पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हवा पर योगी सरकार सख्त, 7 विभागों से रिपोर्ट तलब
यह निर्देश वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़ी एजेंसी/आयोग के पत्र के अनुपालन में जारी हुए हैं, ताकि उत्तर प्रदेश के एनसीआर बेल्ट में प्रदूषण नियंत्रण केवल “अभियान” नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली मापनीय रणनीति बनकर लागू हो सके।

UP News : दिल्ली -एनसीआर की सरहद से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर योगी सरकार ने रुख और कड़ा कर दिया है। प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए शासन ने सात विभागों से अब तक उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। साथ ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद समेत मेरठ, हापुड़–पिलखुआ, बुलंदशहर, खुर्जा, बागपत–बड़ौत और मुजफ्फरनगर के विकास प्राधिकरणों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि वे “सालभर लागू” रहने वाली वार्षिक कार्ययोजना (Annual Action Plan) बनाकर शासन को सौंपें ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण पर नियंत्रण सिर्फ ‘सीजनल’ अभियान न रहे, बल्कि पूरे वर्ष सतत और परिणाम-आधारित रूप से लागू की जा सके।
एनसीआर बेल्ट में “धूल-धुआं” सबसे बड़ा खतरा
शासन की प्राथमिकता अब एनसीआर बेल्ट और उससे सटे उत्तर प्रदेश के जिलों में प्रदूषण के “असली कारणों” पर सीधी चोट करने की है। अधिकारियों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि इस बार रिपोर्ट सिर्फ कागजों की खानापूरी न बने, बल्कि जमीन पर दिखने वाले असरदार कदमों का पूरा ब्लूप्रिंट सामने आए अब तक क्या कार्रवाई हुई, कहां ढिलाई या कमी रही, किन बिंदुओं पर तुरंत सुधार जरूरी है और आगे उत्तर प्रदेश में निगरानी, नियंत्रण व जवाबदेही की व्यवस्था किस तरह मजबूत की जाएगी।
विकास प्राधिकरणों से मांगा गया “साल भर का रोडमैप”
उत्तर प्रदेश में एनसीआर से सटे जिलों के विकास प्राधिकरणों को सरकार ने साफ-साफ “टास्क मोड” में डाल दिया है। आदेश है कि हर प्राधिकरण अपने इलाके की वर्तमान वायु गुणवत्ता की तस्वीर शासन के सामने रखे, यह बताए कि प्रदूषण घटाने के लिए अब तक जमीन पर क्या-क्या कदम उठाए गए, और 2026 के लिए महीने-दर-महीने/सीजन-वार एक्शन प्लान भी पेश करे। खास तौर पर निर्माण स्थलों पर उड़ती धूल को रोकने, मलबा प्रबंधन, नियमित पानी के छिड़काव, और ग्रीन कवर बढ़ाने जैसी कार्रवाइयों का स्पष्ट रोडमैप मांगा गया है। यह निर्देश वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़ी एजेंसी/आयोग के पत्र के अनुपालन में जारी हुए हैं, ताकि उत्तर प्रदेश के एनसीआर बेल्ट में प्रदूषण नियंत्रण केवल “अभियान” नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली मापनीय रणनीति बनकर लागू हो सके।
सात विभागों को सौंपा गया जिम्मेदारी का दायरा
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर इस बार विभागों की जवाबदेही तय कर दी है। शासन स्तर पर कृषि, परिवहन, नगर विकास, गृह, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास, लोक निर्माण (PWD) और आवास एवं शहरी नियोजन विभागों से प्रस्ताव और विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है। इन विभागों को यह स्पष्ट करना होगा कि प्रदेश में सालभर हवा की गुणवत्ता के औसत स्तर में सुधार कैसे लाया जाएगा, AQI/PM की निगरानी रोजाना या तय अंतराल पर किस सिस्टम से होगी, और प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर समझते हुए हॉटस्पॉट/संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कैसे की जाएगी। साथ ही, सरकार ने 2021 से 2025 के बीच किए गए सुधारात्मक कार्यों का लेखा-जोखा और 2026 में लागू होने वाले नए, ठोस और परिणाम-आधारित कदमों का रोडमैप भी मांगा है—ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण सिर्फ मौसमी कवायद नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली रणनीति बन सके।
पूर्वी यूपी में भी बढ़ी चिंता
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी प्रदूषण का असर तेज दिख रहा है। प्रयागराज में हाल के दिनों में हवा की गुणवत्ता गंभीर बताई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार PM2.5 के स्तर में बेहद ऊंची रीडिंग दर्ज होने की बात सामने आई है। हालात को देखते हुए शहर में कई इलाकों में पानी का छिड़काव शुरू किया गया है और डॉक्टरों ने खासकर सुबह-शाम बाहर निकलने से बचने व मास्क के इस्तेमाल की सलाह दी है। विशेषज्ञों के मुताबिक तापमान गिरने के साथ कोहरा-धुंध प्रदूषक कणों को हवा में लंबे समय तक रोक रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश के कई शहरों में चल रहे पुनर्विकास/निर्माण कार्य भी धूल बढ़ाने का बड़ा कारण बन रहे हैं। प्रयागराज जैसे शहरों में स्टेशन, बस अड्डा, मेला क्षेत्र सहित कई जगहों पर काम तेज होने से धूल का असर बढ़ रहा है, हालांकि संबंधित एजेंसियों द्वारा छिड़काव और अस्थायी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। UP News
