UP News : उन्नीसवीं सदी के अंतिम और बीसवीं सदी के शुरुआती दशक में जब भारत ब्रिटिश हुकूमत की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले से एक ऐसा नाम उभरा सुल्ताना डाकू जिसने अंग्रेजों की नींव को हिलाने का काम किया। लेकिन क्या वह सच में डकैत था? या फिर वह एक ऐसा विद्रोही था जिसे जनता ने रॉबिनहुड की तरह देखा? उनकी कहानी, जो आज भी लोकगीतों और जनश्रुतियों में जीवित है, हमें बताती है कि इतिहास केवल किताबों में नहीं लिखा जाता, वह जनभावनाओं में भी साँस लेता है।
हरथला गांव से निकला एक बागी
1901 में मुरादाबाद के हरथला गांव में जन्मे सुल्तान सिंह, भातू (घुमंतू) जाति से थे। एक ऐसा समुदाय जो खुद को महाराणा प्रताप के वंशज के रूप में पहचानता है। उन्होंने अंग्रेजों की जुल्मी नीतियों के खिलाफ विद्रोह का रास्ता चुना। सुल्ताना ने डकैती को हथियार नहीं, बल्कि प्रतिरोध का माध्यम बनाया। मुरादाबाद और बिजनौर के जंगलों से उनकी गैंग की गतिविधियाँ शुरू हुईं, लेकिन उनकी लूट गरीबों के लिए वरदान बन गई।
डकैती नहीं, जनजातीय विद्रोह था ये संघर्ष
ब्रिटिश गजेटियर में दर्ज साक्ष्यों और स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, सुल्ताना की डकैतियाँ दरअसल उस समय के ब्रिटिश दमन के खिलाफ जनजातीय प्रतिरोध का एक रूप थीं। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाया और अपनी लूट का हिस्सा गरीबों, विधवाओं और पीड़ितों में बांटकर एक सामाजिक संतुलन स्थापित करने की कोशिश की। यही कारण था कि आम जनता के बीच उनकी छवि एक नायक की थी न कि केवल एक अपराधी की।
अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ गई थी
ब्रिटिश प्रशासन के लिए सुल्ताना एक सरदर्द बन चुके थे। पुलिसिया प्रयास असफल हो चुके थे, तब जिम कॉर्बेट जिनके नाम पर आज उत्तराखंड का मशहूर नेशनल पार्क है, को इस विद्रोही को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन जंगलों के माहिर जिम भी नाकाम रहे। तब अंग्रेजों ने एक सैन्य अभियान छेड़ा। 300 सैनिकों और 50 घुड़सवारों की टुकड़ी बनाई गई, जिसका नेतृत्व ब्रिटिश पुलिस अधिकारी फ्रेडी यंग को सौंपा गया।
अंतत: पकड़े गए, लेकिन आदर के पात्र बने
कई असफल प्रयासों के बाद, 23 जून 1923 को मुखबिरों की सूचना के आधार पर सुल्ताना को एक जंगल से गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उनकी गिरफ्तारी भी एक युद्ध से कम नहीं थी। 7 जुलाई 1924 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। हालांकि गिरफ्तारी के बाद उनके साहस और सिद्धांतों ने यहां तक कि उनके शत्रु फ्रेडी को भी प्रभावित कर दिया।
फ्रेडी ने अपनाया सुल्ताना का बेटा
फांसी से एक रात पहले सुल्ताना से मिलने पहुंचे फ्रेडी ने जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी, तो सुल्ताना ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनका बेटा इज्जतदार नागरिक बने, सिर उठाकर जिए। इस इच्छा का सम्मान करते हुए फ्रेडी ने उनके बेटे को गोद लिया, उसे पढ़ाया-लिखाया और अंतत: एक आईपीएस अधिकारी बना दिया। UP News
लोकगाथाओं, फिल्मों और उपन्यासों में जिदा हैं सुल्ताना
सुल्ताना डाकू की कहानी महज इतिहास नहीं, बल्कि एक संघर्ष की गाथा है। उन पर कई फिल्में बनीं, उपन्यास लिखे गए और आज भी उनके नाम से जुड़ी कहानियाँ उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में सुनाई जाती हैं। उनकी कथा सामाजिक न्याय, साहस, और संवेदनशीलता का संगम है। एक ऐसी विरासत, जिसे अपराध के नजरिए से नहीं, बलिदान और विद्रोह की दृष्टि से देखना चाहिए। इतिहास ने उन्हें भले ही डाकू कहा हो, लेकिन जनता ने उन्हें ‘रॉबिनहुड’ का दर्जा दिया। UP News
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