UP News : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की गलियों में एक ऐसी दुकान है जहां वक्त थमता नहीं बल्कि फिर से चल पड़ता है। यहां बैठते हैं जावेद खान। जावेद खान ऐसे शख्स हैं जिन्हें लोग प्यार से “घड़ियों का जादूगर” कहते हैं। वजह भी वाजिब है जावेद वो घड़ियां भी ठीक कर देते हैं जिनके पुर्जे मिलना नामुमकिन होता है। 62 साल की उम्र में भी उनकी उंगलियों में वही नजाकत है जो किसी सर्जन की होती है।
12 साल की उम्र से चल रही है ये टिक-टिक वाली कहानी
जावेद का ये हुनर किसी डिग्री से नहीं बल्कि अनुभव की दुकान से निकला है। जब वो छोटे थे उनके घर में इशाख नाम का एक घड़ीसाज किराए पर रहा करता था। इशाख ने जावेद को घड़ियों की दुनिया से रूबरू कराया। वही थे जावेद के पहले उस्ताद। 1940 की एंटीक घड़ी हो या स्विस ब्रांड की कोई महीन मशीन जावेद हर किस्म की घड़ी को फिर से धड़कना सिखा देते हैं। एक ग्राहक स्विट्जरलैंड से निराश होकर लौटे थे लेकिन जावेद ने उस घड़ी को 10 दिन में चालू कर दिया।
न मिलें पार्ट्स तो जुगाड़ ही सही
कई बार घड़ी के पार्ट्स मिलना तो दूर, देखने तक को नहीं मिलते। ऐसे में जावेद पुरानी घड़ियों को खरीदकर उनके पुर्जे अलग कर लेते हैं और जरूरत पड़ी तो खुद से नए पार्ट बना भी लेते हैं। जावेद कहते हैं, “कई लोग अपनी दादी-नानी की घड़ी लेकर आते हैं उन्हें बस घड़ी चलते हुए देखना होता है। जब वो मुस्कराते हैं तो वही मेरी असली कमाई होती है।” अब तक लाखों घड़ियां ठीक कर चुके हैं।
जावेद की है एंटीक घड़ियों की दुकान
घड़ियों से इश्क रखने वाले जावेद केवल मरम्मत तक सीमित नहीं हैं। उनके पास 150 से ज्यादा एंटीक घड़ियां हैं 1943 की सोने की घड़ी जिसकी कीमत ₹1.2 लाख है, से लेकर चांदी की घड़ियों का भी खास कलेक्शन है। जावेद कहते हैं, “पहले रोज 15-20 घड़ियां ठीक कर लेता था अब हर घड़ी के साथ वक्त भी लगता है। मगर मेरी गुडविल है जो बनाऊं, सही बनाऊं। जो हाथ में आए, चालू होकर ही जाए।” घड़ी चलाना तो सब जानते हैं, लेकिन बंद घड़ी को फिर से चलाना वो जादू सिर्फ जावेद के पास है। UP News
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