Saturday, 20 April 2024

मुसलमान पूरी तरह शरीअत पर अमल करें, यूनिफॉर्म सिविल कोड का इरादा छोड़े सरकार : पर्सनल लॉ बोर्ड

UP News : लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने रविवार को मुसलमानों…

मुसलमान पूरी तरह शरीअत पर अमल करें, यूनिफॉर्म सिविल कोड का इरादा छोड़े सरकार : पर्सनल लॉ बोर्ड

UP News : लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने रविवार को मुसलमानों से पूरी तरह शरिअत पर अमल करने की अपील करते हुये सरकार से समान नागरिक संहिता का इरादा छोड़ने का अनुरोध किया है तथा कहा है कि देश के संविधान में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी है।

UP News All India Muslim Personal Law Board

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में नदवतुल उलेमा लखनऊ में बोर्ड की कार्यकारिणी की रविवार को हुयी बैठक में प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों से यह आह्वान किया गया।

बैठक के बाद बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ उल्लाह रहमानी की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘बोर्ड की बैठक मुसलमानों को यह याद दिलाती है कि मुसलमान का मतलब अपने आपको अल्लाह के हवाले करना है, इसलिए हमें पूरी तरह शरीअत पर अमल करना है।’

बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा कि देश के संविधान में बुनियादी अधिकारों में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी दी गयी है, इसमें पर्सनल लॉ शामिल है। इसलिए हुकूमत से अपील है कि वह आम नागरिकों की मजहबी आजादी का भी एहतराम करे, क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू करना अलोकतांत्रिक होगा। उन्होंने सरकार से इस इरादे को छोड़ने की अपील की है।

धर्मांतरण को लेकर बनाए गए विभिन्‍न राज्‍यों के कानूनों पर क्षोभ प्रकट करते हुए बोर्ड ने यह भी प्रस्‍ताव पारित किया है कि धर्म का संबंध उसके यकीन से है, इसलिए किसी भी धर्म को अपनाने का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है।

All India Muslim Personal Law Board

उन्होंने बताया कि इसी बिना पर हमारे संविधान में इस अधिकार को स्‍वीकार्य किया गया है और हर नागरिक को किसी भी धर्म को अपनाने तथा धर्म का प्रचार करने की पूरी आजादी दी गयी है, लेकिन वर्तमान में कुछ प्रदेशों में ऐसे कानून लाए गए हैं, जो नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करने की कोशिश है जो कि निंदनीय है।

उल्लेखनीय है कि उत्‍तर प्रदेश में उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 के अनुसार राज्य में गैर कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराने या पहचान छिपाकर शादी करने के मामले में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह भी प्रस्ताव पारित किया कि इबादतगाहों से संबंधित 1991 का कानून खुद हुकूमत का बनाया हुआ कानून है, जिसे संसद ने पारित किया है उसको कायम रखना सरकार का कर्तव्‍य है और इसमें देश का फायदा भी है।

बोर्ड के महासचिव रहमानी ने 1991 के कानून की याद दिलाते हुए बताया कि यह उपासना स्थल अधिनियम-1991’ को बरकरार रखने के लिए बोर्ड पैरवी कर रहा है।

उल्लेखनीय है कि वाराणसी में ज्ञानवापी और गौरी श्रृंगार विवाद तथा मथुरा में श्रीकृष्ण जन्‍म भूमि और शाही ईदगाह जैसे कुछ मामले हाल में सामने आये हैं जिनमें इस अधिनियम का हवाला दिया गया।

यह अधिनियम कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के उपासना स्थल को, किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता और यदि कोई इसका उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है।

यह कानून तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार 1991 में लेकर आई थी, यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।

बोर्ड की बैठक में मुसलमानों से अधिक से अधिक संख्या में अपने शैक्षिक संस्थान कायम करने तथा आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ सभ्‍यता और संस्‍कृति की सुरक्षा को भी यकीनी बनाने की दिशा में काम करने की अपील की गयी है।

बोर्ड ने प्रस्ताव के जरिये औरतों के साथ इंसाफ, बुजुर्गों के साथ अच्‍छा व्‍यवहार, शादी में फिजूलखर्ची से परहेज, अपने मामलों को धार्मिक रहनुमाओं से हल कराने की कोशिश, गलत कार्यों से दूरी बनाए रखना, निकाह के बगैर औरत-मर्द को जिस्मानी संबंध से दूर रहने के लिये कहा है। बोर्ड ने मुसलमानों से यह भी अपील की कि बोर्ड के बनाए हुए निकाहनामें का प्रयोग करें।

सूत्रों ने बताया कि बोर्ड की बैठक में असम सरकार द्वारा बाल विवाह के खिलाफ शुरू किये गये अभियान की भी निंदा की गयी, बोर्ड ने इसकी निंदा करते हुए मामले का पुरजोर विरोध करने का भी फैसला किया।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने शनिवार को कहा था कि राज्य पुलिस द्वारा पिछले दिन से शुरू किया गया बाल विवाह के खिलाफ अभियान 2026 में अगले विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा।

राज्य सरकार के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और जिन्होंने 14-18 वर्ष आयु वर्ग की लड़कियों से शादी की है उनके खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत मामले दर्ज किए जाएंगे।

बोर्ड की बैठक में आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी तथा मौलाना महमूद मदनी के अलावा कार्यकारिणी के अन्य सदस्य भी शामिल हुये।

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