UP News : उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला यह है कि सिविल प्रकृति के मामले में अपराधिक (क्रिमिनल केस) मामला नहीं चलाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के इस बड़े फैसले की खूब तारीफ हो रही है। उधर सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने निर्देश जारी किया है कि केवल किसी व्यक्ति के इकबालिया बयान के आधार पर चार्जशीट दाखिल नहीं की जाएगी।
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सिविल मैटर में क्रिमिनल केस नहीं
उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। अपने फैसले में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि आपराधिक केस की परिस्थितियों से स्पष्ट हो रहा हो कि विवाद की प्रकृति सिविल है तो हाईकोर्ट अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर आपराधिक कार्यवाही रद्द कर सकता है। कोर्ट ने मऊ के कोतवाली क्षेत्र में जमीन के बैनामे को लेकर कपट व धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज मुकदमे की संपूर्ण कार्रवाई को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सेवाती देवी व छह अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है।
याची के वकील ने दलील दी कि जमीन के बैनामे को लेकर हुए विवाद के सिविल वाद को आपराधिक केस में तब्दील किया गया है। विवेचना के दौरान दोनों पक्षों में समझौता भी हो गया। शिकायतकर्ता ने कहा कि जमीन का बैनामा हो चुका है। वह केस नहीं चलाना चाहते। विवेचना अधिकारी ने शिकायतकर्ता के बयान पर ध्यान दिए बगैर चार्जशीट दाखिल कर दी।
इकबालिया बयान पर दाखिल नहीं होगी चार्जसीट
एक दूसरे मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने बड़ा आदेश जारी किया है। उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया डीजीपी प्रशांत कुमार ने मातहतों को निर्देश दिया है कि वे केवल इकबालिया बयान के आधार पर ही अभियुक्तों एवं सह- अभियुक्तों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल न करें, बल्कि पुख्ता साक्ष्य जुटाने के बाद ही इसकी प्रक्रिया पूरी करें। उन्होंने सभी कमिश्नरेट और जिला पुलिस के प्रभारियों को निर्देश दिया है कि वह पता लगाएं कि विवेचना में पुख्ता साक्ष्य जुटाए गए हैं कि नहीं।
उन्होंने इसकी अवलेहना करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को भी कहा है। दरअसल, बीते अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सैनुज बंसल बनाम यूपी विशेष अनुज्ञा याचिका पर सुनवाई के दौरान आगरा पुलिस द्वारा अभियुक्तों के विरुद्ध मात्र अपराध की स्वीकारोक्ति के आधार पर आरोपपत्र भेजने पर आपत्ति जताई थी। साथ ही डीजीपी को इस बाबत अपनाई जा रही नीति के बारे में शपथ पत्र के जरिये जानकारी देने को कहा था। अदालत ने अपने निर्देशों में इस तरीके को गैरकानूनी करार दिया था। UP News
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