Uttar Pradesh News : लोकसभा के चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है। उत्तर प्रदेश में हारने के कारणों पर पूरी भाजपा में गुणा-भाग चल रहा है। इस गुणा-भाग के बीच उत्तर प्रदेश में एक पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही है। उत्तर प्रदेश की बहुत पुरानी कहावत है कि “हिसाब ज्यों का त्यों फिर भी कुनबा डूबा क्यों”। यह कहावत इन दिनों उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की हार पर भारतीय जनता पार्टी के ऊपर फिट बैठ रही है।
क्या है उत्तर प्रदेश की पुरानी कहावत का सार?
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में गणित के एक शिक्षक औसत निकालने में बड़े ही चतुर थे। शिक्षक महोदय हर समस्या का हल औसत में निकाला करते थे। एक दिन शिक्षक महोदय उत्तर प्रदेश में ही अपने गांव से दूसरे गांव में जा रहे थे। रास्ते में एक छोटी सी नदी पड़ी। शिक्षक ने नदी की गहराई एक बांस के जरिए नाप ली। नापने के बाद नदी की गहराई का औसत नापा वह औसत चार फुट निकला। फिर उन्होंने अपनी, अपनी पत्नी की और बच्चों की लम्बाई नाप कर उसका औसत निकाला तो साढ़े चार फुट आया। उन्होंने सोचा सब निकल जाएंगे। परिवार जब नदी पार करने लगा तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे। किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया। शिक्षक महोदय ने किनारे पहुँच कर यह सोच-विचार किया कि कहीं हिसाब लगाने में कोई गलती तो नहीं हुई। फिर हिसाब जोड़ा तो वही साढ़े चार फुट आया। इस पर उत्तर प्रदेश के शिक्षक महोदय ने कहा कि – “हिसाब ज्यों का त्यों फिर भी कुनबा डूबा क्यों”? यह कहावत आज भी उत्तर प्रदेश में खूब सुनाई जाती है।
उत्तर प्रदेश में कहावत हुई चरितार्थ
उपरोक्त कहावत “हिसाब ज्यों का त्यों फिर भी कुनबा डूबा क्यों”? इन दिनों उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पर चरितार्थ हो रही है। उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक भाजपा के सब लोग कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में राम मंदिर की लहर, योगी तथा मोदी की जोड़ी का मैजिक, जातीय तथा धार्मिक समीकरण सभी कुछ भाजपा के पक्ष में थे। इन्हीं समीकरणों के आधार पर उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीट जीतने की योजना भी बनाई गई थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि प्रदेश के आधे से अधिक सीट भाजपा के हाथों से खिसक गई। पूरी भाजपा में उत्तर प्रदेश की हार को लेकर गुणा-भाग चल रहा है। अगले कुछ दिनों के बाद पता चलेगा कि आखिर उत्तर प्रदेश में कुनबा डूबा क्यों?
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