UP News : दिल्ली -एनसीआर की सरहद से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर योगी सरकार ने रुख और कड़ा कर दिया है। प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए शासन ने सात विभागों से अब तक उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। साथ ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद समेत मेरठ, हापुड़–पिलखुआ, बुलंदशहर, खुर्जा, बागपत–बड़ौत और मुजफ्फरनगर के विकास प्राधिकरणों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि वे “सालभर लागू” रहने वाली वार्षिक कार्ययोजना (Annual Action Plan) बनाकर शासन को सौंपें ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण पर नियंत्रण सिर्फ ‘सीजनल’ अभियान न रहे, बल्कि पूरे वर्ष सतत और परिणाम-आधारित रूप से लागू की जा सके।
एनसीआर बेल्ट में “धूल-धुआं” सबसे बड़ा खतरा
शासन की प्राथमिकता अब एनसीआर बेल्ट और उससे सटे उत्तर प्रदेश के जिलों में प्रदूषण के “असली कारणों” पर सीधी चोट करने की है। अधिकारियों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि इस बार रिपोर्ट सिर्फ कागजों की खानापूरी न बने, बल्कि जमीन पर दिखने वाले असरदार कदमों का पूरा ब्लूप्रिंट सामने आए अब तक क्या कार्रवाई हुई, कहां ढिलाई या कमी रही, किन बिंदुओं पर तुरंत सुधार जरूरी है और आगे उत्तर प्रदेश में निगरानी, नियंत्रण व जवाबदेही की व्यवस्था किस तरह मजबूत की जाएगी।
विकास प्राधिकरणों से मांगा गया “साल भर का रोडमैप”
उत्तर प्रदेश में एनसीआर से सटे जिलों के विकास प्राधिकरणों को सरकार ने साफ-साफ “टास्क मोड” में डाल दिया है। आदेश है कि हर प्राधिकरण अपने इलाके की वर्तमान वायु गुणवत्ता की तस्वीर शासन के सामने रखे, यह बताए कि प्रदूषण घटाने के लिए अब तक जमीन पर क्या-क्या कदम उठाए गए, और 2026 के लिए महीने-दर-महीने/सीजन-वार एक्शन प्लान भी पेश करे। खास तौर पर निर्माण स्थलों पर उड़ती धूल को रोकने, मलबा प्रबंधन, नियमित पानी के छिड़काव, और ग्रीन कवर बढ़ाने जैसी कार्रवाइयों का स्पष्ट रोडमैप मांगा गया है। यह निर्देश वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़ी एजेंसी/आयोग के पत्र के अनुपालन में जारी हुए हैं, ताकि उत्तर प्रदेश के एनसीआर बेल्ट में प्रदूषण नियंत्रण केवल “अभियान” नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली मापनीय रणनीति बनकर लागू हो सके।
सात विभागों को सौंपा गया जिम्मेदारी का दायरा
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर इस बार विभागों की जवाबदेही तय कर दी है। शासन स्तर पर कृषि, परिवहन, नगर विकास, गृह, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास, लोक निर्माण (PWD) और आवास एवं शहरी नियोजन विभागों से प्रस्ताव और विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है। इन विभागों को यह स्पष्ट करना होगा कि प्रदेश में सालभर हवा की गुणवत्ता के औसत स्तर में सुधार कैसे लाया जाएगा, AQI/PM की निगरानी रोजाना या तय अंतराल पर किस सिस्टम से होगी, और प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर समझते हुए हॉटस्पॉट/संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कैसे की जाएगी। साथ ही, सरकार ने 2021 से 2025 के बीच किए गए सुधारात्मक कार्यों का लेखा-जोखा और 2026 में लागू होने वाले नए, ठोस और परिणाम-आधारित कदमों का रोडमैप भी मांगा है—ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण सिर्फ मौसमी कवायद नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली रणनीति बन सके।
पूर्वी यूपी में भी बढ़ी चिंता
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी प्रदूषण का असर तेज दिख रहा है। प्रयागराज में हाल के दिनों में हवा की गुणवत्ता गंभीर बताई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार PM2.5 के स्तर में बेहद ऊंची रीडिंग दर्ज होने की बात सामने आई है। हालात को देखते हुए शहर में कई इलाकों में पानी का छिड़काव शुरू किया गया है और डॉक्टरों ने खासकर सुबह-शाम बाहर निकलने से बचने व मास्क के इस्तेमाल की सलाह दी है। विशेषज्ञों के मुताबिक तापमान गिरने के साथ कोहरा-धुंध प्रदूषक कणों को हवा में लंबे समय तक रोक रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश के कई शहरों में चल रहे पुनर्विकास/निर्माण कार्य भी धूल बढ़ाने का बड़ा कारण बन रहे हैं। प्रयागराज जैसे शहरों में स्टेशन, बस अड्डा, मेला क्षेत्र सहित कई जगहों पर काम तेज होने से धूल का असर बढ़ रहा है, हालांकि संबंधित एजेंसियों द्वारा छिड़काव और अस्थायी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। UP News












