UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों डीएनए, वंश और प्रतीकों के सहारे राजनीतिक बयानबाजी का स्तर हास्यास्पद और व्यक्तिगत हमलों तक पहुंच चुका है। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं के बीच शुरू हुआ यह विवाद अब प्रतीकात्मक वंश युद्ध जैसा दिखने लगा है।
डीएनए विवाद की शुरुआत
अखिलेश यादव ने अपने एक भाषण में खुद को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताया था, जिसे भाजपा के कई नेताओं ने राजनीतिक रूप से “हास्यास्पद” और “गैर-जरूरी” बयान करार दिया। इसके जवाब में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को लेकर सपा की टिप्पणी आई, जिससे मामला गरमाया। इसके बाद इस विवाद में ओमप्रकाश राजभर की एंट्री होती है। कैबिनेट मंत्री और सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने इस वंश विवाद में व्यंग्यपूर्ण शैली में कूदते हुए कहा कि अगर अखिलेश यादव श्रीकृष्ण के वंशज हैं, तो बृजेश पाठक ब्रह्मा जी के वंशज हैं। जिन्होंने सृष्टि की रचना की। ऐसे में ब्रह्मा जी के वंशज से अखिलेश कैसे जीत सकते हैं? उन्होंने सपा पर व्यक्तिगत और पारिवारिक मूल्यों को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिसने अपने पिता और चाचा का सम्मान नहीं किया, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?
सालार मसूद गाजी पर बयान
बहराइच के संदर्भ में राजभर ने ऐतिहासिक संदर्भों को छूते हुए कहा कि जिसे महाराजा सुहेलदेव ने हराया, मेला उसके नाम का नहीं, बल्कि सुहेलदेव के नाम का होना चाहिए। उन्होंने 10 जून को “विजय दिवस” मनाने और महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में बड़ा मेला लगाने की घोषणा की। रिपोर्ट कार्ड पर सकारात्मक रुख जताते हुए कहा कि भाजपा द्वारा विधायकों के “रिपोर्ट कार्ड” तैयार कराए जाने को ओमप्रकाश राजभर ने सराहना की है। हम विधायक हैं और जनता के बीच रहना हमारा काम है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी। UP News
राजनीतिक बहसें नीतियों और मुद्दों पर होनी चाहिए
यह बयानबाजी दर्शाती है कि कैसे आस्था और पौराणिक कथाओं को चुनावी विमर्श में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सार्वजनिक मंचों पर निजी संबंधों (जैसे पिता-चाचा विवाद) को उछालना दर्शाता है कि राजनीतिक विमर्श का स्तर गिर रहा है। राजभर भाजपा गठबंधन में होते हुए भी स्वतंत्र स्वर में बोलते हैं। लोकल और सामाजिक मुद्दों (जैसे सुहेलदेव मेला) को उठाकर अपनी राजनीतिक पहचान बनाए रखने की कोशिश करते हैं। यह विवाद एक बार फिर यह याद दिलाता है कि राजनीतिक बहसें नीतियों और मुद्दों पर होनी चाहिए, वंश और पौराणिक तुलना पर नहीं। ओमप्रकाश राजभर जैसे नेता इसमें हास्य और व्यंग्य का पुट डालकर राजनीतिक धार को और तेज कर देते हैं। UP News
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