UP News : उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) में एम.ए. सामाजिक विज्ञान के छात्रों को दिए गए अंकों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। परीक्षा परिणामों में निर्धारित अधिकतम अंकों से भी अधिक अंक दिए जाने की घटनाओं ने विश्वविद्यालय की मूल्यांकन प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। छात्रों में भ्रम और असंतोष व्याप्त है, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन इसे मात्र एक “तकनीकी त्रुटि” बता रहा है।
70 में से 80 अंक? छात्रों की आंखें खुली की खुली रह गईं
मामला एम.ए. (सामाजिक विज्ञान) प्रथम सेमेस्टर के “साइंस आॅफ फूड” विषय के प्रैक्टिकल परीक्षा से संबंधित है। विश्वविद्यालय द्वारा घोषित अंकों के अनुसार, एक छात्र को 70 में से 78 अंक, जबकि एक अन्य को 70 में से 80 अंक प्रदान किए गए। यही नहीं, आंतरिक मूल्यांकन में अधिकतम 30 अंकों में से लगभग सभी छात्रों को एक समान 24 अंक दिए गए, जिससे निष्पक्षता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
छात्र संगठनों का प्रदर्शन, अनियमितताओं की जांच की मांग
इस असामान्य परिणाम के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन किया। एक छात्र बटूल जैदी को कुल 102 अंक (प्रैक्टिकल में 78 और आंतरिक मूल्यांकन में 24) मिले हैं, जो कुल 100 अंकों की प्रणाली में तकनीकी रूप से असंभव है। इसी प्रकार रहमतनुमा नाम की एक अन्य छात्रा को भी बाह्य मूल्यांकन में 78 अंक मिले।
प्रशासन ने मानी गलती, तकनीकी समस्या बताकर सुधार का दावा
कार्यवाहक परीक्षा नियंत्रक प्रो. भूपेंद्र राणा ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे एक तकनीकी गड़बड़ी करार दिया। उन्होंने कहा कि परीक्षकों ने गलतफहमी में अधिकतम अंक 100 मान लिए, जबकि वास्तव में बाह्य परीक्षा के लिए अधिकतम अंक 70 निर्धारित थे। विश्वविद्यालय प्रशासन ने दावा किया है कि त्रुटियों को सुधार लिया गया है और संशोधित अंक पत्र वेबसाइट पर पुन: अपलोड कर दिए गए हैं। UP News
एक सप्ताह में दूसरा विवाद, उठे संस्थागत पारदर्शिता पर सवाल
यह घटना मात्र एक अकेली भूल नहीं मानी जा सकती, क्योंकि एक सप्ताह के भीतर यह मेरठ विश्वविद्यालय में दूसरी बार अंकों को लेकर विवाद सामने आया है। शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की आवश्यकता के इस युग में ऐसी घटनाएं संस्थान की साख को गंभीर क्षति पहुंचाती हैं। शिक्षण संस्थानों से न केवल ज्ञान, बल्कि निष्पक्षता और उत्तरदायित्व की भी अपेक्षा की जाती है। छात्रों के भविष्य से जुड़ी अंकों की प्रक्रिया में इस प्रकार की चूकें यदि अनदेखी की जाएं, तो इससे न केवल छात्र हतोत्साहित होते हैं, बल्कि उच्च शिक्षा की साख भी प्रभावित होती है। अब देखना होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस त्रुटि से क्या सबक लेता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या कदम उठाता है। UP News