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UP Election: पंचायत चुनाव में ही हो गया था इशारा, यूपी में कौन सा दल बना रहा सरकार

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नोएडा। उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) जल्‍द ही होने वाले हैं। इन चुनावों को लेकर भाजपा, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बसपा, रालोद, कांग्रेस समेत अन्‍य दल चुनावी मैदान में कूद चुके हैं. लगभग हर दल ने पहले चरण के चुनावों (UP Election) के लिए अपने-अपने उम्‍मीदवारों की घोषणा कर दी है. इस बीच सभी दल अपनी-अपनी जीत का दावा भी ठोंक रहे हैं. लेकिन एक बात गौर करने वाली यह भी है कि पिछले साल यूपी में हुए पंचायत चुनावों में इस बात का इशारा मिल गया था कि प्रदेश में कौन सा दल सरकार बना सकता है. ऐसे में भाजपा, सपा या कांग्रेस, इनमें से कौन जीतेगा, यह तो मतदाता ही तय करेंगे, लेकिन चुनावी विश्‍लेषण भी अहम तथ्‍य सामने ला रहा है.

यूपी में पिछले साल 3050 जिला पंचायतों (UP Panchayat Chunav) की सीटों पर चुनाव (UP Election) हुए थे. इनमें से 770 से अधिक सीटें समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के समर्थित उम्‍मीदवारों ने जीती थीं. इन चुनावों में अयोध्‍या, वाराणसी और मथुरा के मामलों को उछालकर भी भाजपा पीछे रहे गई थी. मतलब उसकी हिंदुत्‍व की राजनीति भी कुछ खास असर नहीं दिखा पाई थी. इसका मतलब साफ था कि राम मंदिर बनवाकर अब वोट हासिल करना कठिन है. हालांकि इन चुनावों में बड़ी संख्‍या निर्दलीय उम्‍मीदवारों की भी थी. जो किसी भी पार्टी के साथ जाने को अधिकांशत: तैयार रहते हैं.

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हालांकि हम पंचायत चुनाव के नतीजों के आधार पर यह नहीं कह सकते कि किस पार्टी को जनादेश मिलेगा. लेकिन सपा की ओर से इन चुनावों (UP Election) में बेहतर प्रदर्शन से राज्‍य के मतदाताओं के मूड को लेकर कुछ बदलाव के संकेत जरूर मिले थे. इन चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी.

वहीं राज्‍य में पंचायत चुनाव में बीजेपी दूसरे स्‍थान पर रही थी. ऐसे में कहा जा रहा था कि वह अपने निर्दलीयों को अपने में शामिल करने की जुगत भी थी. वहीं विधानसभा चुनावों में उसे कड़ी चुनौती जरूर मिलने वाली है, लेकिन इस बात भी संभावनाएं हैं कि उसके पास जीतने का मौका है. अगर राज्‍य में भाजपा हारती है तो इसके पीछे बढ़ती बेरोजगारी, आय असमानता और खराब कानून व्‍यवस्‍था जैसे मुद्दे उसके लिए हानिकारक हो सकते हैं. पश्चिम यूपी की बात करें तो पिछले चुनाव में उसे जाट समुदाय से भरपूर वोट मिले थे. लेकिन किसान आंदोलन पर उसके रुख के कारण अब माना जा रहा है कि उसका यह वोटबैंक रालोद की ओर जा सकता है. वैश्‍य समुदाय भी विमुद्रीकरण, कोविड लॉकडाउन और जीएसटी जैसे मुद्दों पर पहले ही अपनी नाराजगी भाजपा के खिलाफ दिखा चुका है.

UP Election 2017 चुनाव के नतीजे.

अगर विपक्ष का अच्‍छा गठबंधन जोर लगा देता है तो भाजपा की हार भी विशेषज्ञ देख रहे हैं. इनमें अहम रोल सपा का हो सकता है. यह भी कहा जा रहा था कि अगर सपा यूपी में अकेले चुनाव लड़ती तो इसकी जीत की सीटों की संख्‍या कम रह सकती थी. 17वीं विधानसभा का कार्यकाल 15 मई तक है. 17वीं विधानसभा के लिए 403 सीटों पर चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक 7 चरणों में हुए थे. उस चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर पहली बार यूपी विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सका था. सपा को 47 सीट और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं. इसके अलावा प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई थी. इस बार सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है.

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वहीं पंचायत चुनाव के आधार पर यह साफ तौर पर सपा की जीत की भविष्‍यवाणी नहीं की जा सकती है क्‍योंकि वो चुनाव सपा ने अपने चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ा था. उसने उम्‍मीदवारों को समर्थन दिया था. पंचायत चुनाव में उम्‍मीदवार को निजी छवि के आधार पर वोट मिलते हैं, ना कि पार्टी को देखकर. ऐसे में समाजवादी पार्टी को और मजबूत होना था. इसके लिए बड़े ओबीसी वोटबैंक समर्थित स्‍वामी प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को अखिलेश यादव भाजपा से सपा में लाने में सफल रहे हैं. इसके अलावा उनके पास सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर का भी साथ है. पिछले चुनाव में उन्‍होंने 4 सीटें जीती थीं. वहीं आजाद समाज पार्टी के दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की भी अखिलेश से मुलाकात की खबरें हैं. ऐसे में सपा के पास इन चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने का चांस है.

वहीं कांग्रेस की बात करें तो पिछले उत्‍तर प्रदेश चुनावों, लोकसभा चुनावों और पंचायत चुनावों में यह बात साफ हो गई थी कि पार्टी ने अपना बड़ा मतदाता खो दिया है. इस बार कांग्रेस ने सपा से गठबंधन भी नहीं किया है. ऐसे में उसे कम ही सीटें मिलने के आसार लगाए जा रहे हैं. हालांकि वो सपा की सीटों पर प्रभाव डाल सकती है.

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