढांचे की कार्बन डेटिंग सहित वैज्ञानिक जांच की याचिका ठुकरा दी थी।
Gyanvapi Masjid Case
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि शिवलिंग को क्षति पहुंचाए बगैर आधुनिक पद्धति के आधार पर काल निर्धारण की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए
अदालत ने इस संबंध में विभिन्न संस्थानों से रिपोर्ट भी मांगी थी। आईआईटी रुड़की द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि शिवलिंग की प्रत्यक्ष कार्बन डेटिंग संभव नहीं है और काल का निर्धारण सामग्री की प्रॉक्सी डेटिंग के साथ किया जा सकता है। इसके लिए शिवलिंग के आसपास की सामग्रियों का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है।
इस रिपोर्ट में आगे सुझाव दिया गया है कि सतह के नीचे कुछ जैविक सामग्रियों की डेटिंग से काल का निर्धारण किया जा सकता है, लेकिन उन जैविक सामग्रियों का शिवलिंग से संबंधित होना आवश्यक है।
प्रो. जावेद एन मलिक के सुझावों पर भी विचार
अदालत ने आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जावेद एन मलिक की ओर से ज्ञानवापी के लिए दिए गए सुझावों पर भी विचार किया।
प्रोफेसर मलिक ने सुझाव दिया कि भूमिगत सामग्री और ढांचे को समझने के लिए जीपीआर के जरिए सतह का एक विस्तृत सर्वेक्षण करना आवश्यक है। इससे उस स्थान पर यदि कोई प्राचीन ढांचे का अवशेष दबा है, तो उसे पहचानने में मदद मिलेगी।
अदालत ने वाराणसी के जिला जज को कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच कराने के हिंदू भक्तों के आवेदन पर कानून के मुताबिक कार्यवाही करने का निर्देश दिया। अदालत के इस निर्देश के साथ उस ढांचे की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक ढंग से काल निर्धारण का रास्ता साफ हो गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपने 52 पेज की रिपोर्ट में विशेषज्ञ मत दिया है कि उस ढांचे का वैज्ञानिक पद्धति से किसी तरह की क्षति पहुंचाए बगैर काल निर्धारण किया जा सकता है। यह मत आईआईटी कानपुर, आईआईटी रुड़की, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ और एक अन्य शैक्षणिक संस्थान द्वारा किए गए अध्ययनों पर आधारित है।
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पुनरीक्षण याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी, “जिला जज ने बिना किसी आधार के आदेश पारित किया, जबकि उन्हें एएसआई से विशेषज्ञ मत लेना चाहिए था कि क्या शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बगैर उसकी कार्बन डेटिंग की जा सकती है।”
अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी और मुख्य स्थायी अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय ने राज्य सरकार की ओर से कहा कि यदि उस ढांचे को नुकसान पहुंचाए बगैर कार्बन डेटिंग की जा सकती है तो राज्य को इस पर कोई आपत्ति नहीं है।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने 4 नवंबर, 2022 को इस मामले में एएसआई से जवाब मांगा था और एएसआई महानिदेशक को अपना मत रखने का निर्देश दिया था।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी एवं अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना का अधिकार दिए जाने की मांग के साथ वाराणसी की जिला अदालत में एक वाद दायर किया गया था।
आठ अप्रैल, 2021 को वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का एक समग्र सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया था और इस सर्वेक्षण के दौरान, 16 मई, 2022 को कथित शिवलिंग पाया गया।
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