UP News : देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासत गर्म है। वहीं अगर यूपी की बात करें तो यहां 19 मई को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चुनाव की शुरुआत हुई। लेकिन मतदान की चर्चा से ज्यादा यहाँ उन सीटों की चर्चा रहीं जहाँ नामांकन के आखिरी समय में प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हुआ। अमेठी, रायबरेली और कैसरगंज लोकसभा सीट का नाम इसमें प्रमुख हैं। हालांकि, पहले कैसरगंज से बृजभूषण शरण सिंह का टिकट कटा फिर इसके बाद दिल्ली की राऊत एवेंन्यू कोर्ट से महिला पहलवानों के मामले में आरोप तय हुए। जिसके बाद से सियासी समीकरण बदले हुए नजर आ रहें हैं।
सीएम योगी ने कैसरगंज में की जनसभा
जिसको लेकर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी चिंतित नजर आ रहा है। क्योंकि इसका असर न सिर्फ कैसरगंज बल्कि देश की बची हुई लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिल सकता है। बता दें कि दिल्ली के जंतर मंतर पर महिला पहलवानों ने काफी दिन तक प्रदर्शन किया। वहीं बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की। इसके बाद से जाट वोट बैंक और महिला पहलवानों को सपोर्ट करने वाले राज्यों की लोकसभा सीटों पर काफी असर देखने को मिल सकता है। हालांकि चुनाव प्रचार को धार देने के यूपी समेत बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जुटा है। जिससे की नाराज वोटबैंक को वो साधने में कामयाब हो सकें। इसका उदाहरण बीते रविवार को कैसरगंज में सीएम योगी की हुई जनसभा से भी लगाया जा सकता है।
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साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी
वैसे भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट को लेकर काफ़ी मंथन किया उसके बाद जाकर यहाँ उम्मीदवार फ़ाइनल हो सका। इसकी दो वजह मानी जा रहीं हैं पहली ये कि महिला पहलवानों का पश्चिमी यूपी, हरियाणा, राजस्थान समेत कई राज्यों और जाति वर्ग विशेष के लोग उनका सपोर्ट कर रहें थे तो वहीं दूसरा ये कि कैसरगंज, गोण्डा, अयोध्या समेत कई लोकसभा सीटों पर ब्रजभूषण सिंह का प्रभाव हैं ऐसे में बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए करण भूषण सिंह को चुनावी मैदान में उतारने का काम किया।बीजेपी की इस रणनीति पर एक कहावत एक दम फिट बैठती है कि साँप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे।
2014 में खुद नहीं लड़ना चाहते थे चुनाव
बता दें कि बृजभूषण शरण एक किस्सा सुनाते थे किस्सा यूं था कि 2014 में वह खुद नहीं बल्कि बेटे प्रतीक भूषण को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें ही टिकट दिया। इस बार बृजभूषण खुद टिकट चाहते थे, लेकिन बेटे करण भूषण को टिकट मिला। शायद इसलिए क्योंकि क्षत्रिय वोट की नाराजगी की कोई आशंका न रहे। दूसरी बात करण भूषण पर कोई आरोप नहीं है। कुश्ती संघ से पांच साल से जुड़े होने की वजह से करण भूषण की पकड़ ठाकुर- यादव दोनों के बीच अच्छी कही जाती है। हालांकि वो बात अलग है कि बेटे को टिकट देने से बीजेपी का नुकसान भले ही ना हो लेकिन एक बात तो साफ है कि महिला पहलवानों के आरोप जरूर गंभीर थे शायद यही वजह भी रही कि कोर्ट से भी उनपर आरोप तय हुए।
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तीन बार लोकसभा का जीते चुनाव
वहीं राजनीतिक जानकार कहते हैं कि पहले की तरह न सही, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह का कैसरगंज और आसपास के इलाकों में दबदबा तो माना ही जाता है। जब बीजेपी एक एक सीट जीतना महत्वपूर्ण मान रही हो, निश्चित तौर पर कैसरगंज में कोई जोखिम तो नहीं ही उठाना चाह रही होगी। हिमाचल प्रदेश चुनाव में प्रेमकुमार धूमल की नाराजगी का खामियाजा तो भुगत ही चुकी है। धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर के होते हुए भी उनके संसदीय क्षेत्र में ही बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था। बृजभूषण शरण सिंह जो लगातार तीन बार से जीत चुके हैं। उसके बाद उनका टिकट कटना स्वाभिमान से समझौता करने जैसा ही कहा जा सकता है। UP News
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