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भारत की स्वतंत्रता से पहले ही आजाद हो गया था ये जिला

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UP News : अंग्रेजों की गुलामी से भारत कब आजाद हुआ था ? इस प्रश्न का उत्तर सभी लोग दे देंगे, लेकिन भारत की स्वतंत्रता से पहले ही कौन सा जनपद आजाद हो गया था, यह प्रश्न ​हर किसी के दिमाग की चकरघिन्नी बना सकता है। बड़े से बड़े पढ़े लिखे लोग भी नहीं जानते होंगे कि भारत की आजादी से पहले कौन सा जिला आजाद हो गया था।

आपको बता दें कि भारत को गुलामी की जंजीर से मुक्त कराने के लिए अनेकों शहीदों ने अपने प्राण त्याग दिए थे, जब कहीं जाकर 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था। देश को आजाद कराने के लिए उस वक्त हर उम्र के व्यक्ति ने आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर भागीदारी की थी। देश की वीरांगनाओं ने भी अपने प्राणों की बलि दी थी। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 से पहले ही देश का एक जनपद यानि जिला अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया था।

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आप यह भी जानते होंगे कि मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा अधिवेशन करने के बाद देशभर में आजादी की क्रांति तेज हो गई थी। ब्रिटिश सरकार ने यूपी के बलिया के चित्तू पांडे समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाल रखा था, जिसके बाद स्थानीय लोग 9 अगस्त की शाम को जिला कारगर के बाहर इकट्ठा हो गए थे और अपने नेताओं को रिहा करने की मांग कर रहे थे।

इसके बाद ब्रिटिश काल के डीएम जगदीश्वर निगम और एसपी रियाजुद्दीन मौके पर पहुंचे और जेल में बंद आंदोलनकारियों से मुलाकात की और उन्हें रिहा किया। इसके बाद जिले के सभी सरकारी कार्यलयों पर चित्तू पांडे, राधेमोहन और विश्वनाथ चौबे के नेतृत्व में लोगों ने तिरंगा झंडा फहरा दिया। 19 अगस्त 1942 को यहां के लोगों ने भारत के इस जिले को स्वतंत्र घोषित कर यहां ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र सरकार का गठन किया।

यूपी का बलिया जिला सबसे पहले आजाद होने वाला जिला था जो 19 अगस्त 1942 को आजाद हो चुका था। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने इस जिले में फिर से कब्जा करने की कोशिश की। इस कड़ी में ब्रिटिश गवर्नर जनरल हैलट ने वाराणसी के कमिश्नर नेदर सोल को भेजा, जहां उन्होंने अपने सिपाहियों के साथ गोलियां चलाकर 22 अगस्त की रात ही थाने और सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।

स्थिति गंभीर होते देख प्रयागराज से लेफ्टिनेंट मार्क्स स्मिथ भी बलिया पहुंच गए और ब्रिटिश हुकूमत के आदेश के तहत सभी सरकारी कार्यालय, थानों व तहसील पर अपना कब्जा करना शुरू कर दिया। इस प्रकार सितंबर के पहले सप्ताह में कई लोगों के शहीद होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने फिर से बलिया जिले को अपनी हुकूमत के तहत अधीन कर लिया और चित्तू पांडे समेत अन्य आंदोलनकारियों को फिर से जेल में डाल दिया।

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